One Zahida One Fahisha in Hindi Love Stories by Raj books and stories PDF | एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

The Author
Featured Books
Categories
Share

एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

"एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा"

 

अध्याय 1: मुलाक़ात जो तक़दीर से थी

 

ज़िन्दगी कभी-कभी हमारे लिए ऐसी राहें चुन लेती है, जिनके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं होता। कुछ मुलाकातें अनायास होती हैं, लेकिन वो हमारे दिलों और ज़िन्दगी पर गहरे निशान छोड़ जाती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ था ज़ाहिदा और फ़ाहिशा के साथ, जब उनकी पहली मुलाकात हुई—एक मुलाकात जो सिर्फ इत्तेफाक नहीं, बल्कि तक़दीर की एक नायाब चाल थी।

ज़ाहिदा:

ज़ाहिदा एक सीधी-सादी, धार्मिक लड़की थी, जिसकी ज़िन्दगी का हर पहलू उसके परिवार और उसकी आस्थाओं के इर्द-गिर्द घूमता था। उसकी आँखों में हमेशा एक चमक होती थी, जो उसके अंदर की सच्चाई और ईमानदारी को बयान करती थी। ज़िन्दगी उसके लिए एक इबादत थी, और उसका हर कदम उसके खुदा के करीब जाने के लिए था। ज़ाहिदा का जीवन बहुत सादा था—हर दिन सुबह उठकर नमाज़ पढ़ना, घर के कामों में माँ का हाथ बंटाना और शाम को मस्जिद में जाकर बच्चों को कुरान पढ़ाना।

लेकिन कहीं न कहीं, उसकी आँखों में एक अधूरी तलाश थी। उसे नहीं पता था कि वह किसकी तलाश कर रही है, लेकिन इतना ज़रूर जानती थी कि उसकी ज़िन्दगी में कुछ कमी है। उसे हमेशा यह एहसास होता कि उसकी पूरी ज़िन्दगी में अब तक एक बड़ा मकसद नहीं आया है। यह मकसद उसकी दुआओं में तो था, लेकिन वो किस रूप में आएगा, उसे नहीं पता था।

फ़ाहिशा:

दूसरी तरफ फ़ाहिशा थी। उसके नाम का मतलब 'बुरी' था, लेकिन उसकी कहानी उसके नाम से कहीं ज़्यादा जटिल और दर्द भरी थी। फ़ाहिशा का अतीत एक कड़वी सच्चाई से भरा हुआ था। बचपन से ही उसने गरीबी और तिरस्कार का सामना किया था। उसके माता-पिता ने उसे दुनिया की हर बुराई से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन हालातों ने उसे एक अंधेरी गली में धकेल दिया था। अपने परिवार की जिम्मेदारियों और ज़िन्दगी की कड़वाहट ने उसे कठोर बना दिया था।

वह अब एक खोई हुई आत्मा थी, जिसने खुद को दुनिया की नज़रों में 'बुरी' मान लिया था। फ़ाहिशा के पास न कोई सपना था, न कोई उम्मीद। उसकी ज़िन्दगी उस मोड़ पर थी जहाँ से सिर्फ दर्द और पछतावा था। वह किसी से मोहब्बत नहीं कर सकती थी, और न ही उसे लगता था कि वह किसी की मोहब्बत के काबिल है।

मुलाक़ात:

यह एक सामान्य दिन था। ज़ाहिदा अपने कामों से फुर्सत पाकर बाज़ार में कुछ ज़रूरी सामान लेने आई थी। बाज़ार भीड़भाड़ से भरा हुआ था। दुकानें सजी हुई थीं, और लोग अपनी-अपनी ज़रूरत की चीज़ें खरीदने में मसरूफ़ थे। ज़ाहिदा हमेशा की तरह खुदा का नाम लेकर अपनी खरीदारी कर रही थी, जब अचानक उसे एक महिला से टकराना पड़ा।

यह महिला कोई और नहीं, बल्कि फ़ाहिशा थी। उसकी आँखें थकी हुई थीं, और चेहरा बेहद कठोर लग रहा था। उसकी चाल में एक अजीब सी बेज़ारी थी, जैसे वह इस दुनिया की सारी ज़िम्मेदारियों से थक चुकी हो। उसके कपड़े सामान्य थे, लेकिन उसकी आँखें ऐसी थीं जैसे उनमें अनगिनत दर्द छुपे हों।

जब ज़ाहिदा और फ़ाहिशा की नज़रें मिलीं, दोनों ने एक पल के लिए एक-दूसरे को देखा। यह सिर्फ एक क्षण था, लेकिन वह क्षण उनके दिलों में गहरी छाप छोड़ गया। ज़ाहिदा को महसूस हुआ कि फ़ाहिशा सिर्फ एक आम औरत नहीं थी, बल्कि उसकी आँखों में कुछ ऐसा था, जो उसे बाकी दुनिया से अलग करता था। वह उसकी आँखों में छुपे दर्द को समझ नहीं पाई, लेकिन उसे महसूस किया।

फ़ाहिशा, जो अब तक किसी से भी भावनात्मक रूप से जुड़ने से बचती थी, ने भी ज़ाहिदा की आँखों में एक सुकून देखा। उसे पहली बार ऐसा लगा कि कोई उसकी ज़िन्दगी के अंधेरों को महसूस कर रहा है। यह एक ऐसा एहसास था, जो उसे पहले कभी नहीं हुआ था।

दोनों बिना कुछ कहे अपने-अपने रास्ते चली गईं, लेकिन उस मुलाकात ने उनके दिलों में हलचल पैदा कर दी थी। ज़ाहिदा के मन में फ़ाहिशा के लिए एक रहस्यमयी खिंचाव था, और वह सोचने लगी कि आखिर वह कौन थी और उसकी ज़िन्दगी इतनी उदास क्यों लग रही थी। दूसरी तरफ फ़ाहिशा ने भी पहली बार अपने दिल में किसी के लिए एक अजीब सा खिंचाव महसूस किया। उसने कभी नहीं सोचा था कि वह किसी के प्रति ऐसा महसूस करेगी।

एक अजीब खिंचाव:

मुलाकात के बाद, ज़ाहिदा अक्सर फ़ाहिशा के बारे में सोचती रही। वह सोचती थी कि आखिर उस औरत के जीवन में ऐसा क्या था जो उसे इतना परेशान कर रहा था। उसका दिल बार-बार उसे उस मुलाकात की याद दिलाता, और हर बार उसकी आत्मा में एक अजीब सा अहसास होता।

दूसरी तरफ, फ़ाहिशा भी इस मुलाकात को भूल नहीं पा रही थी। वह खुद से पूछती रही कि आखिर क्यों उसकी ज़िन्दगी में अचानक यह औरत आई। क्या यह सिर्फ एक इत्तेफाक था, या फिर तक़दीर ने उन्हें किसी खास मकसद के लिए मिलाया था?

नए रास्ते की शुरुआत:

समय बीतता गया, लेकिन वह मुलाकात दोनों के दिलों में एक अनकही कहानी लिख गई थी। दोनों ने अपनी-अपनी ज़िन्दगी में वापस लौटने की कोशिश की, लेकिन कहीं न कहीं, उनके दिलों में एक खास जगह बन चुकी थी—एक दूसरे के लिए।

ज़ाहिदा ने मन ही मन यह ठान लिया कि अगर दोबारा उसकी मुलाकात उस औरत से हुई, तो वह उसके बारे में जानने की कोशिश करेगी। वह उसकी मदद करना चाहती थी, क्योंकि उसे लगता था कि फ़ाहिशा की ज़िन्दगी में कुछ ऐसा है, जिसे वह समझ सकती है और सुधार सकती है।

फ़ाहिशा, जो खुद को हमेशा अकेला मानती थी, अब खुद को उस मुलाकात से जुड़ा हुआ महसूस कर रही थी। उसने खुद से वादा किया कि अगर किस्मत ने उसे दोबारा ज़ाहिदा से मिलाया, तो वह अपनी ज़िन्दगी की सच्चाई उसके सामने रखेगी।

यही से उनकी कहानी की असली शुरुआत हुई—एक मुलाकात जो तक़दीर से थी, और जिसने दोनों की ज़िन्दगी को हमेशा के लिए बदलने का वादा किया था।Top of Form

 

अध्याय 2: अतीत की परछाइयाँ
ज़िन्दगी का हर लम्हा एक कहानी बुनता है, और हर कहानी के पीछे छुपी होती हैं कई परछाइयाँ—अतीत की परछाइयाँ। ज़ाहिदा और फ़ाहिशा की मुलाक़ात के बाद, उनकी ज़िन्दगी में जो बदलाव आया, वह उनका वर्तमान नहीं था बल्कि अतीत की परछाइयों का असर था, जो उन्हें बार-बार खींच रही थीं। इस अध्याय में, हम दोनों के अतीत के उन हिस्सों को जानेंगे, जिन्होंने उनकी ज़िन्दगी की दिशा तय की थी।

ज़ाहिदा का अतीत:
ज़ाहिदा का जन्म एक मध्यमवर्गीय धार्मिक परिवार में हुआ था। उसके पिता मस्जिद के इमाम थे और माँ एक गृहिणी, जो हर वक्त घर में कुरान की तिलावत करती रहती थीं। ज़ाहिदा का बचपन बड़े सुकून और प्यार में बीता था। उसके माता-पिता ने उसे हमेशा धार्मिक उसूलों पर चलना सिखाया। हर सुबह की शुरुआत फ़ज्र की नमाज़ से होती और हर रात का अंत इशा की नमाज़ के साथ। ज़ाहिदा ने बचपन से ही धार्मिक किताबों में मन लगाया था, और उसे खुदा के करीब रहना अच्छा लगता था।

लेकिन ज़ाहिदा के जीवन में सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब वह सिर्फ 15 साल की थी। एक दिन अचानक उसके पिता की तबियत बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें एक गंभीर बीमारी थी, जिसका इलाज बहुत महंगा था। ज़ाहिदा का परिवार इस खबर से हिल गया। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे इलाज करवा सकें। उस वक्त ज़ाहिदा की माँ ने पूरे मोहल्ले और रिश्तेदारों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन जितनी मदद मिल सकी, वह नाकाफी थी।

पैसों की कमी की वजह से उनके पिता का इलाज नहीं हो पाया और कुछ महीनों बाद उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके पिता के जाने के बाद ज़ाहिदा का परिवार बिखर गया। उसकी माँ गहरे सदमे में चली गईं, और ज़ाहिदा ने घर की सारी जिम्मेदारियाँ अपने कंधों पर उठा लीं। इस घटना ने ज़ाहिदा को ज़िन्दगी की हकीकतों से बहुत करीब से वाकिफ़ करा दिया था। अब वह न सिर्फ एक बेटी थी, बल्कि अपने परिवार की एकमात्र सहारा भी बन गई थी।

