Lawaris - 4 in Hindi Love Stories by puja books and stories PDF | लावारिस....!! (एक प्रेम कहानी) - 4

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लावारिस....!! (एक प्रेम कहानी) - 4











आज तक किसी शादी में ना जाने की वजह से शंकर वहा अंजान लोगो के बीच जाने से कतरा रहा था लेकिन राहुल को ना भी नही कह सकता था और जाना पड़ा शादी में हर रसम में सब की मदद में खाना पानी चाय कॉफी बड़े बुजुर्गो में बैठ उनकी मदद तक में शंकर को कोई संकोच नहीं रहा क्यू की मेजर साहब ने खुद उसे वहा ये कह कर परिचय करवाया था की ये मेरे राहुल का बड़ा भाई है , हमारा बेटा ।


शादी से पहले नौजवान बैठे नाच गाना कर रहे थे राहुल जानता था की शंकर को गाना और माउथ ऑर्गन बजाना बहुत अच्छे से आता है उसने काव्या से कहा 
राहुल :– " जा के शंकर को यहां ले आ नहीं तो वो बूढो के बीच बैठ गया तो उठेगा नही " 


काव्या आई और शंकर से बोली ....
काव्या :– " भैया चलो वहा राहुल बुला रहा है, " 


शंकर :– " हां तू चल मैं आता हु ,"


तो काव्या ने उसका हाथ पकड़ कर घसीटते हुए सा कहा चलो ना वहा आपकी जरूरत है और उसे उठ कर जाना ही पड़ा। वहा जा के देखा तो राहुल 25 से 30 लड़के लड़कियों के साथ बैठा अंताक्षरी खेल रहा था और उसमे परिवार की कुछ औरते भी शामिल बैठी एंजॉय कर रही थी।


शंकर के पहुंचते ही राहुल ने कहा "अब अपनी टीम का जीतना पक्का है मेरा भाई जो आगया।"
(शंकर की तरफ मुड़ कर) "और यार तू भी कहा बुजुर्गो में बैठा है यहां देख हम हार रहे है जल्दी से t पर कोई गाना गा हम अटक गए है।"


शंकर ने पहले तो सब को देखा तो थोड़ा चुप रहा फिर राहुल के जोर देने पर स्टार्ट कर दिया 


तू कल चला जाएगा तो में क्या करूंगा तू याद बहुत आयेगा तो मैं क्या करूंगा, तू कल बिछड़ जाएगा तो मैं क्या करूंगा तू मुझको भूल जाएगा तो मैं क्या करूंगा...


थोड़ी देर में फिर राहुल की टीम अटक गई इस बार शब्द था j


शंकर को राहुल ने माउथ ऑर्गन पकड़ा दिया और उसने देखा तो बजाने से खुद को ना रोक सका ये उसकी कमजोरी सी ही है और उसने लाइट सी धुन गुन गुनाई सॉन्ग था..


जानेमन जानेमन जानेमन जानेमन


जानेमन किसी का नाम नहीं फिर भी ये नाम होंठो पे ना हो ऐसी कोई सुबह नहीं शाम नहीं 


जानेमन...
मैने सिर्फ खयालों में ख्वाबों की सेज सजाई है दिल की खाली दीवारों पर एक तस्वीर बनाई है तस्वीरों पे मरता हूं वक्त गुजारा करता हु मै महबूब की गलियों का कोई आशिक बदनाम नहीं ।


जानेमन...


कल की बाद खुदा जाने पर आज तलक वो बात नहीं दिल पर बदल छाए है पर आंखों में बरसात नहीं ऐसा मैं दीवाना हु ऐसा मैं मस्ताना हू प्यास तो है इन होंठो पर लेकिन हाथो में जाम नहीं ।


जानेमन जानेमन...


