Bairy Priya - 46 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | बैरी पिया.... - 46

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बैरी पिया.... - 46


नरेन दुबे जी के सामने से गुजरते हुए उनकी ओर देख कर कहता है " क्यों उलझते हैं दुबे जी.... । जानते तो है कि जीत आप उससे कभी पाएंगे नहीं... और हारने मैं उसको दूंगा नहीं... ( कंधा थपथपाते हुए ) इतनी बार मुंह की खा चुके हैं फिर भी क्यों उलझने चले आते हैं । रहने दीजिए ना अपनी धुन में.... । आपका क्या जा रहा है । उसके अपने हैं संभालने के लिए । मैं हूं देखने के लिए आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है... । " ।



बोलकर नरेन भी बाहर निकाल जाता है ।



दुबे जी उन्हें जाते हुए घूर कर देखते हुए " अलग ही तेवर हैं इसके । किसी को भी मिर्ची लगा दे.... । पर टाइम तो सबके हक में आता है । जब मेरी बारी आएगी तब बताऊंगा कि दीपक दुबे भी जीत सकता है..... शिविका चौधरी..... " ।


अब आगे :


लिफ्ट उपर आकर रूकी तो शिविका कमरे की ओर चली गई । नरेन का चेहरा उसकी आंखों के आगे घूमने लगा । उसकी आंखों से आंसू बह निकले ।
शिविका ने आंसू पोंछे और मुंह धोने बाथरूम में चली गई ।


वहीं संयम अपने हाथ में पहनी डिजिटल वॉच में कमरे की कैमरा रिकॉर्डिंग में सब देख रहा था ।

उसने गहरी सांस ली और बोला " तुम अब कहीं और नहीं जा सकती बटरफ्लाई..... । तुम्हारे आंसू किसी की याद में बहे ये भी मुझे गवारा नहीं है... आना भले ही तुम्हारी मर्जी रही हो पर जाने पर मेरे सिवाय और किसी की मर्जी नही चलेगी... " ।


वहीं जिन लड़कों को लाया गया था । उनको उसी रूम में ले जाया गया जहां पर पिछले कल दक्ष ने लोगों को bomb से उड़ा दिया था । कमरा पूरा लोहे से शील्ड था जिस वजह से कमरे पर और आस पास कोई फर्क नही पड़ा ।


लड़कों को वहीं पर जंजीरों से बांधा गया था । सामने हाथ में हंटर लेकर दक्ष हंटर को जमीन पर पटकते हुए आगे पीछे चले जा रहा था ।


पारस ने दक्ष को घूरा और बोला " हो कौन तुम लोग.. और हमें यहां ऐसे पकड़कर क्यों लाए हो... ?? " ।


दक्ष " i don't know... पर तुम्हे यहां लाने का ऑर्डर था तो तुम लोग यहां पर हो... " ।


पारस " अच्छा... । तुम्हे क्या लगता है हमे समझ नही है क्या... । उस शिविका की वजह से हमे यहां पर पकड़ कर लाया गया है ना... । उसी ने ये सब कुछ किया है.... । ताकि हमसे बदला ले सके.... । लेकिन मैं बता रहा हूं.... जितना तुम सोच रहे हो उतना आसान नहीं है.. मेरा बाप जिंदा नही छोड़ेगा... तुम लोगों को.... " ।



दक्ष " अरे रे रे.. अब तो तू ego पर चोट कर रहा है यार.... । तेरे बाप की धौंस तू दिखा किसे रहा है.. ?? अच्छा है कौन तेरा बाप चल ये ही बता दे.. " ।


पारस " बेटे मेरा बाप MLA है यहां का.. । जिंदा गाड़ सकता है तुझे... "।


दक्ष ने सुना तो होंठ रोल करके बोला " ओह अच्छा... । यहां का MLA है..... !! तुझे पता भी है तू है कहां.... ?? " ।


पारस " अरे मैं जहां भी हूं.. मेरा बाप मुझे ढूंढने कहीं भी पहुंच सकता है... । चप्पे चप्पे तक पहुंच सकता है... " ।


