fleton ka rahan sahan in Hindi Comedy stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | फ्लेटों में रहन सहन

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फ्लेटों में रहन सहन

फ्लेटों में  रहन सहन

यशवंत कोठारी

महानगरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी अब  मध्यम वर्गीय आदमी फ्लेटों में रहने की सोचने लगा है ,बाज़ार वाद के चलते बड़ी बड़ी कम्पनियां इस व्यापार में उतर गयी है, बड़ा मुनाफा है ,सरकार का सपोर्ट है ,बेंक लोन की आसान सुविधा है और चुकाने के लिए लम्बे समय की सहूलियत भी है ,एक तरह से किराये के मकान से बेहतर है और क़िस्त चुकाने मात्र से मकान खुद का हो जाता है .इस सुनहरे पहलू के बाद कुछ स्याह चित्र भी देखे जाने चाहिए.

1-फ्लेटों के जो चित्र दिखाए जाते हैं वे वास्तविकता से कोसों दूर होते हैं,सरकार का कोई कण्ट्रोल नहीं है .

2-जो अमिनिटीज दिखाई जाती है वे कभी भी पूरी नहीं होती.

३-कारपेट एरिया ,बिल्ट अप एरिया व सुपर बिल्ट अप एरिया हमेशा भ्रम पैदा करता है , जो कारपेट एरिया का पच्चीस ,तीस या चालीस प्रतिशत तक ज्यादा   होता है तथा पूरी रेट पर दिया जाता है . शायद सरकार का इस पर कोई कंट्रोल नहीं है,रेरा का आम फ्लेट मालिक से कोई वास्ता नहीं .

4-फ्लेट की कीमत वर्ग फुट से तय होती है जो सुपर बिल्ट अप के हिसाब से ली जाती है .इस के अलावा पार्किन्ग का पैसा ,वन टाइम रख रखाव का खर्च पॉवर बेक अप का पैसा जीएस टी भी लिया जाता है .हर बिल्डर की प्रति फुट कीमत अलग कोन जानता है लोहा कितना लगा सीमेंट बजरी का अनुपात क्या ,कोई जाँच नहीं होती  नियामक संस्थाओं का रोल नक्शा पास करने तक सिमित .निर्माण सामग्री की गुणवत्ता का भगवन ही मालिक .

उपरी दिखावटी सामान जरूर अच्छा  लगाते है . आदमी जिदगी भर की कमाई लगा कर फ्लेट खरीदता है या जिन्दगी भर किस्तें चुकाता है.

5-कई बिल्डर्स जॉइंट वेंचर करते हैं कुछ स्थानों पर फ्री होल्ड की जमीन होती है लेकिन फ्लेट मालिक को कुछ पता नहीं होता .

६-फ्लेट बेचने के बाद मालिक से मासिक रख रखाव लिया जाता है ,जब की जो वनटाइम लिया गया है उसका क्या हुआ कोई नहीं बताता.

७-वेल फेयर  एसोसिएशन बनाई जाती है और कुछ समय बाद ही मामले कोर्ट थाने में चले जाते हैं,इस मामले में बेंगलोर में नियम अच्छे हैं .

८-फ्लेट मालिक के  अन डिवाइडेड लेंड  प्रॉपर्टी राईट होते हैं लेकिन इस और कोई ध्यान नहीं दिया जाता.लीज की बात भी नहीं पता होती .

९-बिल्डर्स के हाथ बहुत लम्बे होते हैं कई तो बेचने के बाद कम्पनी डीजोल्व कर देते हैं.सरकारे उनके चंदे से बनती बिगडती हैं.

१०-लोन लेने के लिए भी फ्लेट वाले को कई पापड़ बेलने पड़ते हैं हर बेंक के नियम  अलग, कायदे कानून अलग .एक बार फंस जाये बस ...

११-बिल्डिंग के बेसमेंट में व उपरी मंजिल के अप्रूवल कम ही बिल्डर कराते है कुछ समय बाद ये स्टोर  या पेंट हाउस में बदल जाते हैं .टेरेस गार्डन का सपना दिखाया जाता है ,जो कभी सच्चा नहीं होता.स्टोर सरवेंट रूम बन जाते हैं .

१२-लिफ्ट कोमन एरिया लाइट साफ सफाई आदि के लिए कोई खास प्रयास नहीं किया जाता .

१३सुरक्षा  की समस्या सबसे ज्यादा है केमरे ख़राब गार्ड उपरी  आमदनी में व्यस्त हो जाते हैं.गीगा वर्कर्स कभी भी घुस जाते हैं .

१४-पार्किंग का कुछ हिस्सा कुछ समय के बाद व्यावसायिक हो जाता है रहवासी भवनों में व्यावसायिक काम होने लग जाते हैं जीवन दूभर हो जाता है .

१५-आस पास के रहवासी भी परेशान  होते हैं उनकी हवा रौशनी प्रभावित होती है जनसँख्या घनत्व बढ़ जाता है,हाई कोर्ट ने संज्ञान भी लिया है .सभी फ्लेट हवाई  स्पेस में होते हैं फिर भी जमीन से ज्यादा भाव .

 और अंत में फ्लेट वाला बंगले में जाना चाहता है व बंगले वाला फ्लेट में आना चाहता है .वतर्मान से कोई खुश नहीं  होता .

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यशवन्त कोठारी ,701, SB-5 ,भवानी सिंह  रोड ,बापू नगर ,जयपुर -302015  मो.-94144612 07