निगाहों से पीने में मना नहीं ज़ाम पर निषेध क्यूँ?
अदाओं से पीने में मना नहीं ज़ाम पर निषेध क्यूँ?
रफ़्ता रफ़्ता बहकता गया रस्म ए चमन आज फ़िर l
फ़िज़ाओं से पीने में मना नहीं ज़ाम पर निषेध क्यूँ?
खुली हवाओं में गेसुओं को झटका कर निकलती l
बहारों से पीने में मना नहीं ज़ाम पर निषेध क्यूँ?
गुमसुम हो गए है आज कल अल्फाज़ मिरे जाने क्यूँ?
सदाओं से पीने में मना नहीं ज़ाम पर निषेध क्यूँ?
बोलने के तरीक़े पर वारी गई है महफ़िल की दुनिया l
गजलों से पीने में मना नहीं ज़ाम पर निषेध क्यूँ?
१६-९-२०२४
महफ़िल में सरेआम दिल की बात सुनाएँ तो सुनाएँ कैसे?
पर्दानशी पर्दा करके बैठे हैं उसे बुलाएँ तो
बुलाएँ कैसे?
जिंदगी की भागमभाग में चैन और सुकून खो गया है l
सोये हुऐ एहसास उलफत को जगाएँ तो
जगाएँ कैसे?
ज़िन्दगी में अनायास ही अनचाही बंदिशे
मिली है तो l
रूठी हुईं नादां जिद्दी तकदीर को मनाएँ तो मनाएँ कैसे?
हृदय में छुपी है मिलन की आश पनप रही भीतर ही भीतर l
कौसो दूर जाकर बसे को गले से लगाएँ तो लगाएँ कैसे?
तर्क ए तअल्लुकात के एहसास को जिन्दा रखने के लिए l
किस्मत पर छाएं हुए गम के बादल हटाएँ तो हटाएँ कैसे?
१७-७-२०२४
बाधाएं ज़िन्दगी में लड़ना सिखाती हैं l
हौसलों से आगे बढ़ना सिखाती हैं ll
मुश्किलों का डट के सामना करके वो l
तरक्की की सीडी चढ़ना सिखाती हैं ll
ये जीवन है औ जीवन का यहीं रंगढ़ंग l
तन से आलस को हरना सिखाती हैं ll
एक रास्ता बंध हो तो सकारात्मक हो के l
नये रास्तों की खोज करना सिखाती हैं ll
डर के आगे जीत हमेशा होती है ये कहके l
जीवन में खुशी का रंग भरना सिखाती हैं ll
१८-९-२०२४
फ़कीरा का कोई ठिकाना नहीं होता हैं l
फकीरी में आसमान के नीचे सोता हैं ll
खामोशी का चोला ओढ़कर भीतर से l
मस्ती में चैन और सुकून को बोता हैं ll
न खुशी की चाह न गम को रोना बस l
मस्त हो कभी हस्ता तो कभी रोता हैं ll
आवरदगी तो देखो अल्लड़ मौज में l
खुदा की आशिकी में दिन संजोता हैं ll
कोशिश-ए -आराइश -चमन महकाने l
लोगों के दिलों में सुख को पिरोता हैं ll
१९-९-२०२४
तेरी शराफत के नाम जिंदगी गुजार देगे l
जब भी जी चाहेगा तब तब पुकार लेगे ll
सीधे सीधा जीवन किसीका नहीं जाता l
जो परिस्थिति होगी उससे निबाह लेगे ll
चांदनी रात के दिन चाँद देखने के बहाने l
छत से जी भरके हुस्न को निहार लेगे ll
दुनिया की बुरी नज़रों से बचने के लिए l
आज पलकों की छाँव के तले पनाह लेगे ll
दूर तक साथ निभाने के वास्ते सर झुकाए l
जहा ग़लती होगी तुरन्त वहां सुधार लेगे ll
२०-९-२०२४
वो रिमझिम बारीश की तरह नहीं बरसते ये शिकायत हैं l
थोड़ा बहुत भी बरसते है ये भी खुदा की इनायत हैं ll
वहां उदास होने का कोई अधिकार ही नहीं होता है l
जहां पर हसी होठों पर सजाएं रखने की
रवायत हैं ll
ये जो गुलशन से गुज़र रहे हो तो तमिस रखना जरा l
आहिस्ता से पेश आना हुस्न पर छाई हुई नजाकत हैं ll
सुनो शोर मचाने की जरूरत नहीं है अपनी बेवफाई का l
ग़र जाना चाहते हो तो चुपचाप जाने की इजाजत हैं ll
एतमात रखना सदाकत पे दिल से चिपकाए रखेंगे हुस्न को l
जी जान से हिफ़ाज़त करेंगे क्यूँकी किसीकी अमानत हैं ll
अब कोई उम्मीद नहीं है ज़माने से l
क्यूँ डर रहे हो नज़र को मिलाने से ll
२१-९-२०२४
बसंत की महकती फ़िज़ाओं में मोहब्बत पनप रहीं हैं l
इश्क़की मदमस्तभरी अदाओं से जवानी छलक रहीं हैं ll
छू गया जब ख्याल दिलों दिमाग़ को और वही जब l
छेड़ दिया ज़िक्र तब महफिल में धड़कने बहक रहीं हैं ll
हवाओं ने शोला भड़का दिया है उल्फत का भीतर में l
गुस्ताख़ दिल में नशीली मदहोश यादें महक रहीं हैं ll
जिससे उम्मीद नहीं थी वहीं लोग कमाल कर गये हैं l
हिस्से में सुहानी शाम आई तो बीजली गरज रहीं हैं ll
चार दिन की जिंदगी में जीने का मुकम्मल मजा लेना है l
सखी आहिस्ता आहिस्ता से जुस्तजू संभल रहीं हैं ll
२३-९-२०२४
सांझ ढलते यादों का बवंडर आ जाता हैं l
निगाहों में अश्कों का बादल छा जाता हैं ll
सुहाने नशीले लम्हों की कशक सजते ही l
दिल ए नादाँ को अकेलापन भा जाता हैं ll
आते जाते रहबर बहकी हुईं फिझा ओ में l
नीले आसमाँ नीचे रसीले गाने गा जाता हैं ll
चांदनी रातों में यादों की चादर तान लेते ही l
साँसों का पँछी चैन का लम्हा पा जाता हैं ll
बहुत दूर से कदमों की आहट पाते ही l
होठों पर मुतमईन मुस्कान ला जाता हैं ll
२४-९-२०२४
ताउम्र वक्त की रफ़्तार साथ कदम मिलाकर चलते रहे हैं l
जिस तरह चाहा ख़ुदा ने उस तरह ज़िंदगीभर पलते रहे हैं ll
सभी झंझट से दूर रहकर साथ साथ चलना चाहते हैं तो l
दिन को रात कहने को बोले तो बिना झिझक कहते रहे हैं ll
जो भी दिया ख़ुदा ने सोच समझ कर दिया है यही सोच के l
खुशियां संजोने के लिए संग समय की धारा में बहते रहे हैं ll
वक़्त से पहले कभी किसीको कुछ भी नहीं मिलता यहाँ l
रंजों आलम को खामोश और चुपचाप रहकर सहते रहे हैं ll
किसी भी परवाह किये बग़ैर अपनी मस्ती में मग्न होकर l
अपनी ही बसाई दुनिया से खुशी से फूलते फलते रहे हैं ll
२५-९-२०२४
क्यूँ आज भी बेटियाँ निर्भय होकर जी नहीं सकती?
बेखौफ होकर घर से बाहिर निकल भी नहीं सकती?
जालिमों ने कुचल डाली कच्ची मासूम सी
कली को,
लाख कोशिश कर निर्भया की जान सी नहीं सकती?
जहाँ हर गली हर चौराहे पर माताजी की पूजा हो वहाँ l
बारहा बेटियाँ की कुर्बानी का ज़हर माँ पी नहीं सकती?
बेटी को लक्ष्मी का दर्जा दिया है भारत देश में तो आज l
अकेले क्यूँ जी चाहें तब कहीं जा ही नहीं सकती?
क़ायनात तो सब के लिए अपना योगदान देती है फ़िर l
एक ही जैसे है सब तो मनचाहा क्यूँ जी नहीं सकती?
२६-९-२०२४
चलते हुए क़दम क़दम पे सँभलते क्यूँ हैं l
डरना है तो सड़कों पर निकलते क्यूँ हैं ll
भीतर का एकांत शोर कर रहा हैं l
खुद ही खालीपन को भर रहा हैं ll
मतलबी का मतलब निकल गया तो l
अब मिलने का मतलब खर रहा हैं?
वक्त रहते वादा ना निभा सका और l
निगाहें चार करने से भी डर रहा हैं ll
ना जाने क्या था, जो कहना है कि l
प्यारभरी नज़रों से चैन हर रहा हैं ll
आज हुस्न और इश्क़ के मुकाबले में l
महफ़िल में जाम ए शबाब झर रहा हैं ll
२७-९-२०२४
कृष्ण की बांसुरी गोपियों को दिवानी बना रहीं हैं l
नशीले सुमधुर राग रागिनी छेड़ कर बुला रहीं हैं ll
वृंदावन की कुंज गलियों में महकी हुईं
फिझाओ में l
खुशियों का शमा बांध वन उपवन को सजा रहीं हैं ll
भीगी पलकों के साथ विरह वेदना में तरबतर हुईं l
दर्शन के प्यासी राधा के दिल की बात बता रहीं हैं ll
नैना-निर्झर, विरह-विकल मन, कबसे राह निहार रहे l
कृष्ण के प्यार में डूबे हुए गोपियों को जगा रहीं हैं ll
नटखट नंद किशोर ने परेशान करके रख दिया है कि l
चांदनी रात में रूठी हुई राधा रानी को मना रहीं हैं ll
२८-९-२०२४
दिले नादाँ के लिए सुकूं कहा ढूंढूँ?
चाहते हैं आज खूबसूरत बला ढूंढूँ ll
महफ़िलों की रौनक में जा बैठकर l
क़ायनात में हर कहीं पे मजा ढूंढूँ ll
दो घड़ी को नज़रों को ठंडा करने l
गली से गुजरते हुस्न में अदा ढूंढूँ ll
वादा करके नहीं लौटे आज तक l
ख्वाबों और खयालों सदा ढूंढूँ ll
दिल में उम्मीदों के दिये जलाकर l
रब बनाये हुए इन्सां में रबा ढूंढूँ ll
२९-९-२०२४
ख्वाबों की छांव तले ताउम्र जीना चाहते हैं l बेपनाह बेहिसाब निगाहों से पीना चाहते हैं ll
प्यार की रिमझिम झिलमिलाती बारिश में l
तमन्नाओं को उम्मीदों से सीना चाहते हैं ll
जिन्दगी में हर कदम साथ निभाने वाला l
हाथों में हमसफर की लकीरा चाहते हैं ll
मोहब्बत में बेलगाम मचलते तड़पते हुए l
जज़्बातों को बांधने का सलीका चाहते हैं ll
इक अर्सा तरसे है छोटी मुलाकात को l
प्यार में इंतज़ार का नतीज़ा चाहते हैं ll
३०-९-२०२४