Bairy Priya - 62 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | बैरी पिया.... - 62

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बैरी पिया.... - 62


अब तक :


संयम उसे लेकर कमरे में आया और बेड पर लेटा दिया । संयम ने उसके हाथ से बॉक्स लिया और नाइट स्टैंड पर रख दिया । फिर कपड़े बदल कर आया और लाइट्स ऑफ करके शिविका के नजदीक आकर लेट गया । और उसे बाहों में भरकर बेहद संजीदगी से चूमने लगा ।


कुछ ही देर में उसने शिविका को अपने आगोश में समा लिया । ।


शिविका को नींद आ गई तो संयम bed से उठ गया और सिगरेट सुलगा कर बालकनी में आ गया ।
फिर आंखों में आग लिए आसमान में देखने लगा ।


अब आगे :

अगली सुबह :


शिविका उठी तो संयम वहां नही था । शिविका ने अपने कपड़े सही किए और नहाकर तैयार होकर नीचे आ गई । उसने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी । उसे बोहोत जोरों से भूख लगी थी । शिविका जल्दी से रसोई में चली गई । अंदर जाकर देखा तो विक्रम हाथ में चीनी लेकर खा रहा था ।


शिविका उसके पास चली गई और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया । विक्रम ने उसके हाथ को देखा तो उसके हाथ में भी चीनी डाल दी ।


शिविका ने जल्दी से खा ली । विक्रम ने उसे देखा तो उसकी नजरें उस पर ठहर सी गई । शिविका बोहोत प्यारी लग रही थी ।


शिविका ने उसे देखा और बोली " आपने भी रात को खाना नही खाया था क्या... ?? " ।


विक्रम " hmm... भूख नही थी... । और तुमने... ?? " ।


शिविका " हान वो मेरा भी कुछ ऐसा ही था... " बोलते हुए शिविका ने फिर से हाथ आगे बढ़ा दिया । विक्रम ने उसके हाथ में और चीनी डाल दी ।


शिविका ने जल्दी से खाई और फिर से हाथ आगे कर दिया । विक्रम ने और डाल दी और उसे एक टक देखने लगा । फिर खुद भी खाने लगा ।


दोनो चुप चाप खाने लगे । ।


खाने के बाद विक्रम ने शिविका को देखा तो उसके होंठों के किनारे पर चीनी लगी हुई थी । विक्रम ने उसे इशारे से बताया तो शिविका चेहरा साफ करने लगी । लेकिन फिर भी कुछ चीनी रह गई । विक्रम ने अपने हाथ से उसे साफ कर दिया ।


विक्रम " तुम्हारी उम्र क्या है.... ?? " ।


शिविका " अब तो 20 साल की हो गई हूं.... । " ।


विक्रम " ओह फिर तो बच्ची ही हो अभी भी.. " ।


शिविका " 20 साल के बच्चे नही होते बड़े हो जाते हैं.... " ।


विक्रम " ओह... !! " ।


शिविका " hmm.... " ।


विक्रम " अच्छा.... । तो इतनी बड़ी होकर चीनी खानी नही आती.. मुंह में लगा रही हो... " ।


शिविका ने आई रोल की ओर पूछा " अच्छा.. । वैसे आपकी क्या age है... ?? " ।


विक्रम " 28.... " ।


शिविका " ओह.... फिर तो आप बूढ़े हो गए हैं.. और अभी तक आपको ये भी नहीं पता कि चीनी खाना हेल्थ के लिए अच्छा नहीं होता... । और नीचे चीनी गिरा रहे हैं... " ।


विक्रम ने देखा तो उसने नीचे काफी सारी चीनी गिरा दी थी ।


शिविका कमर पर हाथ रखे उसे देखने लगी । विक्रम मुस्कुरा दिया । शिविका भी हंस दी ।


वाणी जी रसोई में आई तो उन दोनो को देखकर उनके कदम दरवाजे पर ही ठहर गए ।


वाणी जी वहां से वापिस चली आई । बाहर मंदिर में आकर मूर्ति को देखते हुए बोली " हे कृष्ण... ये क्या हो रहा है... ?? क्या मैं जो देख रही हूं... वो सच में होने लगा है । मेरे दोनो पोते... नही नही.... ऐसा नई हो सकता.... " बोलते हुए उन्होंने हाथ जोड़े और मंदिर में ज्योत जला दी ।


विक्रम कुछ देर बाद रसोई से बाहर निकल आया ।
सीमा नेहा और वंदना भी रसोई में आ गई । दादी के बताए अनुसार शिविका संयम की पसंद का खाना बनाने लगी । ।


