perfect in Hindi Short Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | परफ़ेक्ट

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परफ़ेक्ट

बुजुर्गों से सुना है,शायद यह सच है—————काम करने वाली महिला को चुनते समय आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह घर नहीं संभाल सकती।
यदि आपने एक गृहिणी को चुना है जो आपकी देखभाल कर सकती है और आपके घर का पूरा प्रबंधन कर सकती है, तो आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह पैसा नहीं कमा रही ।
यदि आप एक आज्ञाकारी महिला चुनते हैं, तो आपको यह स्वीकार करना चाहिए कि वह आप पर निर्भर है और आपको उसका जीवन सुनिश्चित करना है ।यदि आप एक मजबूत महिला के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो आपको यह स्वीकार करना होगा कि उसकी अपनी राय है।यदि आप सुंदर स्त्री को चुनते हो तो तुम्हें बड़े खर्चे उठाने पड़ेंगे।यदि आप एक सफल महिला के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि उसके पास अपनी अलग जीवन शैली है और उसके अपने लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएं हैं।
परफेक्ट जैसी कोई चीज नहीं होती, हर किसी की अपनी अपनी छवि होती है जो उसे अनोखा बनाती है लेकिन कुछ महिलाएं शत प्रतिशत परिवार को हर संभव कोशिश करके परफ़ेक्ट बनाने का प्रयास करती हैं 🌹🌺🌺🌺🌺🌹
लीना एक साधारण परिवार में पली बढ़ी सुन्दर सुशील कही जाने वाली लड़की थी ।
एक दिन वह अपनी ताईजी के यहाँ किसी काम से गई तो वहाँ पर बैठे दंपति ने उसे बहुत गौर से देखा और बहुत सारे सवाल कर डाले ।वह अपने घर पर आकर यह सब अपनी भाभी को बताया तो उन्होंने उसकी बात को गंभीरता से न लेते हुए अपने काम में लग गई ।
कुछ दिनों के बाद पिताजी से घर में सभी को ज्ञात हुआ कि बड़े अच्छे घर से रिश्ता आया है। सभी को बताया कि पढ़े लिखे लोग हैं आगे पढ़ने की वहाँ को मना नहीं करेगा जितनी इच्छा होगी पढ़ाई पूरी करा देंगे ।
नौकरी करने को भी वह लोग बुरा नहीं मानते क्योंकि पहले से ही उनकी बड़ी बहू नौकरी करती है ।
लीना को यह सब सुनकर बहुत अच्छा लगा कि पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं होगी,वह अभी स्नातक की आख़िरी परीक्षा देने वाली थी ।
शादी की उन लोगों को बहुत जल्दी थी महूरत निकलने के बाद शादी भी हो गई ।
कुछ दिनों तक बहुत अच्छा लगा फिर तो काम में इतना उलझा दिया कि समय पढ़ने के लिए मिलता ही नहीं था ।
एक दिन लीना ने अपनी जेठानी से कहा कि दीदी मुझे आगे पढ़ने का मन है लेकिन समय ही नहीं मिलता क्या करूँ ।
जेठानी ने लीना से कहा पहले काम तो सीख लो कुछ काम करना आता नहीं है ।
कुछ दिनों के बाद लीना फिर कहने लगी कि मुझे पढ़ाई करनी है फिर मैं भी कुछ काम करना चाहूँगी ।
घर में रोज कलह होती तो यही कहते कि न कुछ काम आता है ना ही महारानी शक्ल की न सूरत की,पढ़ाई-नौकरी के लिए अक्ल शक्ल दोंनो ही चाहिए ।
दिन बीतते गये और लीना के दो बच्चे बड़े हो रहे थे ।उनकी परवरिश और घर के काम में सालों गुज़र गए ,लीना मन में बहुत परेशान रहती ।
एक दिन भगवान के आगे बैठी वह सोच रही थी क्या किया जाए ।
बैठकर ऑसू निकल रहे थे कुछ समझ नहीं आ रहा था,तभी उसका ध्यान अपने बच्चों की ओर गया और उसने दृढ़ संकल्प लिया कि चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े मैं अपने बच्चों को काबिल बना कर ही रहूँगी,उसका संकल्प दृढ़ था ईश्वर ने उसका हर कदम पर साथ दिया ।परेशानियों को दरकिनार कर संकल्प पूरा हुआ ।
बच्चों के साथ उसने वह सुख लिए जिसकी उसने शुरुआती दौर में कामना की थी ।
कामयबी के सफर में कदम से क़दम मिलाकर बच्चों ने पूरा सम्मान दिया ।
यदि संघर्ष में संकल्प ले लिया जाए तो कष्ट भी सहना मुश्किल नहीं होता ।रास्ते आसान हो ही जाते हैं ।
आशा सारस्वत