होली के रंग में रंगी प्रेम की दास्तान in Hindi Drama by pinki books and stories PDF | होली के रंग में रंगी प्रेम की दास्तान

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होली के रंग में रंगी प्रेम की दास्तान

रामनलाल का जीवन एक संगीत प्रेमी का जीवन था, जो अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद गहरे अकेलेपन से जूझ रहा था। संगीत उनके लिए केवल एक रुचि नहीं, बल्कि उनके मन की शांति का माध्यम बन गया था। वह अक्सर अपने गमों को भुलाने के लिए रागों में खो जाते थे। उसी दौरान, इंशा से उनकी मुलाकात हुई, जो अपने समय की प्रसिद्ध तवायफ थी और अपनी ठुमरी गायकी के लिए विख्यात थी। इंशा की अद्भुत गायन कला ने रामनलाल के हृदय को छू लिया और उन्हें जीवन के उस खालीपन में एक नया सहारा मिला।

हवेली का सौंदर्य

कहानी का आरंभ एक पुरानी हवेली से होता है, जो शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। हवेली के चारों ओर हरे-भरे बाग-बगिचे हैं, जहां रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं। बगीचे में बसी चिड़ियों की चहचहाहट और हल्की हवा की सरसराहट ने वहां की शांति को और बढ़ा दिया था। दीवारों पर लगे पारंपरिक चित्र और सजावटी टाइल्स हवेली की ऐतिहासिकता को दर्शाते हैं, जबकि पुराने लकड़ी के दरवाजे और खिड़कियां संस्कृति की समृद्धि की कहानी कहते हैं।

होली का पर्व

जब होली का त्योहार नजदीक आया, तो हवेली में रंगों की बहार छा गई। हर जगह गुलाल की खुशबू और मिठाइयों की महक फैलने लगी। बच्चे बगीचे में खेल रहे थे, रंग-बिरंगे गुब्बारे उड़ रहे थे, और महिलाएं हंसते-खिलखिलाते हुए एक-दूसरे पर रंग डाल रही थीं। इस उल्लास भरे माहौल में, रामनलाल ने इंशा के कोठे पर जाने का मन बनाया। उन्होंने अपने मन में ठान लिया कि इस बार वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करेंगे।

इंशा का कोठा

इंशा का कोठा शहर के एक रईस मोहल्ले में था, जहां की रातें उसकी अद्भुत गायकी से महकती थीं। वहां आने वाले लोग उसकी कला के दीवाने थे, लेकिन इंशा के दिल में हमेशा एक खामोशी और दर्द छिपा था। उसकी खूबसूरती के साथ-साथ उसकी गायकी भी अनमोल थी, जो उसे बाकी तवायफों से अलग बनाती थी। रामनलाल उस दिन उत्साहित थे, लेकिन उनकी धड़कनें तेज़ हो रही थीं।

पहली मुलाकात का जादू

जब रामनलाल इंशा के कोठे पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां का माहौल रंगीन लाइटों और संगीत से भरा हुआ था। इंशा ने उन्हें देखते ही मुस्कुराते हुए स्वागत किया। "सेठ रामनलाल, आप तो बिन बुलाए ही आ गए," उसने चुटकी लेते हुए कहा। रामनलाल ने झिझकते हुए कहा, "इंशा जी, मैं तो बस आपके गायन का आनंद लेने आया हूँ।" इंशा ने उनकी मासूमियत को समझा और फिर से हंसते हुए बोली, "आओ, तुम्हें एक ठुमरी सुनाती हूँ।"

इंशा ने अपनी आवाज़ में एक ठुमरी गाई, जो सीधे रामनलाल के दिल में उतर गई। उसके हर लफ्ज़ में एक दर्द और एक नई आशा थी। संगीत की इस लहर ने रामनलाल को इतना प्रभावित किया कि वह पूरी तरह से इंशा की कला में खो गए।

होली का उल्लास

होली का पर्व नजदीक आ रहा था, और रामनलाल ने ठान लिया कि वह इंशा के कोठे पर अपनी भावनाओं को प्रकट करेंगे। उन्होंने अपने साथ भांग के लड्डू और रंग लेकर आने का मन बनाया।

