Teri Meri Yaari - 4 in Hindi Children Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | तेरी मेरी यारी - 4

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तेरी मेरी यारी - 4


    (4)




करन के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था। मि.लाल भी कुछ बताने को तैयार नहीं थे। इन सबके कारण कबीर परेशान था। करन उसका बचपन का दोस्त था। दोनों हमेशा साथ साथ रहते थे। एक ही स्कूल में पढ़ते थे। एक साथ ही स्कूल आते जाते थे।


क्लास दो से शुरू हुई उनकी दोस्ती ग्यारहवीं क्लास तक आते आते बहुत मज़बूत हो गई थी। इतने सालों की दोस्ती में कई ऐसे पल थे जिन्हें याद कर कबीर करन के लिए और अधिक परेशान हो जाता था। दो साल पहले का एक ऐसा ही किस्सा था जिसने उनकी दोस्ती को एक नया आयाम दिया था।


अठवीं क्लास के अंतिम कुछ महीने ही बचे थे। सर्दियों के एक रविवार को दोनों ने पिकनिक जाने का प्लान बनाया। दिन बहुत सुहावना था। हल्की गुनगुनी सी धूप खिली थी। बैग में खाने का सामान और कुछ ज़रूरी सामान रखा और दोनों दोस्त अपनी अपनी साइकिल से पिकनिक स्पॉट की तरफ रवाना हो गए। रास्ते में दोनों अपना पसंदीदा गाना गा रहे थे।


'यारों दोस्ती बड़ी ही हसीन है....


ये ना हो तो क्या फिर बोलो ये ज़िंदगी है.....'


हंसते गाते दोनों पिकनिक स्पॉट पर पहुँच गए। उन लोगों ने पिकनिक मनाने के लिए एक ऐसी जगह चुनी थी जहाँ बहुत अधिक लोग आते जाते नहीं थे। उनके घर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक झील थी। उसके आसपास हरियाली थी। कबीर और करन दोनों को ही प्रकृति से लगाव था। अपनी उम्र के और बच्चों की तरह उन्हें मॉल्स या अन्य भीड़ वाली जगहों पर जाना पसंद नहीं था। वह इससे पहले भी दो तीन बार यहाँ आ चुके थे। यहाँ के शांत माहौल में बैठ कर बातें करना, आई पॉड पर मनपसंद गाने सुनना या कोई किताब पढ़ना उन्हें अच्छा लगता था। लेकिन कबीर को स्केचिंग करना सबसे ज़्यादा पसंद था।


वहाँ पहुँच कर दोनों ज़मीन पर चादर बिछा कर बैठ गए। कबीर अपनी स्केचबुक लेकर स्केच बनाने लगा। करन साथ लाई एक किताब पढ़ने लगा। बहुत देर तक दोनों अपने अपने मनपसंद काम में व्यस्त रहे। अपना स्केच पूरा करने के बाद कबीर ने करन से कहा,


"मुझे तो भूख लग रही है। तुम्हें नहीं लग रही है क्या ?"


"हाँ लगी तो है। चलो साथ लाए सैंडविच खाते हैं।"


झील के किनारे एक जगह मिट्टी का ढेर लग जाने के कारण एक टीला जैसा बन गया था। दोनों उस पर चढ़ गए। टीले के किनारे पैर नीचे लटका कर बैठ गए। सैंडविच खाते हुए दोनों बात करने लगे। करन ने कहा,


"अब हम नौवीं क्लास में चले जाएंगे। तुमने कुछ सोचा है आगे क्या करना है।"


कबीर ने जवाब दिया,


"अभी तक तो कुछ नहीं सोचा। वो तुम मेरे कज़िन को जानते हो ना अभय। वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। आजकल यूएस में हैं। पापा चाहते हैं कि मैं भी इंजीनियर बन कर यूएस जाऊँ। पर मेरा मन इंजीनियरिंग करने का नहीं है। मुझे फाइन आर्ट्स करना है।"


करन ने कहा,


"तो प्रॉब्लम क्या है ? तुम अच्छे स्केचेस बनाते हो। उनसे कह दो।"


कबीर उसकी तरफ देख कर हंस दिया। वह बोला,


"बताया था। बोले बेवकूफ हो तुम...यह सब शौक तक ठीक है। प्रोफेशन नहीं बन सकता।"


कबीर की बात सुनकर करन गंभीर स्वर में बोला,


"ये हमारे पैरेंट्स हमें बेवकूफ क्यों समझते हैं। क्या हम कुछ भी सोचने समझने की शक्ति नहीं रखते।"


"पता नहीं वह ऐसा क्यों सोचते हैं ? लेकिन मैंने तय कर लिया है कि समय आने पर मैं वही करूँगा जो मैं चाहता हूँ।"


कबीर ने करन से कहा,


"तुम बताओ....तुम्हारा क्या विचार है ?"