उसने कुरान पढ़ाना शुरू किया और बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने लगी ताकि कुछ पैसे कमा सके और घर का खर्च चला सके। ज़िन्दगी ने उसे कम उम्र में ही बड़ा बना दिया था। लेकिन इन सबके बावजूद, ज़ाहिदा ने कभी अपनी उम्मीद नहीं खोई। वह मानती थी कि अल्लाह उसकी मेहनत का फल ज़रूर देगा और उसे एक दिन राहत ज़रूर मिलेगी।

फ़ाहिशा का अतीत:
दूसरी तरफ़, फ़ाहिशा का अतीत ज़ाहिदा से बिल्कुल अलग था। वह एक गरीब परिवार में पैदा हुई थी, जहाँ ज़िन्दगी संघर्षों का दूसरा नाम थी। उसका असली नाम फ़हमीदा था, लेकिन हालातों ने उसे 'फ़ाहिशा' बना दिया। उसके माता-पिता मेहनत-मज़दूरी करते थे और जैसे-तैसे परिवार का पेट पालते थे। फ़ाहिशा का बचपन तंगहाली और अभावों में बीता। उसका परिवार न केवल आर्थिक तंगी से जूझ रहा था, बल्कि समाज के तानों और तिरस्कारों का भी सामना कर रहा था।

फ़ाहिशा का सबसे बड़ा दुख तब शुरू हुआ, जब वह सिर्फ 13 साल की थी। उसके पिता शराब के आदी हो गए थे और अपनी नशे की लत के चलते उन्होंने परिवार की सारी संपत्ति बेच दी थी। घर की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। उसके पिता हर रात नशे में धुत होकर घर लौटते और उसकी माँ से मारपीट करते। फ़ाहिशा यह सब देखकर अंदर ही अंदर टूटने लगी थी।

एक दिन, जब फ़ाहिशा 16 साल की थी, उसके पिता ने घर का आखिरी कीमती सामान भी बेच दिया और उन्हें कर्ज़ में डुबो दिया। कर्ज़ चुकाने के लिए उसके पिता ने एक बेहद दर्दनाक फैसला किया—उन्होंने फ़ाहिशा को एक दलाल के हाथों बेच दिया। यह फ़ाहिशा की ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सदमा था। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके अपने पिता, जो उसकी रक्षा करने वाले थे, उसी को इस अंधेरी दुनिया में धकेल देंगे।

फ़ाहिशा के पास कोई चारा नहीं था। उसे ज़बरदस्ती उस दलाल के साथ भेज दिया गया, जिसने उसे एक कोठे पर लाकर छोड़ दिया। फ़ाहिशा का दिल टूट चुका था। उसके सपने, उसकी मासूमियत, उसकी इज्जत—सब कुछ एक पल में छिन गया था। वह एक कठपुतली बनकर रह गई, जिसे समाज ने 'फ़ाहिशा' का नाम दे दिया।

अतीत की छायाएँ:
फ़ाहिशा और ज़ाहिदा के अतीत, भले ही पूरी तरह से अलग थे, लेकिन एक बात दोनों के अतीत में समान थी—दर्द और संघर्ष। ज़ाहिदा ने अपने पिता को खोने और जिम्मेदारियों का बोझ उठाने का दर्द सहा था, जबकि फ़ाहिशा ने अपने परिवार के विश्वासघात और समाज की क्रूरता का सामना किया था।

जब दोनों की पहली मुलाकात हुई थी, तब दोनों ने एक-दूसरे के अतीत को नहीं जाना था, लेकिन कहीं न कहीं उनकी आत्माएँ एक-दूसरे के दर्द को महसूस कर रही थीं। यह उनकी पहली मुलाकात का असली कारण था—उनके अतीत की परछाइयाँ उन्हें एक-दूसरे के करीब ला रही थीं, जैसे तक़दीर उन्हें एक दूसरे के ज़ख्मों पर मरहम लगाने के लिए मिलवा रही हो।

अतीत का असर:
ज़ाहिदा के लिए, उसका अतीत उसे और ज़िम्मेदार बना चुका था। उसने हमेशा सोचा कि उसका जीवन दूसरों की मदद करने के लिए है। अपने पिता की मौत और माँ की हालत ने उसे यह सिखाया था कि दुनिया में किसी का सहारा बनना कितना महत्वपूर्ण है। यही वजह थी कि वह फ़ाहिशा की आंखों में छुपे दर्द को अनदेखा नहीं कर सकी। वह जानती थी कि कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर था, जो फ़ाहिशा को अंदर से तोड़ चुका था।

फ़ाहिशा के लिए, उसका अतीत उसे हर रोज़ एक नई सजा देता था। वह कभी किसी के करीब नहीं आना चाहती थी, क्योंकि उसे लगता था कि वह मोहब्बत और दोस्ती के काबिल नहीं है। उसके दिल में यह डर बैठ गया था कि अगर उसने किसी से अपना दिल खोला, तो वह भी उसे ठुकरा देगा, जैसे उसके अपने परिवार ने किया था।

लेकिन तक़दीर का खेल यही था। फ़ाहिशा जितना अपने अतीत से भागने की कोशिश करती, उतना ही वह उसे वापस खींच लाता। उसकी आत्मा में छुपी घुटन और ज़ाहिदा की आत्मा में छुपी करुणा, दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत थी।

नया मोड़:
फ़ाहिशा ने अब तक ज़िन्दगी से उम्मीद छोड़ दी थी। वह बस एक कठपुतली बनकर जी रही थी, जहाँ उसे हर रोज़ खुद को साबित करना पड़ता था। वह किसी भी तरह अपने अतीत से पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन यह आसान नहीं था।

दूसरी ओर, ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा की आँखों में उस दर्द को देखा था, जिसे वह समझना चाहती थी। उसे लगने लगा था कि अगर वह फ़ाहिशा से दोबारा मिली, तो वह उसकी मदद करने की कोशिश करेगी। उसके दिल में यह ख्याल गहराई तक बैठ गया था कि शायद उसकी ज़िन्दगी का मकसद ही फ़ाहिशा की मदद करना हो।

अतीत की इन परछाइयों ने दोनों की ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया था। दोनों के लिए यह मुलाक़ात एक नई शुरुआत का संकेत थी—एक ऐसी शुरुआत, जो उनके अतीत के दर्द को समझने और उसे दूर करने की दिशा में बढ़ रही थी।

अब सवाल यह था कि क्या दोनों इस नई शुरुआत को पहचान पाएंगी, या फिर अतीत की परछाइयाँ उन्हें आगे बढ़ने से रोक देंगी?

अध्याय 3: नफ़रत और मोहब्बत के दरमियान
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनकी शुरुआत नफ़रत से होती है, लेकिन वक़्त के साथ वो नफ़रत बदलकर मोहब्बत की शक्ल ले लेती है। ज़ाहिदा और फ़ाहिशा का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही था। उनकी मुलाक़ात ने दोनों के दिलों में एक अजीब सी हलचल पैदा कर दी थी, लेकिन इस हलचल में एक साथ नफ़रत और मोहब्बत के बीज छुपे हुए थे। एक तरफ़ ज़ाहिदा फ़ाहिशा के अतीत को समझने की कोशिश कर रही थी, तो दूसरी तरफ़ फ़ाहिशा अपने दर्द और आत्मग्लानि से जूझ रही थी, जो उसे ज़ाहिदा से दूर रख रही थी।

फिर से मुलाक़ात:
मुलाक़ात के कुछ दिन बीत गए। ज़ाहिदा अपने कामों में लगी रही, लेकिन फ़ाहिशा की छवि उसकी आँखों से दूर नहीं हो रही थी। उसे बार-बार फ़ाहिशा की उदास आँखें और उसके चेहरे पर बिखरा हुआ दर्द याद आ रहा था। दूसरी ओर, फ़ाहिशा अपनी पुरानी ज़िन्दगी में वापस लौट चुकी थी, जहाँ नफ़रत, तिरस्कार, और अकेलापन उसके हर दिन का हिस्सा था।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कुछ हफ्तों बाद, ज़ाहिदा और फ़ाहिशा की फिर से मुलाक़ात हुई। यह मुलाक़ात इस बार मस्जिद के पास के बाज़ार में हुई, जहाँ ज़ाहिदा अक्सर खरीदारी करने जाया करती थी। उस दिन भी वह कुछ सामान लेने आई थी, जब उसने फ़ाहिशा को दूर से देखा। फ़ाहिशा, हमेशा की तरह अपने में खोई हुई, तेज़ी से चल रही थी, जैसे किसी चीज़ से भागने की कोशिश कर रही हो।

ज़ाहिदा ने बिना कुछ सोचे, फ़ाहिशा को आवाज़ दे दी। "अस्सलामुअलैकुम!"

फ़ाहिशा ने रुककर पलटकर देखा, और उसकी आँखों में पहले तो हैरानी, फिर गुस्सा झलकने लगा। उसे यह पसंद नहीं था कि कोई उससे इस तरह बात करे, ख़ासकर कोई अजनबी। उसने बिना जवाब दिए अपना रास्ता पकड़ लिया, लेकिन ज़ाहिदा उसके पास आ गई।

"आपसे पहले भी मुलाक़ात हुई थी," ज़ाहिदा ने कहा। "आपका नाम क्या है?"

फ़ाहिशा की आँखों में गुस्सा भर आया। "तुमसे मतलब?"