कुछ देर बाद जब सब बन गया तो खाना बाहर लगवा दिया गया । सब लोग खाना खाने बैठ गए ।



विक्रम तैयार होकर आया और बैठ गया । शिविका विक्रम को खाना परोसने लगी तभी संयम तैयार होकर नीचे आया तो शिविका का ध्यान उसकी ओर चला गया । शिविका ने सीमा को खाना परोसने के लिए दे दिया । और संयम के पास चली गई । संयम अपनी कुर्सी पर बैठा तो शिविका उसके बगल में बैठ गई । शिविका ने उसकी प्लेट सीधी की और उसमे खाना डाल दिया ।


विक्रम ने शिविका को वहां जाता देखा तो चेहरा थोड़ा उदास हो गया । वो चाहता था कि शिविका उसको भी खाना परोस दे ।


संयम खाने लगा तो शिविका उसे देखने लगी । संयम ने शिविका को देखा और फिर मुस्कुरा दिया ।


शिविका " कैसा बना है.. ?? " ।


संयम " बोहोत अच्छा... " ।


शिविका " मैने बनाया है... "।


संयम " hmm तभी तो मैने कहा बोहोत अच्छा.... " ।


शिविका मुस्कुरा दी ।


सबने खाना खाया और फिर संयम और विक्रम दोनो अलग अलग घर से बाहर चले गए । और शिविका का पूरा दिन चलने वाला इंतजार शुरू हो गया ।


एक महीना बीत गया । रोज यही होता । शिविका सुबह उठकर खाना बनाती और दिन भर संयम का इंतजार करती । शाम को संयम घर आता तो शिविका के लिए कुछ न कुछ ले आता । दोनो साथ में खाना खाते और फिर संयम उसे लिए सो जाता ।
विक्रम भी देर रात घर आता और अकेले खाना खाकर सो जाता ।


एक महीने बाद :


एक अंधेरे कमरे में प्रशांत और मनीषा कुर्सी पर बैठे हुए थे । उनके आस पास कुछ बॉडीगार्ड्स खड़े थे ।
मनीषा " आप सही जगह पर तो आए हैं ना... । यही उस SK का अड्डा है भी या नही... ।


प्रशांत " दो महीने से ज्यादा वक्त लगा है इसका पता लगाने में.... । इस बार गलत नही हो सकता... । सही जगह है.... " ।


मनीषा " और अगर गलत हुई तो... " ।


प्रशांत " तो क्या... फिर दुबारा से ढूंढेंगे... " ।


दोनो बात ही कर रहे थे कि तभी किसी के तेज कदमों से चल कर आने की आहट सुनाई दी ।
दोनो पीछे देखने लगे । एक आदमी उन्हीं की ओर चलता हुआ आ रहा था ।


आदमी उनके सामने आकर बैठ गया । दोनो को उस आदमी का चेहरा नही दिखाई दे रहा था क्योंकि हर तरफ अंधेरा था और आदमी ने अपना चेहरा स्कार्फ से ढका हुआ था ।


प्रशांत " mr. SK..... " ।


आदमी " नहीं... उनका दांया हाथ.... दक्ष रावल... " ।


प्रशांत और मनीषा दोनो ने सिर हिला दिया ।


प्रशांत " अच्छा... । SK नहीं मिल सकते क्या... " ।


दक्ष " जो काम है बोलो... । हर किसी राह चलते से SK नहीं मिलते... " ।


प्रशांत ने उसके ऐसा कहने पर मुट्ठी बना ली.. । उसे गुस्सा आ रहा था ।


प्रशांत ने गहरी सांस ली और बोला " हम राह चलते नही हैं.... । खैर... हमें SK से काम है तो उसी से बात करेंगे... " ।


दक्ष " उल्टे घूमो और बाहर निकलो . दरवाजा पीछे है.... " ।


मनीषा ने प्रशांत का हाथ दबाया और धीरे से उसके कान में बोली " क्या कर रहे हो.. ?? उसको गुस्सा क्यों दिला रहे हो.. ?? काम की बात करो ना.. ।

जरूरी नही है SK से ही बात हो.. ये भी तो उसका दांया हाथ है... उस तक बात पहुंचा देगा... "।


प्रशांत " अच्छा ठीक है... ( दक्ष से ) हमे सुपारी देनी है... । और वो आदमी बचना नही चाहिए... । कीमत जितनी तुम मांगो.... " ।


दक्ष " हमारे हाथों से कोई बचता भी नही है.. । तस्वीर दो.... " ।


प्रशांत ने तस्वीर आगे बढ़ा दी । दक्ष ने तस्वीर देखी तो वो एक लिफाफे में थी । जिसको सील किया हुआ था ।


दक्ष फाड़ने लगा तो प्रशांत बोला " नही... इसको सिर्फ SK ही फाड़ेगा... । तुम दांए हाथ भले ही हो. पर इसको नही देख सकते । " ।


