saks in Hindi Poems by Nikunj Patel books and stories PDF | सक्स

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सक्स

एक छोटीसी कहानि है जो हमने कविता मे पिरोई है,
कहानी उनपे है जो अपनों के लिए अपने घर से दूर रहते है। और अपनों और ज़िम्मेदारी के बिच जुजते रहते है।

पप्पा पकडे रखना सायकल, छोड़ ना मत वर्ना मे गीर जाऊंगा..
पप्पा देखो मे सिख गया…. पप्पा आप पीछे ही होना?..
पप्पा…पप्पा…


एक सक्स था, जो ज़िल के किनारे बैठा था,
कपडे फॉर्मल, और जूतों पे मिट्टी, मानों अभी ऑफिस से आके रुका था,
चहरे का रंग उड़ा हुआ,क्या पता कौनसी बेचैनीमे जुज रहा,
सिर पर हाथ रखा हुआ, पैर फेल के बैठा था,
ना जाने कौनसी मज़बूरी, की यहाँ आके ठहरा था,
एक सक्स था, जो ज़िल के किनारे बैठा था।.. (2)


इतने सन्नाटे में भी, आवाज उसकी गूंज रहीं,
ना जाने क्या, उसे कौनसी बात खल रहीं।

अंदर ही अंदर मानों, जंग सी लड रहा था,
शांत ज़िल के सामने, तूफान सा बेह रहा था।
एक सक्स था, जो ज़िल के किनारे ठेरहा था।
एक सक्स था, जो ज़िल के किनारे बैठा था।


आज भी ट्रैन छूट गयी, जैसे छुट्टी थी उसदिन ,
ज़िन्दगी आगे चली गयी, और रिश्ते पीछे छूट गये उसदिन,
अगर ना किया होता सरू सफर, और रह जाता अपनों के साथ.
ज़िम्मेदारी का हाथ पकड़ा और छूट गया अपनों का साथ...

समय का चक्कर फ़िर गुमा,और याद आने लगे वो लम्हे,
जब समझदारी सर पर न थी,और वह पर फैलाये उड़ता था।
एक सक्स था, जो ज़िल के किनारे बैठा था।.. (2)


(पापा :
कर आवर्गी, उड़ जितना उड़ना हैं,
अभी तो समझ नहीं आयेगा बेटा,क्युँकि अभी तो खड़ा हैं तेरा बाप..
पैसों की अहेमयत तब होंगी, जब उठाएगा ज़िम्मेदारीओ का भार...
पल पल के लिए भटकेगा बिकने को, 4 रोती के दाम..
फ़िर याद करेगा तेरे बाप को, की सब संभालना नहीं हैं आसान,)


(Me act: ट्रिंग…
हाँ, दीदी मुझे पता हैं आज fathers day हैं, मे try करता हूँ आने की... और हाँ मेरी मीटिंग हैं अभी.. Call मत करते रहना अगर ना उठा पाउँगा तो
ट्रिंग ट्रिंग...)
5 sec pose..
Me:
बस कोसता हूँ खुद को, की उठा लेता दीदी का कॉल ,
मीटिंग मीटिंग करता रहा, मिल न पाया उसे, जिसके बिना मुझे पहचानता का कौन?


ज़िल में ठगेहराव था, और वह ऐसेही गुम सुम बैठा था,
एक सक्स था, जो ज़िल के किनारे बैठा था।.. (2)
(ट्रिंग ट्रिंग....)
फ़ोन की स्क्रीन पे, एक तस्वीर निखर के आयी,
होश में आ कर,मानों ओढ़ ली हो… फ़िर से, वही चिंता की चादर पुरानी
(Girl: हेलो पप्पा,soft tone)
सुनते ही मानों चेहरे की लकीरे बदल गयी,
आँसू के संग परेशानी सारी बेह गयी,
छोटी सी आवाज, मानों पत्थर मे जान फुक गयी,
खुद मे डूब मर रहें सक्स को, जीने का एक नज़रियां सा दे गयी.


(आप आ रहें हो ना इस weekend?,
Fathers day साथ में मनाएंगे ऐसा आपने बोला था,
पूरा करना पड़ेगा movie और आइसक्रीम का वादा, जो आपने किया था,)
चलती ज़िन्दगी ने अपने बदल दिये,
नये किरदार ने मेरे जज़्बात बदल दिये,
वक्त को ना ही बदल पाए, ना राम ना शाम,
अब दूर करो ये कसम कस.. छोड़ो माया का साथ,
(हैल्लो पप्पा,पप्पा...
हा बेटा, आज फ़िर ट्रैन छूट गयी, इसबार पक्का weekend को आऊंगा)


बदले हैं किरदार, ना बदली ज़िम्मेदारी...
उनकी एक मुस्कान, पड़ गयी सारी परेशानियों पे भारी...


अब खामोश सी ज़िल के पास , ठंडा पवन सा लेहराने लगा था,
एक सक्स था, जो खुदको संभाल ने लगा था,


एक सक्स था, जो गिली आँखों से मुस्कुरा लगा था,
एक सक्स था, जो ज़िल के किनारे से जाने लगा था। (2)