Bairy Priya - 66 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | बैरी पिया.... - 66

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बैरी पिया.... - 66


अब तक :


विक्रम बस सब कुछ ऑब्जर्व कर रहा था उसे नहीं पता था कि सामने लेटा इंसान कौन था और आखिर शिविका उसे डेथ इंजेक्शन क्यों दिलवा रही थी... ।



लेकिन शिविका की आवाज का दर्द साफ बता रहा था कि सामने वाला इंसान शिविका के लिए बहुत खास था । विक्रम की आंखें भी नम हो आई वो आंसुओं से भरी आंखों से शिविका को देखने लगा जो बिल्कुल एक पुतले की तरह खड़ी होकर सामने लेटे इंसान को देखे जा रही थी ।



अब आगे :

डॉक्टर ने नर्स को बुलाया और एक इंजेक्शन निकाला । शिविका एक टक उस इंजेक्शन को देखती रही । देखते ही देखते डॉक्टर ने वो इंजेक्शन नरेन की बॉडी में इंजेक्ट कर दिया । शिविका ने आंखें मूंद ली ।


कुछ ही पलों में नरेन की उपर नीचे चलती हार्टबीट को दिखाती कंप्यूटर स्क्रीन पर सीधी लाइन चलने लगी ।


शिविका ने नरेन की खुली आंखें बंद की और फुटकर रोने लगी । शिविका ने नरेन के सीने पर सिर रखा और बिलख पड़ी । डॉक्टर की आंखें भर आई और साथ में खड़ी नर्स की आंखें भी नम हो गई ।
डॉक्टर ने अपनी आंखें पोंछी ओर विक्रम से बोला " संभालिए इन्हें... " ।


विक्रम शिविका के पास आया और उसे सहारा दिया ।


डॉक्टर नरेन की बॉडी पर सफेद कपड़ा ओढ़ाकर चले गए ।


शिविका काफी देर तक रोती रही ओर विक्रम उसे कंसोल करता रहा ।


काफी देर बाद शिविका ने अपने होश को संभाला तो विक्रम से बोली " इनका अंतिम संस्कार करना है विक्रम जी... "।


" हम्मम... हम करेंगे... " बोलकर विक्रम ने सिर हिला दिया ।


नरेन की dead body को लिए दोनो शमशान घाट पहुंच गए ।


विक्रम " क्या इसका अपना कोई भी नहीं है.. " ।


शिविका " नहीं... । जो थी मैं ही थी.. । मेरे अलावा इनकी जिंदगी में कोई नही था...... । " ।


विक्रम " oh.... वैसे तुम्हारा क्या रिश्ता था इसके साथ... ?? " ।


शिविका " नरेन मेरे बोहोत अच्छे दोस्त थे और धीरे धीरे मुझे इनसे प्यार भी हो गया था । लेकिन प्यार का सफर हमने साथ नही चला... । उससे पहले ही जुदाई नसीब में आ गई । और अब ये एक और जुदाई.. जो शायद कभी खत्म नहीं होने वाली.... " बोलकर शिविका ने आखिरी लकड़ी नरेन की चिता पर डाली और उसकी चिता को आग देकर उसका अंतिम संस्कार करने लगी ।


विक्रम टूट चुकी शिविका को चिता के इर्द गिर्द घूमते हुए देखता रहा ।


आखिर में जब चिता ठंडी हुई तो विक्रम और शिविका ने अस्थियों को समेटा और वहां से निकल गए ।


शाम का वक्त :

संयम का बंगला :


शिविका और विक्रम बंगले के बाहर पहुंचे तो शिविका ने विक्रम से कहा " मैं अंदर नही जाऊंगी.. विक्रम जी... । मैं वो चेहरा दुबारा नहीं देखना चाहती.... । आप में भाई को बाहर ले आइए... । यहां से निकल जाना ही मेरे लिए सबसे अच्छा होगा... । "।


विक्रम ने सिर हिला दिया और अंदर चला गया । शिविका बाहर बैठी गुमसुम सी अपने हाथ में पकड़ी अस्थियों को देखने लगी । आंखों से बहने के लिए अब और आंसू बचे नही थे ।


कुछ देर बाद विक्रम बाहर आया और बोला " संयम अंदर नही है शिविका.. दादी मिलना चाहती हैं तुमसे... । उन्हें नही पता कि तुम जा रही हो... । एक बार उनसे मिल लो.. । मैं विश्वास दिलाता हूं संयम तुम्हे नजर नहीं आएगा...... " ।