एक बार सामने वाले k शब्द पे अटक गए तो उन्होंने शंकर को अपनी टीम में खींच लिया और शंकर को उनकी तरफ से गाना पड़ा


किस नाम से तुझको याद करू दुश्मन भी है तू यार भी है, मैं तुझसे नफरत करता हु लेकिन तुझसे ही प्यार भी है।


किस नाम से तुझको याद करू..


तू शाद रहे आबाद रहे लेकिन ये तुझको याद रहे यादों को दिल से भुला देना आसान भी है दुश्वार भी है मैं तुझसे नफरत करता हूं लेकिन तुझसे ही प्यार भी है प्यार भी है..


इंसाफ ये है तू कातिल है लेकिन कुछ कहना मुश्किल है तेरी चालाक निगाहों में इकरार भी है इंकार भी है मैं तुझसे नफरत करता हु लेकिन तुझसे ही प्यार भी है..


(गाना गाया जा रहा था और वहीं सुनीता और राजेश्वर भी आकर बैठ गए)


ये सुन कर मैं हैरान हुआ सामान हुआ इंसान हुआ हर चीज जहां पर बिकती है इस शहर में वो बाजार भी है दुश्मन भी है तू यार भी है 
मैं तुझे नफरत करता हु लेकिन तुझसे ही प्यार भी है प्यार भी है...


मेजर बोले " वाह भाई ये तो बहुत अच्छी आवाज में गाते हो वैसे शंकर आखिर ये दुश्मन और यार है कौन जिससे तुम नफरत और प्यार दोनो करते हो ??"


शंकर ने उदास आंखों से देखा और कहा " मुझे ही नहीं पता आखिर कहीं तो होंगे वो " मेजर समझ गए वो मां बाप के बारे में बोल गया है और फिर बात बदल दी अब " मैं भी खेलता हु चलो "


और शब्द आगया f और वही चुप हो गए और शंकर काव्या का हाथ पकड़ के बीच में ले आया और गाना स्टार्ट कर दिया 


फूलो का तारो का सबका कहना है 
एक हजारों में मेरी बहना है सारी उमर हमे संग रहना है


देखो हम तुम दोनो है इक डाली के फूल
मैं ना भुला तुझको तू कैसे गई मुझे भूल 
आ मेरे पास आ कह जो कहना है
सारी उमर हमे संग रहना है


इतने में फिर g वर्ड आया तो राहुल ने स्टार्ट किया ही था की उनकी टीम से किसी लड़की ने कहा नही नही तू चुप कर बेसुरे गाना तो शंकर ही गाएगा कितना दर्द भरी आवाज और सुर है और सब हंसने लगे


काव्या बोली मेरे भाई को नजर मत लगा😂और शंकर ने गया


गीत गाता हूं मैं गुन गुनाता हु मैं
मैने हसने का वादा किया था कभी 
इस लिए अब सदा मुस्कुराता हु मै...


इतने में ही शादी की रसम शुरू हुई सब वहा मशरूफ हो गए फेरे हुए बारात रवाना हुई कई लड़की वालो की और से लड़किया भी शंकर को देख बाते करना चाहती रही पर शंकर ने किसी से नहीं बोला और सब वापस लौट गए ऐसा खुशहाल मोका राहुल की वजह से शंकर की जिंदगी में पहली बार आया था जब पारिवारिक माहौल में जाने का मौका मिला उसे और उसने कई ऐसे लम्हों को जिया जो शायद फिर उसकी जिंदगी में कभी नहीं आने वाले थे।


मां के हाथ की वो रोटी का स्वाद बहन की राखी बाप का सहारा राहुल जैसा भाई सब मिला उसे राहुल के घर से । 


फिर मेजर साहब भी ड्यूटी के लिए गांव से निकल गए और राहुल और शंकर भी कॉलेज के लिए शहर जाने को निकले की मां और बहन उदास हो गए ।


काव्या ने उदासी भरे लहजे में कहा " ना तो पापा यहां रहते है न आप दोनो मैं तो 3 3 भाई की बहन होते भी अकेली ही रहती हु।"


(कहानी जारी रहेगी..)