nakl ya akl-69 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | नक़ल या अक्ल - 69

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नक़ल या अक्ल - 69

69

बहू कहाँ है?

 

 

डॉक्टर ने किशोर और राधा के माँ-बापू का मायूस का चेहरा देखा वह बोले,

 

ऐसे घबराने से कुछ  नहीं होगा, हम भी कोशिश  करेंगे, आप भी करिए। अपने  गॉंव  जाए, लोगों  से बात करें, क्या पता कोई  राजी  हो जाए। यह सुनकर वे  लोग डॉक्टर  के केबिन से निकले और बाहर  बिछे बेंच पर आकर बैठ गए। तभी पार्वती  बोली,

 

“सुनो !! जी मैं तो कहती हूँ कि आप और दामाद जी गॉंव जाए, मैं राधा के पास रुकती हूँ।“ किशोर भी उसकी बात से सहमत हो गया और बृजमोहन के साथ गॉंव चलने को राजी हो गया।

 

किशोर ने अपने घरवालों  को सारी  स्थिति  समझाई  तो सरला सिर  पकड़कर  बोली, “एक तो दहेज़  नहीं दिया, ऊपर से अपनी बीमार लड़की हमें थमा दी”। अब लक्ष्मण  प्रसाद ने उसे घूरकर  देखा तो वह चुप हो गई।

 

देख !! किशोर मैं तो खेतों में मेहनत करता हूँ, मैं तो दे ही नहीं पाऊँगा।

 

बापू, आप माँ को तो समझा सकते हैं। सरला तुनककर  बोली, “मैं क्यों अपनी जान जोख़िम  में  डालो।“

 

माँ  एक किडनी  से भी काम चल सकता है।  आप चाहे  तो डॉक्टर से बात कर लीजिए।

 

मुझे किसी से बात नहीं करनी, एक पराई  लड़की के लिए मैं अपनी जान जोखिम में नहीं डालने वाली ।

 

अगर  मुझे किडनी देनी  होती तो ???

 

“तेरी बात और है, तू मेरा खून है।“ उसने इतराते  हुए कहा । यह सुनकर  केशव बुझे मन से घर से निकल गया। बृजमोहन ने भी पूरे  गॉंव में  बात की,  मगर कोई फायदा  नहीं हुआ। सरपंच  ने गॉंव  वालों को बुलाकर समझाया भी, मगर उनके पास अपने तर्क थें, “बूढ़े कहने लग गए कि मरने के बाद हमें  शांति नहीं मिलेगी, जवान ने कहा कि अभी तो हम जवान है, हम क्यों दें।‘’ मध्यम  उम्र के  लोंगो  ने खेतों  में  काम करने का हवाला दे दिया। सरपंच खुद दमे का मरीज  है और उसकी बेटियाँ  है जो दूसरे गॉव में ब्याही हुई है।  अब बृजमोहन  ने सभी गॉव वालों के आगे हाथ जोड़कर कहा, “भगवान वक्त सबका लाता है, आज मेरी बेटी पर विपदा पड़ी,  कल तुम्हारे साथ क्या होने वाला है, तुम्हें क्या पता।“ अब सबकी नज़रें झुक गई। तभी एक आवाज ने उन्हें होंसला दिया, “काका मैं चलता हूँ आपके साथ।“ सब ने देखा तो मुरलीधर है। बिरजू और निर्मला भी राधा की मदद करना चाहते हैं, मगर अपने सिर पर आने वाली मुसीबत को लेकर वे पहले ही परेशान है। 

 

मुरलीधर की किडनी की जाँच  की गई तो वह  भी राधा के किसी काम न आई। उसने बृजमोहन  को दिलासा  देते हुए कहा, “काका मैं  पूरी  कोशिश  करूँगा कि राधा की मदद कर सको।“ उसके जाते ही किशोर  बोला, आप दोनों घर जाये  मैं  राधा के पास रुकता हूँ और आप रोज़ रोज़ न आये, आपकी सेहत  के लिए भी ठीक नहीं है।  अब राधा मेरी जिम्मेदारी  है।“ किशोर की बात सुनकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई।  दोनों जब बस से वापिस गॉंव  की ओर  जा रहें हैं तो पार्वती  बोली, “दामाद लाखों में  एक है, मगर इसके माता पिता ने एक बार झाँककर  देखा भी नहीं कि  उनकी बहू  के क्या हाल  है।  यहाँ  तक कि  सरला बहनजी  तो अपने गुर्दे की जाँच  करा  सकती थीं, अगर  समधी ही साथ नहीं देंगे तो बाहर  वाले क्यों देंगे।“  “कह तो तुम सही रही हो।“  बृजमोहन ने बस की खिड़की  से देखते हुए कहा।  “आप किशोर से पूछे कि  माँजरा  क्या है।“  “क्या पूछो ! पार्वती, यह समय  इन  बातों  का नहीं है, राधा के बारे में  सोचो, किसी  तरह कोई अपना एक ही गुर्दा देने के मान जाये तो गनीमत हो”  उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा। 