ज़ाहिदा उसकी बेरुख़ी से घबरा गई, लेकिन फिर भी शांति से बोली, "मेरा नाम ज़ाहिदा है। मैं बस आपसे बात करना चाहती थी।"

"तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं मुझसे बात करने की," फ़ाहिशा ने झटके से कहा। "मेरी ज़िन्दगी में जो चल रहा है, वो तुम्हारी समझ से बाहर है।"

पहली नफ़रत की झलक:
फ़ाहिशा की बातों में छुपे दर्द और गुस्से ने ज़ाहिदा को चौंका दिया। वह समझ नहीं पा रही थी कि फ़ाहिशा इतनी नाराज़ क्यों थी। ज़ाहिदा को लगा कि फ़ाहिशा ने उसे गलत समझा है, लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी। "मुझे आपका दर्द समझ आता है," ज़ाहिदा ने धीमे से कहा, "लेकिन अगर आप मुझे जानने का मौका दें, तो शायद मैं आपकी मदद कर सकूँ।"

फ़ाहिशा ने एक तीखी हंसी के साथ कहा, "मदद? तुम्हें क्या लगता है कि तुम मेरी मदद कर सकती हो? तुम जैसे लोग सिर्फ दया दिखाते हैं, लेकिन हकीकत नहीं समझते।"

यह सुनकर ज़ाहिदा का दिल टूट गया। उसे समझ आ गया कि फ़ाहिशा अपने भीतर एक गहरे जख्म के साथ जी रही थी, जिसे उसने छुपाने की कोशिश की थी। लेकिन उसने खुद से वादा किया कि वह इस नफ़रत को मोहब्बत में बदलने की कोशिश करेगी, चाहे इसके लिए कितना भी वक्त क्यों न लगे।

फ़ाहिशा का गुस्सा:
फिर भी, फ़ाहिशा का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वह इस बात से नाराज़ थी कि ज़ाहिदा ने उसकी ज़िन्दगी में दखल देने की कोशिश की थी। उसे डर था कि अगर ज़ाहिदा उसकी असलियत जान गई, तो वह भी उसे बाकी लोगों की तरह छोड़ देगी या उससे नफ़रत करने लगेगी। इसलिए उसने पहले ही खुद को दूर रखना शुरू कर दिया था।

फ़ाहिशा का अतीत इतना दर्दनाक था कि उसने किसी पर भरोसा करना छोड़ दिया था। उसे लगता था कि हर इंसान, जो उसकी मदद करने का दिखावा करता है, असल में उसके दर्द का मखौल उड़ाता है। और यही वजह थी कि उसने ज़ाहिदा के हर प्रयास को नकार दिया।

ज़ाहिदा की मोहब्बत और धैर्य:
लेकिन ज़ाहिदा का धैर्य और मोहब्बत फ़ाहिशा की नफ़रत से कहीं ज़्यादा मज़बूत था। वह समझ गई थी कि फ़ाहिशा के इस सख्त रवैये के पीछे एक टूटी हुई लड़की छुपी थी, जो मदद मांगने से डरती थी। ज़ाहिदा ने यह ठान लिया कि वह फ़ाहिशा की मदद करेगी, चाहे उसे इसके लिए कितनी भी मुश्किलों का सामना क्यों न करना पड़े।

ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा के गुस्से और तिरस्कार के बावजूद उसका साथ नहीं छोड़ा। उसने कई बार कोशिश की कि वह फ़ाहिशा से बातें करे, उसकी ज़िन्दगी को समझे और उसे यकीन दिलाए कि वह उसकी मदद करना चाहती है।

धीरे-धीरे, ज़ाहिदा के धैर्य और स्नेह ने फ़ाहिशा के दिल में हलचल पैदा की। फ़ाहिशा अब तक हर किसी से नफ़रत करती आई थी, क्योंकि उसे लगता था कि लोग उसे उसकी अतीत की गलती से आंकते हैं। लेकिन ज़ाहिदा का व्यवहार अलग था। वह उसे बिना किसी शर्त के स्वीकार करना चाहती थी, और यह बात फ़ाहिशा को भीतर तक छू रही थी।

भावनात्मक संघर्ष:
फिर भी, फ़ाहिशा के दिल में एक ज़बरदस्त संघर्ष चल रहा था। एक तरफ़ उसकी नफ़रत उसे ज़ाहिदा से दूर रहने के लिए कह रही थी, क्योंकि उसे डर था कि ज़ाहिदा उसकी असलियत जानने के बाद उसे छोड़ देगी। दूसरी तरफ़, उसके दिल के किसी कोने में ज़ाहिदा के लिए एक नरमी पैदा हो रही थी। वह चाहती थी कि कोई उसे समझे, कोई उसे उसकी गलती और अतीत के बावजूद अपनाए।

यह संघर्ष उसे अंदर से तोड़ रहा था। उसने खुद को हमेशा अकेला माना था, और अब जब ज़ाहिदा उसकी ज़िन्दगी में आई थी, तो उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे इस नए एहसास से निपटे।

पहली बार नरमी:
एक दिन, जब ज़ाहिदा फिर से बाज़ार में फ़ाहिशा से मिली, उसने बिना किसी झिझक के कहा, "मैं जानती हूँ कि तुम मुझसे नफ़रत करती हो, लेकिन मैं तब तक तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगी जब तक तुम अपनी सच्चाई मेरे सामने नहीं रखोगी।"

फ़ाहिशा ने कुछ देर तक चुपचाप ज़ाहिदा को देखा। उसकी आँखों में नफ़रत नहीं, बल्कि एक अजीब सा सुकून था। यह पहली बार था जब फ़ाहिशा ने बिना गुस्से के ज़ाहिदा की बातों को सुना।

"तुम समझ नहीं सकती कि मैंने क्या देखा है," फ़ाहिशा ने धीमे से कहा, उसकी आवाज़ में टूटन साफ़ झलक रही थी।

ज़ाहिदा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "शायद नहीं, लेकिन अगर तुम मुझे बताओगी, तो मैं समझने की कोशिश करूँगी।"

नफ़रत के बाद मोहब्बत की दस्तक:
यह पहली बार था जब फ़ाहिशा ने अपनी दीवारों को गिरने दिया था। उसने धीरे-धीरे अपनी ज़िन्दगी की परतें खोलना शुरू किया। उसे यह एहसास हुआ कि ज़ाहिदा वाकई में उसकी मदद करना चाहती है, बिना किसी शर्त के, बिना किसी दया के दिखावे के।

उनके बीच की नफ़रत अब मोहब्बत में बदलने लगी थी। यह मोहब्बत सिर्फ एक दोस्ती की नहीं, बल्कि आत्माओं की मोहब्बत थी, जो एक-दूसरे के दर्द को समझने और उसे बांटने की कोशिश कर रही थीं।

नफ़रत और मोहब्बत के दरमियान यह जंग जारी थी, लेकिन धीरे-धीरे मोहब्बत जीत रही थी। फ़ाहिशा की कठोरता और ज़ाहिदा की सहनशीलता के बीच अब एक नया रिश्ता जन्म ले रहा था—ऐसा रिश्ता जो दोनों की ज़िन्दगी को हमेशा के लिए बदलने वाला था।      

 

अध्याय 4: नज़रों से दिल तक
नफ़रत और मोहब्बत के दरमियान जो जंग शुरू हुई थी, वह अब धीरे-धीरे मोहब्बत की ओर बढ़ रही थी। फ़ाहिशा और ज़ाहिदा की मुलाक़ातों ने दोनों के दिलों में एक अनकहा रिश्ता बुनना शुरू कर दिया था। जहाँ फ़ाहिशा ने अपने दिल के दरवाज़े बंद कर रखे थे, वहीं ज़ाहिदा की मोहब्बत और सच्चाई ने उसकी बंद होती दुनिया में रोशनी की एक किरण डाल दी थी। दोनों के बीच की दूरी, जो पहले एक दीवार की तरह लगती थी, अब टूटने लगी थी। नज़रें अब दिलों से बात करने लगी थीं, और उनकी मुलाक़ातों ने एक अजीब सा खिंचाव पैदा कर दिया था।

अजनबी से अपनापन:
उनकी मुलाकातों में अब अजनबियत नहीं थी। ज़ाहिदा और फ़ाहिशा की नज़रों के बीच अब एक संवाद शुरू हो चुका था। ज़ाहिदा के लिए फ़ाहिशा सिर्फ एक दर्दभरी कहानी नहीं थी, बल्कि वह एक इंसान थी, जिसे उसने समझा था और जिसके दर्द को उसने महसूस किया था। वहीं, फ़ाहिशा के लिए ज़ाहिदा सिर्फ एक दयालु लड़की नहीं थी, बल्कि वह उसकी ज़िन्दगी की पहली ऐसी इंसान थी, जिसने उसे बिना शर्त अपनाने की कोशिश की थी।

अब हर मुलाकात के दौरान उनके बीच की चुप्पी भी बहुत कुछ कह जाती थी। वे एक-दूसरे की नज़रों में छुपे भावों को पढ़ने लगी थीं। ज़ाहिदा की आँखों में हमेशा एक सुकून और समझदारी झलकती थी, जबकि फ़ाहिशा की आँखों में धीरे-धीरे कठोरता कम हो रही थी।

नज़रें जो दिल को छू गईं:
एक दिन, दोनों फिर से बाज़ार में मिले। यह मुलाकात बाकी मुलाक़ातों से अलग थी। ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा को देखते ही एक हल्की मुस्कान दी, और फ़ाहिशा ने इस बार पहली बार उसकी मुस्कान का जवाब दिया। यह एक छोटी सी मुस्कान थी, लेकिन इसमें उन दोनों के बीच बढ़ती हुई नज़दीकी का पहला संकेत था।

"कैसी हो?" ज़ाहिदा ने हल्के से पूछा।

फ़ाहिशा ने नज़रें झुका लीं। वह अब भी पूरी तरह से सहज नहीं थी, लेकिन कहीं न कहीं उसे ज़ाहिदा से बात करना अच्छा लगने लगा था। "ठीक हूँ," उसने धीरे से कहा।

ज़ाहिदा उसकी झिझक को समझ रही थी, लेकिन वह जानती थी कि यह झिझक अब टूटने लगी है। उसने बातों का सिलसिला जारी रखने की कोशिश की। "क्या तुम आज कुछ खरीदने आई हो?"

फ़ाहिशा ने सिर हिलाया, "बस यूँ ही..."

