How to have healthy, beautiful, virtuous, long-lived and divine children? - 4 in Hindi Women Focused by Praveen kumrawat books and stories PDF | स्वस्थ, सुंदर, गुणवान, दीर्घायु-दिव्य संतान कैसे प्राप्त करे? - भाग 4

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स्वस्थ, सुंदर, गुणवान, दीर्घायु-दिव्य संतान कैसे प्राप्त करे? - भाग 4

गर्भस्थ शिशु से क्या बाते करें? कैसे बात करें?

हमारे पास दो मन है। एक हमारा बाह्य मन (Conscious Mind) एवं दूसरा हमारा अंतर्मन (Sub & conscious Mind)। जिसे हम जागृत मन एवं अर्धजागृत मन के नाम से भी जानते है। हमारा बाह्य मन हमारे जागते हुए कार्य करता है. परंतु अर्धजागृत मन 24 घंटे कार्यरत रहता है। बाह्य मन से सोची प्रत्येक बात जीवन में सच हो यह आवश्यक नहीं, परंतु अंतर्मन में जो बात स्थापित हो जाये वह जीवन में सत्य हो कर ही रहती है क्योंकि हमारा अंतर्मन वैश्विक मन (Cosmic Mind या परमात्मा) से जुड़ा रहता है। यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि मां के मन में आने वाला प्रत्येक विचार जो उसके अंतर्मन को छू ले चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक शिशु के अंतर्मन में जाना निश्चित है। अतः यहाँ गर्भ संस्कार के स्वरूप में सुसंस्कार एवं कुसंस्कार दोनों की संभावना बन जाती है।

यह गर्भ संस्कार का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है कि गर्भस्थ शिशु से कैसे बात की जाए? क्या बात की जाए अब यह तो हम समझ चुके हैं कि शिशु के पास मां के अंतर्मन द्वारा जाने वाला प्रत्येक भाव चाहे वह कैसा भी हो शिशु के अंतर्मन में स्थापित हो जाता है। नियम के अनुसार प्रत्येक अंतर्मन वैश्विक मन से जुड़ा रहने के कारण शिशु के जीवन में वह भाव उजागर होना निश्चित हो जाता है, इसलिए नौ माह में किए गए गर्भ संस्कार अत्यंत शक्तिशाली बन जाते है।

गर्भ के दौरान आदर्श संतुलित आहार ग्रहण करें ताकि उसके मस्तिष्क का अच्छा विकास हो सके। उसके मस्तिष्क में ज्यादा जानकारिया इकट्ठा हो सकें, स्मरण शक्ति तीक्ष्ण हो सके तथा त्वरित निर्णय लेने में सक्षम हो। गर्भसंस्कार सही अर्थों में गर्भस्थ शिशु के साथ माता का स्वस्थ संवाद है। भले ही गर्भस्थ शिशु को भाषा का ज्ञान नहीं होता लेकिन वह माता के मस्तिष्क में आने वाली हर जानकारी का अर्थ ग्रहण कर सकता है। इसलिए गर्भ के शिशु के साथ अर्थपूर्ण बातें करें।

ब्रह्माण्ड का यह भी नियम महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति के जैसे भाव एवं विचार रहते है वैसा ही उसका जीवन बन जाता है। इसे आकर्षण के सिद्धांत (Law of Attraction) के नाम से जाना जाता है। गर्भवती के मन में जितने विचार आते है, वह अप्रत्यक्ष (indirectly) रूप से शिशु के साथ बात करने जैसा ही है। माँ अगर कुछ पढ़ती है तो वह भी अप्रत्यक्ष रूप से शिशु सवांद बन जाता है। माँ कुछ सुनती है तो वह भी अप्रत्यक्षतः शिशु से संवाद ही है, परंतु जान-बुझकर शिशु के साथ प्रत्यक्ष बात करना यह महत्वपूर्ण है।

आराम कुर्सी पर बैठकर या किसी भी आरामदायक स्थिती में बैठकर या सोकर किसी भी समय शिशु संवाद का यह प्रयोग आप कर सकती है। यह पूरी बातचीत मन में या बोलकर भी कर सकते हैं।

★ सबसे पहले पूरा शरीर ढीला व शिथिल (Relax) कर दें। अपनी सांसो पर ध्यान दें।

★ 10 गहरी सांसें लेने के बाद अपना ध्यान अपने गर्भस्थ शिशु के पास ले जाएँ। चेहरे पर हल्की मुस्कान लाय एवं शिशु को आवाज दें। मन शांत होने पर शिशु को मन ही मन आवाज दें। कहें “अगर तुम मेरी आवाज सुन रहे हो तो जवाब दो।”, कभी कभी शिशु का जवाब आएगा, वो आप अपने भीतर महसूस कर पाएंगी। जवाब आये अथवा नहीं, आपको अपना संवाद जारी रखना है। यह संवाद कई तरीकों से किया जा सकता है, उदाहरण के लिए 
— शिशु को अपने बचपन की प्रेरणा दायक अथवा मजेदार कहानी सुनाना।
— शिशु को अपने और परिवार के गुणों से परिचित कराना
— शिशु को विशेष गुणों के बारे में बताना और Affirmations (शुभ गुण) देना।
— शिशु को महान हस्तियों, संतों की, ईश्वर के अवतारों की कहानी सुनाना 
— स्वयं शुभ संस्कारों वाली पुस्तक पढ़ना अथवा विडियो, टीवी इत्यादि देखना।