आज भले जतिन और मैत्री के बीच उनके दिल मे एक दूसरे के लिये छुपे प्यार का इजहार नही हो पाया था लेकिन उन दोनो के हाव भाव ने... एक दूसरे के लिये समर्पित शब्दो ने, एक दूसरे के समर्पण और एक दूसरे को खुश रखने की भावना ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था.... जहां एक तरफ जतिन के प्यार की चाशनी मे डूबी मैत्री अपनी साड़ी का पल्लू हवा मे लहरा के मदहोश सी हुयी झूमी जा रही थी वहीं जतिन भी बस मैत्री के साथ बिताये गये उन पलो को याद करके बहुत खुश हो रहा था...
जतिन को ऑफिस गये हुये अभी करीब पंद्रह मिनट ही हुये थे लेकिन उसके प्यार की खुश्बू से सराबोर मैत्री की नजरें अभी से ही बार बार घड़ी की तरफ देख रही थीं और सोच रही थीं कि "कितनी जल्दी शाम हो और मेरे नाथ जी मेरे सामने आकर खड़े हो जायें".... कमोवेश यही हाल जतिन का भी था... घर से निकलने के थोड़ी देर बाद ऑफिस के अंदर बने अपने केबिन मे जाते ही उसकी भी नजर सबसे पहले घड़ी की सुइयों की तरफ ही गयी और वो भी ये सोचते हुये अपना मन मसोसने लगा कि" यार अभी तो पूरे आठ नौ घंटे बाकि हैं घर वापस जाने मे और अपनी मैत्री को फिर से देखने मे..."
जहां एक तरफ मैत्री ये सोच रही थी कि "ऐसा क्या करूं जो मेरे नाथ जी मुझसे खुश हो जायें... कुछ अच्छा सा डिनर बनाऊं या सोलह सिंगार करूं... या फिर कुछ और... कुछ ऐसा जिसे देखकर नाथ जी एकदम से प्रफुल्लित हो जायें.... ".... वहीं दूसरी तरफ जतिन का दिमाग भी आज काम मे कम और इस बात को सोचने मे जादा लगा हुआ था कि" ऐसा क्या करूं जो मेरी अर्धांगिनी मेरी मैत्री इतनी खुश हो जाये कि आज के आज ही अपने प्यार का इजहार करके हमेशा के लिये, हर तरह से मेरी हो जाये... ".... आज जतिन ने भले ही उस समय मैत्री से कह दिया था कि "मै इंसान हूं मुझे इंसान ही रहने दो... नाथ जी बोलकर परमेश्वर मत बनाओ" लेकिन अपनी अर्धांगिनी के मुंह से अपने लिये इतने सम्मानजनक शब्द सुनकर जतिन को बहुत अच्छा महसूस हो रहा था.... वो ऑफिस के अपने केबिन मे अकेला बैठा मुस्कुरा रहा था और मैत्री के खयालो मे खोया ऐसा महसूस कर रहा था जैसे अब से उसकी जिंदगी के मायने ही बदल गये हैं.....
इधर घर पर जतिन के खूबसूरत खयालो मे डूबी मैत्री "आज शाम को मै अपने नाथ जी के लिये ये काम करूंगी तो वो खुश हो जायेंगे, नही नही कुछ और करूंगी जिससे वो खुश हो जायें" इसी उधेड़बुन मे लगी अपने बिस्तर पर पेट के बल लेटी अपने आप को ही जैसे समझा रही थी... कि तभी मैत्री के दरवाजे पर दस्तक हुयी और बबिता ने आवाज लगाते हुये कहा- मैत्री बेटा....!!
बबिता की आवाज सुनकर जतिन के खयालो मे खोने की वजह से ये भूल चुकी मैत्री कि उसे सबके साथ बैठना चाहिये था.... एकदम से चौंकी और सोचने लगी कि "हे भगवान मै तो सीधे अंदर चली आयी, मम्मी जी और पापा जी से तो कुछ बात ही नही करी...अब क्या करूं... हां एक काम करती हूं"... ये सोचकर मैत्री ने अपनी अलमारी खोली और फटाफट से कुछ कपड़े उस अलमारी मे से निकाल कर बिस्तर पर डाल दिये और तेज तेज कदमो से चलकर दरवाजे की तरफ जाने लगी.... मैत्री ने दरवाजा खोला तो बबिता ने मुस्कुराते हुये कहा- आराम कर रही थीं क्या मैत्री.... डिस्टर्ब तो नही किया ना...
