Bairy Priya - 40 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | बैरी पिया.... - 40

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बैरी पिया.... - 40

शिविका हाथों को सिर पर रखे और आंखें बंद किए जोरों से चीख दी । ।


सामने ताबूत में डॉक्टर की लाश थी । जिसपर जगह जगह कीलें लगी हुई थी । खून उसकी बॉडी में पूरी तरह से सूख चुका था । आंखें बाहर को निकल आई थी । उसकी हालत देखकर कोई भी सहम सकता था । और यही हाल इस वक्त शिविका का था ।


उसकी सांसें बोहोत तेज़ चल रही थी । उसे लगा मानो अब दिल धड़कना ही बंद कर देगा । वो कांपने लग गई थी ।



तभी एक दरवाजा खुला और उस दरवाजे से दक्ष अंदर आया । दक्ष ने शिविका को वहां देखा तो हैरान रह गया । उसने ताबूत की तरफ देखा तो समझ गया कि शिविका क्यों चिल्लाई.... ?? ।


दक्ष अपने बाल सहलाने लगा और बोला " जासूसी कर रही हो.. ?? और यहां तक आ भी गई.. !! "।


शिविका ने सुना तो दक्ष की ओर देखा । जहां शिविका घबराई हुई थी वहीं दक्ष के चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे बल्कि वो शिविका को घूरे जा रहा था क्योंकि वो इस कमरे तक आ गई थी ।


" आप लोग बुरे इंसान हैं ये तो पता था लेकिन इतने बुरे हैं कि राक्षसों को भी पीछे छोड़ दिया ये नही पता था... " शिविका ने घिन्न्न से देखते हुए कहा ।


" अच्छा और बुरा दिखना तो नजरिए की बात है.. बाकी पता तो तुम्हे बोहोत कुछ नही है.. । और तुम्हारे बारे में मुझे पता नहीं है... जो पता करना मेरे लिए बोहोत जरूरी है.. और मैं पता करके रहूंगा.... " । बोलकर दक्ष ने डॉक्टर वाले ताबूत की ओर देखा । फिर नजरें फेर ली और बोला " किसकी शक्ल दिखा दी.. दुबारा से... " ।


तभी उपर की सीढ़ियों से संयम नीचे उतरते हुए आया । उसके कदमों की आवाज में एक अजीब सा ठहराव था ।


शिविका ने कदमों की आवाज सुनी तो सीढ़ियों की ओर देखा । संयम बेहद ठहराव के साथ एक एक कदम नीचे की ओर बढ़ा रहा था ।


दक्ष ने संयम को देखा तो एक पल को वो भी सहम सा गया । संयम ने आखिरी सीढ़ी उतरते हुए एक गहरी सांस छोड़ी और आंखें बंद कर ली ।


फिर अपनी गर्दन स्ट्रेच की और शिविका की और आंखें खोली तो शिविका को उनमें जला देने वाली आग दिखाई दी । संयम बेहद गुस्से में था । संयम ने हाथ की मुट्ठी बनाई और शिविका की ओर बढ़ गया । उसे अपनी ओर आता देख शिविका के कदम लड़खड़ा से गए ।



संयम ने उसे बाजू से पकड़ा और अपने करीब करते हुए बोला " बोहोत शौक है छानबीन करने का... ??? ठीक है... अब अच्छे से छानबीन करोगी तुम... " ।


बोलकर संयम ने उसे खुद से दूर धकेला और दक्ष को उंगली से इशारा कर दिया । दक्ष ने इशारा समझा और दीवार पर लगे स्विचबोर्ड को पीछे की ओर दबा दिया । दीवार ने बना एक खांचा खुला तो दक्ष ने उसमे जाकर एक लिवर खींच दिया ।



जैसे ही उसने लिवर खींचा तो वहां रखे सभी ताबूत खुल गए । लगभग 20 से 25 ताबूत वहां पर थे । फिर दूसरा लीवर खींचा तो उपर सीलिंग से भी कुछ लाशें शिविका के उपर लटक गई जिन्हें लोहे की जंजीरों में बांधा हुआ था । शिविका जोरों से चीखने लगी ।



संयम वहां से दूर हट कर कमरे के किनारों पर खड़े हो गया । अपने आस पास इतनी सारी लाशें देखकर और उसका दिल दहल गया ।


सभी को बोहोत बेरहमी से मारा गया था । शिविका वहां से भागने लगी कि इतने में दक्ष ने एक और लिवर घुमा दिया जिससे और भी कुछ लाशें शिविका के उपर गिरने लगी । ।


