That First Love in Hindi Love Stories by Raj books and stories PDF | वो पहली मोहब्बत

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वो पहली मोहब्बत

अध्याय 1:  पहली नज़र का असर

(The Effect of the First Glance)

राघव का दिन आम दिनों की तरह ही शुरू हुआ था। कॉलेज की वही पुरानी रूटीन, वही दोस्त, और वही एक जैसी कक्षाएं। लेकिन वो दिन बाकी दिनों जैसा नहीं था। उस दिन कुछ खास होना था, कुछ ऐसा जो राघव की जिंदगी बदलने वाला था, और वो ख़ास था—पहली नज़र का असर।

वो कॉलेज के मुख्य गेट से अंदर घुसा ही था कि उसकी नजरें अचानक एक अजनबी चेहरे पर जाकर ठहर गईं। वो एक लड़की थी, जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, और उसकी आँखों में एक अजीब सा जादू था। राघव की नजरें मानो उसकी आँखों में ही उलझ गईं थीं।

उसने सफेद सूती सलवार-कुर्ता पहना हुआ था, जो उसे और भी सादगी भरा बना रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में एक चमक थी, मानो उन्होंने सारी दुनिया की रौनक अपने अंदर समेट रखी हो। उसके बाल हल्के-हल्के हवा में उड़ रहे थे, और उसका चेहरा जैसे किसी मासूमियत की तस्वीर था। राघव ने उसे बस एक पल के लिए देखा था, पर उस एक पल में जैसे वक्त थम गया।

राघव का दिल पहली बार इतनी तेज़ी से धड़कने लगा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। ये पहली बार था जब किसी लड़की को देखकर उसकी धड़कनें बेकाबू हो रही थीं। उसके मन में सवालों की एक लहर उठी—"कौन है ये लड़की? मैंने इसे पहले क्यों नहीं देखा? क्या ये कोई नई छात्रा है?"

जैसे-जैसे वो लड़की धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ती जा रही थी, राघव का दिल और तेज़ी से धड़कने लगा। जब वो पास से गुजरी, तो उसकी खुशबू ने राघव को जैसे किसी और ही दुनिया में पहुंचा दिया। उसकी चाल में एक खास अंदाज था—न कोई जल्दबाज़ी, न कोई हिचकिचाहट। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी, जैसे वो दुनिया की भीड़ से परे हो, अपनी ही धुन में मस्त।

राघव की आंखें उसकी एक-एक हरकत को देखती रहीं, जब तक वो उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गई। वो चला तो गया, लेकिन उसकी छवि राघव के मन में कहीं गहरी छप गई थी।

उस पल के बाद, राघव का ध्यान किसी और चीज़ पर लग ही नहीं पाया। क्लास में बैठकर भी उसका दिमाग उसी लड़की के बारे में सोच रहा था। "वो कौन थी? उसका नाम क्या है?" ये सवाल उसके दिमाग में बार-बार घूम रहे थे। वो अपनी नोटबुक में कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी कलम खुद-ब-खुद उसी लड़की का नाम लिखने की चाह में डूबी जा रही थी—हालांकि वो नाम उसे पता ही नहीं था।

उस एक नज़र ने राघव के दिल में वो असर छोड़ा, जो शायद कभी मिटने वाला नहीं था। वो लड़की जैसे उसके ख्वाबों में बस गई थी। हर चीज़ में उसे उसी का अक्स नजर आ रहा था। दोस्तों के साथ बात करते वक्त, कैंटीन में कॉफी पीते वक्त, यहाँ तक कि रात को बिस्तर पर लेटते वक्त भी, उसकी आंखों के सामने वही चेहरा घूम रहा था।

वो एक नज़र थी, लेकिन उसने राघव की ज़िंदगी के हर पहलू को जैसे उलट-पलट कर दिया था। उसे प्यार में पड़ने का एहसास तो नहीं था, लेकिन ये जरूर पता चल गया था कि कुछ तो बहुत खास हो चुका है। उस पहली नज़र का असर ऐसा था, जिसने राघव के दिल की दुनिया को बदलकर रख दिया।

अब राघव हर रोज़ उस गेट के पास खड़ा होकर इंतजार करने लगा, उस एक और झलक के लिए। वो बस उस पल का इंतजार करता था जब फिर से उसकी आँखों से उसकी आँखें मिलेंगी। वो जानता था कि उस नज़र में कुछ तो खास था—कुछ ऐसा जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल था, लेकिन महसूस किया जा सकता था।