मैत्री ने कहा- नही नही मम्मी जी.... कुछ कपड़ो की तह खराब हो गयी थी मै बस वही ठीक कर रही थी... आप आइये ना अंदर आइये ना....
इसके बाद बबिता कमरे मे अंदर आ गयीं... बबिता जब कमरे मे अंदर आयीं तो मैत्री ने देखा कि बबिता के हाथ मे एक एल्बम है.... बबिता कमरे मे अंदर आयीं और मैत्री को अपने बगल मे बैठाकर वो एलबम खोलते हुये बोलीं- इस एक एल्बम मे हमारे पूरे परिवार की... जतिन और ज्योति के बचपन की यादें समायी हुयी हैं... ये कहते हुये बड़े उत्साह से बबिता ने मैत्री को वो एलबम दिखानी शुरू करी.... मैत्री भी अपने नये परिवार के अतीत की झलकियां फोटो के जरिये देखने के लिये बहुत उत्साहित थी....
बबिता ने एलबम खोलकर मैत्री को फोटो दिखाते हुये कहा- ये देखो मैत्री ये तुम्हारी दादी सास हैं.... ये बहुत अच्छी थीं.... और मेरे साथ तो मां जी को बहुत लगाव था... चूंकि तुम्हारे पापा जी सब भाई बहनो मे सबसे बड़े थे इसलिये हमारी शादी सबसे पहले हुयी थी.... और मां जी खासतौर पर मेरे लिये वो साड़ी लेने बनारस गयीं थीं जो तुमने शादी वाले दिन पहनी थी...
बबिता के मुंह से उस साड़ी का जिक्र सुनकर मैत्री खुश होते हुये बोली- मम्मी जी वो साड़ी बहुत प्यारी है... जब ज्योति दीदी ने वो साड़ी वाला बैग मुझे दिया तो मै तो उठा ही नही पा रही थी.... जब उस बैग को खोलकर देखा तो वो साड़ी मुझे देखने भर से ही बहुत अच्छी लगी थी.... नेहा भाभी और सुरभि भाभी को भी वो साड़ी बहुत पसंद आयी थी..... नेहा भाभी ने तो उस साड़ी का पल्लू अपने ऊपर डालकर भी देखा था.... उन्हे वो साड़ी बहुत पसंद आयी थी....
मैत्री की बात सुन रही बबिता ने बड़े प्यार से मैत्री के चेहरे पर अपनी हथेली रखी और मुस्कुराते हुये कहा- ठीक है... अबकी बार बनारस जायेंगे तो तुम चारो (नेहा, सुरभि, मैत्री और ज्योति) के लिये बढ़िया सी बनारसी साड़ी लेकर आयेंगे... और हमे कुछ दिनो मे काशी विश्वनाथ बाबा के दर्शन करने जाना भी है ज्योति की डिलीवरी के बाद....
बबिता की बात सुनकर खुश होते हुये मैत्री ने कहा- जी मम्मी जी ठीक है... मम्मी जी मैने तो उसी दिन डिसाइड कर लिया था कि वो साड़ी मै भी शादी वाले दिन ही पहनूंगी....
मैत्री की बात सुनकर बबिता ने कहा- बेटा मुझे बहुत अच्छा लगा था उस दिन ये सोचकर कि हमारे घर की नयी बहू ने शादी से पहले ही हमारे परिवार की परंपराओ और तौर तरीकों का मान रख लिया... तुम्हारे पापा जी ने भी बाद मे मुझसे कहा था कि "आज मैत्री को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उस साड़ी के जरिये मेरी माता जी ने स्वर्ग से ही मैत्री को अपना आशीर्वाद दे दिया हो".... उन्हे भी बहुत अच्छा लगा था तुम्हे उस साड़ी मे देखकर......