शिविका पूरी तरह से लाशों से घिर चुकी थी । उसकी जान हलख में अटकी हुई थी । शिविका को पसीने आ गए थे । लाशों से आती बदबू शिविका को सांस भी नही लेने दे रही थी । वहीं शिविका की आंखों के आगे अतीत की कुछ पुरानी यादें आने लगी । शिविका गहरी सांस लेते हुए वहीं बेहोश हो गई ।


संयम ने दक्ष को इशारा किया तो दक्ष ने वापिस से लीवर को दूसरी ओर खींच दिया । सारी लाशें वापिस से उपर की ओर जाने लगी । संयम शिविका के पास आया और उसे गोद में उठाकर ऊपर की ओर चल दिया । दक्ष ने पहले वाला लीवर फिर से घुमाया और सारे ताबूत फिर से बंद हो गए ।


दक्ष ने वहीं खांचे के अंदर लगा एक बटन दबाया तो कमरे में एक फ्रेगरेंस स्प्रे होने लगी जिससे लाशों की बदबू जाने लगी ।


दक्ष ने दरवाजा बंद किया और बाहर निकल गया । फिर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा ।



शिविका का जो अंदाजा था वो बिल्कुल सही था । संयम के कमरे को जाने का एक और रास्ता था जो वही था । और वही सीढियां संयम के कमरे से नीचे आती थी । बस फर्क इतना था कि नीचे से उपर नही जाया जा सकता था । क्योंकि संयम के स्टडी रूम का नीचे आने का दरवाजा सिर्फ उपर से ही खोला जा सकता था । इसलिए उपर से नीचे को आया जा सकता था लेकिन वहां से उपर संयम के room को नहीं जाया जा सकता था ।


संयम अपने स्टडी रूम में पहुंचा तो शिविका को सीधा खड़ा करके उसने किताब को उसकी सही जगह पर रखा और नीचे खुला दरवाजा बंद हो गया ।
संयम उसे बाहर लाया और सोफे पर लेटाकर पानी से भरा jug उसके ऊपर उड़ेल दिया । शिविका घबराते हुए उठ कर बैठ गई ।


संयम ने jug जमीन पर फेंक दिया । शिविका घिन्न्न से भरकर उसे देखते हुए बोली " आप इतने निर्दई भी हो सकते हैं मैने कभी नहीं सोचा था... । छी.... मुर्दों को भी आप बांध कर रखते हैं... । कुछ तो शर्म कीजिए मिस्टर संयम.... " । शिविका ने कहा ही था कि गुस्से में संयम ने अपना हाथ हवा में ऊपर की ओर शिविका को मारने के लिए उठाया शिविका ने आंखें कसकर मूंद ली । संयम रुक गया वो उस पर हाथ नही उठा पाया । ।


संयम ने उसे दोनो बाजुओं से कसकर पकड़ा और बोला " अपनी जुबान पर काबू रखो.. । वर्ना मेरा काबू करना मुश्किल हो गया तो जिंदगी नरक से बत्तर हो सकती है.... ।


मैं तुम्हारे साथ अच्छा हूं शिविका.... दूसरों से तुम मतलब ना रखो तो अच्छा होगा । बाकी किसके साथ मैने क्या किया उससे तुम्हे मतलब नहीं होना चाहिए... । क्योंकि तुम्हे मैने सबसे अलग ट्रीट किया है । " ।
संयम ने उसकी बाजू पर पकड़ कस रखी थी ।

शिविका को दर्द होने लगा तो उसकी आह निकल गई ।


संयम ने उसे छोड़ा और जोर से दीवार पर हाथ दे मारा । शिविका सहम गई । वो समझ रही थी संयम के गुस्से को । वो भांप सकती थी कि संयम कितना कंट्रोल कर रहा है... । लेकिन वो शिविका पर गुस्सा कंट्रोल क्यों कर रहा है इसका जवाब शिविका के पास नहीं था ।


संयम ने शिविका को पहले जो दर्द दिया क्या वो उस वजह से कंट्रोल कर रहा है या वजह कुछ और है.... । सवाल थे लेकिन उनका जवाब शिविका के पास नही था । वो संयम के हाथ की ओर देखने लगी जिससे खून बह रहा था ।


संयम शिविका की ओर घूमा और उसे अपने करीब खींचकर उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए । और harshly kiss करने लगा । शिविका ने कुछ नहीं कहा बस संयम जो कर रहा था उसे करने दिया ।