राघव के दिल में एक उम्मीद थी कि जल्द ही वो उस लड़की से मिलेगा, उससे बात करेगा और जान पाएगा कि वो कौन है। लेकिन उस पहली नज़र ने जो असर डाला था, वो कभी मिटने वाला नहीं था। वो एहसास उसके दिल में हमेशा के लिए बस चुका था।

उस पहली नज़र का असर हमेशा रहेगा—एक जादुई पल, जिसने राघव को पहले प्यार के अहसास से रूबरू कराया था।

 

अध्याय 2: दिल की अनकही बातें
(Unspoken Words of the Heart)

राघव के लिए पिछले कुछ दिन किसी सपने की तरह बीते थे। कॉलेज के गेट पर उस अनजान लड़की को देखकर जो एहसास हुआ था, उसने उसके दिल और दिमाग दोनों पर कब्ज़ा कर लिया था। उस पहली नज़र का असर अब उसके जीवन का हिस्सा बन गया था। उसकी यादें हर वक्त उसके साथ थीं—जागते हुए, सोते हुए, यहां तक कि दोस्तों के साथ बात करते हुए भी, उसकी बातें दिल में चलती रहती थीं। लेकिन इन सब के बावजूद, उसकी सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वो लड़की कौन थी, उसे ये अब तक पता नहीं चल पाया था।

राघव का दिल उसकी ओर खिंचता जा रहा था। उसे महसूस होने लगा था कि वो लड़की सिर्फ एक अजनबी नहीं, बल्कि उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है। उसकी नज़रें अब हर रोज़ उस लड़की की तलाश में रहती थीं। जब भी वो कॉलेज आता, उसकी नज़रें अनायास ही उस दिशा में चली जातीं, जहाँ उसने पहली बार उसे देखा था। दिल में एक अजीब सी बेचैनी और तड़प थी, जैसे कुछ अधूरा रह गया हो।

एक दिन राघव कैंटीन में बैठा था। सामने किताबें खुली थीं, लेकिन ध्यान कहीं और था। वह दोस्तों की बातों में शामिल होने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसके कानों में सिर्फ वही बात गूंज रही थी—"वो कौन है?"
राघव के दोस्त आर्यन ने उसकी खोई हुई हालत देखकर चुटकी ली, "अरे भाई, क्या हुआ? इतने खोए-खोए क्यों हो? लगता है किसी ने दिल चुरा लिया है।"

राघव मुस्कुरा दिया, लेकिन कुछ नहीं कहा। वो जानता था कि अगर वो अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने की कोशिश करेगा, तो शायद खुद भी समझ नहीं पाएगा। कुछ एहसास ऐसे होते हैं, जो दिल में होते हैं, लेकिन उन्हें जुबान पर लाना बेहद मुश्किल होता है।

उसके दिल में कुछ अनकही बातें थीं। वो बातें जो वो खुद भी समझने की कोशिश कर रहा था। यह पहली बार था जब उसे किसी के लिए इतनी गहरी भावनाएं महसूस हुई थीं। वो सिर्फ उस लड़की का चेहरा ही नहीं, उसकी आंखों की गहराई, उसकी मुस्कान, और उसकी चाल को भी हर वक्त अपने दिल में महसूस कर रहा था। ये एक ऐसा रिश्ता था जो बिन शब्दों के ही बन गया था, और इसे महसूस करने के लिए किसी इकरार की जरूरत नहीं थी।

राघव के दिल में एक अजीब सा डर भी था। "अगर मैंने उसे फिर से नहीं देखा तो?" ये ख्याल उसके दिल में बार-बार आता था। उसे यह चिंता सताने लगी थी कि कहीं वो लड़की सिर्फ उसकी कल्पना का हिस्सा तो नहीं थी। हर रोज़ कॉलेज में जाने के बाद उसकी निगाहें उसे ढूंढने लगतीं, लेकिन उसे वो कहीं नजर नहीं आती। और यही चीज़ उसकी बेचैनी को बढ़ा रही थी।

दिन बीतते गए और एक दिन राघव की उम्मीदें रंग लाई। वो लाइब्रेरी में किताबें देख रहा था, तभी उसे वही चेहरा दिखा। वो लड़की किताबों के रैक के पास खड़ी थी, और बड़ी शांति से कोई किताब देख रही थी। राघव का दिल एक बार फिर तेज़ी से धड़कने लगा। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो उसे फिर से देख रहा है।