दक्ष मुस्कुराया और बोला " उन तक हर चीज मुझसे होकर जाती है... । तुम्हारे बोलने से कुछ नही होने वाला... " । बोलकर दक्ष ने लिफाफे को फाड़ दिया । और फोटो निकाल कर देखने लगा ।


दक्ष की आंखें फोटो देखकर गहरी हो गई । वो सामने बैठे मनीषा और प्रशांत को गुस्से से देखने लगा । वो उनके चेहरे देख सकता था । क्योंकि उनकी तरफ को हल्की रोशनी डाली गई थी ।


दक्ष संयम के पूरे परिवार को जानता था लेकिन वो लोग दक्ष को नही जानते थे । ।


दक्ष को पता था कि वो संयम के चाचा चाची है... । और उसे गुस्सा इस बात का आ रहा था कि वो दोनो संयम को मारने की सुपारी लेकर आए थे । और साथ ही साथ हंसी इस बात पर आ रही थी कि वो संयम के पास ही उसे मारने की सुपारी लेकर आए थे ।


दक्ष ने गहरी सांस ली और अपने गुस्से को दबाते हुए बोला " ये सुपारी लेकर SK के पास आने की कोई खास वजह... " ।।


" हान वो इससे पहले भी कई.... " प्रशांत ने इतना कहा ही था कि इतने में मनीषा ने उसके हाथ को कसकर पकड़ लिया और बोली " वो... हमे विश्वास था कि आपसे बेहतर इस काम को और कोई नही कर सकता... । इसलिए हम सबसे पहले आपके ही पास आए हैं... "।


दक्ष मनीषा को देखते हुए " hmm... समझदार हो.... " ।


मनीषा मुस्कुरा दी.. ।


दक्ष खड़ा होते हुए बोला " चलो अब निकलो.... " ।


प्रशांत और मनीषा उसे घूरने लगे ।


दक्ष वहां से चला गया ।


संयम का ऑफिस :


संयम कुछ फाइल्स पर साइन कर रहा था । दक्ष ने दरवाजे पर नॉक किया तो संयम ने अंदर आने का कह दिया ।


दक्ष उसके सामने आकर खड़ा हो गया ।


संयम " क्या बात है... ?? ऑफिस में चक्कर लगा रहे हो... "।


दक्ष ने तस्वीर संयम के table पर रखते हुए कहा " आपके नाम की सुपारी आई है SK.. । " ।


संयम तिरछा मुस्कुराया और तस्वीर देखते हुए बोला " कितने प्यारे हैं मेरे परिवार वाले.... " ।


दक्ष " आप इनका कुछ करते क्यों नही SK... । कितने लोगों को आपको मरवाने के लिए भेजते रहते हैं... । क्या इनको अभी तक नही पता कि आपको इनके बारे में सब पता है... । " ।


संयम " घर के भेदी दक्ष... । इनको मार कर सुकून नहीं मिलेगा..... । इनको तड़पाकर सुकून मिलेगा.. । जिसके पीछे ये मुझे मरवाना चाहते हैं वो चीज जब इनसे छीन जायेगी तो ये खुद ही अपने आप को मार डालेंगे... " ।


दक्ष " तो अब आगे क्या करना है SK... " ।


संयम " करना क्या है.. ?? रकम लो.. । कंगाल हो जाए इतने पैसे लो... । जीना हराम करो... । और जो हो सकता है वो करो... " ।


दक्ष ने सिर हिला दिया और वहां से बाहर निकल गया ।


शाम का वक्त :


शिविका लाल रंग की साड़ी पहने बेसब्री से संयम के आने का इंतजार कर रही थी । सब लोगों ने खाना खा लिया था और सोने चले गए थे ।


शिविका ने खाना नहीं खाया था वो संयम के आने का इंतजार कर रही थी ।


इधर उधर घूमते हुए शिविका खुद से बोली " जल्दी आ जाइए संयम... । आज आपको बोहोत कुछ बताना है... । कब से इस पल का इंतजार था । आपसे प्यार हो गया है.. ये बात कहने में अब और देर नहीं करनी चाहिए... " बोलते हुए शिविका ने अपने पेट पर हाथ रखा ।


" हमारा होने वाला पहला बच्चा इस दुनिया में आने वाला है... । इससे अच्छा और क्या मोमेंट हो सकता है आपको बताने का कि मैं आपसे प्यार करने लगी हूं.... " बोलते हुए शिविका के चेहरे पर बोहोत खुशी थी । लेकिन कहीं न कहीं एक डर भी था कि संयम कैसे रिएक्ट करेगा जब सुनेगा कि शिविका मां बनने वाली है... ।


शिविका अपनी उंगलियों को आपस में रगड़ते हुए बोहोत बेचैन सी घूम रही थी । विक्रम अंदर आया तो उपर के फ्लोर की ओर देखने लगा । उसे शिविका चक्कर काटती हुई नजर आई ।


विक्रम उसे देखकर मुस्कुराया और फिर अपने कमरे में चला गया ।


विक्रम कमरे में गया तो वहां वाणी जी उसका इंतजार करते हुए बैठी हुई थी । ।


विक्रम अंदर गया तो वाणी जी से बोला " दादी आप यहां... ?? " ।


वाणी जी " क्यों हम नही आ सकते क्या.. ?? " ।


विक्रम ने बैग सोफे पर रखा और उनके पास बैठते हुए बोला " कैसी बातें कर रही हो दादी... आप तो कहीं भी आ सकते हो... । मैं बस ये कह रहा था कि आप मुझे बुला लेती.. । तो मैं आ जाता... । खैर... बोलिए.. कुछ बात करनी है क्या... ?? " ।


वाणी जी " hmm.... बोहोत वक्त से देख रही हूं... तुम्हारा ध्यान काम से हटकर कहीं और ज्यादा रहता है... " ।


विक्रम " मैं समझा नही दादी.... " ।


वाणी जी " तुम सब समझते हो विक्रम.... । मुझे नही पता तुम्हारे दिमाग में क्या चलता है.. । लेकिन शिविका संयम की पत्नी है.. । और अपने भाई की पत्नी के साथ इतनी नजदीकियां अच्छी नहीं है.. । मैं देखती हूं जो कुछ तुम उसके लिए करते हो... । उससे दिल मत लगाओ विक्रम.. " ।


विक्रम ने एक गहरी सांस ली और बोला " दादी.... मैने जान बूझ कर कुछ नही किया.. जो होता है अपने आप हो जाता है । आप भी जानती हैं और मैं भी कि संयम किस तरह का इंसान है.. । शिविका से प्यार हो गया ऐसा कुछ नही कह सकता.. लेकिन हां उसके लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर जरूर बन गया है.. ।।


उसका रोज संयम के लिए इंतजार देखा है.. उसकी फिक्र देखी है.. । उसकी आंखों में प्यार की चाहत देखी है.. । और मुझे बिल्कुल नही लगता कि संयम इनमे से किसी के भी काबिल है... । उसके सीने में दिल नही है.. । उसे बस बदले लेने हैं... । शिविका से शादी उसने क्यों की मुझे नही पता.. । जितना कुछ शिविका से सुना तो बस इतना कि उसने शादी के बाद शिविका की मदद की... । इसके अलावा उसके दिमाग में क्या है... कोई नही जान सकता... । " ।


वाणी जी खामोश रही.. । विक्रम की बातों से वो भी सहमत थी ।


वाणी जी " संयम के लिए एक अच्छी हमसफर के रूप में शिविका बोहोत सही है... " ।


विक्रम " लेकिन शिविका के लिए मुझे संयम सही नही लगता... " ।


वाणी जी " दोनो भाइयों के बीच में दरार मत लाओ " ।


विक्रम " हम दोनो के बीच में कुछ सही भी नहीं है.... । हम एक ही कब थे जो दरार आयेगी... " ।


वाणी जी " खून का रिश्ता है तुम्हारा... । " ।


विक्रम " खून के रिश्तों की मौत के बदले उसने कइयों के खून बहा दिए हैं... । उसे मेरे साथ खून के रिश्ते की कोई कदर नहीं है... । सारे मर्डरर्स को तो मार चुका है.. । पता नहीं अब क्यों माफिया बना घूमता है.. " ।


वाणी जी " मतलब... ?? " ।


विक्रम " मतलब ये दादी कि वो सिर्फ बिजनेस नही चलाता बल्कि एक माफिया ग्रुप भी चलाता है... । " ।


वाणी जी " और ये तुम्हे कैसे पता.. "।


विक्रम " जो आपको नही पता तो उसका मतलब ये नहीं है कि वो चीजें हैं ही नहीं... । बोहोत कुछ है जो उसने आपसे भी छुपाया है... "। ।


वाणी जी " और तुम्हे बता दिया है.... ?? " ।


विक्रम " हह वो मुझे क्यों बताएगा.. । मुझे मेरे रिसोर्सेज से पता चला है.... " ।


वाणी जी " पर विक्रम... " विक्रम ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा " सो जाइए दादी... । रात काफ़ी हो गई है..... " ।


बोलकर विक्रम वहां से बाहर निकल गया । वाणी जी वहीं खड़ी उसे जाते हुए देखती रही ।


वाणी जी खुद से बोली " कुछ सही नहीं लग रहा विक्रम... । तुम कुछ गलत मत होने देना... " ।