Ram Mandir Praan Pratishtha - 13 in Hindi Mythological Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 13

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राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 13

और हनुमानजी पेड़ो से स्वादिष्ट पके हुए फल तोड़कर खाने लगे।काफी देर बाद वन की रखवाली कर रहे रक्षकों को इस बात की भनक लगी।वह दौड़े हुए आये।उन्होंने वानर जाति के विशाल हनुमानजी को देखा।पहले तो उन्होंने उन्हें धमकी देकर रोकना चाहा।पर जब वह नही माने तो बल प्रयोग किया। हनुमानजी ने उन्हें मारकर भगा दिया।तब वे सब भागकर रावण के दरबार मे जा पहुंचे
"महाराज वानर जाति का एक विशाल प्राणी अशोक वन में घुस आया है उसने बाग को तहस नहस कर दिया है
"ऐसा कौन आ गया,"रावण ने अक्षय कुमार को और सेनिको के साथ भेजा था।लेकिन अक्षय ही नही अनेक सैनिक फिर मारे गए।बचे हुए घायल अवस्था मे दरबार मे जा पहुंचे
क्या हुआ
लंकापति वह बड़ा बलवान वानर है
अक्षय कुमार कहा है
वानर के हाथों मारा गया
क्या कहते हो
हा लंकापति
फिर
रावण सोच में पड़ गया।उससे लड़ने किसे भेजे।और फिर बोला
मेघनाथ
जी महाराज
तुम जाओ।ऐसा कौनसा बलशालीवानर आ गया जिसने हमारे सेनिको को ही नही राजकुमार अक्षय को भी मार डाला
"पिताश्री आप चिंता न करे।मैं जाता हूँ।उस बलशाली वानर को यमलोक भेज कर ही आपके पास आऊंगा
नही पुत्र। संयम से काम लेना।उसे मारना नही है
पिताश्री।यह आप क्या कह रहे हैं।उसने हमारे अनेक योयधाओ को ही नही मारा।राजकुमार अक्षय को भी
"पुत्र कौन है वो।यहा किस प्रयोजन से आया है।हमे यह पता करना है,"रावण बोला,"तुम उसे कैद करके दरबार मे ले आओ
जैसी आज्ञा ई
पिताजी
और मेघनाद अशोक वाटिका की तरफ चल दियामेघनाद पितृ भक्त था।उसके गुरु सुकराचार्य थे।मेघनाथ ने ऋषि मुनियों से बहुत से अस्त्र प्राप्त किये थे औऱ देवताओं से छीने भी थे।।
ब्रह्माजी ने उसे एक वरदान दिया था कि अगर वह अपनी कुलदेवी को तपस्या करके प्रसन्न कर ले तो वह उसे एक रथ देगी।उस रथ पर बैठकर युद्ध करने पर न उसे कोई हरा पायेगा न उसकी मृत्यु होगी।
मेघनाथ बल में कम नही था तो हनुमान भी कम नही थे।मेघनाद यह सोचकर आया था कि चुटकी में हनुमान को पराजित कर दूंगा।लेकिन ऐसा नही हुआ।हनुमान उस पर भारी पड़ने लगे तब मेघनाद को अपने दिव्य अस्त्र यानी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना पड़ा।इसका तोड़ हनुमान के पास नही था।और ब्रह्मास्त्र लगने से हनुमान को मुरक्षा आ गई।इस अवसर का फायदा उठाकर मेघनाद ने उन्हें जंजीरों में जकड़ लिया और दरबार की तरफ ले चले।हनुमान को देखने के लिए लंका वाशी इकट्ठे हो गए।हनुमान को जंजीरों में जकड़ा देखकर छींटाकशी करने लगे।उनका मजाक उड़ाने लगे।हनुमान योगों की बाते सुनकर मुस्कराते रहे।हंसते रहे।लोगो ने वानर जाति का इतना विशाल मानव पहली बार देखा था
"पिताश्री मैं ले आया हूँ"
"शाबास।हमे पूरा विश्वास था।तुम इस काम को कर सकते हो।
रावण पुत्र को शाबासी देते हुए बोला,"वानर तुम कौन हो
"मैं रामभक्त हनुमान हू
"यहां किसलिए आये हो
"माता सीता की खोज में आया हूँ
"तुंमने हमारे सेनिको को मार डाला है
"मैने उन्ही को मारा है जिन्होंने मुझे मारने का प्रयास किया था।
","हनुमानजी बोले,"हैं रावण तूने बहुत बड़ी गलती कर दी है।तू माता सीता का हरण कर लाया है तू प्रभु राम के चरणों मे सर रखकर माफी मांग ले।वह दयालु है।तुझ्रे माफ कर देंगे
"माफी।उस वनवासी से माफी,"रावण हंसा था।
"अरे धूर्त क्यो अपनी जाति का विनाश कराने पर आमादा है।दुष्टों के क्रम करता है और वीर बनता हैं।हनुमानजी ने इतना जलील किया कि रक्षक मारने को दौडे थे
"