उनकी बातचीत बहुत साधारण थी, लेकिन उनकी नज़रें उनके दिलों की गहराईयों को छू रही थीं। फ़ाहिशा की आँखों में अब वह पहले जैसा गुस्सा नहीं था। उसकी कठोरता धीरे-धीरे पिघल रही थी, और ज़ाहिदा को इसका एहसास हो रहा था।

दिल की आवाज़:
ज़ाहिदा के दिल में अब फ़ाहिशा के लिए कुछ खास महसूस होने लगा था। यह सिर्फ दया नहीं थी, यह उससे कहीं बढ़कर था। ज़ाहिदा को फ़ाहिशा के अतीत का दर्द समझ में आ रहा था, लेकिन उसके दिल में अब सिर्फ फ़ाहिशा की मदद करने की चाहत नहीं थी, बल्कि उससे एक गहरा रिश्ता महसूस हो रहा था। उसे नहीं पता था कि यह मोहब्बत थी या सिर्फ सहानुभूति, लेकिन जो भी था, वह गहराई से महसूस कर रही थी।

वहीं दूसरी तरफ, फ़ाहिशा के दिल में भी हलचल मच रही थी। वह ज़ाहिदा की नेकदिली और उसके सुकून भरे स्वभाव से प्रभावित हो रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि ज़ाहिदा के साथ रहते हुए उसकी ज़िन्दगी का खालीपन धीरे-धीरे भरने लगा था। लेकिन फ़ाहिशा अभी भी अपने अतीत की परछाइयों से बाहर नहीं आ पाई थी। वह अब भी खुद को उस काबिल नहीं समझती थी कि वह किसी की मोहब्बत या दोस्ती का हकदार हो।

खुद से जद्दोजहद:
फ़ाहिशा के दिल में अब एक जद्दोजहद शुरू हो चुकी थी। वह चाहती थी कि ज़ाहिदा उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा बने, लेकिन साथ ही उसे यह डर भी था कि अगर ज़ाहिदा उसकी असलियत जान गई, तो शायद वह उसे छोड़ देगी। यह डर उसके दिल को बार-बार घेर लेता था।

उस रात फ़ाहिशा अपने कमरे में अकेली बैठी, अपने ख्यालों में खोई हुई थी। उसकी आँखों में ज़ाहिदा की सूरत घूम रही थी। वह पहली बार किसी को अपने दिल के करीब आने देना चाहती थी, लेकिन उसका अतीत उसे हर बार पीछे खींच लेता था।

"मैं उसके लायक नहीं हूँ," उसने खुद से कहा। "मैं किसी के लायक नहीं हूँ।"

लेकिन दूसरी ओर, उसके दिल की गहराई से एक आवाज़ आई, "शायद ज़ाहिदा समझ सकती है। शायद वह मुझे वैसे ही अपना लेगी जैसे मैं हूँ।"

यह खुद से लड़ाई फ़ाहिशा के लिए आसान नहीं थी। उसकी पूरी ज़िन्दगी का तजुर्बा यही कहता था कि उसे कोई नहीं समझेगा, और न ही कोई उसे उसकी ग़लतियों के साथ अपना सकेगा।

दोस्ती की शुरुआत:
अगले कुछ हफ्तों में, ज़ाहिदा और फ़ाहिशा की मुलाकातें और बढ़ने लगीं। अब वे सिर्फ बाज़ार में नहीं मिलती थीं, बल्कि कभी-कभी ज़ाहिदा उसे अपने घर बुला लेती थी। फ़ाहिशा शुरू में झिझकती थी, लेकिन धीरे-धीरे उसने ज़ाहिदा के घर आना शुरू कर दिया। वहाँ का सुकून भरा माहौल और ज़ाहिदा की माँ की ममतामयी मुस्कान ने फ़ाहिशा को एक अजनबी दुनिया का हिस्सा बना दिया था।

ज़ाहिदा की माँ को फ़ाहिशा का नाम सुनकर पहले थोड़ी हैरानी हुई, लेकिन जब उन्होंने फ़ाहिशा से बात की, तो उन्होंने उसे एक आम लड़की की तरह ही देखा। उन्होंने फ़ाहिशा को अपनाने की कोशिश की, जैसे वह ज़ाहिदा की एक और दोस्त हो।

यह बात फ़ाहिशा के दिल को छू गई। उसे पहली बार लगा कि वह भी किसी के लिए मायने रखती है, कि वह भी किसी की ज़िन्दगी में एक जगह बना सकती है।

नज़रें जो दिलों को जोड़ रही थीं:
ज़ाहिदा और फ़ाहिशा की दोस्ती अब गहराने लगी थी। नफ़रत की जगह मोहब्बत ने ले ली थी, और यह मोहब्बत सिर्फ दोस्ती की नहीं थी, बल्कि एक आत्मीयता की थी। दोनों की नज़रें अब एक-दूसरे के दिलों को पढ़ने लगी थीं।

फ़ाहिशा अब भी अपनी ज़िन्दगी के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाई थी, लेकिन उसने ज़ाहिदा को यह भरोसा दिलाना शुरू कर दिया था कि वह उसकी मदद करने आई है, न कि उसे जज करने।

दिलों का जुड़ाव:
एक दिन, जब दोनों मस्जिद के बाहर बैठे थे, ज़ाहिदा ने धीरे से फ़ाहिशा का हाथ पकड़ा और कहा, "तुम्हारे अंदर जो दर्द है, वह तुम्हें तोड़ नहीं सकता। तुम उससे कहीं ज़्यादा मज़बूत हो।"

फ़ाहिशा ने उसकी तरफ़ देखा, और उसकी आँखों में आँसू भर आए। यह पहली बार था जब उसने खुद को इतना कमजोर महसूस किया, लेकिन साथ ही उसने ज़ाहिदा के सामने अपनी दीवारों को गिरा देने का साहस भी पाया।

"शायद तुम ठीक कह रही हो," फ़ाहिशा ने धीमे से कहा, "लेकिन मुझे अब भी डर लगता है कि कहीं मैं फिर से टूट न जाऊँ।"

ज़ाहिदा ने उसकी तरफ़ मुस्कुराकर देखा और कहा, "मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम अकेली नहीं हो।"

यह वह पल था जब फ़ाहिशा के दिल ने ज़ाहिदा को पूरी तरह से अपना लिया। नज़रें अब दिलों तक पहुँच चुकी थीं, और दोनों के बीच का रिश्ता अब सिर्फ एक दोस्ती या सहानुभूति का नहीं था, बल्कि आत्मीयता का था।

एक नई शुरुआत:
उनकी मुलाक़ातें अब ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी थीं। नफ़रत और मोहब्बत के बीच का संघर्ष अब खत्म हो चुका था, और अब दोनों के दिल एक-दूसरे के दर्द और सुकून को समझने लगे थे।

फ़ाहिशा के दिल में अब एक नई शुरुआत की उम्मीद जाग चुकी थी, और इस उम्मीद की वजह सिर्फ ज़ाहिदा की मोहब्बत थी।

 

अध्याय 5: मोहब्बत की पहली दस्तक
 

 

फ़ाहिशा और ज़ाहिदा की दोस्ती अब गहरी होती जा रही थी। दोनों एक-दूसरे के साथ समय बिताते, खुलकर बातें करते, और अपने दिल की गहराईयों को धीरे-धीरे समझने लगे थे। यह एक ऐसा रिश्ता था जो दोस्ती से कहीं ज़्यादा गहरा था, लेकिन उनके बीच की दूरी और अतीत के साये अब भी उन्हें पूरी तरह एक-दूसरे के करीब आने से रोक रहे थे। फिर भी, उनकी मुलाक़ातों के दौरान, उनके दिलों में एक अनकही मोहब्बत की दस्तक सुनाई देने लगी थी। यह दस्तक न सिर्फ उनकी ज़िन्दगी को बदलने वाली थी, बल्कि उनके भविष्य के लिए भी नई राहें खोलने वाली थी।

दिलों में पनपती मोहब्बत:
फ़ाहिशा की ज़िन्दगी में पहली बार उसे यह महसूस हुआ कि कोई उसकी परवाह करता है। ज़ाहिदा का साथ उसे यह यकीन दिला रहा था कि उसकी ज़िन्दगी सिर्फ दर्द और ग़म से भरी नहीं है, बल्कि उसमें भी प्यार और अपनापन हो सकता है। लेकिन फ़ाहिशा के दिल में अभी भी एक डर था, एक ऐसा डर जो उसे इस रिश्ते को पूरी तरह से अपनाने से रोक रहा था।

फ़ाहिशा ने ज़ाहिदा के सामने अब तक अपनी ज़िन्दगी की पूरी सच्चाई नहीं रखी थी। वह डरती थी कि अगर ज़ाहिदा उसकी असलियत जान गई, तो शायद वह उससे दूर चली जाएगी। फ़ाहिशा का दिल उसे बार-बार यही कहता था कि वह मोहब्बत की हकदार नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, फ़ाहिशा का यह डर धीरे-धीरे कम होने लगा, और उसकी जगह एक नये एहसास ने ले ली—एक ऐसा एहसास, जो उसे पहले कभी महसूस नहीं हुआ था।

ज़ाहिदा की मासूमियत:
ज़ाहिदा की मासूमियत और उसकी साफ़दिली ने फ़ाहिशा के दिल में एक खास जगह बना ली थी। ज़ाहिदा हमेशा उसे सुकून और शांति महसूस करवाती थी। वह फ़ाहिशा की मदद करने की कोशिश में कभी ज़्यादा सवाल नहीं करती थी, और न ही उसे किसी तरह से जज करती थी। वह फ़ाहिशा के दिल की तकलीफ़ को समझने की कोशिश करती थी, बिना यह जाने कि असल में फ़ाहिशा ने क्या-क्या झेला है।

ज़ाहिदा के दिल में भी एक नई भावना जागने लगी थी। उसे महसूस हो रहा था कि फ़ाहिशा के लिए उसकी दोस्ती सिर्फ़ दोस्ती नहीं रही, बल्कि यह कुछ और बन गई है। वह फ़ाहिशा के प्रति एक गहरे लगाव को महसूस करने लगी थी, जो उससे पहले कभी किसी के प्रति नहीं हुआ था। यह एहसास ज़ाहिदा को अंदर तक हिला रहा था। वह जानती थी कि फ़ाहिशा ने बहुत दर्द झेला है, और शायद यही वजह थी कि वह उसके और करीब आ रही थी।

पहली दस्तक:
फिर एक दिन ऐसा आया, जब दोनों को अपनी मोहब्बत की पहली दस्तक साफ सुनाई दी।

फ़ाहिशा उस दिन पहले से कुछ ज़्यादा चुपचाप थी। उसकी आँखों में उदासी थी, और चेहरा बुझा-बुझा सा लग रहा था। ज़ाहिदा ने कई बार उससे पूछा कि क्या हुआ है, लेकिन फ़ाहिशा ने कोई जवाब नहीं दिया। ज़ाहिदा समझ गई थी कि कुछ न कुछ ज़रूर है, लेकिन वह जानती थी कि फ़ाहिशा जब खुद को तैयार महसूस करेगी, तभी वह अपनी बात कहेगी।

शाम का वक्त था, दोनों एक बाग़ में बैठे थे, जहाँ अक्सर वे आया करती थीं। वहाँ का शांत माहौल और हरे-भरे पेड़ उन्हें एक अजीब सुकून देते थे। उस दिन भी वे वहीं बैठी थीं, जब अचानक फ़ाहिशा ने धीरे से कहा, "ज़ाहिदा, क्या तुमने कभी किसी से मोहब्बत की है?"

