Ardhangini - 69 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 69

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 69

मैत्री से पार्लर जाने के लिये तैयार होने का कह कर बबिता उसके कमरे से अपने कमरे मे तैयार होने चली गयीं और तैयार होने के बाद अपने पति विजय को बताकर कि वो मैत्री के साथ जा रही हैं... दोनो सास बहू पार्लर के लिये निकल गयीं.... उन दोनो के घर से जाने के बाद विजय ने भी घर का दरवाजा बंद किया और अपने कमरे मे आराम करने के लिये चले गये...  विजय अपने कमरे मे लेटे आराम कर रहे थे कि मैत्री और बबिता के पार्लर जाने के करीब तीन घंटे बाद डोर बेल बजी.... डोरबेल की आवाज सुनकर विजय अपने बिस्तर से उठे और दरवाजा खोलने के लिये दरवाजे की तरफ जाने लगे.... दरवाजा खोलते ही वो दो सेकंड तक तो चुप रहे... ऐसे जैसे उन्हे शॉक सा लगा हो... लेकिन दो सेकंड के बाद वो बोले- जी बहन जी... किससे मिलना है....?? 

विजय के ऐसा कहने पर वो लेडी जो दरवाजे पर खड़ी थी उसके पीछे से हंसने की आवाज आयी और मैत्री हंसते हुये सामने आकर बोली- पापा जी.... ये मम्मी जी... 

मैत्री की बात सुनकर विजय हैरान होते हुये बोले- अरे बबिता तुम.... ये क्या करवा लिया... तुम तो पहचान मे ही नही आ रही हो....

"अरे हटिये अन्दर जाने दीजिये आपके तो नखरे ही अलग हैं" मुस्कुरा कर ऐसा कहते हुये बबिता ने विजय को साइड किया और घर के अंदर आ गयीं.... अंदर आकर बबिता ने मैत्री से कहा- देखा मैत्री मैने कहा था ना कि ये ऐसा ही करेंगे.... 
बबिता की बात सुनकर विजय हंसते हुये बोले- अरे पर मैने जिसे पार्लर भेजा था वो तो कोई और थी.... पर ये जो पार्लर से आयी है वो तो कोई और ही है.... 

असल मे मैत्री ने बबिता से पार्लर मे जिद करी थी कि बबिता भी अपने बालो पर कलर करवा के फेशियल, थ्रेडिंग वगैरह करवा लें... बबिता ने हिचकते हुये मना भी किया था लेकिन जब मैत्री ने जिद करी तो उन्हे मैत्री की जिद के आगे झुकना पड़ा.... मैत्री ने बबिता के बाल कलर करवा के बालो को कर्ली भी करवा दिया था... 

मैत्री भले ही बबिता के साथ पार्लर गयी थी और वहां से घूमते घामते और खाते पीते वापस आयी थी पर उसकी नजर बार बार घड़ी पर ही पड़ रही थी... और उसका मन अभी भी ये ही कह रहा था कि कब शाम हो और कब उसके नाथ जी उसके सामने आकर खड़े हो जायें.... ऐसे ही एक एक पल का इंतजार करते करते शाम को 6 बजते ही आखिरकार वो पल आ ही गया जब जतिन और मैत्री दोनो का इंतजार खत्म होने वाला था.... चूंकि आज जतिन का मन भी नही था ऑफिस जाने का और ऑफिस जाकर भी उसका मन नही लग रहा था काम मे तो आज वो जल्दी घर आ गया... और वैसे भी उसे मैत्री के कहे वो शब्द बार बार याद आ रहे थे जिनमे उसने जतिन से कहा था कि "टाइम से घर आ जाइयेगा, मै आपका इंतजार करूंगी.." बस यही सब सोचकर जतिन आज जल्दी घर आ गया था.... घर पंहुचने के बाद जैसे ही जतिन की नजर बबिता पर पड़ी वो हैरान सा होकर बबिता से बोला- अरे मम्मा... वाह वाह क्या बात है.. मम्मी आज तो आप बहुत क्यूट लग रही हो... पर ये बदलाव कैसे?? (ऐसा कहते हुये जतिन ने बबिता को गले से लगा लिया) 