बबिता के मुंह से अपने लिये इतने प्यार और सम्मान भरे शब्द सुनकर मैत्री मन ही मन गदगद सी हुयी जा रही थी... एक अजीब सी खुशी, एक अजीब सा सुकून था उसके मन मे.... और यही सुकून लिये वो सोच रही थी कि "आजतक जितना भी प्यार और सम्मान मैने अपने इस नये परिवार के सदस्यो को दिया है... हमेशा उसका दोगुना प्यार और सम्मान मुझे और मेरे परिवार को दिया है सब लोगो ने... मै सच मे धन्य हो गयी यहां आकर"
मैत्री ये सारी बाते सोच सोच कर खुश हो ही रही थी कि तभी बबिता ने एलबम की फोटो के जरिये अपने परिवार के अन्य सदस्यो के बारे मे बताते हुये मैत्री से कहा- ये देखो मैत्री ये तुम्हारे बड़े चाचा चाची... ये छोटे चाचा चाची... ये इनके बच्चे....
फोटो दिखाते दिखाते बबिता मैत्री को अपने परिवार की सारी बाते बहुत खुश होते हुये बता रही थीं.... और मैत्री भी बबिता की हर बात को ध्यान से सुनते हुये बड़े ही सम्मान और नये परिवार के बारे मे जानने के उत्साह के साथ कुछ ना कुछ... कुछ ना कुछ पूछे जा रही थी...
सबकी फोटो दिखाने के बाद बारी आयी मैत्री के नाथ जी की बचपन की नटखट शैतानियो वाली फोटो दिखाने की.... मैत्री जो जतिन के प्यार की खुशबू मे पहले से ही डूबी हुयी थी.... जतिन की बचपन की फोटो देखकर और जादा खुश होते हुये उसकी फोटो देखती जा रही थी और बबिता से पूछे जा रही थी कि "इस फोटो मे ये क्यो रो रहे हैं... इस फोटो मे तो शैतानी कर रहे हैं" वगैरह वगैरह....
जतिन की फोटो देखकर उत्साहित हुयी जा रही मैत्री के उत्साह और खुशी को बबिता समझ गयी थीं और उनको बहुत अच्छा लग रहा था मैत्री की बातो मे जतिन के लिये प्यार देखकर.... जतिन की बचपन की बाते बताते हुये बबिता ने मैत्री से कहा- चूंकि हमारी शादी घर मे सबसे पहले हो गयी थी इसलिये जतिन भी सारे बच्चो मे सबसे बड़ा है... और अपनी दादी का बेहद लाडला भी... जतिन बचपन मे बहुत शैतान था... एक मिनट के लिये भी चैन की सांस नही लेने देता था... हर समय उछल कूद उछल कूद बस.... जतिन की शैतानियो से परेशान होकर अगर गलती से भी इसे एक थप्पड़ मार दो भले हल्के से भी तो ये बहुत दुख करके रोता था.... मै इसे बार बार कहती थी कि "बेटा चुप हो जा दादी देख लेंगी तो मुझे बहुत डाटेंगी..." पर ये लड़का तब तक रोता था जब तक दादी इसे रोते ना देख लें....
बबिता को बीच मे रोकते हुये मैत्री ने पूछा- ऐसा क्यो मम्मी जी...!! आपको डांट खाते हुये देखने के लिये??
बबिता मुस्कुराते हुये कहा- नही नही मैत्री बेटा तब तो ये बहुत छोटा था... इसे इतनी अक्ल ही नही थी कि डांट खिलाने से क्या फायदा और क्या नुकसान.... ये तो जानबूझकर कर रोता था क्योकि इसकी दादी इसे रोते देख कर खूब सारा प्यार करते हुये कोल्ड-ड्रिंक पिलाती थीं... वो आती थी ना कंचे वाली कोल्ड-ड्रिंक... वो इसे बहुत पसंद थी.... जतिन को रोते देख इसकी दादी इसे दुलारते हुये कहती थीं - देखो बहुरिया... चाहे कछु हो जाये तुम हमाये लड्डू के ऊपर हाथ ना उठाओ करो...
बबिता के मुंह से जतिन के लिये लड्डू शब्द सुनकर मैत्री हंसने लगी और हंसते हुये बोली - मम्मी जी लड्डू???
बबिता भी हंसते हुये बोलीं- अरे लड्डू गोपाल...!!
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये बबिता ने कहा- एक दिन जतिन की शैतानियो से परेशान होकर मैने इसे एक थप्पड़ मार दिया तो ये रोते हुये अपनी दादी के पास चला गया... उन्होने जतिन को रोते हुये देखा तो मुझपर गुस्सा करने लगीं तो मैने धीरे से कह दिया- मां जी शैतानियां भी तो करता है कितनी....