ज़ाहिदा ने हैरानी से उसकी तरफ देखा। यह सवाल अचानक था, और उसने कभी इस बारे में सोचा नहीं था। "मोहब्बत?" उसने खुद से सवाल किया।

फ़ाहिशा ने उसकी ओर देखा और हल्के से मुस्कराई, "हाँ, मोहब्बत। क्या तुम्हें कभी किसी के लिए ऐसा महसूस हुआ है, जैसे वो तुम्हारे दिल के बहुत करीब हो, और तुम उसके बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी नहीं कर सकती?"

ज़ाहिदा थोड़ी देर तक चुप रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इस सवाल का क्या जवाब दे। फिर उसने धीमे से कहा, "शायद... मुझे कभी ऐसा लगा तो नहीं, लेकिन..."

"लेकिन?" फ़ाहिशा ने उसके चेहरे पर सवाल देखा।

"लेकिन अब... जब तुम ये सवाल पूछ रही हो, तो मुझे लगता है कि शायद हाँ, मैंने भी किसी से मोहब्बत की है," ज़ाहिदा ने खुद से जैसे यह बात कबूल की।

फ़ाहिशा की धड़कनें तेज हो गईं। वह समझ नहीं पा रही थी कि ज़ाहिदा किसकी बात कर रही है, लेकिन कहीं न कहीं उसके दिल की गहराई में यह बात महसूस हो रही थी कि शायद वह भी उसी की बात कर रही है।

दिलों का खुलासा:
"कौन है वो?" फ़ाहिशा ने बिना सोचे समझे सवाल कर लिया। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी बेचैनी थी।

ज़ाहिदा ने उसकी ओर देखा और एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "शायद तुम।"

यह सुनते ही फ़ाहिशा की आँखों में आँसू भर आए। वह नहीं जानती थी कि इस जवाब का क्या मतलब निकाले। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ज़ाहिदा उसके लिए ऐसा महसूस कर सकती है। उसके दिल में जो अनकहा डर था, वह एक ही पल में टूट गया।

"मैं?" फ़ाहिशा ने हैरानी से पूछा।

"हाँ," ज़ाहिदा ने कहा, उसकी आवाज़ में गहराई और सच्चाई थी। "मैं नहीं जानती कि यह मोहब्बत है या कुछ और, लेकिन जब तुम मेरे साथ होती हो, तो मुझे सुकून मिलता है। मुझे लगता है कि तुम्हारे दर्द को मैं समझ सकती हूँ, और तुम्हारे साथ होने से मुझे एक अलग तरह की खुशी मिलती है। शायद यह मोहब्बत ही है।"

फ़ाहिशा के आँसू अब उसके गालों पर बहने लगे थे। यह वह पहली बार था जब उसने किसी की मोहब्बत को महसूस किया था। उसकी ज़िन्दगी में अब तक सिर्फ़ तिरस्कार और नफ़रत थी, लेकिन आज उसे पहली बार ऐसा महसूस हुआ कि वह भी मोहब्बत के काबिल है।

फ़ाहिशा का इज़हार:
कुछ देर तक दोनों चुप रहीं। फिर फ़ाहिशा ने आँसू पोंछते हुए धीमे से कहा, "ज़ाहिदा, मैं नहीं जानती कि मैं इस मोहब्बत के काबिल हूँ या नहीं। मैंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ झेला है, और शायद तुम अगर मेरी असलियत जानो तो..."

ज़ाहिदा ने उसे रोकते हुए कहा, "तुम्हारी असलियत जो भी हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने तुमसे मोहब्बत की है, तुम्हारी ज़िन्दगी के हर हिस्से के साथ।"

फ़ाहिशा ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में सच्चाई और मोहब्बत साफ़ झलक रही थी। फ़ाहिशा के दिल ने पहली बार खुद को पूरी तरह से खुला महसूस किया। उसने धीमे से कहा, "शायद मैं भी तुमसे मोहब्बत करती हूँ, लेकिन अब तक खुद से यह बात कबूल नहीं कर पा रही थी।"

यह सुनते ही ज़ाहिदा की आँखों में भी चमक आ गई। उसने फ़ाहिशा का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा, "फिर कोई डर नहीं, कोई पछतावा नहीं। हम साथ हैं, और यही सबसे बड़ी बात है।"

मोहब्बत की दस्तक:
इस पल में, दोनों ने अपनी मोहब्बत को पूरी तरह से महसूस किया। यह मोहब्बत न सिर्फ़ उनके दिलों में थी, बल्कि उनकी आत्माओं को भी जोड़ने लगी थी। फ़ाहिशा ने पहली बार खुद को किसी के साथ इतना सुरक्षित और सुकून भरा महसूस किया, जबकि ज़ाहिदा ने इस एहसास को जीते हुए अपनी ज़िन्दगी में एक नई शुरुआत का अनुभव किया।

यह वह पहली दस्तक थी, जिसने उनकी मोहब्बत को एक नया नाम दिया—एक ऐसा नाम, जो उनकी ज़िन्दगी को पूरी तरह से बदलने वाला था।

 

अध्याय 6: दिल की आवाज़
 

मोहब्बत की पहली दस्तक के बाद, फ़ाहिशा और ज़ाहिदा के दिलों में कुछ बदल चुका था। वह रिश्ता, जो अब तक एक दोस्ती के रूप में पनप रहा था, अब एक गहरी मोहब्बत में बदलने लगा था। दोनों के दिल अब एक-दूसरे की धड़कनों से जुड़ चुके थे। लेकिन हर मोहब्बत की तरह, उनकी मोहब्बत भी उतनी आसान नहीं थी। उनके दिलों की आवाज़ें अब उनके जीवन की वास्तविकताओं से टकराने लगी थीं। मोहब्बत में पड़ना जितना खूबसूरत होता है, उतना ही मुश्किल होता है उस मोहब्बत को निभाना।

फ़ाहिशा की दुविधा:
फ़ाहिशा के दिल में मोहब्बत ने दस्तक तो दी थी, लेकिन उसकी ज़िन्दगी का अतीत उसे इस मोहब्बत को पूरी तरह से अपनाने से रोक रहा था। वह खुद को ज़ाहिदा के लायक नहीं समझती थी। उसका अतीत एक ऐसी काली छाया की तरह था, जिसने उसकी आत्मा पर गहरे निशान छोड़े थे। ज़ाहिदा की मोहब्बत ने उसे सुकून तो दिया था, लेकिन कहीं न कहीं उसके भीतर यह डर अब भी मौजूद था कि जब ज़ाहिदा को उसकी सच्चाई का पता चलेगा, तब शायद वह उससे दूर हो जाएगी।

उसने अब तक ज़ाहिदा को अपने अतीत के बारे में कुछ भी नहीं बताया था। वह अपने दिल में यह राज़ दबाए रखे हुए थी, लेकिन अब यह बोझ उसके लिए भारी होने लगा था। मोहब्बत का पहला नियम ईमानदारी है, और फ़ाहिशा इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थी। वह जानती थी कि अगर उसे और ज़ाहिदा को साथ रहना है, तो उसे अपनी सच्चाई ज़ाहिदा के सामने रखनी ही होगी।

ज़ाहिदा का विश्वास:
वहीं दूसरी ओर, ज़ाहिदा का दिल पूरी तरह से फ़ाहिशा के लिए खुल चुका था। उसने फ़ाहिशा के हर दर्द को समझने और उसके साथ रहने का फैसला किया था। उसे फ़ाहिशा के अतीत से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह जानती थी कि मोहब्बत सिर्फ वर्तमान और भविष्य को लेकर होती है, अतीत में क्या हुआ, उससे मोहब्बत की गहराई पर असर नहीं पड़ता।

ज़ाहिदा का यह विश्वास उसकी मज़बूत आस्था और सच्चाई से भरा था। उसने अपनी ज़िन्दगी में हमेशा दूसरों की मदद करने और उनका साथ देने की कोशिश की थी, और अब जब वह फ़ाहिशा के करीब आई थी, तो वह उसे किसी भी हाल में छोड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी।

दिलों की टकराहट:
एक दिन फ़ाहिशा और ज़ाहिदा फिर से उसी बाग में मिले, जहाँ उनकी पहली बार मोहब्बत ने दस्तक दी थी। लेकिन इस बार फ़ाहिशा के चेहरे पर एक अलग ही चिंता झलक रही थी। उसकी आँखों में उदासी थी, और उसके दिल में एक गहरी बेचैनी। वह अब इस मोहब्बत को और आगे बढ़ाने से पहले अपनी सच्चाई ज़ाहिदा के सामने रखना चाहती थी, लेकिन साथ ही उसे यह डर भी सता रहा था कि कहीं ज़ाहिदा उसे छोड़ न दे।

"ज़ाहिदा," फ़ाहिशा ने धीमे से कहा, "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

ज़ाहिदा ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "क्या हुआ? तुम कुछ परेशान लग रही हो।"

फ़ाहिशा ने उसकी ओर ध्यान से देखा और कुछ देर तक चुप रही। फिर उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "मुझे नहीं पता कि मैं यह कैसे कहूँ, लेकिन यह बात मुझे कब से परेशान कर रही है। मैं तुमसे झूठ नहीं बोल सकती, और अगर हमारी मोहब्बत सच्ची है, तो तुम्हें मेरी सच्चाई जानने का हक़ है।"

ज़ाहिदा ने अब अपनी मुस्कान हटा ली और फ़ाहिशा की बातों को गंभीरता से सुनने लगी। उसकी आँखों में सवाल थे, लेकिन साथ ही विश्वास भी था कि जो भी होगा, वह फ़ाहिशा के साथ खड़ी रहेगी।

फ़ाहिशा का इज़हार:
"ज़ाहिदा, मैं वो नहीं हूँ जो तुम समझती हो," फ़ाहिशा ने कांपते हुए कहा। "मेरा अतीत बहुत गंदा है। मैंने ज़िन्दगी में बहुत बुरे दौर देखे हैं, और शायद मैं तुम्हारी मोहब्बत के काबिल नहीं हूँ।"

ज़ाहिदा की आँखों में थोड़ी हैरानी और जिज्ञासा झलकने लगी। उसने फ़ाहिशा का हाथ पकड़कर उसे हिम्मत देने की कोशिश की। "जो भी हो, फ़ाहिशा, मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम मेरी दोस्त हो, मेरी मोहब्बत हो, और तुम्हारे अतीत से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"

फ़ाहिशा के दिल में यह सुनकर थोड़ी राहत महसूस हुई, लेकिन वह जानती थी कि उसे अपनी सच्चाई बतानी ही होगी। उसने ज़ाहिदा की आँखों में देखा और कहा, "मैंने एक ऐसी ज़िन्दगी जी है जहाँ मेरी इज्जत कई बार छीनी गई, जहाँ मैंने खुद को बर्बाद होते देखा। मैं अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि हालात की मजबूरी में एक ऐसे रास्ते पर चली गई थी, जहाँ से लौटना नामुमकिन था। लोग मुझे फ़ाहिशा के नाम से जानते हैं, लेकिन मेरा असली नाम फ़हमीदा है।"