कुछ पलों के लिए वो वहीं खड़ा रह गया, बिना कोई हरकत किए। उसका मन हुआ कि वो जाकर बात करे, पर उसके कदम जैसे जड़ हो गए थे। दिल में बहुत कुछ कहने की इच्छा थी, लेकिन जबान से एक शब्द भी नहीं निकला। यह वही अनकही बातें थीं, जो दिल के अंदर ही रह जाती हैं, बिना किसी के सामने आए। राघव ने गहरी सांस ली और आखिरकार अपने कदम उस दिशा में बढ़ाए।

वो लड़की अभी भी किताबों में खोई हुई थी, जब राघव उसके पास पहुंचा। उसने हल्के स्वर में कहा, "क्या ये किताब अच्छी है?" यह वही किताब थी, जिसे वो लड़की देख रही थी। लड़की ने राघव की ओर देखा और मुस्कुराई। उसकी मुस्कान में वही जादू था, जिसे राघव ने पहले भी महसूस किया था।

"मुझे नहीं पता," उसने कहा, "मैं तो बस देख रही थी।" उसकी आवाज़ इतनी कोमल थी कि राघव कुछ पल के लिए उसकी बातों में खो गया।

"मैंने भी ये किताब नहीं पढ़ी है," राघव ने खुद को संभालते हुए कहा। "लेकिन अगर तुम पढ़ रही हो, तो शायद मैं भी इसे पढ़ूंगा।"

लड़की ने एक हल्की हंसी दी और कहा, "अच्छा! तो फिर इसे पहले पढ़ लो, और मुझे बताना कि कैसी है।"

राघव के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। वो चाहता था कि ये बातचीत कभी खत्म न हो। लेकिन उसने महसूस किया कि जितना भी कहने की कोशिश कर रहा है, उससे कहीं ज्यादा बातें उसके दिल में दबी रह गई थीं।

कुछ देर बाद लड़की ने कहा, "मुझे अब जाना होगा। शायद फिर कभी मिलेंगे।" और वो वहां से चली गई। राघव ने उसे जाते हुए देखा, और एक अजीब सी खामोशी उसके दिल में छा गई।

उस छोटी सी मुलाकात के बाद भी राघव के दिल में ढेर सारी बातें थीं, जिन्हें वो कह नहीं पाया था। वो बातें जो उसकी जुबां तक आकर रुक गईं थीं। लेकिन राघव जानता था कि ये मुलाकातें उसके दिल की गहराईयों में जगह बना चुकी हैं। हर बार जब वो उससे मिलता, तो दिल में और ज्यादा बातें अनकही रह जातीं, और यही बातें उसके प्यार को और गहरा बना रही थीं।

राघव अब जान चुका था कि उसकी भावनाएं सिर्फ एक आकर्षण नहीं थीं। उसके दिल में जो बातें दबी थीं, वो सिर्फ किसी के प्रति खिंचाव नहीं, बल्कि एक गहरी मोहब्बत थी। वो इसे इकरार करना चाहता था, लेकिन डरता था कि अगर उसने ये सब कह दिया, तो शायद वो लड़की उसे गलत समझ ले।

दिन बीतते गए, लेकिन राघव के दिल की अनकही बातें हर दिन और गहरी होती गईं। अब वो हर मुलाकात में उन बातों को कहने की कोशिश करता, लेकिन हर बार उसकी हिम्मत जवाब दे जाती। वो जानता था कि उसके दिल की ये अनकही बातें ही उसकी मोहब्बत की सबसे बड़ी खूबसूरती थीं।

इस बीच, उसकी मुलाकातें उस लड़की से अक्सर होती रहीं, लेकिन हर मुलाकात के बाद उसके दिल में और बातें दबी रह जातीं। और इसी तरह, राघव की मोहब्बत धीरे-धीरे परवान चढ़ रही थी—चुपचाप, बिना किसी इकरार के, बिना किसी शोर के।

"दिल की अनकही बातें" वो बातें होती हैं, जिन्हें कहने की ज़रूरत नहीं पड़ती, क्योंकि उनका एहसास शब्दों से परे होता है। राघव का प्यार भी अब इसी कशिश में बंध चुका था—एक ऐसा रिश्ता जो बिन कहे भी दिल के सबसे करीब था।

 

अध्याय 3: दोस्ती या कुछ और?
(Friendship or Something More?)

राघव और वह लड़की, जिसका नाम उसने अब तक नहीं पूछा था, अब कॉलेज में अक्सर मिलते थे। हर मुलाकात के साथ उनकी दोस्ती गहरी होती जा रही थी। वो दोनों कैंटीन में एक ही टेबल पर बैठते, लाइब्रेरी में साथ पढ़ते, और कभी-कभी क्लास के बाद कैंपस में टहलते हुए भी बात करते। राघव को लगने लगा था कि वह उसके करीब आ रहा है। लेकिन एक सवाल हर वक्त उसके मन में गूंज रहा था—"क्या यह सिर्फ दोस्ती है, या कुछ और?"

