अब तक:
शिविका " और आपके मम्मी पापा... ?? " शिविका ने इतना कहा ही था कि संयम ने उसके होंठों पर हाथ रख दिया और फिर बोला " enough for today.. not more questions Butterfly... " । बोलकर संयम उसके होंठों को फिर से चूमने लगा ।
शिविका ने उसके बालों में हाथ डाला तो संयम ने उसके हाथों को अपने हाथों में जकड़कर सिर के उपर रख दिया । शिविका ने छूटने की कोशिश भी नही की... । संयम अपनी मनमर्जी करता रहा । जब उसका मन भर गया तो वो अलग होकर सो गया । शिविका को भी कुछ देर बाद नींद आ गई ।
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अब आगे :
अगली सुबह :
शिविका सो कर उठी तो देखा कि सामने टंगी घड़ी में 8 बज चुके थे । लेकिन कमरे में अभी भी अंधेरा पसरा हुआ था । शिविका उठी और खिड़की के पर्दों को खोल दिया । कमरे में रोशनी आ गई । रात में कमरा जितना डरावना लग रहा था अभी वह उतना ही सुंदर नजर आ रहा था ।
शिविका फ्रेश होने चली गई । फिर नहा कर अपने लिए पहनने के लिए कपड़े देखने लगी तो एक बड़ी सी वार्डरोब में लड़कियों के लिए बहुत सारी ड्रेसेस लाइन में रखी हुई थी ।
" क्या यह सब मेरे लिए है.... ?? " सोचते हुए शिविका अपने पहनने के लिए ड्रेस देखने लगी की इतने में एक सर्वेंट ने दरवाजे के पास आकर नाॅक किया । शिविका दरवाजे के पास गई तो बाहर एक बड़ी सी था लिए सर्वेंट खड़ी दिखी ।
" आपके लिए कुछ कपड़े और गहने बड़ी मालकिन ने भिजवाए हैं । और कहा है कि आप जल्द से जल्द इन्हें पहन कर तैयार हो जाएं और नीचे आ जाए.... " ।
" थैंक यू... " कहकर शिविका ने थाल पकड़ी और अंदर आ गई फिर थल को बिस्तर के ऊपर रखा और उसमें रखे कपड़े और गहनों को देखने लगी ।
एक सुंदर सी चटक लाल रंग की साड़ी थाल में रखी गई थी उसके ऊपर गहनों के बॉक्स थे शिविका ने एक बॉक्स खोला तो उसमें ज्वेलरी सेट था और दूसरा खोला तो उसमें हाथों के लिए सोने के कंगन थे । साथ ही अलग से एक मंगलसूत्र और सिंदूर दानी भी भेजी गई थी ।
शिविका ने साड़ी उठाई और परेशानी से उसे पकड़े खड़ी हो रही । फिर जैसे तैसे उसने साड़ी को लपेट लिया । और गहने पहन लिए । साड़ी सही से नहीं बंधी थी तो शिविका को डर था कि कहीं ये खुल ना जाए । उसने दोनो हाथों से अपनी कमर के पास से साड़ी की प्लेट्स को पकड़ लिया और पल्लू को फैलाकर ओढ़ लिया । फिर नीचे की ओर आ गई ।
जैसे ही सेकंड फ्लोर पर एस्केलेटर से उतरी और वहां से नीचे वाले एसकेलेटर के ऊपर चढ़ी तो उसने देखा कि नीचे हॉल में काफी लोग खड़े थे । शिविका ने एक हाथ को साड़ी से हटा लिया ।
मिड थाई लैंथ की शॉर्ट ड्रेस पहने एक करली बालों वाली लड़की अपने हाथ बांधे बहुत गुस्से में खड़ी थी ।
वही सामने वाणी जी सोफे पर बैठी हुई थी । उनके चेहरे के भाव भी बहुत गंभीर नजर आ रहे थे । वहीं उनके अगल बगल भी काफी लोग खड़े थे । लेकिन शिविका इनमे से किसी को भी नहीं जानती थी ।
शिविका एस्केलेटर से उतरकर सबके सामने आ गई । घुंघराले बाल वाली लड़की ने उसको देखा तो गुस्से से उसकी ओर बढ़ गई ।
लड़की ने आकर शिविका को कंधों से पकड़ा और हिलाते हुए बोली " how dare you... हो कौन तुम.... ?? और हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी... संयम से शादी करने की... । " बोलते हुए उसने शिविका को पीछे की ओर बुरी तरह से धक्का दे दिया ।
शिविका पीछे की ओर लड़खड़ा गई और पर गिरने से उसने खुद को संभाल लिया । और उस लड़की को घूरते हुए मन में बोली " बाकी सब तो ठीक है पर झमझोड़ क्यों रही है.. ?? । एक तो साड़ी भी ठीक से नहीं बंधी है अगर अभी खुल जाती तो... ?? इसका तो कुछ नहीं चाहता पर मेरी इज्जत का कचरा हो जाता.... " सोचते हुए शिविका ने कमर के पास से साड़ी की प्लेट्स पर पकड़ कस ली ।
और खुद को संभाल कर सीधी खड़ी हो गई । लड़की अभी भी शिविका को बुरी तरह से घूरे जा रही थी । शिविका को कोई चोट ना लगती देखकर वो एक बार फिर उसकी ओर बढ़ गई ।