जतिन के मुंह से अपने लिये तारीफ सुनकर बबिता ने कहा- मैत्री को लेकर पार्लर गयी थी मै.... वहां ये जिद करने लगी कि मै भी मेकअप करवा लूं... बस इसीलिये करवा लिया... 
बबिता के अपनी बात कहने पर जतिन बहुत खुश हुआ और पास ही खड़ी मैत्री की तरफ देखकर उसने अपनी आंखे मिचकाते हुये उसे ऐसे इशारा किया मानो वो कहना चाहता हो कि "थैंक्यू मैत्री".... मैत्री को भी जतिन की ये प्रतिक्रिया देखकर बहुत अच्छा लगा... 
चूंकि मैत्री आज सुबह से सोच रही थी कि वो ऐसा क्या करे जो उसके नाथ जी उससे खुश हो जायें तो इसीलिये जब बबिता ने उससे पार्लर जाने के लिये कहा था तभी उसके दिमाग मे एक आइडिया आया था और वो आइडिया था कि "जतिन जी की खुशियां सबसे जादा अपने परिवार की खुशियो से खासतौर पर मम्मी जी से जुड़ी हुयी हैं और हर औरत का सपना भी होता है कि वो सजे संवरे श्रंगार करे तो मम्मी जी के मेकओवर से जादा अच्छा और क्या हो सकता है जतिन जी को खुशियां देने के लिये" और ये सोचते हुये मैत्री ने उसी समय निर्णय ले लिया था कि किसी भी कीमत पर वो बबिता को अपने मेकओवर के लिये मना लेगी.... और अपनी मम्मी बबिता को देखने के बाद जतिन के चेहरे की खुशी ने साफ साफ बयां कर दिया था कि जतिन को खुश करने के लिये बनायी गयी मैत्री की योजना सफल हो गयी थी.... जतिन वाकई मे बहुत खुश था लेकिन उसने जब बबिता की तारीफ करी तो बबिता ने कहा- रहने दे बेटा... तू भी मेरा मजाक बना रहा है ना अपने पापा की तरह... 

बबिता की बात सुनकर जतिन ने कहा- नही मम्मी कसम से आप सच मे बहुत क्यूट लग रही हो.... और पापा भी आपका मजाक नही उड़ा सकते वो बस ऐसे ही आपकी टांग खींच रहे होंगे.... हैना पापा... 

पास ही बैठे अपने पापा विजय की तरफ देखते हुये जतिन ने ये बात कही तो विजय बोले- देख रही हो बबिता... जो बात तुम चालीस साल की शादी मे नही समझ पायीं वो बात हमारा बेटा सैंतीस साल की उम्र मे ही समझ गया.... वो जानता है कि मै तुम्हारे साथ मजाक जरूर करता हूं पर तुम्हारा मजाक कभी नही उड़ाता..... 

इसके बाद जतिन ने बबिता के कंधे पर हाथ रखे रखे कहा- अच्छा आप दो मिनट रुको आपको मेरी बात पर यकीन नही है ना.... 
ऐसा कहते हुये जतिन ने अपनी जेब से अपना मोबाइल निकाला और ज्योति को वीडियो कॉल कर दी... और फोन का कैमरा बबिता के सामने कर दिया.... ज्योति ने जैसे ही वीडियो कॉल रिसीव करके बबिता को देखा तो कुछ सेकंड्स तक तो वो बबिता को देखती ही रह गयी... फिर एकदम हैरान सी हुयी बोली- मम्मा.... आप तो बिल्कुल बदल गये.... Mamma you are looking so cute.... आज ये कैसे हो गया... 

ज्योति की प्रतिक्रिया देखकर बबिता ने कहा- मै मैत्री को लेकर पार्लर गयी थी वहां ये जिद करने लगी कि मै भी कुछ करवा लूं तो मै मना नही कर पायी और मैने करवा लिया.... 

मैत्री का जिक्र सुनकर ज्योति को बहुत अच्छा लगा ये सोचकर कि "भाभी कितनी अच्छी हैं मेरी मम्मी का कितना ध्यान रख रही हैं" ये सोचते हुये ज्योति ने कहा- मम्मा भाभी कहां हैं जरा उनको फोन दीजिये.... 