राघव के दिल में उसकी दोस्ती से बढ़कर भावनाएँ थीं। जब वह उसके साथ होता, तो उसे एक अजीब सी शांति महसूस होती, लेकिन साथ ही दिल की धड़कनें तेज हो जातीं। उसकी हर मुस्कान, हर हंसी, और उसके साथ बिताया हर पल जैसे राघव के लिए खास बन गया था। उसकी नज़रों में अब वो सिर्फ एक दोस्त नहीं, बल्कि कुछ और थी। लेकिन वह अपने दिल की बात कहने से डरता था। "क्या वो भी ऐसा ही महसूस करती होगी?" यही सवाल उसे बार-बार परेशान करता था।

एक दिन, कॉलेज के बाद वे दोनों कैंपस के पार्क में टहलने गए। हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और आसमान पर बादल घिर रहे थे। उनके बीच बातें आम थीं, लेकिन राघव का दिल बेचैन था। उसके अंदर जैसे एक तूफान मच रहा था। वह उसे बताना चाहता था कि वो सिर्फ उसकी दोस्त नहीं है, उससे कहीं ज्यादा है। लेकिन कैसे? कहीं ऐसा न हो कि वह गलत समझ ले और उनकी दोस्ती खत्म हो जाए।

पार्क में एक बेंच पर बैठते हुए लड़की ने कहा, "राघव, तुमसे मिलकर हमेशा अच्छा लगता है। तुम्हारे साथ वक्त कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।"
राघव ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराया, लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिल घबराया हुआ था। वो चाहता था कि वह भी उससे ऐसा ही कुछ कहे, लेकिन उसके शब्दों में एक झिझक थी।
"तुम भी बहुत अच्छी हो," राघव ने धीरे से कहा, "तुम्हारे साथ भी वक्त बिताना मुझे पसंद है।"

उनकी बातें चल रही थीं, लेकिन राघव का ध्यान कहीं और था। वह हर वाक्य में छिपे संकेतों को खोजने की कोशिश कर रहा था। "क्या वो मुझे भी ऐसे ही महसूस करती है?"

उस दिन, उनके बीच की बातचीत कुछ अलग थी। राघव ने देखा कि उसकी मुस्कान में कुछ नया था। वो बातें करते हुए बीच-बीच में उसकी आँखों में देखने की कोशिश कर रहा था, और हर बार उसे ऐसा लगा कि उसकी आँखों में कुछ और छिपा है, जिसे वो शायद कह नहीं पा रही। वो सोच रहा था कि क्या उनके रिश्ते की इस गहराई को वो भी महसूस करती है, या ये सिर्फ उसका भ्रम है?

कुछ देर बाद, राघव ने अचानक पूछा, "तुम्हारा कोई खास दोस्त है क्या?" यह सवाल हल्का था, लेकिन इसके पीछे उसकी बेचैनी छिपी हुई थी।
लड़की ने उसकी तरफ देखा और थोड़ी देर के लिए खामोश हो गई। "खास दोस्त?" उसने हंसते हुए कहा। "मेरा ऐसा कोई खास दोस्त नहीं है।"
राघव ने राहत की सांस ली, लेकिन फिर उसने महसूस किया कि वो लड़की उसकी तरफ ध्यान से देख रही थी।
"क्यों? तुम ये क्यों पूछ रहे हो?" उसने सवाल किया।

राघव थोड़ा घबरा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या कहे। "क्या वो समझ गई है कि मैं क्या पूछना चाह रहा हूँ?"
"बस यूं ही," राघव ने कहा, "वैसे ही पूछ लिया।" लेकिन उसकी आवाज़ में एक हल्की सी हिचकिचाहट थी, जिसे लड़की ने भांप लिया था।

इसके बाद थोड़ी देर तक दोनों खामोश रहे। हवा में एक अजीब सी चुप्पी थी, जैसे दोनों के दिलों में बहुत कुछ चल रहा हो, लेकिन कोई कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। राघव के मन में सवालों की एक बाढ़ सी आ गई थी। "क्या ये सिर्फ दोस्ती है? या उसे भी मेरे लिए कुछ महसूस होता है?"