 

 

किशोर राधा से हँसकर बातें  कर रहा है ताकि उसे एहसास न हो कि  उसकी  हालत  काफी गंभीर  है।  नर्स उसके लिए रात का खाना लायी तो राधा  उबला हुआ खाना देखकर बोली, “मुझसे यह बेस्वाद  खाना नहीं खाया जाता।  डॉक्टर से पूछो  कि  छुट्टी  कब मिलेगी।“

 

अब अस्तपताल में  ऐसा ही खाना मिलेगा। ले खा लें, उसने उसे सहारा देकर बिठाया और अपने हाथों  से खाना खिलाने  लगा। 

 

रात का समय है, राधा तो सो चुकी है, मगर किशोर की आँखों  में  नींद नहीं है।  उसकी नज़र  राधा के मुरझाये  चेहरे से नहीं हट  रही है। नर्स ने उसे सोने के लिए कहा तो वह पास में  ज़मीन पर दरी बिछाकर  सो गया।

 

काजल ने अपने माँ बापू से कहा कि  वो भाभी  को किडनी दे दें तो सरला ने उसे बुरी  तरह झाड़कर सोने के लिए कह दिया। तभी  लक्ष्मण प्रसाद ने कहा, मैं  कल बहू  को देखने शहर  जा रहा हूँ।“  “क्या ज़रूरत  है?” तू तो बेवकूफ है। गॉंव  में अगर पता चला कि  बीमार  बहू  को देखने साँस  ससुर  नहीं पहुँचे तो लोग तरह-तरह की बातें  करेंगे।“ “तुम जाओ, मैं तो नहीं जाऊँगी।“  उसने करवट बदलते  हुए ज़वाब  दिया। 

 

राजवीर अपने कमरे में  बैठा  मोबाइल पर कोई गेम खेल रहा है, तभी उसे एक अनजान नंबर से फ़ोन आया.

 

“हेल्लो !!

 

हैल्लो!!! राजवीर?

 

कौन ?

 

भाई !! मैं दिनेश,  भूल गया क्या?

 

अरे !!! भाई आपका दूसरा नंबर मेरे पास है । 

 

अच्छा सुन !! तेरे भले की बात है, कल दोपहर  एक बजे मुझे मेरे थाने  से दूर  एक स्टेडियम  है, वहाँ  मिल लियो। 

 

कुछ खास है? क्या?

 

हाँ बहुत ख़ास है!!!

 

ठीक है भाई कल मिलता हूँ। “      

 

कल सुबह गिरधर  ने गोपाल को फलों  की टोकरी  और मिठाई  के डिब्बे लाने को कहा तो वह बोला,

 

बापू किसलिए?

 

तेरे जीजाजी अपने परिवार के साथ आने वाले हैं। 

 

बापू  अब भी सोच  लो, दीदी नहीं जाने वाली, उनकी ख़ुशी  में  ही हमारी ख़ुशी  है।

 

बकवास बंद कर और जितना कहा है, उतना कर।  उसने गोपाल को गुस्से से देखा। 

 

ठीक समय  पर सुनील अपने भाई और माँ बाप के साथ आया और उनके बैठते ही नौकर उनकी खातिरदारी  में जुट  गए।  अब सुनील की माँ ममता बोली, “भाई साहब  हमारी  बहूको बुलाए, मैं बात करती हूँ, जो गीले शिकवे है, मैं दूर  करती हूँ।“ 

 

“जी बिलकुल !!!” “गोपल जा दीदी को बुला  ला।“ अब गिरधर  उनसे उनका हालचाल  पूछने लगा कि  तभी गोपाल बाहर  आया और बापू  को अपनेपास आने का ईशारा  किया।  गिरधर उसके पास गया तो वह बोला, “बापू !! दीदी घर पर नहीं है।“  “अरे! बाहर  गई  होगी, जा देखकर  आ।“ वह बाहर  से थोड़ी  देर बाद  लौटा  तो उसने अपने बापू  को देखकर  ना में  सिर  हिलाया।  “क्या  बता  है, हमारी बहू  कहाँ  है?” ममता  ने दोबारा पूछा तो गिरधर  सोच में  पड़  गया? “आखिर निर्मला कहाँ  जा सकती है,” “कही दीदी  ने ख़ुद  को नुकसान तो नहीं पहुँचा  लिया।“ गोपाल को भी उसकी चिंता होने लगी।