**कहानी: अनुशासन का महत्त्व**
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था जिसका नाम था आरव। आरव बहुत होशियार और चतुर था, लेकिन उसमें एक कमी थी—वह अनुशासन में नहीं था। उसे सुबह जल्दी उठना, होमवर्क करना, और समय पर खाना खाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी माँ उसे बार-बार समझाती, लेकिन आरव को अपनी मस्ती ज्यादा प्यारी थी।
एक दिन, स्कूल में आरव को एक बड़ी प्रतियोगिता के बारे में पता चला। यह एक दौड़ प्रतियोगिता थी, और जो बच्चा इसे जीतता, उसे गाँव का सबसे तेज़ दौड़ने वाला बच्चा माना जाता। आरव ने सोचा, "मैं तो तेज दौड़ता हूँ, यह दौड़ तो मैं आसानी से जीत जाऊँगा।"
आरव ने दौड़ में हिस्सा लिया और तैयारी करने का फैसला किया। लेकिन जैसा कि उसकी आदत थी, उसने अनुशासन से अभ्यास नहीं किया। कभी-कभी वह अभ्यास करने जाता, तो कभी नहीं। कभी दौड़ने के बजाय वह अपने दोस्तों के साथ खेलने में लग जाता। उसे लगता था कि एक दिन अभ्यास कर लेने से ही वह दौड़ जीत जाएगा।
दूसरी ओर, आरव का दोस्त नीरज भी उसी दौड़ में हिस्सा ले रहा था। नीरज इतना तेज़ नहीं था, लेकिन उसमें एक गुण था—अनुशासन। नीरज हर दिन सुबह जल्दी उठता, ठीक समय पर अभ्यास करता, और रात को समय पर सोता। वह धीरे-धीरे अपनी गति में सुधार कर रहा था, लेकिन कभी भी अनुशासन से पीछे नहीं हटता था।
दौड़ का दिन आया। सभी प्रतिभागी मैदान पर इकट्ठे हुए। आरव आत्मविश्वास से भरा हुआ था, जबकि नीरज शांत और ध्यानमग्न था। जैसे ही दौड़ शुरू हुई, आरव ने तेज़ी से दौड़ना शुरू किया, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वह थकने लगा। उसकी साँस फूलने लगी और उसके पैर भारी हो गए। उसने बहुत दिन ठीक से अभ्यास नहीं किया था, इसलिए उसकी ताकत जल्दी खत्म हो गई।
नीरज, जिसने अनुशासन से नियमित अभ्यास किया था, धीमी शुरुआत के बावजूद स्थिर गति से दौड़ रहा था। उसने अपनी ऊर्जा को सही तरह से बाँट रखा था। जैसे-जैसे दौड़ आगे बढ़ी, नीरज ने अपनी गति बढ़ाई और अंत में पहले स्थान पर पहुँच गया। आरव, जो शुरुआत में आगे था, धीरे-धीरे पीछे रह गया और दौड़ हार गया।
जब दौड़ खत्म हुई, तो आरव उदास था। उसने सोचा, "मैंने तो सोचा था कि मैं आसानी से जीत जाऊँगा। लेकिन यह क्या हुआ?"
नीरज ने उसे समझाया, "आरव, दौड़ जीतने के लिए सिर्फ तेज़ होना ही काफी नहीं है। अनुशासन भी ज़रूरी है। मैं तुमसे तेज़ नहीं था, लेकिन मैंने नियमित रूप से मेहनत की, अनुशासन से अभ्यास किया और इसलिए मैं दौड़ जीत पाया।"
आरव को नीरज की बात समझ में आई। उसने महसूस किया कि अनुशासन के बिना प्रतिभा भी अधूरी है। उसने अपने जीवन में अनुशासन को अपनाने का निश्चय किया। अब वह सुबह जल्दी उठने लगा, समय पर होमवर्क करता, और हर काम को ध्यान से करता। धीरे-धीरे उसकी पढ़ाई में भी सुधार होने लगा और वह स्कूल में सबसे अच्छे छात्रों में गिना जाने लगा।
कई महीने बाद फिर से वही दौड़ प्रतियोगिता आयोजित हुई। इस बार आरव ने नीरज की तरह अनुशासन के साथ पूरी तैयारी की। उसने रोज़ अभ्यास किया, अपना खान-पान सुधारा, और नियमित रूप से अपने शरीर को मजबूत बनाया। जब दौड़ का दिन आया, तो इस बार आरव पूरी तरह से तैयार था।
जैसे ही दौड़ शुरू हुई, आरव ने नीरज से सीखे हुए अनुशासन का पालन किया। उसने अपनी गति को सही से बाँट कर रखा और आखिर में वह दौड़ जीत गया। इस बार जीत उसकी मेहनत और अनुशासन का फल था।
आरव ने उस दिन एक महत्वपूर्ण सीख ली—अनुशासन के बिना किसी भी लक्ष्य को पाना मुश्किल होता है। चाहे कितना भी होशियार या तेज़ हो, यदि अनुशासन नहीं है, तो सफलता दूर रह सकती है। अनुशासन ही सफलता की कुंजी है।
शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे हम कितने भी प्रतिभाशाली हों, यदि हम अनुशासन के साथ मेहनत नहीं करते, तो हम अपने लक्ष्यों तक नहीं पहुँच सकते। नियमितता, समय प्रबंधन, और संयम से ही हम जीवन में बड़ी सफलताएँ प्राप्त कर सकते हैं।