शिविका ने अस्थियों को देखा और फिर वाणी जी का सोचकर सिर हिला दिया ।


विक्रम उसे लिए अंदर चला आया ।


वाणी जी ने शिविका को अपने पास बिठाया और बोली " जो हुआ उसे भूल जाओ शिविका... । संयम तुमसे प्यार करता है.... । एक नई शुरुवात करो... । देखना सब सही होगा... । एक बच्चा गया तो वो भी भगवान की हो मर्जी होगी... । तुम दोनो साथ हो तो ये दुख भी निकल जायेगा मेरी बच्ची... " ।


शिविका ने सुना तो हैरान से वाणी जी को देखने लगी । शिविका रोती हुई आंखों से दर्द भरी हंसी के साथ बोली " काश आपकी तरह मैं भी हर चीज से अंजान होती दादी... तो सब सही हो जाता । काश जैसा आप सोचती हैं सब वैसा ही होता... । पर अब कुछ ठीक नही हो सकता । सब बिखर गया है...... " ।


वाणी जी " ऐसा नही कहते बेटा.... । जिंदगी बोहोत बड़ी है.. । ये बुरा हुआ.. लेकिन जिंदगी खुशियां भी देती हैं... । संयम का प्यार सब ठीक कर ही देगा.. । तुम्हारे लिए वो बोहोत बदला है बेटा.. मैने देखा है... " ।


शिविका उनके पास से उठी और बोली " आपका पोता किसी के लिए नही बदला दादी.. । वो सिर्फ अपने मकसद को पूरा करने के लिए कुछ वक्त के लिए दिखावा था.. । आपका पोता किसी से प्यार नही करता... । वो एक निर्दई इंसान है जो सिर्फ बदला लेना जानता है..। फिर चाहे बेकसूर लोगों से ही उस बदले को क्यों न ले.... ।


अच्छा हुआ ये बच्चा इस दुनिया में नही आया.. वर्ना बाप के नाम पर मैं इसे कुछ नही बता पाती... । आप बोहोत अच्छी हैं दादी.. । अच्छा लगा कि आप मेरी जिंदगी में आई । लेकिन अब आज के बाद हम कभी नही मिलेंगे... । आपके पोते ने जिंदगी के बचे खुचे रंग भी छीन लिए । अब ये जगह नर्क लगने लगी है... । अब यहां नही रुक सकती.. । ये सफर यहीं तक था दादी... । अपना खयाल रखिएगा... " बोलकर शिविका जल्दी से वहां से बाहर भाग गई ।


वाणी जी उसे देखकर बेबाक सी रह गई । शिविका क्या कह कर गई उन्हें कुछ समझ में नहीं आया ।


वाणी जी ने पीछे खड़े विक्रम को देखा तो पूछा " ये क्या बोल रही है विक्रम.. ?? " ।


विक्रम " बेहतर होगा ये बात आप संयम से ही पूछें दादी.. । वो आपको बेहतर तरह से बताएगा... " बोलकर विक्रम भी बाहर निकल गया ।


शिविका ने कमरे में जाकर कपड़े बदले और आदित्य को लेकर बाहर निकल गई ।


विक्रम भी उनके साथ चल दिया ।


देर रात जब संयम बंगला पहुंचा तो देखा कि वाणी जी बाहर हॉल में ही खड़ी थी । संयम समझ गया कि वो उसी का इंतजार कर रही थी ।


संयम उनकी ओर बढ़ गया ।


संयम उनसे दूर ही पहुंचा था कि वाणी जी ने पूछा " शिविका के साथ क्या किया है तुमने.. ?? " ।


संयम ने जेब में हाथ डाले और बोला " वही जो उसके बाप ने मेरी मां के साथ किया था.. । फर्क इतना है कि मैं उतना नीचे नही गिरा दादी... "।


वाणी जी " और उसके बाप ने तुम्हारी मां के साथ क्या किया था.... ?? " ।


संयम " प्यार का नाटक और फिर धोखा... । मैने वही उसे वापिस कर दिया... । अब इंसाफ हुआ.... " संयम ने इतना कहा ही था कि एक जोर दार तमाचा उसके गाल पर पड़ा ।


संयम अपने गाल पर हाथ रखे खड़ा हो गया ।

उसका चेहरा एक तरफ को झुक गया ।


वाणी जी " उसे इतना बड़ा धोखा दिया ऐसी घिनौनी हरकत की ओर बोल रहा है कि नीचे नही गिरा । अगर इसे नीचे गिरना नही कहते तो नीचे गिरना क्या होता है संयम... । मुझे लगता था कि मेरी परवरिश अच्छी होगी.. । तुम लोगों से अच्छे रिश्ते नहीं रखते और एक गुंडे बने रहते हो ये मै पहले भी जानती थी लेकिन एक लड़की की इज्जत तक तुम नही करोगे ये मुझे नही पता था.... । आज पता चल रहा है कि मैं तो परवरिश कर ही नही पाई । और अगर की है तो धिक्कार है मुझ पे । " ।