ज्योति के ऐसा कहने पर बबिता ने फोन मैत्री को दे दिया.... इसके बाद ज्योति ने मैत्री से कहा- थैंक्यू भाभी... जो आप मम्मी का इतने अच्छे से ध्यान रख रही हैं.... और अच्छा किया आपने जो जिद करके मम्मी का भी मेकओवर करवा दिया... वरना ये तो कभी पार्लर वार्लर जाती ही नही थीं.... 

इसके बाद मैत्री से थोड़ी देर बात करके ज्योति ने फोन काट दिया.... और बाद मे सबने साथ बैठकर शाम की चाय और नाश्ता किया... लेकिन नाश्ता करते करते जतिन ने एक शैतानी करी मैत्री के साथ.... वो बार बार मैत्री की तरफ देख रहा था और ठसका सा मार कर शैतानी वाली हंसी हंस रहा था.... और जतिन को ऐसा करते देख कर मैत्री बार बार ये सोच रही थी कि "आखिर ये आज ऐसे अजीब तरीके से क्यो हंस रहे हैं.... जरूर कुछ बात है... जो ये बता नही रहे हैं" 

नाश्ता करने के बाद जतिन अपने कमरे की तरफ जाने लगा... और कमरे मे जाते हुये भी उसने मैत्री की तरफ देखा और ऐसे ही शैतानी भरे लहजे मे हंसते हुये कमरे मे अंदर चला गया.... मैत्री समझ गयी थी कि कल उसने जतिन के साथ शैतानी करी थी तो हो सकता है आज उसके साथ कोई शैतानी होने वाली हो.... यही सोचते हुये जतिन के कमरे मे जाने के थोड़ी देर बाद वो भी कमरे मे किसी काम से चली गयी.... जब मैत्री कमरे मे गयी तो उसने देखा कि जतिन चुपचाप बिस्तर पर बैठा अपने आप मे ही मुस्कुराते हुये अपने लैपटॉप पर काम कर रहा है.... लेकिन जैसे ही मैत्री अंदर कमरे मे गयी जतिन ने फिर से मैत्री को देखकर ठसका सा मारते हुये वैसी ही हंसी हंसी... जतिन को ऐसे बार बार हंसते देखकर हल्का सा हंसते हुये मैत्री ने जतिन से कहा- क्या करने वाले हो आप.... 
मैत्री की बात सुनकर जतिन जोर से हंसा और अपना सिर हिलाकर झुकाते हुये फिर हंसने लगा.... जतिन की ऐसी अजीब सी प्रतिक्रिया देखकर मैत्री उसके पास गयी और बोली- बताइये ना क्या शैतानी करने वाले हैं आप.... 

मैत्री के ऐसा कहने पर जतिन उसकी तरफ प्यार से देखकर हंसा और जैसे ही कुछ बोलने को हुआ उसके फोन की रिंग बजने लगी... और वो बोलते बोलते रुक गया और फोन रिसीव करके बोला- हां जी... जी जी... जी मै बस पंहुच रहा हूं... आपके पंहुचने से पहले मै पंहुच जाउंगा.... 

फोन पर ऐसा कहकर पास ही बैठी मैत्री से जतिन ने कहा- मैत्री मै एक डेढ़ घंटे मे आया... जरा एक जरूरी काम आ गया है.... 

इससे पहले कि मैत्री कुछ पूछ पाती जतिन अपनी जगह से उठा और कार की चाभी लेकर कहीं चला गया.... 

जतिन के जाने के बाद मैत्री सोच मे पड़ गयी कि आखिर आज ये मुझे देखकर ऐसे क्यो हंस रहे थे जैसे कुछ शैतानी करने वाले हों.... और ये अचानक से कहां चले गये... यही सब सोचते हुये मैत्री जब अपने कमरे से बाहर आयी तो बाहर ड्राइंगरूम मे बैठे विजय ने भी मैत्री से यही पूछा - मैत्री बेटा ये जतिन कहां गया है इतनी तेजी मे.... 