अचानक लड़की ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "राघव, तुमसे एक बात पूछनी थी।"
राघव चौंक गया। "हाँ, पूछो," उसने कहा, हालांकि अंदर से वो थोड़ा घबराया हुआ था।
"हमारी दोस्ती... तुम्हें कैसी लगती है?" लड़की ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।

यह सवाल राघव को थोड़ा असमंजस में डाल गया। उसकी उम्मीद और डर दोनों एक साथ जाग उठे। "क्या वो भी कुछ महसूस करती है?" उसने सोचा।
राघव ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, "मुझे हमारी दोस्ती बहुत पसंद है। तुम बहुत खास हो मेरे लिए।"
लड़की ने उसकी बात सुनकर उसकी आँखों में देखा, जैसे उसकी आँखों में छिपे सच को जानने की कोशिश कर रही हो। "क्या ये सिर्फ दोस्ती है?" उसने धीरे से पूछा, लेकिन उसकी आवाज़ में गंभीरता थी।

राघव कुछ पल के लिए खामोश हो गया। यह वो पल था, जिसका वो इंतजार कर रहा था। अब उसे फैसला करना था कि वो दिल की बात कहे या उसे छिपा ले। लेकिन उसके दिल ने जवाब दे दिया था।
"नहीं," राघव ने हल्की सांस लेते हुए कहा, "ये सिर्फ दोस्ती नहीं है।" उसने उसकी आँखों में सीधे देखते हुए कहा। "तुम मेरे लिए बहुत ज्यादा मायने रखती हो।"

लड़की ने कुछ पल तक कुछ नहीं कहा। उसकी आँखों में हल्की सी चमक थी, और होंठों पर मुस्कान। फिर उसने धीरे से कहा, "मैं भी ऐसा ही महसूस करती हूँ, राघव।"

राघव का दिल धड़कना बंद कर चुका था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने जो इतने दिन से सोचा था, वो सच हो रहा है

अध्याय 4: ख्वाबों में बसी तसवीर

राघव की जिंदगी में अब एक नया मोड़ आ चुका था। उस दिन जब उसने अपनी भावनाओं को शब्दों में ढाला और उसकी पसंदीदा लड़की ने भी वही महसूस करने की बात कबूल की, राघव के दिल में एक नई रोशनी जग गई। अब वह यह जान चुका था कि उसकी दोस्ती से कहीं बढ़कर एक रिश्ता है। लेकिन इसके साथ ही एक और एहसास भी उसके अंदर जन्म लेने लगा था—वो हर पल उसे याद करता, और उसकी तसवीर उसके ख्वाबों में बस गई थी।

हर रोज़, जब राघव सुबह उठता, उसकी पहली सोच वही होती—वो लड़की जिसने उसकी जिंदगी को अचानक से इतना रंगीन बना दिया था। वह बिस्तर से उठता और अपने मोबाइल में उसकी फोटो ढूंढता, जो उन्होंने कॉलेज में साथ ली थी। उसकी मुस्कान, उसकी बड़ी-बड़ी आंखें, और उसकी मासूमियत राघव के दिल में किसी तसवीर की तरह बस गई थी। वह उसके बारे में सोचते हुए दिन की शुरुआत करता और वही सोचते हुए रात में सो जाता।

लेकिन अब उसे एहसास हुआ कि वह केवल उसकी यादों में ही नहीं थी, बल्कि उसकी नींदों में भी बस चुकी थी। हर रात, जब वह अपनी आंखें बंद करता, उसके सपनों में वह लड़की आ जाती। वह कभी भी सीधी सपनों में नहीं आती थी, लेकिन उसके ख्वाबों में हमेशा किसी न किसी रूप में उसका चेहरा उभरता। वह राघव के हर ख्वाब का हिस्सा बन चुकी थी।

एक रात, जब राघव बिस्तर पर लेटा हुआ था, हल्की सी नींद ने उसे घेर लिया। अचानक उसने खुद को एक बगीचे में पाया। चारों ओर फूल खिले हुए थे, हवा में हल्की खुशबू तैर रही थी। वह बगीचे के बीचोंबीच खड़ा था, और दूर कहीं से एक आवाज़ आ रही थी—जानी पहचानी और दिल को छूने वाली। वो आवाज़ उसकी थी। राघव ने चारों ओर देखा, और फिर उसे दूर एक पेड़ के पास खड़ी हुई देखा। सफेद ड्रेस में वह बिल्कुल परी जैसी लग रही थी। उसकी आंखों में वही मासूमियत थी, उसकी मुस्कान ने राघव के दिल को एक बार फिर छू लिया।