यह सुनते ही ज़ाहिदा की आँखों में आँसू आ गए। उसने फ़ाहिशा की तकलीफ़ को महसूस किया, लेकिन उसके दिल में फ़ाहिशा के लिए प्यार और गहरा हो गया। उसने बिना कुछ कहे उसे गले लगा लिया।

मोहब्बत की ताक़त:
ज़ाहिदा के इस गले लगाने ने फ़ाहिशा के दिल के सारे डर तोड़ दिए। उसने कभी नहीं सोचा था कि कोई उसे उसकी असलियत के साथ इस तरह अपना सकता है। वह खुद को हमेशा अकेला और बेकस मानती थी, लेकिन ज़ाहिदा ने उसे यह महसूस कराया कि मोहब्बत सिर्फ़ बाहरी चीज़ों पर आधारित नहीं होती, बल्कि यह दिल से दिल का रिश्ता होता है।

"तुम्हारा अतीत तुम्हारी पहचान नहीं है, फ़हमीदा," ज़ाहिदा ने कहा। "तुमने जो भी झेला है, उससे तुम्हारी आत्मा नहीं बदली। तुम आज भी वही हो, जो मैंने पहली बार देखा था—एक मजबूत, बहादुर और सच्ची इंसान।"

फ़ाहिशा की आँखों से आँसू बहने लगे, लेकिन इस बार ये आँसू दर्द के नहीं थे, बल्कि राहत और खुशी के थे। उसने पहली बार अपने दिल को पूरी तरह से हल्का महसूस किया।

दिल की आवाज़ सुनना:
उस दिन, दोनों के दिलों ने एक-दूसरे को पूरी तरह से समझ लिया था। फ़ाहिशा अब किसी डर या शक के बिना ज़ाहिदा के साथ रह सकती थी, क्योंकि उसे पता था कि उसकी मोहब्बत सच्ची और निःस्वार्थ थी। ज़ाहिदा की मोहब्बत ने उसे उसकी असलियत के साथ अपनाया था, और यही असली मोहब्बत की ताक़त होती है—वह हमें हमारी कमियों और गलतियों के बावजूद अपनाती है।

फ़ाहिशा ने अब खुद को पूरी तरह से ज़ाहिदा के सामने रख दिया था। उसके दिल ने अपनी आवाज़ को सुना था, और अब वह इस रिश्ते में पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ जी सकती थी।

एक नई शुरुआत:
दोनों के दिलों के बीच अब कोई दूरी नहीं थी। उनकी मोहब्बत ने हर डर और हर बाधा को पार कर लिया था। उन्होंने यह समझ लिया था कि ज़िन्दगी चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, अगर मोहब्बत सच्ची है, तो वह हर दर्द को मिटा सकती है।

उस दिन के बाद, फ़ाहिशा ने अपने दिल की आवाज़ को कभी नहीं दबाया। उसने ज़ाहिदा के साथ मिलकर एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत की, जहाँ उनका रिश्ता सिर्फ़ मोहब्बत पर नहीं, बल्कि विश्वास, सच्चाई और एक-दूसरे की तकलीफों को समझने पर आधारित था।

अब उनकी मोहब्बत सिर्फ़ दिलों की आवाज़ नहीं थी, बल्कि आत्माओं का जुड़ाव बन चुकी थी, जो हर तूफ़ान का सामना करने को तैयार थी।

 

अध्याय 7: अंधेरों से रोशनी की ओर
 

फ़ाहिशा और ज़ाहिदा की मोहब्बत ने अंधेरों से निकलकर रोशनी की ओर अपना सफर शुरू कर दिया था। जहाँ एक तरफ़ फ़ाहिशा ने अपने अतीत की सच्चाई को ज़ाहिदा के सामने रखा और उससे जुड़े डर को हिम्मत के साथ झेला, वहीं दूसरी ओर ज़ाहिदा ने उस सच्चाई को पूरी तरह से स्वीकार करते हुए अपनी मोहब्बत से फ़ाहिशा को एक नई ज़िन्दगी का रास्ता दिखाया। उनकी मोहब्बत ने अब एक नई दिशा पकड़ ली थी, जो उन्हें अंधेरों से निकालकर रोशनी की ओर ले जा रही थी।

अंधेरों की जकड़न:
फ़ाहिशा का अतीत उसके जीवन में एक गहरी छाया की तरह था। हर दिन उसे अपने अतीत के दर्द से जूझना पड़ता था। वह चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, उसके अतीत की यादें उसका पीछा नहीं छोड़ती थीं। अपने परिवार का विश्वासघात, अपने पिता द्वारा बेचे जाने की कड़वी सच्चाई, और फिर उस अंधेरी दुनिया में गिरने का दर्द—यह सब उसके दिल में अब भी ताज़ा था।

लेकिन अब, ज़ाहिदा की मोहब्बत ने फ़ाहिशा को यह एहसास दिलाया था कि वह अपने अतीत की कैदी नहीं है। अतीत ने उसे तकलीफ दी, लेकिन उसने यह भी सिखाया कि उसे कितनी मज़बूत बनना है। ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा को यह समझने में मदद की थी कि उसकी सच्चाई उसे कमजोर नहीं, बल्कि मज़बूत बनाती है। उसने अपने दर्द से सीखा और उस दर्द को पीछे छोड़ने का साहस जुटाया।

लेकिन यह सफर आसान नहीं था। अंधेरे से रोशनी की ओर बढ़ने का रास्ता कभी सीधा नहीं होता। हर कदम पर अतीत की परछाइयाँ फ़ाहिशा का पीछा करती थीं। वह रातों में जागती रहती, अपने पुराने ज़ख्मों को फिर से महसूस करती। वह अपने आप से सवाल करती कि क्या वह वाकई इस नई ज़िन्दगी के लायक है? क्या वह इस मोहब्बत को सही तरह से निभा सकेगी?

ज़ाहिदा की मदद और सच्चाई:
ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा के दर्द को समझा था। उसे पता था कि यह सफर एक दिन में पूरा नहीं होगा। फ़ाहिशा ने जितना अंधेरा झेला था, उसे पूरी तरह से रोशनी में लाने के लिए समय और धैर्य की ज़रूरत थी। ज़ाहिदा हर रोज़ उसे हिम्मत देती, उसे उसकी ताक़त का एहसास दिलाती।

"तुम्हें अतीत से डरने की ज़रूरत नहीं है, फ़ाहिशा," ज़ाहिदा एक दिन फ़ाहिशा के सामने बैठकर बोली। "जो हो चुका है, उसे हम बदल नहीं सकते, लेकिन हम यह तय कर सकते हैं कि हम आज और कल को कैसे जीएंगे।"

फ़ाहिशा ने उसकी बातों को ध्यान से सुना। वह जानती थी कि ज़ाहिदा सही कह रही है, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। उसने अपनी ज़िन्दगी के इतने साल अंधेरे में बिताए थे कि अब रोशनी में आने का ख्याल उसे डराने लगा था।

"लेकिन जब मेरा अतीत बार-बार मेरे सामने आकर खड़ा हो जाता है, तब क्या करूँ?" फ़ाहिशा ने आँखों में आंसू भरकर पूछा।

ज़ाहिदा ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "तुम्हें उससे भागने की ज़रूरत नहीं है। हमें उसे स्वीकार करना होगा, और फिर उससे ऊपर उठना होगा। अतीत हमें तोड़ नहीं सकता, जब तक हम उसे अपनी ताक़त बना लें।"

अंधेरे का सामना:
यह वो समय था जब फ़ाहिशा ने अपने अतीत का सामना करने का फैसला किया। उसने सोचा कि अब और भागने से कोई फायदा नहीं। अतीत उसे पीछे खींचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अब वह अपने दिल की आवाज़ सुनकर आगे बढ़ने को तैयार थी।

पहला कदम यह था कि फ़ाहिशा ने अपने अंदर की कड़वाहट और ग़लतफ़हमी को दूर करने का फैसला किया। उसने ज़ाहिदा की मदद से खुद को माफ़ करना शुरू किया। यह एक मुश्किल प्रक्रिया थी, क्योंकि वह हमेशा खुद को दोषी मानती आई थी। लेकिन ज़ाहिदा ने उसे यह समझाया कि जब तक वह खुद को माफ़ नहीं करेगी, वह अतीत के बोझ से कभी बाहर नहीं निकल पाएगी।

"तुम्हारे साथ जो हुआ, वो तुम्हारी गलती नहीं थी, फ़ाहिशा," ज़ाहिदा ने एक दिन बड़े प्यार से कहा। "तुमने खुद को संभाला, और यह तुम्हारी सबसे बड़ी जीत है। अब वक्त आ गया है कि तुम खुद को माफ़ करके आगे बढ़ो।"

फ़ाहिशा ने यह बात अपने दिल में बिठा ली। उसने खुद से लड़ाई करनी शुरू कर दी। वह हर दिन थोड़ा-थोड़ा खुद को माफ़ करने लगी, और धीरे-धीरे उसका दिल हल्का होने लगा।

रोशनी की ओर पहला कदम:
फिर एक दिन फ़ाहिशा ने एक बड़ा कदम उठाया। उसने उस दलाल से मिलने का फैसला किया जिसने उसकी ज़िन्दगी को बर्बाद किया था। वह जानती थी कि जब तक वह अपने अतीत का सामना नहीं करेगी, तब तक वह पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पाएगी।

ज़ाहिदा उसके साथ थी। दोनों ने मिलकर उस जगह का पता लगाया, जहाँ वह दलाल अब रहता था। यह फ़ाहिशा के लिए बहुत कठिन फैसला था, लेकिन वह जानती थी कि यह कदम उसके लिए ज़रूरी था।

जब फ़ाहिशा उस दलाल के सामने खड़ी हुई, तो उसके दिल में कई तरह की भावनाएँ उमड़ने लगीं—गुस्सा, दर्द, डर। लेकिन फिर उसने खुद को संभाला।

"मैं आज तुम्हें माफ़ करने आई हूँ," फ़ाहिशा ने कांपते हुए कहा। "तुमने मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी थी, लेकिन अब मैं तुम्हें माफ़ करती हूँ, ताकि मैं खुद को इस बोझ से आज़ाद कर सकूँ।"