दक्ष तिरछा मुस्कुराया और बोला " अच्छा... । फिर तो मिलना पड़ेगा बे... चल ठीक है बुला अपने बाप को... । हम भी तो देखें कि कौनसा सुरमा है... ?? " बोलकर दक्ष ने पारस के हाथ खुलवा दिए और एक फोन उसकी ओर फेंक दिया ।


पारस ने फोन कैच किया और नंबर मिला दिया ।
सामने से फोन उठा तो पारस जल्दी से बोला " हेलो... पापा... " ।


फोन की दूसरी तरफ पारस के पापा om prakash की आवाज आई " हेलो... पारस बेटा कहां है.. ??? कबसे ढूंढ रहे हैं तुम्हे.. ?? " ।


पारस " पापा.. है कोई लोग जो उठा लाए हैं हमे.. ओर वो लड़की शिविका भी इन्ही लोगों के साथ में है.. । वही ये सब भी करवा रही है.. " ।


Om prakash " उस शिविका को तो देख लूंगा.. पहले ये बता कि तू है कहां बेटा.. ?? " ।


पारस ने याद किया तो उसे याद नही आया कि वो है कहां और कैसे आया है । उसे बस इतना याद था कि उन्हें गाड़ी में आंखों पर पट्टी बांधकर बैठाया गया था और गाड़ी से उतारकर उन्हें यहां अंदर लाया गया था
उसने दक्ष की तरफ देखा तो दक्ष एक कुर्सी पर आंखें बंद किए बैठा हुआ था। पारस उससे बोला " कहां हैं हम लोग.. ?? " ।


दक्ष " राजस्थान.... " ।


पारस ने सुना तो उसकी आंखें हैरानी से फैल गई । उसकेैै मिजाज अब ठंडे पड़ चुके थे । उसके हाथ पैर भी ठंडे पड़ चुके थे । उसे तो लगा था कि वो अपने एरिया में ही कहीं पर है । लेकिन उसके पिता की पहुंच इतनी दूर तक नही है ये वो भी जानता था । और इतनी दूर तक उसे बचाने के लिए पहुंच पाना भी आसान नहीं था । ये बात भी वो जानता था । पारस घबराने लग गया ।

" राजस्थान... लेकिन कैसे.. ?? " बोलते हुए पारस के चेहरे पर लकीरें बन आईं ।


Om prakash बोला " बोलो पारस कहां हो तुम.. ?? " ।
पारस " राजस्थान में हूं पापा.. " ।


दक्ष खड़ा हुआ और बेल्ट पटकते हुए बोला " हो गई बात चीत... अब ये भी बता दे कि आज के बाद तू उसे कभी नजर नहीं आएगा... । " ।


पारस ने सुना तो वो घबरा गया और फोन पर चिल्लाते हुए बोला " पापा... पापा.. मुझे बचा लीजिए... पापा.. । ये लोग यहां पर मारने के लिए लाए हैं.. । उस शिविका ने हमसे बदला लेने के लिए इन लोगों की मदद ली है पापा... " पारस ने कहा ही था कि इतने में जोरों से बेल्ट का फटका उसके उपर पड़ा.. वो चीख उठा... और फोन उसके हाथ से गिर गया ।


दक्ष को नहीं पता था कि उन लोगों को वहां पकड़कर क्यों लाया गया था । लेकिन संयम ने कहा था तो दक्ष ने उसी वक्त उन लोगों को वहां से उठवा लिया था । लेकिन ये सब कुछ शिविका के लिए किया जा रहा था ये बात दक्ष को अब समझ में आ रही थी ।


दक्ष सोच में पड़ गया और बेल्ट को उसने गार्ड को पकड़ा दिया । फिर गार्ड्स को इशारा करके बाहर निकल गया । गार्ड्स बेल्ट उन सब लड़कों पर बरसाने लगे । लड़कों की चीखें निकलने लगी ।
दक्ष बाहर आया तो विला से बाहर निकल गया । फिर गाड़ी लेकर वहां से चला गया ।


दूर जाकर एक टीले पर दक्ष ने गाड़ी रोकी और बाहर निकल गया । आसमान में बादल थे और मौसम ठंडा हो चला था ।


