पंडित जी ने अवनी की शादी उस नाग से करवा दी और वह नाग वहां से जंगल की तरफ चला गया। वहां से अवनी और उसके माता-पिता वापस अपने महल में आ गए थे। उसके बाद कभी भी अवनी को इस तरह का कोई सपना नहीं आया।
अवनी को हमेशा ऐसा लगता था कि कोई उसके आसपास हमेशा रहता है। शायद यही कारण था की अवनी ज्यादा कभी किसी से बात नहीं करती थी। हमेशा अकेले रहना और पढ़ाई करना उसे पसंद था। इसी वजह से तो एमबीए मैं वह फर्स्ट नंबर से पास हुई थी।
गायत्री जी हमेशा उसे दूसरी लड़कियों की तरह पार्टी में जाने को और दोस्तों के साथ लॉन्ग ड्राइव में जाने को कहती थी लेकिन अवनी उसे भी हमेशा मना कर दिया करती थी। पढ़ाई के अलावा उसे सिर्फ कुछ चीज पसंद थी जो हमेशा किया करती थी। वह हमेशा पेंटिंग किया करती थी और उसके अलावा सिर्फ उसे घोडसवारी पसंद थी। एक ब्लैक कलर का घोड़ा जिसका नाम उसने डार्क लायन रखा था वह उसे बहुत पसंद था और वह हमेशा उसी के ऊपर घोडसवारी किया करती थी।
इन सब बातों को अच्छे साल बीत चुके थे और अब अवनी 22 साल की हो गई थी। इन 6 सालों में काफी कुछ ऐसा हो गया था जिसकी वजह से अवनी के परिवार वालों की हालत काफी खराब हो गई थी। उनके पास कोई जमीन जायदाद नहीं बची थी सिर्फ बचा था तो उनका वह पुश्तैनी हवेली।
6 साल के बाद...
गायत्री जी इस वक्त अपनी हवेली के आंगन में बैठकर चाय पी रही थी। हवेली काफी बड़ी थी लेकिनउसका रंग पूरी तरह से उतर चुका था और उसे देखकर पता लग रहा था कि कई सालों से उसे रिनोवेट नहीं किया गया है। उसे कलर काम की भी बहुत जरूरत थी जो अभी तक नहीं हुई थी इस वजह से बारिश के पानी के निशान जगह दिख रहे थे।
उनके घर की हालत काफी खराब थी लेकिन महंगे कपड़े पहनने का शौक अभी तक उनका गया नहीं था। अभी भी उन्होंने सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी। गायत्री जी अपनी चाय का आनंद ले रही थी कि तभी उसके हाथ से चाय फिसल कर टेबल के ऊपर गिर गई। उन्होंने मुंह बिगाड़ कर टेबल की तरफ देखा और आवाज लगाते हुए कहा।
" नागेंद्र आकर इसे साफ करो।"
गायत्री जी की आवाज सुनते ही एक नौजवान लड़का अपने हाथों में कॉटन का कपड़ा लिए वहां पर आ गया। वह लड़का जिसकी हाइट 6 फीट से भी ज्यादा थी और रंग चमकते सूरज की तरह लाली मां से भरा था। हरी आंखों के साथ वह नौजवान काफी अट्रैक्टिव दिख रहा था।
उसने जल्दी से टेबल को साफ किया और गायत्री जी की तरफ देखकर पूछा।
" मम्मी जी क्या आपको कुछ और चाहिए?"
