Sath Sath - 1 in Hindi Love Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | साथ साथ - 1

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साथ साथ - 1

"अब हमें भी शहर छोड़ देना चाहिए
कुलदीप लौटकर आया तो पत्नी से बोला था।
"क्यो?"पति की बात सुनकर इवाना बोली थी
"शहर खाली होता जा रहा है।लोग पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए जा रहे हैं।वैसे भी शहर में रखा क्या है।खण्डर में तब्दील हो चुका है।
कुलदीप शहर जाकर आया था।और शहर के हालात जो वह अपनी आंखों से देखकर आया था।उन्ही का वर्णन अपनी पत्नी से कर रहा था।इवाना किचन में खाने की तैयारी कर रही थी।वह पति की बाते ध्यान से सुन रही थी।पति की बाते सुनकर वह बोली
क्या तुम अपने देश मे होते तब भी ऐसा ही करते
मोरियोपोल
यूक्रेन का एक शहर
इस शहर का बगीचा
सिटी गार्डन
कुलदीप घूमता हुआ इस बगीचे में चला आया था।आज सन्डे था।छुट्टी का दिन। इसलिए बगीचे में अच्छी खासी भीड़ थी।हर उम्र और वर्ग के लोग बगीचे में थे।।बच्चे खेल में मस्त थे ।जबकि बडे बातों में मशगूल।सारी बेंचे भरी हुई थी।कुलदीप जगह तलाश करता हुआ बगीचे के अंतिम छोर पर चला आया था।इस जगह भीड़ ना के बR बराबर थी।एक बेंच जो एक पेड़ के नीचे थीउस बेंच पर एक युवती बैठी हुई थी।उसके हाथ मे गुलाब का फूल था।वह उस फूल को निहार रही थी
"क्या यहाँ कोई औऱ भी बैठा है?"कुलदीप ने उस युवती से पूछा था
नही
तो क्या मैं बैठ सकता हूँ
वह युवती बोली नही लेकिन गर्दन हिलाकर स्वीकृति दी थी
कुलदीप बेंच पर बैठ गया।उस युवती का ध्यान फूल पर ही था।कुलदीप ने अपनी बगल में बैठी युवती को देखा और बोला,"सुंदर।अति सुंदर
"यह गुलाब है।फूलों का राजा।सुंदर तो होगा ही।"कुलदीप की बात सुनकर युवती बोली थी
"मैने फूल के लिए नही कहा
तो
"तुम्हारे लिए कहा है
"मेरे लिए,"वह बोली,"क्या
"तुम सूंदर हो।बहुत सुंदर।स्वर्ग से उतरी अप्सरा सी
"मजाक कर रहे हो
"हकीकत बयां कर रहा है
"थैंक्स।"शर्म से उसके गाल लाल हो गए थे।
"गुलाब को अपने बालों में लगा लो।और ज्यादा सुंदर लगोगी
"तुम ही लगा दो।"वह बेझिझक बोली थी।
"कुलदीप उसके बालो में फूल लगते हुए बोला
तुम्हारा नाम क्या है
इवाना,"वह अपना नाम बताते हुए बोली,"औऱ तुम्हारा
कुकदीप
"तुम यहाँ के तो नही लगते
"नही।मैं भारत का हूँ
"घूमने आए हो
"नही"कुलदीप बोला,"मैं यहाँ इंजिनीरिंग की पढ़ाई करने के लिए आया हूँ
कुछ देर तक वे बाते करते रहे।फिर वे चले गए थे
कुलदीप और इवाना कि दूसरी मुलाकात भी सिटी गार्डन मे ही हुई थी।इस बार मिलने पर कुलदीप ने उससे पूछा था,"तुम तो यही की हो
"हा।मेरा जन्म यूक्रेन में ही हुआ है
"तुम भी पढ़ती हो या
"नही।मैं सर्विस करती हूँ।एक मॉल में।मेरी सन्डे को छुट्टी रहती है।मुझे पार्क में समय बिताना अच्छा लगता है।
"क्या हम दोस्त बन सकते हैं?" कुलदीप ने इवाना से कहा था
"क्यो नही?"इवाना ने अपना हाथ आगे किया था।कुलदीप ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया था।
"कितने दिन हो गए तुम्हे यहा आये हुए
"दो महीने
"क्या क्या देखा यहा
"अभी तक कुछ नही
"क्या तुम्हें घूमने का शौक नही है।यहाँ तो घूमने के लिए बहुत से ेेतीहसिक और पुरानी जगह है
"अकेले घूमने में मजा नही आता
"क्या कोई दोस्त नही है
"साथ पढ़ने वाले हैं।लेकिन किसी के साथ गया नही
"औऱ मेरे साथ चलोगे
"तुम्हारा साथ हो तो कौन घूमना नही चाहेगा।हसीन साथी हो तो
"तो अगले सन्डे को चलेंगे
मैं यही आ जाऊंगा
यही सही रहेगा
और सन्डे को मिलने का वादा करके वे चले गए