Where were the strengths of others - Film Review in Hindi Film Reviews by Rishi Katiyar books and stories PDF | औरों में कहाँ दम था - फिल्म रिव्यू

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औरों में कहाँ दम था - फिल्म रिव्यू

नीरज पाण्डे, नाम सुनते ही स्पेशल 26, special ops, ए वेडनेसडे जैसी फ़िल्में या सीरीज याद आती है। फिर ‘जब औरों में कहाँ दम था’ का ट्रेलर देखा तो लगा कि ऊपर से लव स्टोरी लगने वाली कहानी ग़ज़ब थ्रिलर होगी, ट्विस्ट होंगे। मज़ा आएगा। और क्या ही ट्विस्ट है यार!

कृष्णा और वसुधा प्रेमी प्रेमिका हैं। कृष्णा आज साढ़े 22 साल बाद डबल मर्डर केस में जेल से छूट रहा है। पर वह अभी बाहर निकलना नहीं चाहता, जेल में एक को पीट देता है, सोलिटरी कन्फाइनमेंट में भेजा जाता है। जेल में उसके लिए फ़ोन अरेंज होता है, वह उसी दिन दुबई निकलना चाह रहा है। फ़्लैशबैक में उसकी लव स्टोरी बीच-बीच में इंटरप्ट कर रही है। वह बाहर आता है, दोस्त से मिलता है, एक अंकल से मिलता है,हेरोइन से मिलता है। हेरोइन की शादी हो चुकी है, उसका पति जिमी शेरगिल है, उसने ही उसे बाहर निकलवाया है, म्यूजिक रोमांटिक और थ्रिलर के बीच स्विच होता रहता है। वह हेरोइन के पति से मिलता है। वह गूढ़ टाइप की बातें करते हैं। कुछ सींस को कुल जमा 8-10 बार दिखाया जाता है। “बदल मत जाना”, “मौसम थोड़े हूँ जो बदल जाऊँगा”। उसका दोस्त एक सस्पेंस वाले म्यूजिक में किसी से मिल के पासपोर्ट अरेंज कर रहा है। बीच बीच में हीरोइन के कॉल आ रहे है जो बड़े बड़े कन्साइनमेंट देश विदेश भेजती है।

अब आएगा बड़ा ट्विस्ट। क्या कहानी कुछ The Shawshank Redemption टाइप होने वाली है। क्या हीरोइन के पति का कृष्णा से पुराना कुछ रिश्ता है? क्या हीरोइन कन्साइनमेंट के साथ और हीरो के साथ निकल लेगी? क्या हमराज़ के अक्षय खन्ना जैसी शेडी स्माइल देता हेरोइन का पति कुछ ख़तरनाक करने वाला है? सस्पेंस बढ़ता जाता है। आधा घंटा, इंटरवल, दो घंटा पूरा हो रहा, पर घंटा सस्पेंस नहीं आया। क्या आख़िरी के दस मिनट, दो मिनट आख़िरी मिनट कहानी पलटेगी। और फिर स्क्रीन में लिख कर आता है!

‘Sometimes it never Ends’ और फिर क्रेडिट रोल होने लगते हैं।

‘Sometimes it never Ends’ हालाँकि ये लाइन फ़िल्म के लास्ट में आती है पर आपको पूरी फ़िल्म महसूस होती है।
फ़िल्म का क्लाइमेक्स इसका एंटीक्लाईमेक्स है। आपको लगता है कुछ होगा, कुछ होने वाला है। पर कुछ होता ही नहीं है।

एक्टिंग की बाद करें तो तब्बू सुंदर और दुखी लगी हैं। उनके यंग वर्शन वाला जोड़ा पहले क्यूट फिर रेपेटिशन की अति के बाद इर्रिटेटिंग लगा है। जिमी शेरगिल की शक्ल देख के लग रहा था इसका फिर कटेगा (पर इस बार दर्शकों का कटा)। अजय देवगन के एक्सप्रेशन देख के लग रहा था उन्हें भी पता नहीं रहा होगा कि फ़िल्म थ्रिलर है या लव स्टोरी, वह पूरी फ़िल्म दृश्यम मोड में रहे हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक कंफ्यूज है। गाने चलताऊ हैं। फ़िल्म इतनी स्लो है कि 1.5x पे चलाने के बाद भी फ़ास्ट फॉरवर्ड करने की ज़रूरत महसूस होती है।

नीरज पांडेय पहली बार लव स्टोरी बना रहे हैं और उन्हें दुबारा इतनी मेहनत नहीं करनी चाहिए। इस बार वे अपनी विधा से हट के आये हैं और इसलिए कंफ्यूज हैं। सीधी सादी कहानी कहनी उन्हें आती नहीं, उन्हें थ्रिल और सस्पेंस आता है, इस चक्कर में उन्होंने कहानी और म्यूजिक और सेटिंग सभी में घालमेल कर दिया है। पर इससे ज़्यादा ट्विस्ट तो डेली सोप में होते हैं।

फ़िल्म देखने में बर्बाद किए गए टाइम के दुख से उबरने में फ़िल्म के डायलॉग ने ही सहारा दिया,” बीते वक्त को भूल जाना ही अच्छा है वहाँ एक सैड फ़्लैशबैक के अलावा कुछ भी नहीं है।”
और वैसे भी मुझे तो ये नीरज पांडे के नाम पे देखनी ही थी तो देख डाली वरना ‘औरों में कहाँ दम था’ जो इसे पूरी झेल पाते।

रेटिंग: 1.5 आउट ऑफ़ 5