गायत्री जी ने मुंह बनाते हुए उसने जवान लड़के की तरफ देखा और कहा।
" चाहिए तो ऐसे बोल रहे हो जैसे कि अपनी जेब से खर्च कर के कुछ लाने वाले हो। कुछ कमाते धमाते नहीं हो सिर्फ मेरी बेटी है जो अच्छी जगह पर नौकरी कर रही है इसी वजह से यह घर चल रहा है। जब तुम खुद कुछ कमाने लगो ना तब पूछना कि कुछ चाहिए क्या। अब यहां खड़े रहते मेरा दिमाग खराब मत करो और जाओ यहां से।"
गायत्री जी ने होठों को टेढ़ा किया और वापस अपनी बची कुची चाय पीने लगी। नागेंद्र कुछ देर के लिए वहीं रुक रहा और फिर हल्की मुस्कुराहट लिए वहां से वापस अंदर जाने लगा। अवनी अपने कमरे में तैयारी कर रही थी। जयपुर के एक इंटरनेशनल होटल मैनेजर का काम करती थी। उसने ब्लेजर पहने और खुले बालों के साथ हल्के लिपस्टिक लगाई और अपना लैपटॉप का बैग उठाकर बाहर की तरफ जाने लगी।
उसे आज लेट हो गया था इसलिए वह जल्दी-जल्दी में बाहर की तरफ जा रही थी कि तभी वह किसी से टकरा गई। उसका ध्यान नहीं था और इसलिए टकराने की वजह से उसने अपनी आंखें बंद कर ली। उसे लग रहा था कि वह किसी भी वक्त नीचे गिर जाएगी लेकिन तभी उसे लगा कि किसी ने उसे कमर से पकड़ा हुआ है।
उसने अपनी एक आंख खोलकर सामने देखा तो नगेंद्र ने उसे पकड़ा हुआ था और उसका चेहरा उसके काफी नजदीक था। वह एक सेकंड के लिए नागेंद्र की हरी आंखों में खो गई और वही नागेंद्र भी अवनी की काली आंखों में खो गया था।
तभी उन दोनों के कान में किसी के गला साफ करने की आवाज आई। दोनों ने जब सामने की तरफ देखा तो गिरधारी लाल अपना चेहरा दूसरी तरफ किए हुए अपना गला साफ कर रहे थे। गिरधारी लाल को वहां देखकर दोनों अपनी जगह पर खड़े हो गए और अवनी ने अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कहा।
" पापा मुझे लेट हो रहा है तुम्हें कैंटीन में ही कुछ खा लूंगी।"
इसके पहले कि वह अपना एक भी कदम बढ़ाती नागेंद्र में उसको रोकते हुए कहा।
" अवनी तुम्हें वहां पर खान की जरूरत नहीं है मैं तुम्हारा टिफिन पहले ही रेडी करके पैक कर दिया है। वह लोग होटल में अच्छा तेल उसे नहीं करते और मसाला भी एक्स्ट्रा डालते हैं।"
कहते हुए वह भागते हुए किचन के पास गया और वहां से एक टिफिन बैग लेकर आया। अवनी ने नागेंद्र की तरफ देखा भी नहीं और टिफिन पर लेकर वहां से तेज कदमों के साथ बाहर चली गई। नागेंद्र कुछ देर तक अवनी को बाहर की तरफ जाते हुए देखता रहा। गिरधारी लाल अपनी एक आईब्रो पर करके नागेंद्र की तरफ देख रहे थे।
" क्या बात है मियां, आज कुछ ज्यादा ही अवनी के करीब जा रहे थे।"
नगेंद्र ने गिरधारी लाल की तरफ देखा और अपनी गर्दन हल्की सी हिलाते हुए कहा।
" ऐसा कुछ नहीं है पापा, वह अपनी मुझे टकरा गई थी और वह गिरने वाली थी मैं तो बस उसे गिरने से बचा रहा था।"
गिरधारी लाल ने अपनी गर्दन हां में हिलाते हुए कहा।
" हां हां तो मैंने कब मना किया मैं भी तो वही कह रहा था।"
फिर उन्होंने बाहर की तरफ देखा और कहा।
" तुमने अपनी सासू मां को नाश्ता दिया या नहीं वरना वह मेरी जान खा जाएगी।"
नगेंद्र ने मुस्कुराते हुए गिरधारी लाल की तरफ देखा और कहा।
" क्या बात है पापा इतनी उम्र हो गई आपकी लेकिन आपकी आदत कभी नहीं जाएगी।"
गिरधारी लाल ने नागेंद्र की तरफ देखा और सोचते हुए पूछा।
" आदत? अब कौन सी आदत नहीं जाएगी मेरी?"
