आख़िरी चुनौती
समय के साथ, काली वन में फिर से सामान्य जीवन लौट आया था। गाँव के लोग अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गए थे, लेकिन वे अब पहले से अधिक सावधान थे। देवी के मंदिर की पूजा और जंगल के संतुलन को बनाए रखने की जिम्मेदारी हर व्यक्ति ने गंभीरता से ली।
लेकिन एक दिन, जब सब कुछ शांत और स्थिर लग रहा था, गाँव में एक नया संकट खड़ा हो गया। इस बार संकट किसी बाहरी शक्ति या अदृश्य परछाईं का नहीं था, बल्कि यह संकट गाँव के भीतर से उठ रहा था—गाँव के लोगों की अपने ही बीच आपसी असहमति और विभाजन का।
गाँव में नई पीढ़ी के कुछ लोगों ने देवी की पूजा और काली वन के संतुलन को महज अंधविश्वास मानकर उसकी उपेक्षा शुरू कर दी। उन्होंने सोचा कि यह सब पुरानी कहानियों और डर की वजह से है, और अब आधुनिक समय में इन बातों का कोई महत्व नहीं है। वे गाँव के प्राचीन नियमों और परंपराओं को बदलने की मांग करने लगे।
गाँव दो भागों में बंटने लगा—एक वह जो देवी और काली वन की परंपराओं का सम्मान करता था, और दूसरा जो नई सोच के साथ पुराने नियमों को बदलना चाहता था। यह असहमति धीरे-धीरे बढ़ती गई और गाँव में तनाव फैलने लगा।
बूढ़ा रक्षक, जो अभी भी जीवित था, इस स्थिति से बेहद चिंतित हो गया। उसने गाँववालों को बार-बार चेताया कि आपसी विभाजन और असहमति उस संतुलन को बिगाड़ सकती है, जो उन्होंने इतने वर्षों तक बनाए रखा है। लेकिन उसकी बातों को अनसुना कर दिया गया।
विभाजन की यह स्थिति और भी गंभीर हो गई जब नई पीढ़ी के कुछ लोगों ने देवी के मंदिर में जाकर वहां की पूजा-अर्चना बंद करने की धमकी दी। उनका मानना था कि पुराने रीति-रिवाजों ने गाँव को विकास से रोक रखा था, और अब समय आ गया था कि गाँव आधुनिकता की ओर बढ़े।
गाँव में अशांति का माहौल बन गया। लोग आपस में बहस करने लगे, और धीरे-धीरे यह बहस झगड़ों में बदलने लगी। काली वन, जो एक बार शांति और समृद्धि का प्रतीक था, अब इस विभाजन और असहमति के कारण फिर से संकट में पड़ने लगा।
और तभी, एक रात कुछ ऐसा हुआ जिसने गाँववालों को झकझोर कर रख दिया। गाँव के बीचों-बीच, जहाँ लोग एकत्र होकर अपने मतभेदों पर बहस कर रहे थे, अचानक से एक तेज़ धमाका हुआ। इस धमाके के साथ ही आकाश में एक भयावह अंधेरा छा गया, और फिर एक भयानक चीख गूंज उठी।
यह वही चीख थी, जिसे वर्षों पहले महादेव और देवी ने काली वन में सुना था। वह चीख नरभक्षी आत्मा की थी, जो अब तक दबे हुए क्रोध और असंतोष के कारण फिर से जाग उठी थी। लेकिन इस बार, वह पहले से भी ज्यादा शक्तिशाली थी।
गाँव के लोग भयभीत हो गए। उन्होंने महसूस किया कि आपसी विभाजन और असहमति ने उस भयानक शक्ति को फिर से जीवित कर दिया था, जिसे वे अपने पूर्वजों के बलिदान से मिटाने में सफल हुए थे।
बूढ़ा रक्षक तुरंत गाँव के मुखिया और बुजुर्गों के पास गया और उन्हें स्थिति की गंभीरता बताई। उसने कहा, "अब केवल एक ही तरीका बचा है। हमें तुरंत आपसी मतभेदों को भुलाकर एकजुट होना होगा और देवी के मंदिर में जाकर प्रार्थना करनी होगी। अगर हम एक साथ नहीं आए, तो वह आत्मा हमें नष्ट कर देगी।"
गाँववालों ने उसकी बात सुनी और उन्होंने तुरंत ही अपनी पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एकजुट होने का फैसला किया। वे सभी देवी के मंदिर की ओर बढ़े और वहाँ जाकर अपने-अपने गुनाहों की माफी माँगी। उन्होंने देवी से प्रार्थना की कि वह उन्हें इस संकट से बचाए और फिर से गाँव में शांति लाए।
जैसे ही उनकी प्रार्थनाएँ पूरी हुईं, देवी का मंदिर फिर से दिव्य प्रकाश से भर गया। इस प्रकाश ने आकाश में फैले अंधकार को दूर कर दिया, और उसी समय वह भयानक चीख धीरे-धीरे शांत हो गई। नरभक्षी आत्मा, जिसने विभाजन और असंतोष से अपनी शक्ति प्राप्त की थी, अब देवी की कृपा और गाँववालों की एकता के सामने हार गई।
उस रात के बाद, गाँव में फिर से शांति लौट आई। गाँववालों ने सीखा कि आपसी मतभेद और विभाजन उन्हें फिर से विनाश की ओर ले जा सकता है। उन्होंने ठान लिया कि वे हमेशा एकजुट रहेंगे और देवी की कृपा से काली वन के संतुलन को बनाए रखेंगे।
काली वन, जो एक बार फिर से संकट में था, अब हमेशा के लिए सुरक्षित हो गया। गाँववालों ने अपनी गलतियों से सीख ली और उन्होंने यह वचन लिया कि वे कभी भी अपने पूर्वजों के बलिदानों को नहीं भूलेंगे।
कहते हैं, आज भी, जब काली वन के लोग आपसी मतभेद में पड़ने लगते हैं, तो बूढ़े रक्षक की आत्मा उन्हें याद दिलाने आती है कि एकता ही उनकी सबसे बड़ी शक्ति है। और तब वे फिर से देवी के मंदिर में जाकर प्रार्थना करते हैं, ताकि वह भयानक आत्मा कभी दोबारा न जागे।
इस तरह, काली वन की कहानी हमेशा के लिए एक संदेश बन गई—एकता में शक्ति होती है, और आपसी असहमति और विभाजन विनाश का कारण बन सकते हैं। गाँव के लोग अब हमेशा के लिए इस संदेश को अपने दिलों में संजोए रखते हैं, ताकि वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा शांति और समृद्धि में जीवन जी सकें।