तो मां जी बोलीं- तो का हो गयो अगर शैतानियां करत है तो... जे नही करेगा तो का हम लोग करिहैं शैतानियां... जो हमाओ कान्हा है, वोऊ तो बचपन मे ऐसई शैतानियां करो करत ते.... बहुरिया तुमने कबहूं सुनो है कि जसोदा मइया ने कबहूं कान्हा जी पर हाथ उठाओ हो.... फिर तुम काहे उठात हो... बड़ा हुयी जैहे तो मन शांत होय जैहे....
अपनी सास की बात बताते बताते बबिता उन्हे याद करने लगीं और थोड़ी सी भावुक होकर मैत्री से बोलीं- उनकी डांट भी इतनी प्यारी होती थी ना कि हम लोग भी कभी कभी बेकार मे ही ऐसे काम कर देते थे जिन्हे देखकर वो हमें डांटे..... बहुत प्यारी थीं वो... जिस दिन वो हम सबको छोड़कर बैकुंठ प्रवास पर गयीं उस दिन उनके बेटो से जादा हम बहुयें रोयी थीं.... जाने से दो तीन दिन पहले ही उनको जैसे आभास हो गया था कि अब उनके पास जादा समय नही है.... इसलिये एक दिन सारे बेटो और बहुओ को अपने पास बुलाकर अपनी कांपती हुयी आवाज मे उन्होने कहा- देखो हमाये प्यारे बच्चो.... हमे लग रहो है कि समय आ गओ है हमाओ तुम्हाये पिता जी के पास जावयें को... विजय बउवा तुम और बबिता बहुरिया तुम हमाये बाद सबसे बड़े हो.... तुम इन सबको माता पिता की तरह ही ध्यान रखना....
बबिता अपनी बात करते करते भावुक हो रही थीं.... उनको भावुक होते देख मैत्री ने उनकी हथेली अपने हाथ मे ले ली... इसके बाद बबिता बोलीं- अपनी ये बात बोलने के बाद मां जी पलंग पर लेटे लेटे हाथ जोड़कर कहने लगीं... "हमायी एक विनती मान लियो तुम लोग.... ये घर तुम्हाये पिता जी ने बड़ी मेहनत से बनवाओ हतो... इसको बंटवारा मत होने दियो...".... मां जी अपनी बात कहते कहते फफक कर रोने लगीं और उनकी ये बात सुनकर हम सब को भी रोना आ गया.... मां जी के जुड़े हुये हाथ देखकर तुम्हारे पापा जी इतने भावुक हो गये कि उनके पास जाके जमीन पर बैठकर उनके हाथ पकड़ के अपने माथे से लगाकर बहुत रोये.... इनको रोते देख मां जी और जादा भावुक हो गयीं और कंपकपाते हुये होठों से फफकते हुये हम बहुओ की तरफ देखकर बोलीं- बहुत सेवा की है हमायी बहुरियन ने हमायी... भगवान ऐसी बहुरियां सबको दें.... बिटिया जितना तुम लोग हमाये लाने किये हो उसका हजार गुना भगवान तुम सबको देयी... "
इसके बाद उन्होने सारे बच्चो को खासतौर से जतिन को बहुत प्यार किया.... बस इसके ठीक तीसरे दिन मां जी ने शरीर त्याग दिया...
अपनी बात कहते कहते बबिता सुबकने लगीं उन्हे ऐसे सुबकते देख मैत्री की भी आंखो मे आंसू आ गये... और उसने बबिता को बगल मे बैठे बैठे ही अपनी बांहो मे ले लिया और बड़े प्यार से उनके कंधे पर सिर रख कर भावुक से हुये लहजे मे बोली- दादी जी की बाते सुनकर मेरा भी मन होने लगा कि काश मै भी उनसे मिलकर उनका प्यार पा पाती....
मैत्री की बात सुनकर बबिता सुबकते हुये बोलीं- वो थीं ही ऐसी.... पूरे परिवार को एक सूत्र मे बांध के रखा और जाते जाते भी सबको एक सूत्र मे बांध के चली गयीं..... तुम्हारे पापा जी का तो मन ही नही लगा उस घर मे उनके जाने के बाद.... उनके जाने के करीब दो साल बाद ही हम कानपुर शिफ्ट हो गये.... और तीनो भाइयो ने तब से लेकर आजतक कभी भी बंटवारे की बात नही करी.... आज भी वो घर हम सबका है.... मैत्री हम लोग जल्दी ही चलेंगे अपने पुश्तैनी मकान मे सबसे मिलने के लिये.....