कुछ देर बाद शिविका ने संयम के बालों में हाथ फेरा और उसे रिस्पॉन्स करने लगी ।


शिविका को रिस्पॉन्स करता देखा संयम का किस अब जेंटल होने लगा था । उसकी पकड़ शिविका की पीठ पर भी जेंटल हो गई थी । संयम ने उसे बेहद करीब कर लिया था और उसे लिए वो उसके साथ ही सोफे पर लेट गया । संयम का गुस्सा आप थोड़ा कम हो गया था ।


उसने शिविका के हाथों को अपने हाथों में फंसाया और उसे चूमने लग गया । मन भर जाने पर संयम उससे अलग हुआ और उसे देखने लगा । शिविका का टॉप उसके कंधे से खिसक चुका था और आढ़ा तिरछा हो चुका था । शिविका ने अपने कपड़े सही किए और संयम को देखते हुए पूछा " क्या आपने उस डॉक्टर को इसलिए मारा क्योंकि उसने मेरी मदद की थी !!! " ।


संयम ने उसे घूरा और बोला " stay out of this.... " ।
संयम उठकर जाने लगा तो शिविका ने उसका हाथ पकड़ लिया । संयम ने कोई रिएक्शन नहीं दिया ।
शिविका बोली " प्लीज बता दीजिए संयम... यूं ही रहा तो यहां दम यूं ही घुटता रहेगा... । आप ये सब क्यों करते हैं... कोई वजह तो दीजिए... " ।


संयम उसकी ओर मुड़ा और बोला " तुम्हारी वजह से नहीं मारा है शिविका..... । यहां पर रहने वाला कोई भी इंसान ना साधारण है और ना ही बेकसूर... । जो हाल तुमने डॉक्टर का देखा... वही हाल उसी डॉक्टर ने एक लड़की का किया था जो उसकी पेशेंट बनकर गई थी.... । इसने उसका रेप किया और फिर उसे बेरहमी से मार दिया । फिर अपने केबिन में उसकी लाश को इसने काफी समय तक रखा था... । जब वो मिली तो उसकी पूरी बॉडी उसकी कीलों से छलनी थी... खून का कतरा कतरा सूख चुका था । " जैसे जैसे संयम बता रहा था वैसे वैसे शिविका की आंखें आंसू बहाती जा रही थी ।
संयम आगे बोला " इस जगह पर उसे पनाह मैने दी क्योंकि मुझे अपने लोगों के लिए डॉक्टर की जरूरत थी.. और उसी के साथ ये जगह उसके लिए टॉर्चर थी... । उसकी बॉडी पर जो निशान है वो एक साथ नही किए हैं... । हर दिन एक निशान बनाया जाता था और हर दिन एक कील घुसाई जाती थी... । संयम की अदालत में गुनाहों की सिर्फ सजा है.. और वो हर गुनहगार को मिलती है.. । जितना किया है उससे बत्तर सजा इस विला में दी जाती है... " ।
शिविका आगे बोली " और वो बाकी सब लाशें... क्या उन सबने भी कुछ बुरा किया है... ?? " ।
संयम " यहां उस तरह के लोगों की लाशे हैं जिन्होंने मेरी दुनिया को बंजर बनाया है... । और ना जाने कितनों की जिंदगियों को श्मशान बना दिया है । मै जनसेवा नहीं करता शिविका... पर अगर कोई बेसहारा या मजबूर दिख जाता है तो मैं खुद को रोक नहीं पाता... । ये वही लोग हैं जिनकी वजह से संयम सनियाल खुराना को अंधेरा पसंद है... । मैं बुरा हूं बहुत बुरा हूं पर मैं यूं ही नहीं बुरा नही बना..... devils are not born they are made..... । "


शिविका ने सुना तो संयम को पीछे से hug कर लिया । इस वक्त संयम की आवाज में शिविका को दर्द सुनाई दे रहा था ।


संयम उसकी ओर घुमा और उसे गले लगाते हुए बोला " मेरा इस दुनिया में कोई नही है शिविका... i am all alone in this world... । " ।


शिविका ने उसके सीने में सिर छुपाते हुए कहा " मेरा भी इस दुनिया में कोई नहीं है संयम... । मैं भी अकेली हूं... सब खत्म " बोलते हुए शिविका फूटकर रो पड़ी ।


संयम उसके बाल सहलाने लगा और फिर बोला " छानबीन करने का शौक था ना... तो कर ली छानबीन.... !! हो गई तसल्ली या फिर से उन लाशों के ढेर में जाना चाहती हो.... " ।


शिविका ने जल्दी से ना में सिर हिला दिया ।


संयम ने उसका हाथ पकड़ा और फिर उसे साथ लेकर बाहर निकल गया ।


संयम ने उसे पैसेंजर सीट पर बैठाया और खुद ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया । फिर गाड़ी विला से बाहर चला दी । । । ।



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