नगेंद्र ने किचन की तरफ जाते हुए कहा।
" मम्मी जी से डरने की आदत।"
गिरधारी लाल ने एक लंबी सांस ली और नागेंद्र के पीछे-पीछे किचन की तरफ जाते हुए कहा।
" मेरी आदत मेरे मरने के बाद भी नहीं जाने वाली। तुम क्या जानो नागेंद्र बाबू की बीवी का डर क्या होता है। अवनी तो तुमसे बात तक नहीं करती।"
अब तक वह लोग किचन में आ गए थे और नगेंद्र ने एक प्लेट में सैंडविच रखते हुए कहा।
" हां यह तो है। कम से कम मम्मी जी आपसे झगड़ा तो करती है।"
यह बात कहते वक्त नागेंद्र के चेहरे पर मायूसी दिखाई दे रही थी। गिरधारी लाल में उसके कंधे पर हाथ रखते हुए हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा।
" एक बात कहूं मेरी अवनी उसकी मां जैसी बिल्कुल भी नहीं है। वह बहुत समझदार हैऔर उसे एक दिन यह समझ आ जाए क्योंकि तुम उसे कितना पसंद करते हो। पिछले कुछ सालों में उसके साथ कुछ ऐसा हुआ है जिसकी वजह से वह लोगों से घुल मिल नहीं पाती। अपने दिल की बात हमेशा दिल के अंदर रखती है कभी अपने जज्बातों को दूसरों के सामने बयान नहीं करती।"
नगेंद्र ने नाश्ते की प्लेट को गिरधारी लाल के हाथ में देते हुए कहा।
" जानता हूं इसलिए तो मैं भी कुछ नहीं कहता। लेकिन मुझे पता है एक दिन वह अपने दिल की बात खुद कर मुझसे कहेगी।"
गिरधारी लाल ने नागेंद्र के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा।
" यह बात हुई ना मेरे शेर। मुद्दईते लाख बुरा चाहे तो क्या होता है वही होता है जो मंजूरी खुदा होता है।"
नागेंद्र सिर्फ गिरधारी लाल की तरफ देखकर मुस्कुराने लगा। उन लोगों की बातें अभी चालू ही थी कि उन्हें बाहर से गायत्री जी के किसी के ऊपर चिल्लाने की आवाज आने लगी। आवाज सुनकर दोनों ने पहले एक दूसरे की तरफ देखा और फिर भागते हुए बाहर आ गए।
बाहर आने पर उन्होंने देखा केक 50 से 55 साल का आदमी जिन्होंने मखमली कुर्ता और नीचे सलवार पहनी हुई थी और उनके गले में मोतियों की माला थी वह खड़े थे। उन्होंने अपनी आंखों में काला चश्मा लगाया हुआ था और उनका पेट बाहर की तरफ निकला हुआ था। गायत्री जी उनकी तरफ देखकर चिल्ला रही थी।
" तेरी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की निकल जा यहां से।"
उसे आदमी ने उसे हवेली की तरफ देखा और कहा।
" गजेंद्र सिंह ऐसे ही कहीं नहीं जाता। मैं आपको यह नोटिस देने के लिए आया हूं।"
कहते हुए उसने पीछे की तरफ देखा जहां पर एक आदमी ने जल्दी से एक नोटिस उनके हाथ में पकड़ाई। गजेंद्र सिंह ने उसे नोटिस को गायत्री जी के हाथ में दिया। गायत्री जी ने उसे नोटिस को पहले अच्छे से पढ़ा और फिर गजेंद्र सिंह की तरफ गुस्से में देखा। उन्हें देखकर पता लग रहा था कि नोटिस में कुछ ऐसी बात है जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है।
आंखें उसे नोटिस में ऐसा क्या लिखा था जिसे पढ़ कर गायत्री जी का गुस्सा सातवें आसमान में पहुंच गया था? अवनी और नागेंद्र की शादी कब और किन हालातो में हुई थी? आखिर यह नागेंद्र कौन है?