दक्ष आकर रेत पर बैठ गया और उसने सिगरेट सुलगा दी । फिर आसमान में दूर देखते हुए सोचने लगा " आखिर ऐसा क्या है इस शिविका मे... जो SK.. इतना ज्यादा करने लगे हैं.... । उसके किसी बदले के लिए SK ने हिमाचल से लड़कों को उठवाया... और यहां लाकर सजा दे रहे हैं । SK ने जनसेवा का ठेका तो नहीं ले रखा.. फिर ये सब हो क्या रहा है.. ??
पहले ये शादी... , फिर वो फिक्र.. , सबके सामने kiss करना... , और अब ये.. । इन सब में मोनिका का क्या.... ?? क्या SK अब उसके साथ नहीं रहेंगे... ?? " सोचते हुए दक्ष ने धुआं उपर आसमान में फूंक दिया और रेत पर लेट गया ।


संयम का विला :


शिविका कमरे से वापिस नीचे आ गई थी । शिविका उस कमरे के बाहर आई जहां से उन लड़कों के चीखने की आवाज़ें सुनाई दे रही थी ।


शिविका के कदम ठहर गए ।


पारस की तेज आवाज सुनाई दी " पापा... " ।



शिविका ने सुना तो मुट्ठी कस ली... । उस की आखों के आगे अपने परिवार के लोगों के चेहरे चलने लगे ।


कुछ दिनो पहले का खयाल उसके दिमाग में चलने लगा । जिस रात को उन लड़कों ने उसके परिवार को मार डाला था उस रात शिविका जब उन लड़कों से बचकर भाग रही थी.. ।


फ्लैश बैक :



शिविका फुल स्पीड में जीप दौड़ा रही थी । उसके अंदर चल रहा तूफान बोहोत ज्यादा था । मोड़ पर भी शिविका किसी रेसिंग कार की तरह जीप को turn कर रही थी... ।



सड़क पर जीप स्लाइड करने से निशान भी बनते जा रहे थे । इस वक्त कुछ भी feel कर पाना उसके लिए मुमकिन ही नहीं था । ना जीने की ख्वाहिश थी और ना ही मरने का शौक... । उसे अपने घुटने में लगी दर्द भी महसूस नहीं हो रहा था... । और ना ही अपने गले पर लगे scratches की उसे कोई परवाह थी.... । उसे बोहोत चोटें खाई थी ।



एक पहाड़ी के पास आकर शिविका जीप रोक देती है । और एक चट्टान पर खड़ी होकर ज़ोर से रोते हुए चिल्लाती है " नहीं..... नई.... । मम्मा.... पापा..... यशु..... , पाखी दी... ह ह ह... । नहीं..... आप लोग नहीं जा सकते..... आह.... अह अह..... " ।


पाखी के जाने के बाद शिविका ने हिम्मत रखी थी क्योंकि वो उसे इंसाफ दिलवाना चाहती थी और अपने अंदर जल रही आग को वो रो कर ठंडा नहीं होने देना चाहती थी अपने आंसुओं को भी उसने अपनी आंखों में ही रोक रखा था ।


लेकिन अब उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी... । शिविका बेबस सी चट्टान पर बैठ जाती है । अब उसका सब कुछ खत्म हो गया था । अब और हिम्मत उसके अंदर नहीं थी.. ।


शिविका चट्टान पर खड़ी होके नीचे की गहराई को देखती है । चांद की रोशनी में पेड़ों की ऊंचाई दिखाई दे रही थी । पहाड़ी बोहोत ऊंची थी तो गहराई का तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था । शिविका का जी करता है कि अभी यहां से कूद कर जान दे दे... ।

शिविका आंखें बंद करके एक कदम आगे बढ़ाती ही है कि तभी उसकी आंखों के सामने उसकी हंसती खेलती फैमिली की तस्वीर चलने लगती है ।



पाखी का उसकी गलतियां छुपाना... उसे मम्मा की डांट से बचाना.. , मां का शिविका को डांटना और फिर जी भरकर उसे लाड़ लड़ाना... , पापा का शिविका को हर बार प्यार करना.. भले ही वो कितनी ही बड़ी गलती क्यों ना कर दे... , और यश का हर बार उसे फसाना.. लेकिन शिविका के फंसने पर उसका सपोर्ट करना और उसे अपनी हरकतों और बातों से हंसाना... ।