चूंकि जतिन ने मैत्री को भी कुछ नही बताया था तो मैत्री ने कहा- पता नही पापा जी... बस एक फोन आया और एक डेढ़ घंटे मे आने का कह कर निकल गये.... 

इसके बाद मैत्री डिनर बनाने के लिये रसोई मे चली गयी... मैत्री जो सुबह से अपने नाथ जी की वाट जोह रही थी वो उसके ऐसे बिना कुछ बताये जाने से उदास सी हो गयी... और सोचने लगी "मै सुबह से इसी इंतजार मे थी कि कब ये आयें और कब हम ढेर सारी बाते करें पर इन्होने तो बात भी नही करी बस हंसते रहे और अचानक से जाने कहां चले गये.... मुझसे बात करने से भी जादा जरूरी काम हो जैसे.. आने दो इन्हे मै इनसे बात ही नही करूंगी... बात तो क्या मै इनके पास ही नही जाउंगी और इन्हे देखकर ऐसे ही हसुंगी जैसे ये हंस रहे थे..... "   

खाना बनाते बनाते और उदास होकर यही सब सोचते सोचते समय कब बीत गया पता ही नही चला.... जतिन के घर से जाने से करीब सवा घंटे के बाद दरवाजे की बैल बजी.... बैल की आवाज सुनकर ड्राइंगरूम मे बैठे टीवी देख रहे विजय अपनी जगह से उठे और दरवाजा खोलने चले गये... उन्होने जब दरवाजा खोला तो देखा जतिन सामने खड़ा है और उसके हाथ मे बड़ी सी ट्रॉली वाली अटैची है.... जतिन को देखकर विजय ने कहा- कहां चला गया था जतिन बिना किसी को कुछ बताये... मैने तो कहा था बबिता से कि फोन करके पूछो पर उसने मना कर दिया कि रहने दीजिये जरूरी काम से ही गया होगा आ जायेगा तब पूछ लेना.... इसलिये मैने फोन नही किया... और ये इतनी बड़ी अटैची साथ मे क्यो....?? 

अपने पापा की बाते सुनकर जतिन हंसने लगा और बोला- अंदर तो चलिये पापा जी.... 

ऐसा कहकर जतिन के अंदर आने के बाद विजय एकदम से चौंक कर बड़े खुश होते हुये बोले- ओय होय होय होय... भाईसाहब बहन जी आप...!!! 

विजय के सामने मैत्री के मम्मी पापा जगदीश प्रसाद और सरोज खड़े थे....!!   
घर के अंदर आने के बाद जगदीश प्रसाद भी खुश होते हुये अपने समधी विजय के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये तो उन्हे ऐसे हाथ जोड़ कर खड़े देख विजय ने बड़े ही हर्षित तरीके से कहा- अरे भाईसाहब आप हाथ मत जोड़ा करिये आप तो गले मिला करिये... 

ऐसा कहते हुये विजय ने जगदीश प्रसाद को गले से लगा लिया.... इधर दूसरी तरफ दरवाजे की तरफ हो रही हलचल की आवाज सुनकर ड्राइंगरूम मे ही बैठी टीवी देख रही बबिता ने जब दरवाजे की तरफ देखा तो वो भी एकदम से चौंक गयीं और खुश होकर अपनी जगह से उठकर "अर्रे वाह... क्या बात है... ये तो बहुत बड़ा सरप्राइज़ है" कहते हुये जगदीश प्रसाद और सरोज की तरफ खुश होते हुये जाने लगीं... बबिता को अपनी तरफ आते देख सरोज भी बहुत खुश होते हुये उनकी तरफ बढ़ने लगीं.... सरोज के पास आते ही बबिता ने उन्हे बहुत ही जादा खुश होते हुये गले से लगाया तो सरोज ने कहा- बहन जी आज आप बहुत प्यारी लग रही हैं.... 

सरोज के ऐसा कहने पर बबिता ने हंसते हुये कहा- बस बहन जी सब मैत्री की वजह से ही है.... वो मेरा इतना ध्यान जो रखती है.... 