लेकिन इस बार वह कुछ कर पाती इससे पहले ही वाणी जी की सख्त आवाज उसके कानों में पड़ी " बस हो गया मोनिका.... । तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह पर है और मैं उसे समझती हूं लेकिन अब जिस लड़की की ओर तुम बढ़ रही हो वह इस खानदान की बहु है । और कोई इस खानदान की बहू के साथ इस तरह का व्यवहार करें यह मुझे कतई बर्दाश्त नहीं होगा.... । " ।
यह लड़की थी मोनिका जो संयम के साथ पिछले 8-10 सालों से थी और संयम के साथ ही अपनी आगे की जिंदगी बिताने के सपने देख चुकी थी । संयम ने उसे कभी इन सपनों को देखने का बढ़ावा नहीं दिया था लेकिन उसने कभी मोनिका को यह सपने देखने से रोका भी नहीं था... ।
मोनिका ने वाणि जी की आवाज सुनी तो उसकी कदम अपनी जगह पर ही रुक गए और वह पलट कर वाणी जी की ओर देखने लगी । उसकी आंखें गुस्से से बुरी तरह से लाल पड़ चुकी थी ।
लेकिन वाणी जी के सामने वह गुस्से से बात नहीं कर सकती थी इसलिए उसने अपनी आवाज में नरमी लाकर कहा " पर यह तो गलत है ना दादी संयम के साथ मैंने कितने सारे सपने देखे थे और आप ही तो जानती है कि हम दोनों एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं... ।
तो फिर यह कौन होती है हमारी भी आने वाली... । मुझे पूरा विश्वास है दादी कि इस लड़की ने जरूर कुछ ना कुछ गड़बड़ की है इसी ने संयम को फसाया है और उसे मजबूर किया है ताकि वह इसके साथ शादी करें.... " ।
दादी ने एक गहरी सांस ली और फिर बोली " जहां तक मैं संयम को जानती हूं शायद उसका थोड़ा बहुत तो तुम भी जानती होगी मोनिका । और संयम कोई ऐसा इंसान नहीं है की कोई भी उसे डरा धमका कर या ब्लैकमेल करके अपना काम करा सके ।
उसे जो करना होता है वह वही करता है... । और जहां तक रही इसके तुम्हारे बीच में आने की बात तो मुझे नहीं लगता कि यह अपने आप तुम्हारे और संयम के बीच में आ सकती थी और ना ही संयम कोई बच्चा है जिसे बहलाया फुसलाया जा सके..... । वो संयम ही है जो इसे खुद बीच में लेकर आया है.. । " ।
शिविका ने वाणी जी को अपनी तरफ से बोलता देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई ।
मोनिका ने गुस्से से अपने दोनों हाथों की मुठियां कस ली । वाणी जी ने शिविका की ओर देखा और बोली " शादी तो हमारे सामने हुई नहीं अभी कम से कम रसमें करवाने का हक तो हमें होगा ही... " । शिविका ने जल्दी से हां में सर हिला दिया । वाणी जी खड़े होते हुए बोली " तो जाओ और रसोई घर में जाकर अपनी पहली रसोई संभालो... । " ।
शिविका सोच में पड़ गई । वाणी जी ने उसे एक ही जगह पर खड़ी देखा तो पूछा " क्या हुआ अभी तो हां में सिर हिलाया था अब नहीं जाना क्या... ?? " ।
शिविका ने कुछ सोचा और फिर अटकते हुए बोली " जाना तो है दादी पर मुझे खाना बनाना नहीं आता.... " ।
" हूह.. सड़क छाप.. " बोलते हुए मोनिका ने शिविका को देखा ।
मोनिका शिविका के नजदीक ही खड़ी थी । उसने धीरे से कहा था इसलिए किसी और को सुनाई नहीं दिया था लेकिन शिविका ने बखूबी सुन लिया था ।
शिविका ने तिरछी नजरों से उसे देखा तो मोनिका भी उसकी आंखों में देखते हुए नफरत से उसे घूरने लगी ।
वाणी जी ने ठंडी आह भरी और बोली " होह... मतलब यह भी सीखाना पड़ेगा.... । चलो हमारे साथ रसोई घर में.... " बोलते हुए वो रसोई घर की ओर चल दी ।
शिविका ने अपनी साड़ी संभाली और वह भी उनके पीछे जाने लगी । मोनिका देख सकती थी कि शिविका ने साड़ी ठीक से नहीं बांधी थी । और हल्का सा खींचने पर भी उसे साड़ी की प्लेट्स खुल सकती थी । मोनिका तिरछा मुस्कुरा दी । जैसे ही शिविका उसके सामने से निकलने लगी तो मोनिका ने उसके आगे अपनी टांग अड़ा दी ।
शिविका लड़खड़ा गई और उसके हाथ साड़ी की प्लेट्स के ऊपर से छूट गए । वही कुछ प्लेट्स उसके पैरों में उलझ गई और उसके बाद साड़ी की सारी प्लेट्स खुल गई । शिविका ने संभालने की कोशिश की लेकिन वो उससे नहीं संभली । वही शिविका खुद को भी नहीं संभाल पाई और आगे की ओर गिरने लगी ।
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