राघव ने उसकी ओर बढ़ने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर जैसे जड़ हो गए थे। वो लड़की उसे देख रही थी, लेकिन कुछ नहीं कह रही थी। उसके होंठ हल्की सी मुस्कान के साथ बंद थे, लेकिन उसकी आँखें राघव से बातें कर रही थीं। राघव ने एक बार फिर कदम उठाने की कोशिश की, लेकिन वह अपने पैरों को हिला नहीं पाया। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी ख्वाहिशें उससे कुछ दूरी पर हैं, जिन्हें छूना मुश्किल है।

राघव की नींद अचानक खुल गई। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और उसे महसूस हुआ कि वह फिर से वही ख्वाब देख रहा था—वही ख्वाब जिसमें उसकी तसवीर उसके सामने आती, लेकिन वह उससे कभी बात नहीं कर पाता। यह ख्वाब अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन गए थे। हर रात, वह उसकी मुस्कान को अपनी नींदों में देखता, उसकी मौजूदगी को महसूस करता, लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।

राघव का हर दिन उसकी यादों में खोया हुआ बीतता। जब वह कॉलेज में होता, तो उसकी नज़रें हर जगह उसे ढूंढतीं। क्लास में पढ़ाई करते वक्त, दोस्तों के साथ बैठे हुए, कैंटीन में कॉफी पीते हुए—उसकी यादें हर वक्त राघव के साथ रहतीं। उसकी तसवीर उसकी आँखों में बसी रहती, और हर वक्त राघव उसे अपने पास महसूस करता।

एक दिन, जब राघव अपने कमरे में बैठा हुआ था, उसने अपनी किताबों के बीच एक पुरानी डायरी पाई। वह डायरी उसकी नहीं थी, बल्कि उस लड़की की थी, जो उसने गलती से राघव के बैग में छोड़ दी थी। राघव ने उसे उठाया और खोल कर देखा। डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था, "मेरे ख्वाबों की तसवीर।"

यह शब्द देखकर राघव का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने पन्ने पलटे और उस डायरी के बीच कुछ स्केचेस देखे—साधारण से, लेकिन खूबसूरत। वह हैरान था, क्योंकि उनमें से एक स्केच उसका था। लड़की ने राघव का स्केच बनाया था, उसकी मुस्कान और उसकी आंखों की गहराई को बड़ी बारीकी से उकेरा था। नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था, "तुम्हारी आँखों में मेरे ख्वाब बसते हैं।"

यह देखकर राघव को समझ में आया कि वो लड़की भी उसकी तरह ही उसके बारे में सोचती थी। वह भी उसी तरह उसे अपने ख्वाबों में देखती थी, जैसे राघव उसे देखता था। यह ख्याल ही उसके दिल को राहत देने के लिए काफी था। उसे महसूस हुआ कि उनकी मोहब्बत में जो खामोशी थी, वह अब भी एक अटूट कड़ी की तरह थी, जो बिना कहे ही दोनों के दिलों को जोड़ रही थी।

अब राघव के ख्वाबों में उसे वो तसवीर पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी। उसे हर रात अब यह एहसास दिलाता था कि उनकी मोहब्बत सिर्फ हकीकत में ही नहीं, बल्कि ख्वाबों में भी जी रही थी। हर सपना उसे और उसके दिल के करीब ला रहा था। हर ख्वाब में उसकी तसवीर और साफ हो रही थी।

कुछ दिन बाद, राघव ने डायरी लड़की को वापस की, लेकिन उसने उससे कुछ नहीं कहा। उसकी मुस्कान और उसकी आँखों ने पहले ही सब कुछ बयां कर दिया था। उस दिन के बाद, उनके बीच कुछ बदल गया था। अब दोनों जानते थे कि उनकी मोहब्बत सिर्फ इस दुनिया तक सीमित नहीं थी—वह ख्वाबों में भी जी रही थी।

राघव के दिल में उसकी तसवीर अब बस चुकी थी। उसकी हर रात, उसकी हर सुबह अब उसके ख्वाबों से जुड़ी हुई थी। वह जानता था कि यह मोहब्बत सिर्फ उसके दिल की आवाज़ नहीं थी, बल्कि उनके ख्वाबों की साझा दुनिया भी थी। और शायद यही सबसे प्यारी बात थी—कि उनकी मोहब्बत सिर्फ जमीन पर ही नहीं, बल्कि ख्वाबों में भी पंख लगाकर उड़ रही थी।