शिविका के कदम पीछे हट जाते हैं । वो इस तरह से अपनों की मौत का बदला लिए बिना हार तो नहीं मान सकती... ।



शिविका सिसकियों से भरी एक गहरी सांस लेती है । रात की चल रही ठंडी हवाएं भी उसके जलती हुई आग को ठंडा नहीं कर पा रही थी... । आसमान में काले बादल घिर आए थे । बिजलियां कड़कने लगी थी । किसी अनहोनी की आशंका उस वक्त आसमान में हो रही गड़गड़ाहट से लगाई जा सकती थी ।



लेकिन शिविका की जिंदगी में अब इससे ज्यादा बुरा और क्या ही होगा.... ?? ।



बादल गर्जना के साथ बरसने लग चुकेेेेेेेे थे । शिविका उस बरसात में चट्टान पर खड़ी भीग रही थी । बरसात के पानी के साथ मिलकर उसके आंसू भी बह रहे थे । शिविका को अपने आसूं तक बहने का एहसास नहीं हो रहा था ।


शायद भगवान भी नहीं चाह रहा था कि शिविका के आंसू उसे महसूस हो इसीलिए बारिश से उसके आंसुओं को धो कर साफ़ कर रहा था । ।


शिविका पूरी तरह से भीग चुकी थी । उसके कपड़े उससे चिपक रहे थे । शिविका की छिल चुकी टांगों पे खून की जो लकीरें सुख चुकी थीं वो भी बारिश के पानी से धुलकर साफ हो रही थी.... ।

शिविका लड़खड़ाते कदमों से वापिस जीप के पास आ जाती है । और जीप को स्टार्ट कर देती है । और पुलिस स्टेशन की ओर चला देती है । यही एक जगह थी जहां वो अब जा सकती थी । शायद नरेन उसे वहां मिल जाए ये सोचकर शिविका वहां की ओर जीप घूम देती है ।



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पुलिस स्टेशन से कुछ दूर वो जीप रोककर उतर जाती है । और धीमे कदमों से लड़खड़ाते हुए अंदर जाने लगती है ।



पुलिस स्टेशन में इस वक्त लोग नही थे । रात के 12 बज चुके थे... । शिविका अंदर जाती है तो दरवाजे के पास पहुंचते ही उसके कदम रुक जाते हैं । सामने दीपक दुबे खड़ा था और उसके सामने एक और आदमी कुर्सी पर बैठा हुआ था ।



शिविका दरवाजे के पीछे छुप जाती है और उनकी बातें सुनने लगती है ।



दीपक दुबे उस आदमी के पांव के पास बैठते हुए " आप फिक्र मत कीजिए सर.. कोई case नहीं बनेगा.. । जैसे ही वो लड़की आएगी हम फौरन उसे जेल में डाल देंगे.. एक आदमी पर गोली चलाकर जानलेवा हमला करने के जुर्म में.... । फिर जब चुहिया अपनी पकड़ में आ ही जाएगी.. फिर तो आप उसके साथ चाहे जो मर्जी कीजिएगा... कोई कुछ नहीं बोलेगा..... । बस वो आप हमारी पर्मोशन का कुछ.... ( चापलूसी भरी हंसी हंसते हुए ) ही ही ही... कर देते तो... " ।



आदमी " हो जायेगा दुबे.... Om prakash की जुबान है... । तुम्हारा प्रमोशन हो जाएगा... । बस मेरा बेटा किसी भी मामले में फंसना नहीं चाहिए.. । ( कुछ याद आने पर ) अच्छा वो sub inspector जो इस मामले को देख रहा था... वो तो कोई प्रॉब्लम नहीं कर रहा है ना... ?? " ।



दुबे हाथ जोड़ते हुए " नई नई नई... सरकार वो बेचारा अब क्या ही करेगा.... ?? उसको तो जहां दूसरी जगह भेजा गया है वो वहां पर ही बोहोत busy हो चुका है... । " ।



Om prakash " hmm... पर वो मुश्किल खड़ी कर सकता है । वो चुप नही बैठेगा... तो उसका भी ट्रांसफर करवाना ही पड़ेगा... " । बोलते हुए वो खड़ा हो जाता है । उसकी नज़र दरवाजे पर जाती है तो दरवाजा हिले जा रहा था । होठों पर उंगली रखकर वो दूबे को दरवाजे के पास चेक करने को कहता है ।



