स्नेहिल सुभोर
प्रिय मित्रो
कैसे हैं आप सब? ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना, यहॉं कल क्या हो किसने जाना?
बरसों से हम यह गीत सुनते, पसंद करते और गुनगुनाते आ रहे हैं।
मित्रों! कुछ भाव, चीज़ें कभी नहीं बदलती। जैसे:----
जीवन के आने के साथ जाना, उजाले के साथ अंधेरा, जीवन के साथ हर वो भाव जो ईश्वर की कृपा से हमारे भीतर हलचल मचाता है।
हमें मनुष्य बनाकर इस दुनिया में भेजा है। कई बार जब हम किसी परेशानी में फँस जाते हैं या किसी ऐसी परिस्थिति में घिर जाते हैं तब हमें लगता है कि हमें धरती पर आखिर क्यों भेजा गया है? जीवन की एक मुसीबत से निकलते नहीं, ज़रा-सी चैन की साँस लेते नहीं कि दूसरी किसी परिस्थिति में फँस जाते हैं।
हम दुखी हो जाते हैं। अपने से ही नाराज़ हो जाते हैं, बस यहीं हम टूटने,बिखरने लगते हैं | प्रत्येक मनुष्य के सहने की एक अलग सीमा होती है, कोई बहुत जल्दी परेशान हो जाता है तो कोई परेशानियों को चेलेंज लेकर उनसे जूझता रहता है |
कभी-कभी तो देखने में आता है कि किसी मनुष्य के जीवन से ये परेशानियाँ जाने का नाम ही नहीं लेतीं | उम्र भर वह उनसे घिरा रहता है और यह भी देखा गया है कि वह उनसे जूझने के लिए अड़ा ही रहता है | हार नहीं मानता जैसे सीना तानकर कहता हो कि भई, कर ले जितना परेशान करना है | अपनी हँसी, अपनी सकारात्मकता तो मैं छोड़ूँगा नहीं |
कभी-कभी इंसान बहुत अच्छा होता है लेकिन उसकी परेशानियों से उससे अधिक परेशान उसका साथी होने लगता है और कभी उसको अकेला भी छोड़ देता है | अब वह करे तो क्या करे? उसे अकेले रहकर ही अपने जीवन की जंग के सामने खड़े रहना पड़ता है |
अकेलापन एक ऐसी स्टेज है जिसमें अगर हम फंस गए तो हम और फंसते चले जाएंगे और परेशान रहने लगेंगे लेकिन अगर हम इससे दोस्ती कर लें और इससे परेशान होने की बजाय इसे एक अवसर के रूप में देखें तो यह हमें बहुत कुछ सिखा भी सकता है।
सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य स्वाभाविक रूप से अकेला नहीं रहना चाहता। भागदौड़ भरी जिंदगी में जब सब अपने-अपने काम में व्यस्त हैं और किसी के पास किसी दूसरे के लिए समय ही नहीं है, तो रिटायरमेंट के बाद अकेलापन और बढ़ जाता है। घर में हर कोई अपनी रफ्तार में चल रहा होता है। ऐसे में, अकेलेपन को एक बेचारगी के रूप में देखने के बजाय, हमें इसे आत्म-खोज का अवसर मानना चाहिए।
अकेलेपन को अपने अंदर समेटकर उसे समझना और उसके साथ दोस्ती करना । यह आत्मावलोकन का समय होता है, जो हमें खुद को बेहतर समझने और जीवन के सच्चे मूल्य को पहचानने का अवसर देता है। अकेलेपन का सामना करके हम आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ सकते हैं और अपने भीतर की गहराई को जान व समझ सकते हैं।
बस, परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन अथवा विपरीत क्यों न हो, हम प्रेम का दामन न छोड़ें, |
मुसकुराते हुए चरैवेति चरैवेति अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर रखें |
आप सबका दिन सपरिवार आनंदमय हो।
चल अकेला,चल अकेला ,चल अकेला
तेरा मेला पीछे छूटा राही ,चल अकेला !
स्नेहिल शुभकामनाओं सहित
आपकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती