nakl ya akl-64 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | नक़ल या अक्ल - 63

The Author
Featured Books
Categories
Share

नक़ल या अक्ल - 63

63

शहर

 

अब नंदन और निहाल ने एक दूसरे को देखा तो नंदन बोल पड़ा, “बस इसकी कमी थीं!!” नन्हें ने भी हाँ में सिर हिला दिया। तभी सर ने पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” उसने ज़वाब दिया, “राजवीर।“ अभी वो घुसा ही था कि उसके पीछे रघु भी अंदर आ गया। “गुरु चेला दोनों साथ ही आए हैं।“ निहाल धीरे से बुदबुदाया। राजवीर और रघु एक कोने वाली सीट पकड़कर बैठ गए और फिर से सर ने पढ़ाना शुरू  कर दिया।

 

निर्मला छत पर कपड़े सूखा रही है, तभी सोनाली  उसके पास आकर खड़ी हो गई। निर्मला ने उसे देखते हुए कहा,

 

कुछ कहना है क्या???

 

नहीं. कुछ पूछना है???

 

क्या!!! पूछ!!

 

कल रात को आप बिरजू भैया को देखते हुए हाथ क्यों हिला रही थी, अब उसके हाथ कपड़े सुखाते हुए रुक गए फिर उसने उसकी तरफ देखा तो वह सोना की सवालियाँ नज़रों को अनदेखा करती हुई फिर से कपड़े  सुखाने लगी।

 

बताओ !! दीदी आप और बिरजू भैया कब से इतने अच्छे दोस्त बन गए। 

 

“जबसे उसने मेरी जान बचाई है।“ सोनाली हैरान है।  अब निर्मला ने उसे नदी में  डूबने वाली बात बता दीं। सोनाली ने उसका हाथ पकड़कर अपने सिर  पर रखते  हुए कहा, “ख़बरदार  आपने दोबारा ऐसी  हरकत  की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। खाए ! मेरी कसम”। वह हँसती हुए बोली, “नहीं होगा।“ अब गोपाल ने सोना को आवाज लगाकर कहा कि “उसका फ़ोन बज रहा है।“

 

क्लॉस चल रही है और सब पढ़ने में  लगे हुए हैं। तभी इस दौरान राजवीर और निहाल की नज़रे  मिली तो वह एक दूसरे को बुरी तरह घूरने  लग गए। अब सर की आवाज सुनकर दोनों का ध्यान फिर पढ़ाई  की ओर आ गया।

 

सोना ने कुछ देर फ़ोन पर बात की और अपने बापू को फ़ोन पकड़ाते  हुए कहा,

 

बापू, सर का फ़ोन है।

 

कौन से सर का ?

 

कॉलेज के प्रोफेसर का।

 

उन्होंने अब फ़ोन लिया और उनकी बात ध्यान से सुनने लगे। 

 

क्लास खत्म होने के बाद, राजवीर निहाल से बाहर टकराया तो वह बोल पड़ा, “तेरी तो आदत है, मेरे रास्ते में  आने की ।“ 

 

यह तो वक्त बताएगा कि कौन किसके रास्ते में आ रहा है। राजवीर यह बोलकर मुँह बनाते हुए वहाँ  से निकल गया ।

 

समीर ने भी दोनों के हावभाव पढ़  लिए।  वह अपने दोस्तों से बोला, “मुझे यह राजवीर अपने काम का बंदा  लगता है, लगता है, इससे बात करनी  पड़ेगी।“  उसके दोस्त भी उसकी बात से सहमत है, वे अब राजवीर और रघु की तरफ बढ़ने लगे जो कोचिंग से निकलकर सड़क के एक कोने में खड़े हैं।

 

 रिमझिम लाइब्रेरी में बैठी नोट्स बना रही है कि  तभी उसकी पास विशाल आया,

 

और रिमझिम नोट्स बन गए?

 

अभी भी लगी हुई हूँ ।

 

मैं कह रहा था कि सभी पिक्चर  देखने जा रहें हैं, तुम भी चलो न!!!

 

अच्छा !!! लेकिन मैं नहीं जा सकती, मुझे बहुत काम है। उसने नोट्स बनाते हुए ही ज़वाब  दिया। 

 

एक दिन में क्या फर्क पड़ जायेगा।

 

मैं नहीं जा पाऊँगी विशाल. आई एम सॉरी!!  विशाल उसे एक नज़र देखते हुए, मुँह लटकाकर वहाँ से  चला गया। 

 

शाम को बिरजू और निर्मला उसी जगह यानी उस झोपड़ीनुमा अस्तबल में मिले तो वह बोली, “आज सोनाली मुझसे तुम्हारे और मेरे बारे में पूछ रही थी, उसने कल रत को हमे देख लिया था ।“ 

 

अच्छा !! तो तुमने क्या कहा ? उसने हैरानी से पूछा।

 

 कहना क्या है!!!  मैंने उसे बता दिया कि तुमने मेरी जान बचायी थीं।

 

और कुछ नहीं बताया ?

 

ज़्यादा बात नहीं हो पाई । अब बिरजू ने उसे अपनी बाँहों में लेते  हुए कहा, “बहुत जल्द सब ठीक हो जायेगा।“ 

 

समीर और उसके दोस्तों की राजवीर और रघु से अच्छी दोस्ती हो गई।  जब दोनों को पता चला कि दोनों ही जमींदार  के बेटे है तो याराना और खास होता नज़र आया । उनकी दोस्ती  निहाल और नंदन को भी नज़र आने लगी।  उसने नंदन को समझा दिया कि  ‘हम यहाँ सिर्फ पढ़ने आए  है, हमें  इनसे कुछ नहीं लेना देना ।  हमारे माँ बाप के और हमारे सपने एक ही है और हमें उन्हें पूरा करना है।‘ नंदन भी उसकी बात को समझ गया ।  अब ऐसा कई बार होता कि  कभी समीर या राजवीर नन्हें को जानबूझकर कुछ ऐसा कहते  कि वो भड़क  जाए, मगर वह उन सबको  अनदेखा करते हुए अपने गुस्से पर काबू रखता।  एक दिन वो ढाबे में  खाना खा रहें हैं, तभी वहाँ पर रिमझिम भी आ गई। उन्होंने ही उसे रात के खाने पर बुलाया था। उसके आते ही उन्होंने उसके लिए भी खाना आर्डर किया।

 

खाना खाते हुए वे तीनो बात करते  रहें  ।। रिमझिम उसे अपने कॉलेज और नए दोस्तों के बारे में  बताती तो वहीं  नन्हें  भी उसे अपनी पढ़ाई  और नए  माहौल  के बारे में बता रहा है। खाना खाने के बाद तीनों ढाबे से निकले तो निहाल ने  उससे कहा,  “रिमझिम मैं और नंदन  तुम्हें छोड़ आते हैं।“ “अरे! कोई नहीं मैं चली जाऊँगी ।“ “यह शहर है, यहाँ रात को इस तरह अकेले जाना ठीक नहीं है।“ तभी गाड़ी  लेकर  राजवीर और समीर भी वहीं से गुज़रे और तीनों को बाते करते देखकर उन्होंने गाड़ी वहीं  रोक दीं। राजवीर ने उसे ज़ोर से आवाज लगाई,

 

रिमझिम आ जाओ, मैं छोड़ देता हूँ। उसने उस तरफ देखा तो उसे दाँत दिखाकर हँसते हुए समीर और राजवीर दिखें। 

 

नहीं. राजवीर मैं चली जाऊँगी। अब वह फिर नन्हें से बात करने लग गई। 

 

नन्हें! यह यहाँ भी आ गया। 

 

“तुम्हें बताया तो था।“ उसने मुँह बनाते हुए ज़वाब  दिया।  अब गाड़ी  में  बैठे समीर ने कहा, “लगता है कि  निहाल की ख़ास लगती है।“ राजवीर ने जानबूझकर ज़ोर से कहा, “निहाल की गर्लफ्रेंड समझ लें।“  अब दोनों  और से हँसने  लगे गए।  निहाल का मन किया कि एक ज़ोरदार घूंसा दोनों के मुँह  पर दे मारे।  रिमझिम ने उसे चेहरे के हावभाव  देखकर कहा, “निहाल उन पर ध्यान न दो, चलो हम लोग ऑटो  में चलते हैं “और फिर नंदन ने ऑटो रोका और उसमे वे तीनों बैठ गए।

 

कुछ देर बाद, वह उसकी कॉलोनी में पहुँच गए, जहाँ वो रहती है। तीनों ऑटो से उतरे निहाल ने ऑटोवाले को वापिस जाने के लिए भी मना लिया।  “नन्हें, कभी भी गलती से राजवीर के मुँह  मत लगना, तुम्हें भी पता है कि शहरों में पंचायत नहीं होती।“  “मुझे पता है, इसलिए उससे दूर  रहता हूँ।“  अब उसने दोनों से विदा ली और अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। वे दोनों भी उसी ऑटो में वापिस घर चल दिए। 

 

उसने देखा कि  उसके कमरे का ताला खुला हुआ है। उसे बड़ी हैरानी  हुई, कई  मकान मालकिन अंदर तो नहीं है??? “पर वो तो ऐसे कभी नहीं आती।“ वह अब थोड़ा डर गई। फिर उसे अंदर से कुछ खटखट की आवाजें आई तो वह सड़क की ओर भागी तो देखा कि नन्हें और नंदन तो वहाँ से जा चुके है। उसने सोचा मकान मालकिन के पास जाओ, मगर उनके घर की लाइट भी बंद है। ‘एक बार अंदर जाकर देखना ही पड़ेगा। ‘अब उसने कमरे के पास रखा, टूटा हुआ झाड़ू हाथ में उठा लिया और चुपचाप अंदर की ओर जाने लगी। कमरे में जाकर देखा कि वहाँ की लाइट जल रही है। तभी एकदम से किसी ने उसे पीछे से आकर पकड़ लिया और वह ज़ोर से चिल्लाई।