यह शब्द कहने के बाद फ़ाहिशा का दिल हल्का हो गया। उसने पहली बार महसूस किया कि उसने अपने अतीत को पीछे छोड़ दिया है। वह अब अंधेरे से बाहर निकल चुकी थी और रोशनी की ओर बढ़ रही थी।

मुक्ति का एहसास:
इस घटना के बाद, फ़ाहिशा के जीवन में एक नई शुरुआत हुई। उसने अपने दिल की अंधेरी गलियों से बाहर आकर रोशनी की किरणों को महसूस किया। अब वह हर रोज़ अपनी ज़िन्दगी को एक नए तरीके से जीने लगी। उसका अतीत अब उसकी पहचान नहीं था, बल्कि उसकी ताक़त बन चुका था।

ज़ाहिदा की मोहब्बत और साथ ने फ़ाहिशा को एक नया जीवन दिया। दोनों ने मिलकर एक नई राह पर चलने का फैसला किया, जहाँ न सिर्फ़ उनकी मोहब्बत थी, बल्कि एक-दूसरे के लिए अटूट समर्थन और समझदारी भी थी।

रोशनी की ओर सफर:
फ़ाहिशा अब एक नए सफर पर थी—अंधेरों से निकलकर रोशनी की ओर। उसने अपने अतीत को गले लगाया, लेकिन उसे अपने वर्तमान और भविष्य पर हावी नहीं होने दिया। ज़ाहिदा के साथ उसने यह सीख लिया था कि ज़िन्दगी में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, अगर हमारे पास सच्चे रिश्ते और सच्ची मोहब्बत हो, तो हम हर अंधेरे को पार कर सकते हैं।

उनकी मोहब्बत अब और भी गहरी हो चुकी थी। यह मोहब्बत सिर्फ़ दिलों की नहीं, बल्कि आत्माओं की थी। यह वह मोहब्बत थी, जो अंधेरों से निकलकर रोशनी में पहुँच चुकी थी।

 

अध्याय 8: समाज का सामना

 

फ़ाहिशा और ज़ाहिदा की मोहब्बत अब एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुकी थी। दोनों ने अपने दिलों की आवाज़ सुनी थी और एक-दूसरे के साथ रहने का फैसला किया था। लेकिन मोहब्बत की राहें सिर्फ़ दिलों तक ही सीमित नहीं होतीं; समाज की निगाहें भी उन पर गहरी होती हैं। ज़ाहिदा और फ़ाहिशा को अपनी मोहब्बत की सच्चाई को केवल अपने भीतर ही नहीं, बल्कि समाज के सामने भी साबित करना था। इस समाज में, जहाँ परंपराएं और सामाजिक मान्यताएँ अक्सर रिश्तों पर हावी होती हैं, वहाँ उनकी मोहब्बत एक कठिन इम्तिहान से गुजरने वाली थी।

समाज की दीवारें:
फ़ाहिशा का अतीत, जो अब तक उसके लिए एक निजी दर्द था, समाज की नज़रों में एक धब्बा था। लोगों ने उसके अतीत के बारे में तरह-तरह की बातें बना रखी थीं। उसकी पहचान एक 'फ़ाहिशा' के रूप में थी, न कि फ़हमीदा के रूप में। और यही पहचान उसे ज़ाहिदा के साथ अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी रुकावट बन सकती थी।

ज़ाहिदा के परिवार और समाज ने भी उसे एक आदर्श धार्मिक लड़की के रूप में देखा था, जिसकी ज़िन्दगी हमेशा सही रास्ते पर रही है। ज़ाहिदा के लिए फ़ाहिशा के साथ मोहब्बत करना और उसे समाज के सामने अपनाना एक चुनौती थी, क्योंकि इस रिश्ते को समाज आसानी से स्वीकार नहीं कर सकता था।

पहली प्रतिक्रिया:
जब ज़ाहिदा ने अपनी माँ से फ़ाहिशा के साथ अपने रिश्ते की बात की, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया चिंता और असमंजस भरी थी। उनकी माँ ने फ़ाहिशा को अपने घर में एक मेहमान की तरह स्वीकार किया था, लेकिन जब उन्हें पता चला कि ज़ाहिदा और फ़ाहिशा के बीच मोहब्बत का रिश्ता है, तो वह सन्न रह गईं।

"ज़ाहिदा, तुम समझती हो कि तुम क्या कह रही हो?" उनकी माँ ने गंभीर स्वर में पूछा। "फ़ाहिशा का अतीत... यह समाज इसे कभी नहीं मानेगा। लोग तुम्हें ताने देंगे, तुम्हारी इज्जत को नुकसान पहुंचेगा।"

ज़ाहिदा ने अपनी माँ की चिंता को समझा, लेकिन उसने पूरी हिम्मत के साथ जवाब दिया, "माँ, मैं जानती हूँ कि फ़ाहिशा का अतीत मुश्किलों से भरा हुआ है, लेकिन मैंने उसे उसकी सच्चाई के साथ अपनाया है। हमारी मोहब्बत सच्ची है, और समाज की बातें हमें इसे निभाने से रोक नहीं सकतीं।"

माँ की आँखों में चिंता और आंसू थे। वह चाहती थीं कि ज़ाहिदा की ज़िन्दगी में कोई परेशानी न आए, लेकिन साथ ही उन्हें यह भी एहसास था कि उनकी बेटी अपनी राह खुद चुनने के लिए तैयार है।

समाज की कठोरता:
जैसे ही ज़ाहिदा और फ़ाहिशा के रिश्ते की खबर समाज में फैलने लगी, लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी। जहाँ कुछ लोग चुपचाप इस रिश्ते पर बातें कर रहे थे, वहीं कुछ लोग खुलकर इसका विरोध करने लगे। मोहल्ले में तरह-तरह की अफवाहें फैलने लगीं। लोगों ने फ़ाहिशा के अतीत को लेकर उसकी निंदा करनी शुरू कर दी।

फ़ाहिशा के लिए यह बेहद मुश्किल वक्त था। वह जानती थी कि उसका अतीत उसे हर जगह पीछा करता रहेगा, लेकिन अब वह अपनी ज़िन्दगी को दुबारा उस अंधेरे में नहीं धकेलना चाहती थी। उसने बहुत हिम्मत और साहस के साथ अपनी सच्चाई को स्वीकार किया था, और अब वह समाज के तानों का सामना करने के लिए तैयार थी। लेकिन इन तानों ने उसे भीतर से झकझोर दिया था।

"तुम्हारी वजह से लोग मेरे बारे में इतनी गंदी बातें कर रहे हैं, ज़ाहिदा," फ़ाहिशा ने एक दिन रोते हुए कहा। "मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारी इज्जत खराब हो। शायद मुझे तुम्हारी ज़िन्दगी से दूर हो जाना चाहिए।"

ज़ाहिदा का संकल्प:
ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा को चुप कराते हुए उसके आँसू पोंछे। उसकी आँखों में दृढ़ता थी। "नहीं, फ़ाहिशा। हम इस रिश्ते में साथ हैं, और मुझे तुम्हारे अतीत से कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर लोग बातें कर रहे हैं, तो करने दो। हमारी मोहब्बत की ताकत इन तानों से कहीं ज़्यादा है।"

ज़ाहिदा के इस संकल्प ने फ़ाहिशा को नई हिम्मत दी। अब वह समझ चुकी थी कि ज़ाहिदा उसके साथ हर मुश्किल में खड़ी रहेगी। समाज की कठोरता अब भी उन्हें चुनौती दे रही थी, लेकिन ज़ाहिदा की मोहब्बत ने फ़ाहिशा के दिल में एक नई रोशनी जगा दी थी।

परिवार का सामना:
समाज के विरोध के बावजूद, सबसे बड़ा इम्तिहान ज़ाहिदा और फ़ाहिशा के लिए ज़ाहिदा के परिवार का सामना करना था। उनकी माँ ने अब तक फ़ाहिशा को सिर्फ़ एक दोस्त के रूप में स्वीकार किया था, लेकिन जब उन्हें इस रिश्ते की गहराई का एहसास हुआ, तो उन्होंने इसे लेकर कई सवाल उठाए।

एक दिन, ज़ाहिदा ने अपने परिवार के साथ खुलकर इस विषय पर बात की। उसने अपनी माँ और भाइयों के सामने फ़ाहिशा के साथ अपने रिश्ते की सच्चाई रखी।

"मैं फ़ाहिशा से मोहब्बत करती हूँ," ज़ाहिदा ने बिना झिझक के कहा। "मैंने उसे उसकी सच्चाई के साथ अपनाया है, और मुझे यकीन है कि आप भी हमारी मोहब्बत को समझेंगे।"

उनके भाइयों ने यह सुनकर कड़ा विरोध जताया। "यह रिश्ता नामुमकिन है," उनके बड़े भाई ने कहा। "तुम्हारी इज्जत और हमारे परिवार की इज्जत दांव पर लग जाएगी। फ़ाहिशा के अतीत की वजह से हमें समाज में अपमान झेलना पड़ेगा।"

ज़ाहिदा ने गहरी सांस ली और जवाब दिया, "मैं समझती हूँ कि आपको फ़ाहिशा का अतीत परेशान करता है, लेकिन मोहब्बत अतीत से नहीं होती। मैं फ़ाहिशा को उसकी सच्चाई के साथ अपनाती हूँ, और अगर समाज या दुनिया हमें न भी समझे, तो भी मैं अपने फैसले पर कायम रहूंगी।"

परिवार की सहमति:
ज़ाहिदा की माँ, जो अब तक चुपचाप उनकी बात सुन रही थीं, ने आखिरकार अपनी बेटी का समर्थन किया। "अगर ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा को अपनाने का फैसला किया है, तो मैं उसकी माँ होने के नाते उसका साथ दूंगी। हमें दुनिया की परवाह नहीं करनी चाहिए। जो सही है, वही करना चाहिए।"

माँ के इस समर्थन ने ज़ाहिदा को एक नई ताकत दी। धीरे-धीरे, उनके भाइयों ने भी इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया। उन्हें यह समझ में आ गया था कि ज़ाहिदा और फ़ाहिशा की मोहब्बत सच्ची थी और उन्हें समाज की परवाह किए बिना अपनी मोहब्बत के लिए खड़ा होना चाहिए।

समाज की चुनौती का सामना:
समाज अब भी उनके रिश्ते को लेकर आलोचना कर रहा था, लेकिन ज़ाहिदा और फ़ाहिशा ने मिलकर यह फैसला किया कि वे इन आलोचनाओं का सामना करेंगे। उन्होंने अपनी मोहब्बत को छुपाने के बजाय इसे गर्व से स्वीकार किया।