" ये आप क्या कह रही है दादी... " संयम ने उनकी ओर कदम बढ़ाते हुए कहा ।


वाणी जी ने अपने कदम पीछे की ओर ले लिए और बोली " दादी मत बोलो संयम... । बिना किसी गलती के भी जो तुमने उस बच्ची के साथ किया है उसके बाद मुझे दादी मत कहो... । तुम्हारी इस गलती की कोई माफी नहीं है... ।


अरे कुछ तो सोचते संयम.. किसी के दिल के साथ खेलकर क्या हांसिल कर लिया तुमने...?? अरे मां बनने वाली थी तुम्हारे बच्चे की लेकिन तुमने वो भी छीन लिया उससे... । एक महीने से प्रेगनेंट थी लेकिन आज वो बच्चा भी इस दुनिया में आने से पहले ही मर गया... " ।


संयम ने बच्चे का सुना तो आंखें बड़ी करके वाणी जी को देखने लगा ।।


" मेरा.. मेरा बच्चा.. ?? " बोलते हुए संयम का गला बैठ सा गया ।


वाणी जी " हान... और शायद यही बात परसों रात वो तुम्हे बताना चाहती थी और इसीलिए इतनी तैयार हुई थी.. और शायद कमरे को भी सजाया था... । मुझे समझ नही आया कि इतनी खुश क्यों है.. । और अब जब पता चला तो वो खुशी की वजह ही खतम हो गई.... " ।


संयम ने याद किया कि जब शिविका ने उससे प्यार का इजहार किया था तो वो बोहोत खुश थी और उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी । और बार बार वो कुछ कहना भी चाह रही थी ।


लेकिन उस वक्त संयम को अपने दिल में भरी कड़वाहट निकालनी थी इसलिए उसने किसी चीज पर ध्यान नही दिया था । संयम ने अपनी मुट्ठी बना ली । एक पछतावा उसे घेरने लगा ।


" शिविका... " बोलते हुए संयम ने उपर की मंजिल की ओर देखा और उपर जाने लगा तो वाणी जी बोली " चली गई है वो... । मुझसे कहकर गई है कि ये मेरी ओर उसकी आखिरी मुलाकात थी... । अब हमसे कभी नही मिलने वाली.. । तुमने सब कुछ खो दिया संयम.. । उसके प्यार का भी मान नही रखा तुमने.... ।



उसकी बददुआ अपने उपर लेकर तुम बोहोत अभागे बन गए हो.. । अब कोई खुशी तुम्हारी जिंदगी में नही आ सकती संयम... । तुमने सारी खुशियां का गला घोंट दिया है... । बदले की आग में तुमने उस इंसान को झोंक दिया जिसका कोई कसूर भी नही था... । " ।


संयम उनकी ओर बढ़ा और बोला " दादी.. बताइए ना वो कहां गई.. । मैं ढूंढ लूंगा उसको.. । " ।


वाणी जी ने उसे दूर धक्का दिया और बोली " खबरदार अब उसकी जिंदगी में जाकर उसको नर्क बनाने का सोचा भी तो... । अरे ये तो वो है जो मेरे सामने हुआ... न जाने इसके अलावा भी तुमने क्या क्या किया होगा... जिसका मुझे पता भी नही है... । ये सब देखने के लिए ही आज तक जिंदा थी... । अरे इससे तो अच्छा होता कि मर जाती... " ।


वाणी जी ने इतना कहा ही था कि एक दम से उनके सीने में तेज दर्द उठा... । उन्होंने अपने सीने पर हाथ रख दिया और गहरी सांसें लेने लगी । उनका चेहरा पसीने से भीग गया । ।


संयम उनके पास गया तो वाणी जी ने उसे दूर रहने का इशारा किया । ।


वाणी जी लड़खड़ाते हुए सोफे के उपर गिर पड़ी । संयम उनकी ओर बढ़ा तो वो उखड़ती हुई आवाज में मुश्किल से बोली " दू... दूर रहो संयम हाथ मत लगाना... "।


" और आपको लगता है कि मैं आपकी सुनने वाला हूं दादी... " बोलकर संयम ने उन्हें गोद में उठाया बाहर गाड़ी में बैठाकर हॉस्पिटल की ओर निकल गया ।


Hospital जाकर उसने वाणी जी को एडमिट करा दिया । फिर दक्ष को फोन घुमाया.. और शिविका का पता लगाने के लिए कहा ।


दक्ष शिविका को ढूंढने में लग गया ।


संयम वहीं कॉरिडोर में बेताब सा घूमने लगा । दादी की कही बातें उसके दिमाग में घूमने लगी । शिविका के साथ बिताए लम्हे उसकी आंखों के आगे चलने लगे । ।


