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स्नेहिल नमस्कार मित्रों
हम सबको अपने जीवन में इतना जूझना पड़ता है कि एक समय ऐसा आता है कि हम थकने लगते हैं | कई बार यह बात भी मन में आती रहती है कि आखिर हमें इस दुनिया में आने की भला जरूरत ही क्या और क्यों थी ? ऐसा तो हमने इस दुनिया में आकर कर क्या लिया ? हम जानते कहाँ हैं कि हम क्यों आए हैं लेकिन इतना तो समझ सकते हैं कि हमें बनाने में प्रकृति का कितना बड़ा योगदान है | हमें कितनी संवेदनाओं से भरपूर बनाकर इस धरती पर भेज गया है | हमने न देखा हो ईश्वर को लेकिन उनका आभास किसी न किसी रूप में हमें सदा होता रहता है जो हमें आभासित कराता है कि हम अपनी संवेदनाओं को सही प्रकार से और सही दिशा में खर्च करें न कि अविवेकी होकर कुछ भी सोचकर,, दूसरों के बारे में अनर्गल बोलते, सोचते रहें | हमारे भीतर जो हरदम चलता रहता है, वह हमें सचेत भी कराता है
कभी-कभी तो मन इतना विचलित होने लगता है कि हमारा ध्यान अपने ऊपर से हटकर दूसरों की ओर जाने लगता है और मन सोचने लगता है कि वह किसी भी हालत में हमसे बेहतर नहीं है, न ही सुंदरता में, न ही बुद्धि में और दूसरों की अच्छाई दिखाई न देखकर हम उनकी बुराइयों पर नज़र दौड़ाने लगते हैं और वहीं हम अपने जीवन में गलत कर बैठते हैं | हम अपने खुद के लक्ष्य से भटककर दूसरे के झरोखे में झाँकने लगते हैं
कई बार हमें अपने जीवन के लक्ष्य का भी आभास नहीं होता और हम भटककर रह जाते हैँ |
जीवन में लक्ष्य तक पहुंचने के अनेक रास्ते हैं, लेकिन सही राह का चयन करना बेहद जरूरी है। कई बार मुश्किल रास्ते को छोड़कर हम आसान की तरफ भागते हैं। यदि सही मार्ग मुश्किल भरा हो और सफलता उसी में छिपी हुई है, तो कठिन रास्ते को अपनाने में ही समझदारी है। इसके लिए दृढ़ संकल्प, लेकिन शुभ संकल्प का होना जरूरी है। यानी संकल्प अच्छे, सकारात्मक विचार के साथ लिया गया हो। इसलिए सही समय पर सही साधन और विवेक के साथ आगे बढ़ने में अवश्य कल्याण होता है|
कोई भी खूबसूरत हो सकता है,परफेक्ट नही होता । उसमे कमियां हैं पर शायद वो ही उसकी खूबियां हैं। मतलब अपरिपूर्णता में भी परिपूर्णता है। हम किसी की दृष्टि में सुंदर हो सकते हैं लेकिन हम स्वयं इस बात को महसूस करते हैं कि हम परफेक्ट नहीं हैं | कई बार हमें कोई गलती करने के बाद तुरंत ही ख्याल आ जाता है कि हमसे गलती हुई है लेकिन कभी लंबे समय तक हम इस भ्रम में बने रहते हैं कि हमसे कोई गलती हो ही नहीं सकती |
जापानी दर्शन है 'वाबी-साबी', यह जीवन को देखने, समझने और उसे जीने का एक नया नजरिया देता है।
यह कमियों, असमानताओं, नश्वरता, और अधूरेपन में सुंदरता देखता है। हमें प्रेरित करता है कि कमियों को नजरअंदाज कर उसमें बसे सौंदर्य को देखें और उसका आनंद लें। जब भी कभी हम किसी चीज को बदसूरत मानते हुए भी स्वीकार कर लेते हैं, तब हमें उसमें भी सुंदरता का आभास होता है। ये दोनों स्थितियां अलग अलग नही है। नजरिया, परिस्थिति ओर समय सही हो तो सुंदरता कहीं भी दिख सकती है।
दरसल, हर बात के पीछे हमारी सोच है जो हमें गलत-सही, अँधेरे-उजाले का बोध कराती है |
हमारे मन से अधिक उपजाऊ कोई और स्थान नहीं है | हम अपने मन में जो कुछ भी बोते हैं, उसमें अंकुर फूटते हैं और उसकी बढ़त होती है |
हम अपने मन में कोई गलत विचार डालें तो वह नकारात्मक रूप से बढ़ता है और यदि अच्छा विचार डालें तब वह सकारात्मक रूप से बढ़ता है और हमें घनी शीतल छाया देता है |
महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने मन में नफ़रत, ईर्ष्या, अथवा प्रेम किसका बीज बो रहे हैं | जैसा बीज बोएंगे वैसा ही विचार पनपेगा क्योंकि ईश्वर अथवा प्रकृति ने हमें सभी अद्भुत चीज़ों को मिलाकर बनाया है |
मित्रों! चलिए इस विचार से जीवन को एक नई दृष्टि से देखने, समझने का प्रयत्न करते हैं |
आप सबकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती