Chapter:– 1 आरोही का परिवार
आरोही का घर
सुबह का वक्त 8:00 बज रहे थे ।
मोहनजी नीचे आए । विकासजी सोफे पे बैठे थे और चाय पीते हुए टीवी पर समाचार देख रहे थे ।
" और भैया क्या है आज के समाचार में ? " मोहनजी ने आते हुए विकास्जी से पूछा । " इस महंगाई के जमाने में क्या समाचार होंगे ! " विकासजी ने चाय पीते हुए कहा ।
" अब तो ये हररोज की समस्या है भैया। उसमे हम जैसे मिडिल क्लासवाले कहा जाए भला पेट्रोल से लेकर सब्जियां सब आसमान के भाव छू रहे है । " मोहनजी टीवी देखते हुए बोले ।
तभी पूर्णिमाजी और आस्थाजी किचन से चाय नाश्ता ले आई । वो सब बैठ कर चाय नाश्ता कर रहे थे । तभी मोहनजी ने आस्थाजी से पूछा, " भाभी हमारी राजकुमारी कही नजर नही आ रही ! कहा है ? "
" वो शिव मंदिर गई है । पर पता नही आज उसे इतनी देर क्यों हो गई आने में ! " कहकर आस्थजी चिंता करने लगी । तभी पूर्णिमा जी बोली, " चिंता मत कीजिए भाभी, वो आ जाएगी । " " हां, भाभी पूर्णिमा सही कह रही है। आप आराम से नाश्ता कीजिए ।
" आ जाएगी नही, आ गई चाचू । " सबने मैन डोर की ओर देखा, वहा आरोही ही खड़ी थी । सफेद कलर का कुर्ता और चूड़ीदार पहने खुले बाल, गोरा रंग, फूल जैसा खिला हुआ चेहरा ।
आरोही के लिए उसका परिवार और उसका सपना ही सबकुछ था । आरोही के परिवार मे उसके पिता विकास त्रिवेदी, माता आस्था त्रिवेदी, चाचा मोहन त्रिवेदी, और चाची पूर्णिमा त्रिवेदी थे । उनके अलावा उसका बड़ा भाई आकाश और छोटा भाई साहिल था । आकाश और आरोही विकासजी और आस्थाजी के संतान थे और साहिल मोहनजी और पूर्णिमाजी का बेटा था । आरोही घर की एकलौती और लाडली बेटी थी ।
आरोही का इस साल कॉलेज का पहला साल था । वह पठाई में बहुत होनहार थी । वो मुंबई के एच. डी. कॉलेज की स्टूडेंट थी । आरोही का भाई आकाश एक सिविल इंजीनियर था । और उसका छोटा भाई अपनी पढ़ाई लंदन में अपनी मौसी के घर रहता था ।
आरोही आकर उसके पापा यानी विकासजी के पास आकर बैठ गई । " तुझे आने में इतनी देर क्यों लग गई ? " आस्थाजी ने आरोही को सवाल करते हुए कहा । आरोही ने जब घड़ी में देखा तो 8:30 बज रहे थे । ये देखकर वह हैरान हो गई । " अरे बापरे " " सॉरी मम्मा मुझे पता ही नई चला । आज रविवार है इसलिए में कृष्णा मिस्ठान भंडार गई थी जलेबिया लाने । " उसने अपने हाथ को ऊंचा करके बताया उसके हाथ में जलेबी का पैकेट था ।
सब यह देखकर मुस्कुराने लगे । और आस्थाजी बोली, " कोई ऐसा रविवार नई जिस रविवार को तुम जलेबी लाना भूलो " " मम्मा हफ्ते में एक ही रविवार आता है बाकी दिन सब काम में लगे तो इसलिए संडे को सिर्फ और सिर्फ आराम और मौज करना चाहिए"
" लाओ आरू, मे जलेबिया निकलकर लाती हूं । " पूर्णिमाजी खड़े होकर बोली । " आप बैठिए चाचीजी में निकलकर लाती हूं । " कहकर आरोही किचन में चली गई ।
आरोही जलेबी लेकर बाहर आई तब तक आकाश भी नीचे आ चुका था । आरोही ने सबको जलेबियां दी और खुद भी सोफे पर बैठ गई ।
" आरु कैसी चल रही है तुम्हारी पढ़ाई ? " विकासजी ने पूछा । "एकदम बढ़िया पापा , बस एक महीने बाद एग्जाम्स शुरू होनेवाले है । " " हम्म्म " विकासजी ने कहा ।
थोड़ी देर बाद सब अपने काम में लग गए । आस्थाजि ओर पूर्णिमाजी किचन में चली गई । आकाश और आरोही अपने रूम में चले गए । विकासकी न्यूजपेपर पढ़ रहे थे और मोहनजी टीवी देख रहे थे ।
आरोही का घर बड़ा था । उसमे गेट के पास एक ओर छोटा बगीचा और दूसरी तरफ पार्किंग की जगह थी जिसमे एक फैमिली कार और दो चार टू व्हीलर रखे हुए थे । घर के अंदर एक बड़ा होल था उससे अटैक छोटा पूजाघर और किचन विकासजी और मोहनजी का कमरा नीचे ही था । जबकी ऊपर के फ्लोर पे तीन कमरे और एक बड़ी बालकनी थी । उसमे से एक कमरा आकाश का, दूसरा आरोही का था । और दूसरे माले पे टेरेस थी ।
आरोही अपने रूम में बैठे अपने फोन में सोशल मीडिया स्क्रॉल कर रही थी । वो बहुत बोर होने लगी । उसने कुछ सोचा और नीचे चली गई । उसने आकर विकासजी से कहा, " पापा चलीए ना आज हम सब कही बाहर चलते । " " कहा जाए आरु ? " विकासजी ने पेपर पड़ते हुए पूछा ।
" कही भी लेकिन आज हॉलीडे है तो घर पर ही नहीं रहना सब बाहर चलते है प्लीज ! और कलभी तो 2 अक्टूबर की छुट्टी है । " आरोही ने कहा ।
" मोहन सब को बुलाओ तो ! " विकासजी ने कहा ।
" जी भैया " मोहनजी ने कहकर । आकाश, आस्था और पूर्णिमाजी को बुलाया । सब आईटी विकासजी ने कहा, " आस्था आज कुछ काम है घर पे ? "
आस्थाजी ने सोचते हुए कहा, " जी काम तो कुछ खास नहीं बस अब खाना बनाना और दूसरा घर का रोज काम । क्यू ? "
ठीक है तो खाना मत बनाइए सब तैयार हो जाइए हम सब कुलदेवी के मंदिर जा रहे है । और कुछ सामान भी पैक कर लीजिएगा क्युकी कल भी छुट्टी है इसलिए.. "
" ठीक है ! " कहकर वो दोनो चली गई । आकाश भी चला गया ।
" थैंक्यू सो मच पापा, में भी रेडी होकर आती हूं, और चाचू, पापा आप दोनो भी जाइए तैयार हो जाइए । " कहकर आरोही जट से अपने रूम में चली गई ।
11:30 बज चुके थे ।
आकाश तैयार होकर नीचे आया । विकासजी और मोहनजी तैयार हो चुके थे । मोहनजी कार रेडी करने चले गए । तभी आस्थाजी और पूर्णिमाजी भी आ गई थी । उनके हाथ में बैग्स थे । आकाश ने उनकी मदद कर बैग्स कार में रख दीजिए ।
विकासजी ने आरोही को बुलाते हुए कहा, " सब तैयार हो गए आरू, तुम नही आई और देर लगेगी क्या " " नही नही पापा में भी आ गई । " आरोही तैयार होकर एक हाथ में बैग लटकाए दूसरे हाथ से बैग की चैन बंद करती हुई फटाफट नीचे आ रही थी।
सब आकर कार में बैठे । मोहनजी ड्राइविंग सीट पर बैठे थे। विकासजी उनकी, बाजू वाली सीट पर और बाकी सब यानी आश्ताजी , पूर्णिमाजी, आकाश और आरोही पीछे बैठे थे ।
सब कार में बैठ कर चले गए ।
*********************************
हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवेल "Tu Humsafar Hai" और अगला भाग का इंतजार कीजिए और ये कहानी पढ़िए "मातृभारती" पर।