"हम किसी से नहीं डरेंगे," ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा का हाथ पकड़कर कहा। "हमारा रिश्ता सच्चा है, और सच्चाई की ताकत सबसे बड़ी होती है।"

फ़ाहिशा ने पहली बार अपने भीतर एक गहरी शांति महसूस की। उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी दूसरों के डर और तानों के साये में जी थी, लेकिन अब वह इन सायों से बाहर निकल चुकी थी। ज़ाहिदा के साथ उसने यह समझ लिया था कि समाज चाहे कितना भी कठोर क्यों न हो, अगर दिलों में सच्चाई और मोहब्बत है, तो हर बाधा को पार किया जा सकता है।

एक नई सुबह:
समाज का सामना करना आसान नहीं था, लेकिन दोनों ने अपने रिश्ते की सच्चाई और अपने प्यार की ताकत के साथ हर चुनौती का डटकर सामना किया। उनके रिश्ते ने उन्हें एक नया आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान दिया था। अब वे सिर्फ़ मोहब्बत करने वाले नहीं, बल्कि उस मोहब्बत के लिए लड़ने वाले बन चुके थे।

फ़ाहिशा ने अंधेरे से निकलकर रोशनी की ओर कदम बढ़ा लिया था, और अब वह और ज़ाहिदा मिलकर उस रोशनी में अपनी ज़िन्दगी की नई शुरुआत कर रहे थे—बिना किसी डर के, बिना किसी पछतावे के।

 

अध्याय 9: मोहब्बत की कसौटी
 

फ़ाहिशा और ज़ाहिदा की मोहब्बत ने समाज की कठिनाइयों का सामना करते हुए एक मज़बूत रूप ले लिया था। दोनों ने साथ मिलकर हर चुनौती का सामना किया, चाहे वह समाज के ताने हों या परिवार की शंकाएँ। उनकी मोहब्बत की बुनियाद गहरी थी, लेकिन ज़िन्दगी की राह में मोहब्बत की कसौटी बार-बार सामने आती है। हर रिश्ता, चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, कभी न कभी एक परीक्षा से गुज़रता है। और अब वही परीक्षा ज़ाहिदा और फ़ाहिशा के सामने थी, जो उनकी मोहब्बत को परखने वाली थी।

मोहब्बत पर सवाल:
समाज के तानों और आलोचनाओं के बावजूद, ज़ाहिदा और फ़ाहिशा अपने रिश्ते को गर्व के साथ निभा रही थीं। वे एक-दूसरे के लिए ताकत बन चुके थे। लेकिन फ़ाहिशा के दिल में एक डर अब भी मौजूद था—क्या वह वाकई ज़ाहिदा की ज़िन्दगी के लिए सही साथी है? उसका अतीत अभी भी उसके मन में शक पैदा करता था। भले ही ज़ाहिदा ने बार-बार उसे यकीन दिलाया कि उसका अतीत उनके रिश्ते के बीच में नहीं आएगा, फिर भी फ़ाहिशा खुद को उस अतीत की जंजीरों से पूरी तरह आज़ाद नहीं कर पाई थी।

एक दिन, फ़ाहिशा ने ज़ाहिदा से कहा, "मुझे अब भी लगता है कि शायद मैं तुम्हारी ज़िन्दगी के लिए सही नहीं हूँ। मैं तुम्हारे साथ चल रही हूँ, लेकिन कहीं न कहीं मुझे यह डर है कि मेरी वजह से तुम्हें बहुत कुछ सहना पड़ रहा है।"

ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा की तरफ़ प्यार भरी निगाहों से देखा और कहा, "हमारी मोहब्बत कोई गलती नहीं है, फ़ाहिशा। हमने हर मुश्किल का सामना किया है, और अब कोई भी हमें अलग नहीं कर सकता। मैं जानती हूँ कि तुम क्या सोच रही हो, लेकिन हमें अब आगे बढ़ने की ज़रूरत है। हमारा रिश्ता इस दुनिया से ऊपर है, और हमें इसे पूरी सच्चाई और ईमानदारी से निभाना होगा।"

एक नयी चुनौती:
लेकिन किस्मत को दोनों के रिश्ते की और परीक्षा लेनी थी। मोहब्बत की कसौटी एक बार फिर उनके सामने आई जब फ़ाहिशा के अतीत का एक हिस्सा, जिसे उसने कभी छोड़ दिया था, वापस उसकी ज़िन्दगी में आ गया। एक दिन अचानक फ़ाहिशा को अपने पुराने जीवन से जुड़ी एक ऐसी ख़बर मिली, जिसने उसे अंदर से हिला कर रख दिया।

फ़ाहिशा का सामना एक पुराने दलाल से हुआ, जिसने उसे कभी अंधेरे में धकेल दिया था। वह व्यक्ति अब वापस आया था, और उसने फ़ाहिशा से पैसे की मांग की। उसने धमकी दी कि अगर फ़ाहिशा ने उसे पैसे नहीं दिए, तो वह ज़ाहिदा और उसके परिवार के सामने उसके अतीत की सारी गंदगी फैला देगा।

फ़ाहिशा के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। उसने सोचा था कि वह अपने अतीत से हमेशा के लिए दूर जा चुकी है, लेकिन अब उसका अतीत फिर से उसके सामने खड़ा था, उसे धमकी दे रहा था और उसकी ज़िन्दगी को तबाह करने की कोशिश कर रहा था।

फ़ाहिशा का संघर्ष:
फ़ाहिशा ने इस मुश्किल को अकेले ही झेलने का फैसला किया। उसने सोचा कि अगर वह इस बारे में ज़ाहिदा को बताएगी, तो ज़ाहिदा परेशान हो जाएगी और शायद उसके परिवार को भी नुकसान होगा। फ़ाहिशा ने खुद को फिर से उस अंधेरे में पाया, जहाँ से वह निकलने की कोशिश कर रही थी।

कुछ दिनों तक वह इस बोझ को अपने दिल में दबाए रही। वह ज़ाहिदा के साथ हंसती, मुस्कुराती, लेकिन भीतर से टूटी हुई थी। ज़ाहिदा ने उसकी इस स्थिति को महसूस किया, लेकिन फ़ाहिशा ने हर बार उसे यही कहा कि वह ठीक है।

लेकिन एक दिन, फ़ाहिशा की हालत बिगड़ गई। उसकी आँखों में आंसू थे, और वह अब और इसे अपने दिल में छुपा नहीं सकी। उसने ज़ाहिदा से कहा, "मुझे माफ़ कर दो। मैं तुमसे कुछ छुपा रही हूँ। मेरे अतीत का एक हिस्सा अभी भी मुझे पीछा कर रहा है। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई परेशानी आए।"

सच्चाई का सामना:
ज़ाहिदा ने गंभीरता से उसकी बात सुनी और उसकी आँखों में देखा। "तुम मुझसे कुछ छुपा क्यों रही हो, फ़ाहिशा?" ज़ाहिदा ने धीरे से पूछा। "हमने पहले भी ये बातें की हैं, और मैंने हमेशा तुम्हारा साथ दिया है। अब क्यों नहीं?"

फ़ाहिशा ने आंसुओं के बीच सारी बातें ज़ाहिदा को बता दीं—कैसे वह दलाल अब फिर से उसकी ज़िन्दगी में लौट आया है और उसे ब्लैकमेल कर रहा है। उसने कहा, "मैं नहीं चाहती थी कि तुम इस सबमें उलझो, इसलिए मैंने सोचा कि मैं इसे खुद सुलझा लूंगी। लेकिन अब मैं और नहीं सह सकती।"

ज़ाहिदा ने उसकी बात सुनने के बाद गहरी सांस ली और कहा, "तुम्हें कभी भी यह सब अकेले सहने की ज़रूरत नहीं थी, फ़ाहिशा। हम एक साथ हैं, और अगर तुम्हारा अतीत फिर से सामने आया है, तो हम मिलकर इसका सामना करेंगे।"

कसौटी पर खरा उतरना:
ज़ाहिदा के ये शब्द फ़ाहिशा के दिल को छू गए। वह जानती थी कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन अब वह अकेली नहीं थी। ज़ाहिदा ने फ़ाहिशा को हिम्मत दी और उसे यकीन दिलाया कि वे मिलकर हर मुश्किल का सामना करेंगे।

उन्होंने एक योजना बनाई कि कैसे उस दलाल से निपटा जा सकता है। ज़ाहिदा ने अपने परिवार के कुछ करीबी लोगों से मदद ली और पुलिस के पास जाने का फैसला किया। फ़ाहिशा के लिए यह बेहद कठिन समय था, लेकिन अब वह जानती थी कि उसकी ज़िन्दगी में ज़ाहिदा का साथ है और वह उसे हर कदम पर समर्थन देगी।

कुछ दिनों बाद, पुलिस ने उस दलाल को पकड़ लिया। वह अब फ़ाहिशा की ज़िन्दगी से हमेशा के लिए बाहर हो चुका था। यह एक बड़ी जीत थी, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह थी कि फ़ाहिशा और ज़ाहिदा की मोहब्बत ने इस कसौटी पर खरा उतरकर यह साबित कर दिया था कि उनका रिश्ता सच्चा और अटूट है।

मोहब्बत की जीत:
इस घटना के बाद, फ़ाहिशा और ज़ाहिदा के बीच का रिश्ता और भी मज़बूत हो गया। अब उनके बीच कोई भी झूठ या छुपाव नहीं था। उन्होंने एक-दूसरे के साथ हर चीज़ को साझा करना सीख लिया था। मोहब्बत की यह कसौटी उनके रिश्ते को और गहरा और मजबूत बना गई थी।

फ़ाहिशा ने पहली बार महसूस किया कि वह अतीत से पूरी तरह मुक्त हो चुकी है। अब उसके सामने सिर्फ़ उसका और ज़ाहिदा का भविष्य था, जिसमें दोनों साथ मिलकर हर मुश्किल का सामना कर सकते थे।

एक नई शुरुआत:
अब, जब उनकी मोहब्बत हर कसौटी पर खरी उतर चुकी थी, फ़ाहिशा और ज़ाहिदा ने एक नई शुरुआत की। समाज के तानों, अतीत की धमकियों और हर मुश्किल ने उन्हें तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उनकी मोहब्बत ने हर बार उन्हें और मज़बूत बना दिया।

इस सफर में, उन्होंने यह सीखा कि मोहब्बत सिर्फ़ एक भावना नहीं, बल्कि एक ताकत है, जो हर चुनौती का सामना कर सकती है। अब उनके सामने एक नई ज़िन्दगी थी, जहाँ मोहब्बत ही उनकी सबसे बड़ी जीत थी।