करन ने जवाब दिया,


"यार करना तो मैं भी कुछ क्रिएटिव ही चाहता हूँ। कभी लगता है कि लेखक बन जाऊँ। कभी एक्टर बनने का खयाल आता है। पर मेरे घर वाले भी यही कहते हैं कि इंजीनियर बन जाओ। देखो मैं क्या करता हूँ।"


"कुछ ना कुछ तो करेंगे ही। पर जो करेंगे मन लगा कर करेंगे।"


करन ने कबीर की इस बात से सहमति जताई।


बातें करते हुए देर हो गई थी। दोनों घर वापस लौटने के लिए उठने लगे। पता नहीं कैसे कबीर का पांव फिसला और वह झील में गिर गया। कबीर तैरना नहीं जानता था। करन ने भी केवल कुछ ही दिन तैरना सीखा था। पर पिछले दो साल से प्रैक्टिस नहीं की थी। लेकिन आसपास कोई दिख नहीं रहा था। करन जानता था कि ज़रा सी देर कबीर की जान को खतरे में डाल सकती है। बिना वक्त गंवाए करन झील में कूद गया।


करन ने कबीर को पकड़ लिया और किनारे ले जाने की कोशिश करने लगा। पर उसे दिक्कत हो रही थी। कुछ ही दूरी पर लड़कों का एक ग्रुप भी पिकनिक मना रहा था। उन्होंने जब यह देखा तो उनमें से दो लड़के पानी में कूद कर सहायता के लिए पहुँच गए। वो कबीर और करन को सुरक्षित किनारे पर ले आए। उन लड़कों ने करन के साहस की तारीफ की कि यदि वह हिम्मत ना करता और सही समय पर कबीर को पकड़ ना लेता तो वह डूब जाता।


उस दिन से कबीर और करन की दोस्ती और मज़बूत हो गई। कबीर मन ही मन करन का एहसान मानता था। अब वह करन को खोज कर इस एहसान का बदला चुकाना चाहता था। उसने तय कर लिया कि अब वह अपनी तरफ से करन को खोजने का प्रयास करेगा। 


कबीर अब हर वक्त करन की मदद करने के बारे में सोचता रहता था। लेकिन वह करन को कैसे खोजे यह समझ नहीं पा रहा था। करन के बारे में अब तक कोई जानकारी हाथ नहीं लगी थी। किडनैपर करन को कहाँ ले गए ? वह किस हाल में है ? इन सारे सवालों को लेकर कबीर बहुत परेशान था। 


कबीर उस दिन के मि.लाल के बर्ताव से समझ गया था कि वह कुछ छिपा रहे हैं। उनके और किडनैपर के बीच आगे कोई बात ज़रूर हुई होगी। करन की खोज शुरू करने के लिए यह जानना ज़रूरी था कि उनके बीच क्या बात हुई। पहले उसने सोचा कि जाकर मि. लाल से मिले और उनसे रिक्वेस्ट करे कि उसे सारी बात बताएं। अपने इस विचार को उसने तुरंत ही छोड़ दिया। वह जानता था कि मि. लाल उसे तो हरगिज़ कुछ नहीं बताएंगे। अगर नराज़ हो गए तो करन के बारे में कुछ भी जानने के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे।


उसके मन में यह भी आया कि वह इंस्पेक्टर आकाश से जाकर बात करे। फिर उसे लगा कि वो भी क्यों कुछ बताएंगे। अगर वह अपनी तरफ से ये बता दे कि मि. लाल कुछ छिपा रहे हैं तो इंस्पेक्टर आकाश मि. लाल से बात कर सकते हैं। लेकिन एक समस्या थी। अगर मि. लाल और किडनैपर के बीच कोई नई डील हुई हो और पुलिस के बीच में आने से फिर बिगड़ जाए तो उसका दोस्त बहुत बड़े खतरे में आ जाएगा। 


वह सोच रहा था कि कोई उपाय निकाल कर मि. लाल और किडनैपर के बीच आगे क्या हुआ पता करने की कोशिश करे। 


उसे करन की बहन सोनम का खयाल आया। वह सोच रहा था कि सोनम कुछ ना कुछ तो जानती ही होगी। उसे पता था कि सोनम ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है। वह ग्रीनवुड पब्लिक स्कूल के जूनियर सेक्शन में पढ़ती थी। कबीर ने तय किया कि कल ही वह सोनम से स्कूल में मिलने की कोशिश करेगा।