इधर रसोई मे काम कर रही मैत्री को अचानक से ऐसा लगा जैसे उसे उसकी मम्मी सरोज की आवाज आ रही है... उसने थोड़ा ध्यान से सुना तो उसे लगा जैसे दरवाजे के पास से हंसने बोलने की आवाजें आ रही हैं.... आशंकित सी नजरे लिये मैत्री ने रसोई के दरवाजे पर आकर ड्राइंगरूम की तरफ देखा तो उसकी तो जैसे चीख ही निकल गयी.... अपने मम्मी पापा को अपने पास देखकर मैत्री "हाय राम मम्मी पापा... यहां... इस वक्त" बोलकर एकदम से प्रफुल्लित सी हुयी जैसे उनकी तरफ दौड़ने लगी हो ऐसे तेज तेज कदमों से चलकर उनके पास गयी और "मम्मा.... ऐसे कैसे अचानक... और अभी शाम को तो हमारी बात हुयी थी तब तो आपने कुछ नही बताया" 

मैत्री को प्यार से गले लगाते हुये सरोज ने कहा- ये सारी प्लानिंग जतिन बेटे की करी हुयी है.... इन्होने दोपहर मे ही हमे फोन करके कहा था कि आज तो आप लोगो को आना ही पड़ेगा... फिर राजेश से कहकर हमे ट्रेन मे बैठलवा दिया... और इन्होने ही कसम देकर कहा था कि चाहे जो हो जाये ये बात मैत्री को बिल्कुल नही बतानी है... मै उसे सरप्राइज देना चाहता हूं... तो हम आ गये... 

सरोज की बात सुनकर जतिन को लेकर जो उदासी मैत्री के मन मे थी वो जाने कहां चली गयी और खुश होते हुये मैत्री ने जतिन की तरफ देखा और ठीक वैसे ही अपनी आंखे मिचकाते हुये जतिन को इशारा करते हुये "थैंक्यू" कहा जैसे थोड़ी देर पहले जतिन ने कहा था... 

इसके बाद मैत्री अपने पापा जगदीश प्रसाद के पास गयी और उनके गले लगकर बोली- पापा मुझे बिल्कुल दूर दूर तक कोई उम्मीद नही थी कि आज की रात मेरे लिये इतनी खुशियां लेकर आयेगी.... आप दोनो को यहां ऐसे अचानक से देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.... 

जगदीश प्रसाद ने प्यार से मैत्री के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा- सब जतिन बेटे का कमाल है... हमने भी नही सोचा था कि आज हम ऐसे अचानक से अपनी गुड़िया से मिलेंगे.... 

असल मे वो कॉल जो जतिन के पास आया था वो जगदीश प्रसाद का ही था.... जतिन ने उनसे कहा था कि ट्रेन जब रास्ते मे पड़ने वाले शहर उन्नाव पर पंहुचने वाली हो तब वो उसे कॉल करके बता दें तो वो उन्हे लेने स्टेशन आ जायेगा.... चूंकि मैत्री की ही तरह जतिन भी आधे दिन तक यही सोचता रहा था कि वो ऐसा क्या करे जो मैत्री उससे बहुत खुश हो जाये तब उसके दिमाग मे आइडिया आया था कि "मैत्री अपने मम्मी पापा से बहुत प्यार करती है तो क्यो ना मैत्री को सरप्राइज़ देते हुये उन्हे ही अचानक से कानपुर बुला लिया जाये... अगर ऐसा हुआ तब तो मैत्री एकदम से खुश हो जायेगी" बस यही सोचकर जतिन ने जगदीश प्रसाद और सरोज को दबाव डालकर घर बुला लिया था...  और हुआ भी वही... अपने मम्मी पापा को अचानक से अपने सामने देखकर मैत्री के चेहरे पर खुशी के जो भाव आये थे उन्होने ये साबित कर दिया था कि मैत्री को खुश करने के लिये बनायी गयी जतिन की गुप्त योजना बेहद सफल हो गयी थी.... और मैत्री को इस तरह से खुश देखकर जतिन भी मन ही मन फूला नही समा रहा था.... उसे खुश और खुशी से खिलखिलाती मैत्री बहुत अच्छी लग रही थी.... 

क्रमशः