इसके बाद भावुक सी हुयी बबिता ने अपने कंधे पर सिर रखकर बैठी मैत्री के गालो पर प्यार से हाथ फेरते हुये कहा- मैत्री बेटा... जब मै चली जाउंगी तो क्या तुम मुझे भी ऐसे ही याद करोगी???
बबिता की बात सुनकर मैत्री ने झट से अपना सिर उनके कंधे से उठाया और भावुक होते हुये बोली- प्लीज ऐसे मत बोलिये मम्मी जी अभी हमे दिन ही कितने हुये हैं मिले हुये... अभी तो मुझे बहुत सेवा करनी है आपकी और पापा जी की... इतना कुछ सीखना है मुझे आपसे अभी....
भावुक हुयी बबिता ने मैत्री की ये बात सुनकर उसे अपने सीने से लगा लिया और प्यार से उसका कंधा सहलाने लगीं..... मैत्री जो प्यार और जो सम्मान बबिता को दे रही थी ये उसी का परिणाम था कि बबिता मैत्री से एक सास की तरह नही बल्कि एक सहेली की तरह अपने दिल की बात कहे जा रही थीं.... ऐसा लग ही नही रहा था कि सास और बहू आपस मे बात कर रहे हैं... ऐसा लग रहा था मानो बरसो से बिछड़ी दो सहेलियां आज मिली हों और अपनी बाते एक दूसरे को बता रही हों.... ये वाकई एक अद्भुत बात थी.... वरना सास बहू का जिक्र आते ही दिमाग मे ताने तुश्की, बुराइयां यही सब बाते आने लगती हैं....
थोड़ी देर तक बबिता मैत्री को ऐसे ही अपनी बांहो मे लिये बैठी रहीं फिर अपने आप को संभालते हुये बोलीं- मैत्री बेटा... तुम्हे पता है ना कि कल हमे ज्योति का सतमासा पूजने जाना है...
मैत्री ने कहा- हां जी पता है...
बबिता ने कहा- तो अगर तुम चाहो तो पार्लर हो आओ...
मैत्री ने कहा- मम्मी जी जाना तो है पर मै यहां कानपुर मे कुछ जानती ही नही हूं.... मुझे पता ही नही है कि पार्लर कहां है....
बबिता ने कहा- ओह हां..... ज्योति भी तो नही रुक पायी यहां तुम दोनो की शादी के बाद.... अम्म्म् अच्छा एक काम करो... मेरे साथ चलो... मै चलती हूं....
मैत्री खुश होते हैरान सी होते हुये बोली- मम्मी जी सच मे.... आप चलेंगी!!
बबिता ने कहा - हां जरूर चलूंगी... और हम ना चाट और पानी के बताशे खाकर आयेंगे....
बबिता की बात सुनकर मैत्री एकदम से खुश होते हुये बोली- वॉव मम्मी जी मजा आ जायेगा.... मुझे बहुत अच्छे लगते हैं पानी के बताशे (पानी पूरी)....
बबिता ने कहा- एक बात बताऊं मैत्री...
मैत्री ने कहा- जी मम्मी जी...
बबिता बोलीं- जतिन मेरा बेटा जरूर है.... पर गया बिल्कुल अपने पापा पर है... एकदम बोरिंग है....
बबिता की बात सुनकर मैत्री हंसने लगी और हंसते हुये बोली- ऐसा क्यो मम्मी जी...
बबिता ने कहा- अरे इन दोनो मे से किसी के साथ भी बाहर जाओ तो ये लोग कुछ खाने ही नही देते.... ये कहकर "अरे ये पानी के बताशे भी कोई खाने की चीज है... पता नही कैसा पानी है क्या है".... बस मुंह बंद करके मार्केट जाओ और मुंह बंद करके चले आओ.... मै और ज्योति तो चुपचाप खाकर आ जाते थे किसी को बताते ही नही थे..... कौन सुने इन लोगो की बातें.... और एक दिन खाने से कुछ नही होता....
बबिता की बात सुनकर मैत्री हंसे जा रही थी और सोच रही थी कि" मम्मी जी का नेचर कितना मस्त है"
क्रमशः