Bairy Priya - 64 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | बैरी पिया.... - 64

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बैरी पिया.... - 64


अब तक :


शिविका ने आंसू पोंछे और बोली " आपका दर्द समझ सकती हूं संयम.. । लेकिन आज एक खुशी का दिन है... मैं आपको बताना चाह रही थी कि... " ।

शिविका ने इतना कहा ही था कि संयम ने उसे रोकते हुए कहा " उम्हुम्म... कहानी अभी पूरी नही हुई है... शिविका चौधरी... उर्फ.... मिष्ठा अग्रवाल... " ।


ये सुनकर शिविका को समझ में नहीं आया कि आखिर संयम ये क्या कह रहा है... ?? ।


शिविका " ये क्या कह रहे हैं आप.. ?? आप मुझे मिष्ठा अग्रवाल क्यों कह रहे हैं... ?? " ।


अब आगे :


संयम जेब में हाथ डाले चुप खड़ा रहा ।


शिविका " बोलिए ना संयम... " ।


संयम " लोगों को असली नाम से बुलाया जाना उनकी प्रेजेंस को खास बना देता है । आगे की कहानी सुनो मिष्ठा.... " ।


शिविका हैरान सी उसे देखते हुए खड़ी रही ।


संयम उसके इर्द गिर्द घूमते हुए बोला " जानना चाहती हो वो इंसान कौन था जिसने हमारे परिवार को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी... । " ।बोलकर संयम ने शिविका के पीछे खड़े होकर उसे बाजू से पकड़ा और एक तस्वीर के सामने खड़ा करते हुए बोला " इस आदमी ने.. । इसी की वजह से सब हुआ... । इसी ने धोखे से मेरे पापा को मार दिया । दोस्त बनकर फरेब किया । और ये इंसान है... माथुर अग्रवाल... " ।


बोलकर संयम ने शिविका को झटके के साथ खुद से दूर धकेल दिया । शिविका लड़खड़ाते हुए थोड़ी आगे चली गई ।


उसने पलट कर संयम को देखा और बोली " ये आप क्या कर रहे हैं संयम ? आप मुझे धक्का क्यों दे रहे हैं... ?? " ।


संयम " माथुर अग्रवाल कोई और नहीं तुम्हारा बाप था । " ।


शिविका की आंखें बड़ी बड़ी हो गई। वो हैरान सी खड़ी बेबाक होकर उसे देखती रही । संयम ने आकर उसका चेहरा अपनी उंगलियों में पकड़ा और उसे तस्वीर की ओर घुमाते हुए बोला " देखो इस तस्वीर को.. ये है तुम्हारा वैहशी बाप... जिसने एक हंसते खेलते परिवार को खत्म कर दिया । " ।


शिविका आंखों में आसूं लिए सामने लगी तस्वीर को देखने लगी । तस्वीर में खड़े आदमी के चेहरे पर कीलें चुभाई हुई थी । उसका चेहरा नही दिखाई दिया ।


शिविका उखड़ी हुई सांसें लेने लगी ।।


संयम " कितना अजीब है ना... जिस परिवार को तुमने अपना परिवार माना वो तो तुम्हारा परिवार था ही नही.. । तुम्हारी अब तक की पूरी जिंदगी सिर्फ एक धोखा थी... । जो तुम्हारे खुद के बाप ने तुम्हे दी थी... । " ।


शिविका की सांसें फूलने लगी । उसे पसीना आने लगा था । उसने अपने पेट पर हाथ रख दिया ।


शिविका ने अटकते हुए कहा " तो.... तो... क्या जो अब तक आपने मेरे लिए किया वो सब नाटक था... ?? आज तक जो हुआ सब एक साजिश के तहत था.. ?? क्या आपकााा यह प्यार बस दिखावाा थ था... ? " ।


संयम " तुम्हारा मुझसे मिलना इत्तेफाक था.... । लेकिन उसके बाद जो भी हुआ वो इत्तेफाक नहीं था... । " ।


शिविका " मुझे नही पता मैं कौन हूं.. तो फिर आपको कैसे पता.. ?? " ।


संयम " अपने दुश्मनों की हर एक चाल पर नजर रहती है संयम की... । अपने हाथ और गर्दन पर टैटू देख रही हो.. । ये तुम्हारीीी पहचान है । तुम जानती हो ये किसने करवाए थे... ?? " ।


शिविका ने अपने हाथ की ओर देखा और बोली " नही पता... बचपन सेे है " ।


संयम " मैं बताता हूं... । तुम्हारा बाप एक कंपनी चलाता था... ईगल स्टार नाम की... । साथ ही साथ वो हीरे भी स्मगल करता था ।


उन हीरों की खदान से उसे इतना प्यार था कि पूरी खान के इर्द गिर्द जमीन के अंदर उसने लोहे की शील्डिंग लगाई हुई थी ताकि कोई और वहां खुदाई ना कर सके ।


पूरा एरिया सेंसर से प्रोटेक्ट था । कोई और कहीं और से खान के अंदर आना चाहता तो वो करंट से मर जाता । अंदर जाने का सिर्फ एक रास्ता था...... जिसका लॉक सिर्फ उसको ही पता था ।


उस जगह को और ज्यादा प्रोटेक्ट करने के लिए उसने कई और इंतजाम करने शुरू कर दिए । एक स्पेशल अनलॉकिंग सिस्टम उस लोहे की शील्डिंग में लगा दिया ।


उस लॉक को खोलने वाली आकृति को उसने एक लोहे से shielded किताब के अंदर रखा जिस किताब पर भी उसने लॉक लगा दिया । जो सिर्फ उसे ही पता था । उस लॉक को वो भूल न जाए इसलिए उसने अपनी 1 साल की बच्ची के शरीर पर टैटू बना दिए । और कुछ टैटू अपने बेटेेेे के शरीरर पर भीी बनवाए ।



फिर उसी बच्ची को किसी और को सौंप दिया । कहीं दूर भेज दिया जहां उसे कोई ढूंढ ना पाए । या ये कहो कि मैं न ढूंढ पाऊं.. । क्योंकि खतरा तो उसे मुझसे ही महसूस होने लगा था ।


तुम्हारी गर्दन पर ईगल का टैटू है और हाथ पर स्टार का.... । जो कोई नॉर्मल टैटू नही है... । These are sound waves.. । जो कैमरा में देखने पर आवाज देती हैं.. । इन्हें सुना जा सकता है... । " ।


शिविका " तो मतलब... मुझसे वो कोड लेने के लिए आपने ये सब किया । और वो किताब वही किताब थी जिसमे कोड डालकर आपको उस खान में जाने का रास्ता खोलना था.. ?? " ।


संयम तिरछा मुस्कुराया और बोला " huh... ये तो मैं उसी दिन कर सकता था जिस दिन तुम मुझे दिखी थी.. । लेकिन इतनी आसानी से कुछ करना हजम नही था मुझे.. । बदले की आग बुझी नही है... । तुम्हारे बाप ने तो खुदकुशी कर ली.. । मेरा बदला तो पूरा हुआ ही नहीं था... ।


पर खून की रिश्ते आपस में जुड़े होते हैं । एक को दर्द दो तो दूसरे को अपने आप दर्द का एहसास होता है.. । जो तुम्हारे बाप में मेरी मां के साथ झूठे प्यार का नाटक किया वही मैने तुम्हारे साथ भी किया... । तुम्हे दर्द हुआ ना... मिष्ठा.... " ।


शिविका आंसू बहाती आंखों से उसे देखती रही... । उसनेेेेेेेे कसकर अपने पेट पर हाथ रख लिया । उसकााा दिल टुकड़े-टुकड़े हो चुकाा था ।


संयम ने उसे कंधों से पकड़ा और उसकी आंखों में देखते हुए बोला " किस्मत सबको अपना बदला लेने का मौका नहीं देती... । बोहोत कम लोग अपने बदले ले पाते हैं... । जानती हो मिष्ठा.... जो पागल इस घर में घूमता रहता है.. वो कौन है... ?? ।। "।


शिविका ने गहरी सांस ली पर कुछ उसके मुंह से बाहर नहीं निकला । हालांकि उसे अंदाजा हो गया था कि वो कौन हो सकता है... ।


संयम " सही समझ रही हो... । वो तुम्हारा भाई है.. । तुम्हारे बाप ने जब खुदकुशी की तो... ये तुम्हारे घर में अकेला बच गया । पागल था इलाज चल रहा था इसका... फिर मैं इसे यहां ले आया और आवारा छोड़ दिया.... । अब तो हालात ये है कि कभी ठीक नही हो पाएगा.... । "। बोलकर संयम शिविका के चेहरे पर उंगली फेरने लगा और शायरी करतेेे हुए बोला :


" छलावा महोबत का
दिखावा जिस्मों का होता है
धोखा पहचाने पहचान में नही आता
ये किस्मों किस्मों का होता है ।।
कई दिलजले रह जाते है
अपने बदले के इंतजार में...
हर किसी के नसीब में ये पल नही आता...
ये जलवा सिर्फ करिश्मों का होता है... । " ।


बोलकर संयम ने उसे छोड़ा और उससे दूर खड़ा होकर जोरों से हंसने लगा ।


शिविका जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई और बिलखते हुए रो पड़ी । इस वक्त जो बेबसी उसे महसूस हो रही थी उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता था । पलकें झपकना भूल गई थी और आसूं बहने से रुकना.. । सांसें तो वो ले रही थी लेकिन सीने में इतना दर्द था कि दिल के धड़कने का आभास ही नही था ।


हाथ की उंगलियों में जान नही थी कि वो हल्का सा भी हिल पाए । होंठ कांप रहे थे मानो सर्दी की रात में कही बाहर उसे ठिठुरना पड़ रहा हो... ।


