Komal ki Diary - 17 in Hindi Travel stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | कोमल की डायरी - 17 - बाघ और खरगोश

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कोमल की डायरी - 17 - बाघ और खरगोश

सत्रह

बाघ और खरगोश
                               शुक्रवार, बारह मई २००६ 

    रात के दस बज गए हैं। सामने सुमित और जेन की चिट्ठियाँ हैं। मैंने सुमित को लिखा था कि वे बहादुर की लड़ाई के लिए यहाँ आएँ। इससे हम सभी को बल मिलेगा। पर उनकी चिट्ठी में कहीं भी यहाँ आने का कोई संकेत नहीं। ठीक ही है वातानुकूलित कमरे कहाँ मिलेंगे यहाँ बहस करने के लिए? गोल मोल बात से बात कहाँ बनती है? जेन ने कम से कम अपनी कमजोरी को स्वीकार तो किया। सुमित विद्वता का बोझ लादे सब कुछ छिपा लेना चाहते हैं, जेन को चाहने का दर्द भी। मूड और स्वास्थ्य ठीक रहा तो मदद करेंगे नहीं तो बाथरूम है ही बहाने के लिए।
काकी अब इस दुनिया में नहीं है पर उनकी छाया प्रेरक शक्ति के रूप में हम लोगों के साथ चलती है। एक बाघ से आज मेरी भी झड़प हो गई। वह धमकाने लगा, बहादुर जैसे लोगों के पचड़े में न पड़ो, नहीं तो ऊपर जाने में देर न लगेगी।
रौताइन का क्या हुआ? यह तो जान ही गए होगे। खरगोश चले हैं बाघों से मोर्चा लेने।
खरगोश तो बने ही हैं बाघों के लिए। तुम्हारे पर उग आए हैं जैसे चींटी के उग आते हैं। बाघों को इसका पता है। चुपचाप अपने दरबे में रहो। क्रान्ति की बातें करों, इसे कौन रोकता है? पर बाघों के हित पर हाथ डालोगे तो तुम्हें नहीं सभी खरगोशों को अपनी औकात मालूम हो जाएगी। खरगोश खरगोश ही होते हैं, समझे?'
'समझता तो बहुत पहले से था आज और साफ हो गया। बाघ खरगोश पर रहम क्यों करेगा? पर खरगोशों को भी जीने का हक है।'
'तभी तक जब तक बाघ की दृष्टि न पड़े। संविधान और कानून की किताबों का हक जंगल में नहीं मिलता। जंगल में बाघ का हुक्म चलता है। बाघ झपट्टा मार कर ही खाता है। आज मैं चेतावनी दे रहा हूँ। कोर्ट कचहरी भी पहले नोटिस देती है। बाघ घास नहीं खाता। उसे माँस और हड्डी चाहिए। बाघों के सामने तुम्हारी हिम्मत?'
'आप बाघों की बात कर रहे हैं? क्या बाघ इकट्ठे हो रहे हैं?'
'क्या बाघों का इकट्ठा होना सम्भव नहीं?'
'संभव क्यों नहीं? इससे तो यही लगता है बाघ डर गए हैं?'
'क्या? बाघ डरते नहीं, यह कहो, चौकन्ने हो गए हैं। तुम्हें मौत प्यारी होगी तो आगे बढ़ना?'
'यह तो समय बताएगा। अभी मैं क्या कहूँ?' 'ठीक है बताना। हम इन्तजार करेंगे।' कहकर वे चल पड़े। मैं भी अपनी राह चल पड़ा। रास्ते में विचार करता रहा। बाघ जो चाहें करते रहेंगे। क्या हम लोग सिर्फ देखते रहेंगे? क्या हम सभी भीखी नहीं बन रहे हैं? समस्याओं से मुँह फेर कर चलते रहो। आँखें मूँद लो। इसीलिए कहा गया 'मूँदछु आँखि कतहु कोउ नाहीं।' पर क्या वस्तुस्थिति बदल जाएगी? आँखें मूंदना समस्या का हल नहीं है। एक न एक दिन खड़ा होना पड़ेगा। काकी का चेहरा पुनः सामने आ गया। वही तेवर, वही स्वर। पैर नहीं हटाऊँगा काकी। मैं बुदबुदा उठा।