डॉक्टर वार्ड से बाहर निकली तो संयम ने पूछा " क्या हुआ है उनको... ?? " ।


डॉक्टर " उन्हें हार्ट अटैक आया है... । हम बचाने की कोशिश कर रहे हैं... । Excuse me..." । बोलकर डॉक्टर चला गया । संयम वहीं बेंच पर बैठ गया । वाणी जी के हार्ट अटैक का सुनकर उसके खुद के सीने में दर्द होने लगा था ।



संयम खुद से बोला " कुछ नही होगा आपको दादी.... । मैं कुछ नही होने दूंगा.. " बोलते हुए उसने अपने चेहरे को हाथों में भर लिया ।


दक्ष का कॉल आया तो संयम ने जल्दी से उठा लिया ।


दक्ष " हमने ढूंढा SK लेकिन वो यहां पर नही है । कैमरा रिकार्डिंग देखी तो शाम के वक्त ही विक्रम भाई के साथ वो निकल गई थी । " ।


संयम " और वो आदित्य... ?? " ।


दक्ष " उसे भी साथ ले गई SK.. " ।


संयम " ढूंढो दक्ष... Find her " बोलकर संयम ने फोन रख दिया । कुछ याद आने पर वो उपर के फ्लोर की ओर चल दिया । ।


नरेन के वार्ड में जाकर उसने देखा तो वहां अब कोई दूसरा पेशेंट था ।। अंदर खड़े वार्ड boy का कॉलर पकड़कर संयम ने पूछा " यहां पर को कोमा का पेशेंट था वो कहां गया.... " ।


वार्ड बॉय ने घबराते हुए कहा " मुझे नही पता.. । मैं इस पेशेंट के लिए पर्सनली अप्वाइंट हूं... । और आज दोपहर में ही हमे यहां शिफ्ट किया गया है... " ।


संयम ने उसे झटके के साथ छोड़ दिया ।
वार्ड बॉय ने खुद को गिरने से संभाला और अजीब तरह से संयम को देखने लगा ।


संयम जल्दी से वहां से बाहर निकला और नरेन को देखने वाले डॉक्टर को ढूंढने लगा । कॉरिडोर से जाते हुए ही उसे वो डॉक्टर दिख गया ।


संयम उसके पास गया और बोला " वो जो मरीज सामने के वार्ड में था वो कहां गया.. ??? " ।


डॉक्टर ने पीछे के वार्ड की तरफ देखा और पूछा " ओह वो नरेन श्रीवास्तव.... ?? " ।


संयम " हान वही... " ।


डॉक्टर " उसे तो सुबह ही डेथ इंजेक्शन दे दिया था फिर शिविका उसे लेकर चली गई ।" बोलकर डॉक्टर चले गए ।


संयम ने दीवार पर हाथ मारा और चिल्लाते हुए बोला " नई नई नई... तुम नही जा सकती शिविका... । ऐसे नही जा सकती तुम... सुना तुमने... । मैं ढूंढ लूंगा तुम्हे... । ढूंढ ही लूंगा... " बोलकर संयम शिविका को फोन try करने लगा लेकिन उसका फोन नही लग रहा था ।


संयम ने विक्रम को फोन मिलाया लेकिन उसका फोन भी नहीं लगा । संयम ने बालों को हाथ में पकड़ लिया और खींचने लगा ।


" अभी तो बदला पूरा करने की खुशी मना रहा था । लेकिन वो खुशी खुशी नहीं लगी मुझे... । एक एहसास हो गया था कि ये गलत किया... लेकिन मुझे रियलाइज होने से पहले तुम नही जा सकती... । तुम्हे आना होगा शिविका... । आना होगा... " बोलकर संयम लिफ्ट की ओर चल दिया ।


दक्ष का फोन आया तो संयम लिफ्ट से नीचे आते हुए फोन पर बोला " कुछ पता चला क्या.. ?? " ।


दक्ष " SK.... गाड़ी हेलीपैड पर आकर रूकी और यहां से वो प्राइवेट जेट में बैठकर निकल गए । " ।


संयम " कहां गए... ?? " ।


दक्ष " वो नही पता चला SK.. । कोई clue नहीं छोड़ा है कि कहां गए... " ।


संयम ने मुट्ठी कस ली और बोला " ढूंढो उसे.... । वो ऐसे नही जा सकती दक्ष..... । ढूंढो उसे... " बोलते हुए संयम चिल्ला दिया ।



दक्ष " हान... मैं कोशिश कर रहा हूं.... " ।



संयम " मुझे कोशिश नही result चाहिए.... । जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी ढूंढो उसे..... " । बोलकर संयम ने फोन रख दिया ।