जब होली का दिन आया, रामनलाल इंशा के कोठे पर पहुंचे, मन में एक खास योजना के साथ। उन्होंने कहा, "लो, ये लड्डू खाओ और होली सुनाओ।" इंशा, जो अपने तेवर के लिए मशहूर थी, मुस्कुराते हुए बोली, "ठीक है, सेठ जी, लेकिन एक शर्त है—अगर मैं ये भांग खाती हूँ, तो आप इसे हाथ तक नहीं लगाएंगे। और अगर मुझे नशा हो गया, तो कम से कम मुझे संभालने की जिम्मेदारी आपकी होगी।"

गुलाल की बौछार

सेठ रामनलाल ने पहले तो हंसकर बात टाली, फिर होली के रंग में इतना खो गए कि सब कुछ भूलकर इंशा के चेहरे पर गुलाल मलने लगे। उनके हाथ गुलाल से इतने रंगे थे कि इंशा के गाल टमाटर जैसे लाल हो गए। इंशा ने हल्के से विरोध जताने की कोशिश की, लेकिन सेठ तो होली की धुन में मगन थे।

हद तब हुई जब उन्होंने उसी गुलाल से इंशा की मांग भरने की ठानी। जैसे ही सेठ ने गुलाल उठाकर उसकी मांग की ओर हाथ बढ़ाया, इंशा ने तुरंत हाथ पकड़ लिया और बोली, "अरे, ये क्या कर रहे हो सेठ जी? होली है, मगर इतनी भी नहीं कि सारी हदें पार हो जाएं।"

इंशा की चतुराई

सेठ रामनलाल ने उसकी बात सुनी ही नहीं। गुलाल उठाया और उसकी मांग में भर दिया। इंशा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई, मगर उसने अपनी चतुराई से बात घुमा दी। वह धीमे से एक लंबा घूंघट खींचकर बोली, "अब जब मांग भर दी है, तो रस्म पूरी करो सेठ जी। अब मुझे मुंह दिखाई तो देनी होगी!"

सेठ का चेहरा देखते ही बनता था। वह कसमसाते हुए बोले, "अरे इंशा, होली के बहाने यह कैसी चाल चल दी तुमने?" इंशा ने चुटकी लेते हुए कहा, "जो बीज बोओगे, वही फसल काटोगे सेठ जी! अब जब मांग भर दी है, तो मुंह दिखाई का भी इंतजाम करो!"

प्रेम की पहचान

इस ठिठोली भरे माहौल में सेठ रामनलाल हक्के-बक्के रह गए। होली के रंग ने इंशा की चालाकी को भी जैसे नया रंग दे दिया था। वह बातों-बातों में न सिर्फ सेठ की होली को खास बना रही थी, बल्कि ठिठोली के साथ उन्हें अपने शब्दों के जाल में भी उलझा रही थी।

जबसेठ रामनलाल ने कहा, "इंशा, तुम्हारी आवाज़ ने मुझे खो दिया है, और तुमने मेरी जिंदगी में जो रंग भरा है, वह अद्भुत है," तो इंशा की आंखों में नमी आ गई। उसने महसूस किया कि यह एक नई शुरुआत हो सकती है, जहां वह अपने स्वाभिमान और कला के साथ जी सकती थी।

संगीत का जादू

इस होली की रौनक और मस्ती में इंशा ने जो नशा फैलाया, उसमें सेठ रामनलाल पूरी तरह डूब गए। दोनों का प्रेम संगीत के माध्यम से जुड़ा हुआ था, और यह प्रेम कहानी अनोखी और विशेष बन गई थी। समाज की सीमाओं के बावजूद, उनका रिश्ता सच्चे आदर, समझ और आत्मीयता पर आधारित था।

अंत में

इस तरह, रामनलाल और इंशा की कहानी एक ऐसे प्रेम की दास्तान बन गई, जो होली के रंगों में छिपी थी। यह प्रेम न सिर्फ उनके दिलों को जोड़ा, बल्कि समाज के बंधनों को तोड़ने की ताकत भी रखता था। इसी प्रेम ने उन्हें एक नए जीवन की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी, जहाँ संगीत और प्रेम का मेल था। उनकी प्रेम कहानी ने साबित कर दिया कि सच्चा प्रेम हर बंधन को पार कर सकता है, और यही इस प्रेम की असली पहचान थी।