राघव ने अब मान लिया था कि उसकी तसवीर सिर्फ उसके ख्वाबों में बसी हुई नहीं थी, बल्कि उसके दिल के हर कोने में मौजूद थी। यह एहसास ही उसकी दुनिया को और खूबसूरत बना रहा था। "ख्वाबों में बसी तसवीर" अब उसकी जिंदगी की सबसे कीमती दौलत बन चुकी थी।

 

अध्याय 5: प्यार का पहला एहसास
राघव की जिंदगी अब उस मुकाम पर आ चुकी थी, जहाँ हर पल उसे एक अनकहा सुकून और अजीब सी बेचैनी दोनों का एहसास हो रहा था। वो लड़की, जिसका नाम प्रिया था, अब उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी थी। उनकी मुलाकातें, हंसी-मज़ाक, और एक-दूसरे के साथ बिताए हुए पल उसकी दिनचर्या का हिस्सा थे। लेकिन आज तक जो रिश्ता दोस्ती के दायरे में था, वह अब राघव के लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो चुका था। उसे धीरे-धीरे यह एहसास होने लगा था कि उसकी भावनाएं अब दोस्ती से कहीं आगे बढ़ चुकी थीं। यह पहली बार था जब उसके दिल में किसी के लिए इतना गहरा जुड़ाव पैदा हो रहा था—यह था पहला प्यार।

राघव ने पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था। प्रिया के साथ बिताए हुए हर पल को वह खास मानने लगा था। जब वो साथ होती, तो उसका दिल जैसे खिल उठता, उसकी बातों में खो जाता और हर चीज़ में उसे प्रिया का अक्स नजर आता। लेकिन अब, ये एहसास इतना गहरा हो चुका था कि वह इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता था।

नए एहसास का जन्म

उस दिन राघव कॉलेज कैंटीन में बैठा था, प्रिया के आने का इंतजार कर रहा था। वह अपने दोस्तों के साथ कॉफी पीने आया था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। उसकी नजर बार-बार दरवाजे की ओर जा रही थी, जैसे किसी खास के इंतजार में हो। और तभी दरवाजे से प्रिया अंदर आई—हवा में उड़ते बाल, मुस्कान से भरा चेहरा, और आँखों में वही मासूमियत।

राघव की नजरें उससे हट ही नहीं पा रहीं थीं। उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं, और उसके मन में एक हलचल सी मच गई। यह एक ऐसा एहसास था, जिसे वह समझ नहीं पा रहा था। प्रिया ने उसके पास आकर उसे छेड़ते हुए कहा, "क्या हुआ? आज बड़े चुपचाप बैठे हो।" राघव हल्का मुस्कुराया और बोला, "कुछ नहीं, बस ऐसे ही।"

लेकिन उसके दिल में सब कुछ ठीक नहीं था। उसे यह महसूस होने लगा था कि उसकी भावनाएं अब दोस्ती तक सीमित नहीं रहीं। वह प्रिया को अपने दिल के सबसे करीब महसूस करने लगा था। उसकी हर हंसी, हर बात, हर छोटी सी बात अब राघव के दिल पर गहरा असर छोड़ रही थी।

दिल की धड़कनें तेज़ हैं

उस शाम राघव ने सोचा कि शायद अब वक्त आ गया है जब उसे अपने दिल की बात कहनी चाहिए। लेकिन जैसे ही उसने यह सोचा, एक डर ने उसे घेर लिया। "अगर उसने मना कर दिया तो?" यह ख्याल उसे बार-बार परेशान कर रहा था। उसके मन में यह सवाल उठ रहा था कि अगर उसने अपने प्यार का इज़हार कर दिया, और प्रिया ने इसे स्वीकार नहीं किया, तो क्या उनकी दोस्ती भी टूट जाएगी?

राघव इस उधेड़बुन में था, लेकिन उसका दिल अब उसे रोक नहीं पा रहा था। प्यार का यह एहसास इतना गहरा था कि वह इससे मुंह नहीं मोड़ सकता था। वह जानता था कि यह पहला प्यार है, और उसे इसे कबूल करना होगा, चाहे इसका अंजाम कुछ भी हो।

इकरार की तैयारी

राघव ने अपने दोस्तों से सलाह लेने का फैसला किया। वह आर्यन के पास गया, जो उसका सबसे करीबी दोस्त था। आर्यन ने उसकी बातें ध्यान से सुनीं और फिर मुस्कुराते हुए कहा, "देखो भाई, अगर तुम प्रिया को सच में पसंद करते हो, तो तुम्हें अपने दिल की बात उसे बता देनी चाहिए। यह मत सोचो कि वो क्या सोचेगी या जवाब क्या होगा। प्यार में सबसे जरूरी है सच्चाई।"