आगे बढ़ गया यह जानते हुए कि मार्ग में अनेक ख़तरे हैं। न जाने क्यों आज भीखी से मिलने को मन कर रहा। उसके पुरवे के निकट पहुँचा ही था कि जियावन से भेंट हो गई। प्राइमरी तक पढ़ा है, मुझसे दुआ-सलाम काफी दिनों से है। कैसे घूम रहे हो?' उसने पूछा।
'भीखी से मिलना था। मैंने बताया।
'भीखी से मिलकर क्या करोगे?'
'कुछ नहीं। बस यही कुछ जानकारी के लिए।'
'आप भीखी से न मिलो ।'
'क्यों?'
'तुम्हारा भीखी से मिलना लोग देख रहे हैं।'
'कौन लोग ?'
'वही लोग जिनके यहाँ भीखी काम करता है।'
'उन लोगों ने भीखी का खेत लिखवा लिया।'
'भाई कोमल इस बात को समझिए।'
'क्या समझें?'
'तुम्हारे ऊपर भी ख़तरा मंडरा रहा है।'
'इसीलिए भीखी से न मिलूँ।
'मेरी सलाह है कि न मिलो। बड़े शातिर लोग हैं जिनके यहाँवह रहता है।
यहाँ सभी छोटे लोग किसी न किसी की झोली में हैं। एक पिंजरे से निकलेंगे तो दूसरे में जाएँगे। उन्हें घोंसला बनाने के लिए एक मजबूत डाल चाहिए। घोंसला हवा में नहीं बनता।'
'पर कितना रुपया भीखी ने कर्ज लिया था?'
'कर्ज भीखी ने नहीं उसके बाप ने लिया था।'
'कितना?'
'एक हजार लिया था, भीखी की माँ बहुत बीमार थी। अस्पताल ले जाना पड़ा था। तीसरे ही दिन मर गई थी वह।'
'क्या एक हजार रुपया अदा नहीं हुआ?'
'कैसे अदा होता। दस रुपया सैकड़ा हर महीने ब्याज पड़ता था। भीखी का
बाप दे नहीं पाया। पाँच साल से कुछ ऊपर में ही ब्याज सहित बासठ हजार से अधिक हो गया। पचास हजार में पाँच बीघा खेत लिया। बारह हजार बचा उसका ब्याज साढ़े चौदह हजार रूपया साल होता है। उसी ब्याज में भीखी काम करता है।'
'तब तो भीखी कभी मुक्त नहीं हो सकेगा?'
'कैसे होगा? वह मरेगा तब भी मूल बारह हजार तो बाकी ही रहेगा।'
'तब तो पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा करना होगा।'
'वह तो होगा ही पर भीखी की शादी नहीं हो पाई। मालिक कोशिश कर रहे हैं कि शादी हो जाए। एक से दो सेवक हो जाएँगे।'
'दो ही क्यों अगली पीढ़ियाँ भी।'
'वैसे भीखी है बहुत काम का आदमी। बारह साल का था जब काम शुरू किया। मेहनती आदमी है इसीलिए टिक पाया। आजकल तो कामचोर भी अधिक हो गए हैं। पर भीखी काम में ना-नुकुर नहीं करता। ईमानदार भी है। कभी एक पैसे का सामान इधर-उधर नहीं किया। जिस दिन तुम भीखी से मिले थे, मैंने भी देखा। तुम्हारे साथ कोई दाढ़ी वाला आदमी भी था। लोग समझ रहे थे वह कोई आतंकवादी था।'
'हर दाढ़ी वाला आतंकवादी नहीं होता भाई साहब। वह तो रमजान भाई साहब थे जिनसे तुम मिल चुके हो। हमारे क्रान्तिकारियों को भी अंग्रेज आतंकवादी ही कहते रहे।'
'भाई कोमल, मैं आपसे फिर कह रहा हूँ कि भीखी की खोज में न रहो आपकी जान को खतरा अधिक है। इसीलिए भीखी से न मिलना आपके हित में है।' 'अपनी जान देखूँ या... ?'
'मैंने आपके हित की बात कही है बाकी आप जानो।'
इतना कहकर जियावन ने हाथ मिलाया और अपने पुरवे की ओर चला गया। 'ओ बाघ ! तुम भी शोषित हो पर तुम्हें पता नहीं। शोषित कहाँ जान पातें है कि वे शोषण के शिकार हैं। बड़ा बाघ छोटे बाघ को दबा लेता है। पूँछ दबाकर उसे भागना ही पड़ता है।'
साइकिल की पैडिल पर पैर रखा और चल पड़ा। भीखी तो नहीं मिला पर हम लोगों की हर कार्यवाही लोगों की निगाह में रहती है इसका पता ज़रूर लग गया। सूची में नम्बर एक पर हूँ यह भी जाना।