संयम " कैसा लगा मिष्ठा अग्रवाल... । " ।


शिविका उसके बोलने से होश में आई और बोली " मेरे पापा ने जो किया उसका बदला आपने हमसे लिया... । मुझे और मेरे भाई को इस तरह से use किया... । इसमें हमारी क्या गलती थी संयम... " शिविका ने लगभग चीखते हुए कहा ।


संयम ने उसके मुंह पर उंगलीीीी रखते हुए कहा " shhh... don't shout.... दादी सो रही हैं... । उनकी नींद खराब नही होनी चाहिए... । वर्ना मैं क्या क्या कर सकता हूं... ये तो तुम्हे अभी तक पता चल ही गया होगा... " ।


शिविका ने बेबसी से उसे देखा और बोली " मानती हूं आपके साथ बोहोत गलत हुआ.. लेकिन ये आपने सही नही किया संयम... । ( रूंझली आवाज में ) अरे इसमें हमारा क्या कसूर था.... ?? हमने क्या किया था... ?? मेरे भाई को आपने पूरा पागल बना दिया । उसे यहां एक जानवर की तरह रखा ।


मेरे साथ प्यार का दिखावा किया.. मुझे इस्तेमाल किया... । अपनी जरूरतें पूरी की ओर अब धोखा दे दिया... । इतना बता दीजिए की हमारी क्या गलती थी... ?? क्या्या्या्या पैदा होना ही हमारीीीीी गलती बन चुकी थी... ?? " बोलते हुए शिविका की जुबान लड़खड़ा गई । संयम बिना किसी भाव के उसे देखने लगा ।



उसने आंख से बहते आसूं पोंछे और फिर दिखावटी हंसी हंसते हुए बोली " huh... अच्छा लग रहा होगा ना.. आपको.. सुकून मिला होगा.... बदला पूरा हो गया ना... । अब तो सब कुछ सही हो जाएगा... । मुझे और मेरे भाई को तड़पाकर ही तो सब कुछ सही होने वाला था..... । अब सब सही हो गया ना... । शांति मिल गई ना आपको..... " बोलते हुए शिविका ने उसकी आंखों में देखा ।


संयम कुछ नही बोला । बस शिविका को देखता रहा । कुछ देर पहले वो तैयार होकर कितनी अच्छी लग रही थी और अब उसका हुलिया बोहोत बुरा हो चुका था । साड़ी में धूल लग चुकी थी । चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था । आंखें रोने से सूज गई थी और बाल भी बिखर गए थे ।


" लेकिन रुकिए.... अभी बदला पूरा कैसे हो सकता है... । आपने मेरा रेप तो करवाया ही नही.. । अरे कहां है आपके लोग.. बुलाइए ना.... रही सही कसर भी पूरी कर दीजिए... बदला तो तभी पूरा होगा ना... " शिविका ने चिल्लाते हुए कहा ।


" शिविका... " संयम ने हवा में हाथ उठाते हुए गुस्से से उसे देखते हुए कहा ।


" क्या शिविका.. संयम.. क्या शिविका.. मर चुकी शिविका... मार दिया आपने.... । अपने परिवार को खोने के बाद कुछ भी झेलने की न हिम्मत थी और ना ही ताकत... । लेकिन आपने तो एक अलग ही सौगात दे दी संयम... । जिसने बची खुची कसर भी पूरी कर दी... । आंखें क्यों दिखा रहे हैं आप... । करवाााा लीजिए बाकी का भी और भी ज्यादा अच्छा लगेगा आपको...... " बोलते हुए शिविका अपने कदम पीछे की ओर लेने लगी ।


संयम ने उससे नजरें फेर ली.... ।


शिविका जल्दी से वहां से बाहर भाग गई ।
संयम ने तस्वीर को देखा और बोला " बदला पूरा हुआ.. mom.... Dad.... " बोलकर संयम ने तस्वीर पर हाथ रख दिया ।


संयम चेहरे से तो मुस्कुरा रहा था लेकिन सीने में उसे घुटन हो रही थी । उसने अपनी टाई निकालकर फेंक दी । और दीवार के सहारे बैठ गया ।।


शिविका जल्दी से नीचे गई और आदित्य के कमरे का दरवाजा खोलकर अंदर चली गई । आदित्य सो रहा था तो सारी लाइट्स ऑफ थी... ।


शिविका ने लाइट्स जलाई और आदित्य को देखा तो फूट फूट कर रोने लगी । उसके रोने की आवाज सुनकर आदित्य जाग गया ।


उसने शिविका को रोते देखा तो जल्दी से उसके पास आ गया । शिविका जमीन पार निढाल सी बैठ गई । आदित्य उसके पास आया तो शिविका झट से उसके गले से लग गई ।


" भाई.... भाई.... " कहकर शिविका बुरी तरह से बिलख पड़ी ।


आदित्य ने भी उसकी पीठ पर हाथ रख दिया । और शिविका को रोता देखकर वो भी रो दिया ।


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