शिविका को शांति सुनाई देती है तो वो समझ जाती है कि कुछ तो गड़बड़ है । शिविका जल्दी से वहां से हट जाती है ।



दुबे दरवाजे के पीछे झांककर देखता है तो उसे कोई नही दिखता । " कोई नहीं है सर... " बोलते हुए वो जैसे ही पीछे मुड़ता है तो om prakash भी वहां पर अब नहीं था... । दुबे देखता है कि पीछे का दरवाजा खुला हुआ था... ।



दुबे सोच में पड़ जाता है । शिविका उल्टे पांव लेते हुए चल रही थी । कि इतने में कोई पीछे से उसे कसकर अपनी बाहों में पकड़ लेता है ।


शिविका की चीख निकल जाती है । वो गर्दन टेढ़ी करके अपने पीछे देखती है तो अभी जो आदमी अंदर दुबे के साथ खड़ा था वो उसके पीछे उसे पकड़े खड़ा था । आदमी की उम्र करीब 50 साल के आस पास थी... ।

आदमी अजीब सी हंसी हंसते हुए कहता है " आ ही गई चुहिया शिकंजे में... । अरे हम तो ऐसे ही परेशान हो रहे थे.. कि तुम्हे कैसे पकड़ेंगे.. लेकिन तुम तो अपने आप ही यहां आ गई... " । दुबे भी अब उनके पास पहुंच चुका था ।



शिविका को वहां देखकर उसे एक अलग ही खुशी मिल रही थी । उसके चेहरे पर रहस्यमई मुस्कान आ गई थीी ।



शिविका छूटने की कोशिश करती है तो om prakash उसे झटके के साथ छोड़ देता है ।



शिविका जाकर दुबे के उपर गिरती है । दुबे उसे बाजू से पकड़ता है और देखने लगता है । शिविका पूरी भीगी हुई थी.... , उसकी की आंखें लाल थी... उसका चेहरा भी लाल था... बाल बिखरे हुए थे , कमीज फट चुकी थी.. बाजू , चेहरे और गले पर scratches लगे हुए थे... जिनपे खून की लाइंस बनी हुई थी.. । घुटने भी छिले हुए थे... ।

पता नहीं क्यों दीपक दुबे को शिविका को इस हाल में देखना अच्छा नही लग रहा था । हालांकि वो शिविका से हमेशा लड़ता रहता था.. । उसे शिविका से चिढ़ थी क्योंकि शिविका हर बार उसकी बेइजती करती रहती थी और वो हमेशा से उससे जीतना चाहता था... लेकिन फिर भी वो शिविका को इस हाल में अपने सामने नहीं देखना चाहता था ।



वो बस चाहता था कि शिविका उससे लड़े और वो बातों से ही उसे हरा भी दे... । लेकिन इस तरह से नहीं । अपनी भावनाओं को साइड करके दुबे शिविका से हमेशा की तरह लड़ने वाले अंदाज में कहता है " कहा था ना शिविका चौधरी.... एक ना एक दिन मैं ज़रूर जीतूंगा... । देखो वो दिन आ ही गया... " ।



शिविका रोने की वजह से सूज चुकी आंखों से उसे देखती है ।



Om prakash शिविका को lustful नजरों से देखते हुए " बाहर से दरवाजा बंद कर देना दुबे... " ।



शिविका के रोंगटे खड़े हो जाते हैं । अपनी इज्जत बचाने के लिए वो कब से भागे जा रही थी... । और अब यहां भी उसे उसी चीज के लिए स्ट्रगल करना पड़ेगा.. । ये जगह जो उसके लिए कभी सबसे सेफेस्ट जगहों में से एक हुआ करती थी.. आज वही पर रुकने से उसे डर लग रहा था... ।



शिविका जाने लगती है तो om prakash उसका हाथ पकड़ लेता है ।



" अरे कहां उड़ चली... चिड़िया... । तेरे पंख अब कुतर दिए जा चुके हैं और बचे खुचे पंखों को अब मैं काटने वाला हूं... । हा हा हा.... " बोलते हुए om prakash उसे अपनी ओर खींच लेता है ।