राघव ने आर्यन की बातों पर गौर किया और हिम्मत जुटाई कि वह अपने दिल की बात प्रिया से कहेगा। उसने फैसला किया कि वो अगले दिन उसे कैंपस में बुलाकर अपनी भावनाएं जाहिर करेगा।

प्यार का पहला इकरार

अगले दिन, राघव ने प्रिया को कैंपस के गार्डन में बुलाया। उसने उससे कहा कि उसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं। प्रिया उसकी बातों से थोड़ा चौंकी, लेकिन वह आ गई। गार्डन में हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पेड़-पौधों की खुशबू माहौल को और रोमांटिक बना रही थी।

राघव के दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थीं। उसके मन में हजारों सवाल घूम रहे थे, लेकिन अब वह ठान चुका था कि वो प्रिया से अपने दिल की बात कहेगा।

प्रिया गार्डन में आई और हंसते हुए बोली, "क्या बात है राघव? तुम आज बहुत गंभीर लग रहे हो।" राघव ने उसकी तरफ देखा, और उसकी हंसी में भी उसे एक अपनापन महसूस हुआ। उसने खुद को शांत करने की कोशिश की और कहा, "प्रिया, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं, जो मैं बहुत दिनों से कहना चाह रहा हूं।"

प्रिया ने उसकी तरफ ध्यान से देखा, और राघव के चेहरे पर उसकी गंभीरता को भांप लिया। "क्या हुआ? तुम ठीक हो ना?" उसने पूछा।

राघव ने गहरी सांस ली और सीधे उसकी आंखों में देखते हुए कहा, "प्रिया, मैं नहीं जानता कि ये कैसे हुआ, लेकिन अब मैं इसे और छिपा नहीं सकता। मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता। हर बार जब मैं तुम्हें देखता हूं, तो मेरा दिल धड़कने लगता है। मैं... मैं तुम्हें प्यार करता हूं, प्रिया।"

यह सुनकर प्रिया कुछ पल के लिए खामोश हो गई। उसकी आँखों में हैरानी थी, लेकिन चेहरे पर हल्की मुस्कान बनी रही। उसने कुछ नहीं कहा, बस राघव की ओर देखती रही। राघव के लिए वो कुछ पल बहुत भारी थे। उसकी धड़कनें अब इतनी तेज़ हो रही थीं कि उसे लगा कि प्रिया भी उसे सुन सकती है।

कुछ देर बाद, प्रिया ने धीरे से कहा, "राघव, मैं भी तुमसे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं। सच कहूं, तो मैं भी वही महसूस करती हूँ, जो तुम कर रहे हो। लेकिन मैं इस दोस्ती को कभी खत्म नहीं करना चाहती थी। मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।"

राघव को यह सुनकर राहत मिली, जैसे उसके दिल से एक भारी बोझ उतर गया हो। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका पहला प्यार उसे भी प्यार करता है। उसकी आँखों में खुशी के आंसू थे, और उसने प्रिया का हाथ थामते हुए कहा, "मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा, प्रिया।"

प्यार का पहला एहसास

उस पल, राघव और प्रिया दोनों ने महसूस किया कि उनका रिश्ता अब दोस्ती से बहुत आगे बढ़ चुका था। दोनों के दिलों में जो प्यार पनप रहा था, उसे अब इकरार की ज़रूरत नहीं थी। वो दोनों एक-दूसरे के लिए बने थे, यह बात अब साफ हो चुकी थी।

राघव को अब प्यार का असली एहसास हो चुका था। यह एक ऐसा एहसास था, जो शब्दों से परे था। उसकी हर धड़कन, हर ख्याल अब प्रिया से जुड़ा हुआ था। उसे अब समझ में आया कि पहली मोहब्बत में जो मासूमियत होती है, वह जिंदगी के हर पहलू को खूबसूरत बना देती है।

प्रिया भी अब राघव के साथ अपना हर पल बिताने के लिए तैयार थी। दोनों के दिलों में अब कोई झिझक नहीं थी, कोई सवाल नहीं था। प्यार ने उन्हें एक-दूसरे के और भी करीब ला दिया था।

इस तरह, प्यार का पहला एहसास उनके जीवन का सबसे खूबसूरत पल बन गया। वो पल, जब दोनों ने अपने दिल की बात कही, उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल गया। अब उनका हर दिन, हर पल एक नई कहानी लिख रहा था—मोहब्बत की, अपनेपन की, और साथ निभाने की।

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