Dwaraavati - 57 in Hindi Classic Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | द्वारावती - 57

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द्वारावती - 57

57
द्वारावती 57
                                     
रात्रि अपनी गति से व्यतीत हो गई। नूतन सूर्योदय हुआ। रात्रि भर गुल के पिता के मृत शरीर को अपने भीतर रखे हुए समुद्र ने प्रातः होते ही तट पर छोड़ दिया। समुद्र तट पर शव मिला है -यह सूचना समग्र द्वारका नगरी में प्रसर गई। आरक्षकों ने आकर उचित कार्यवाही कर मृत शरीर को गुरुकुल को सौंप दिया। 
गुल की कोई सूचना नहीं मिली। ना ही उसका शव मिला। उसके सम्भवित शव को खोजने का प्रशासन ने पूर्ण प्रयास किया किंतु ना तो गुल के शव को, ना ही जीवित गुल को खोज पाए। ना ही उसके विषय में कोई सूचना। 
गुरुकुल ने गुल के पिता का विधि विधान से अंतिम संस्कार किया।समग्र घटना से गुरुकुल नि:स्तब्ध था। सभी गुल के लिए चिंतित थे, प्राचार्य विशेष रूप से। उसने चर्चा हेतु साथी आचार्यों तथा विद्यार्थियों को एकत्रित किया। 
“जो कुछ हुआ वह अत्यंत क्रूर, घृणाजनक एवं दुःखद है। किंतु उससे भी अधिक गुल का न मिलना अत्यंत गहरे विषाद का विषय है। चिंता का भी विषय है। इस स्थिति में हमें …।” 
“हमें केशव को इस घटना के विषय में सूचित करना चाहिए। उसे यहाँ बुला लेना चाहिए।” किसी ने प्राचार्य की बात काट दी। अनेक ध्वनियों ने उसका समर्थन किया। प्राचार्य ने संकेत दिया, सभी शांत हो गए। 
“यह विचार मेरे मन में भी उठा था। किंतु आप सब को विदित है कि चार दिन पश्चात् केशव को मुंबई नगरी में उच्च अध्ययन हेतु जाना है। वह उसकी सज्जता में व्यस्त है। यदि इस समय उसे इस बात की सूचना मिलेगी तो वह सब कुछ छोड़कर यहाँ आ जाएगा और उच्च शिक्षा का विचार ही त्याग देगा। हम ऐसा नहीं कर सकते, ना ही करना चाहिए।”
“किंतु मुंबई प्रस्थान से पूर्व केशव गुल से मिलने यहाँ आएगा। तब हम क्या करेंगे? क्या कहेंगे? तब उसे इस घटना का ज्ञान होगा तब क्या होगा?”
“यही तो समस्या है और उसका उपाय मुझे नहीं सुझ रहा। आप सब बताएँ कि इस समय हमें क्या करना चाहिए।”
“तीन दिवस बीत गए हैं किंतु गुल की कोई सूचना नहीं मिली है। उसको समुद्र में खोजने का एक प्रयास हम भी अपनी तरफ़ से कर सकते हैं।”
“प्रशासन अपने सभी संसाधनों के साथ यह प्रयास कर चुका है। विफल रहा है। और हम बिना किसी साधन के यह काम कैसे कर सकते हैं?”
“तथापि हम एक प्रयास करने को उत्सुक हैं।” आठ दस विद्यार्थियों ने कहा, “सम्भव है कि हमारा प्रयास कोई सकारात्मक परिणाम दे।”
इस प्रस्ताव पर प्राचार्य ने गहन विचार किया और बोले, “ठीक है। हम प्रयास कर देख लेते हैं। मुझे यह जानकर गर्व होता है कि आपमें से किसी ने भी आशा नहीं छोडी, ना ही हम परिस्थितियों से परास्त हुए। कृष्ण की इच्छा एवं महादेव के आशीर्वाद मिल जाए तो हम अवश्य ही सफल होंगे।”
“ऐसा ही होगा।” सभी ने एक साथ कहा।
“हम अभी इस अभियान का प्रारम्भ करते हैं।” दस युवक उठे, प्राचार्य के आशीष लिए और समुद्र की तरफ़ चल पड़े।
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