जतिन के पूछने पर कि "कैसा छलावा?" मैत्री ने कहा- रवि चूंकि फार्मा कंपनी मे रीजनल मैनेजर थे इसलिये उनकी लखनऊ के अस्पतालों मे बहुत अच्छी जान पहचान थी और मुझे उठाकर वो एक ऐसे ही किसी अस्पताल ले गये जहां के मेन डॉक्टर रवि के बहुत अच्छे दोस्त थे, जब वो लोग मुझे अस्पताल ले गये तब मुझे हल्का हल्का होश था.... वहां जाकर मुझे आईसीयू मे एडमिट किया गया और तुरंत मेरा इलाज शुरू किया गया, मेरी तबियत काफी बिगड़ गयी थी इसलिये दवाइयों के बहुत हैवी डोज़ के इंजेक्शन लगाये गये थे जिसकी वजह से मै दवाइयो के नशे की गफलत मे थी, मै वहां बैड पर लेटी थी डॉक्टर को लगा कि मै गहरी नींद मे हूं... इसीलिए उन्होने रवि को आईसीयू मे बुलाकर कहा- यार रवि ये किस हालत मे लेकर आये हो तुम अपनी वाइफ को, तुम्हे पता भी है कि कितनी सीरियस हालत है इनकी.... जरा सी देर और हो जाती तो घबराहट के मारे ये कोमा मे जा सकती थीं, इनको दिल का दौरा पड़ सकता था या हो सकता था कि इन्हे पैरालिसिस का अटैक ही पड़ जाता, तुम्हे अंदाजा भी है कि तुम किस मुसीबत मे फंस सकते हो... इन्होने या इनके घरवालो ने पुलिस कंपलेंट करदी ना तो घरेलू हिंसा मे तुम और तुम्हारा पूरा परिवार जेल जा सकता है और.. आज तो क्या इन्होने 6 महीने बाद भी कंपलेंट कर दी तो भी तुम फंस सकते हो इनकी मैडिकल रिपोर्ट के आधार पर....
डॉक्टर की बात सुनकर रवि घबरा गये और बाहर जाकर उन्होने सारी बात अपनी मम्मी और घर के बाकी लोगो को बता दी.... इसके बाद जब मेरी तबियत थोड़ी ठीक हुयी और मुझे प्राइवेट वार्ड मे शिफ्ट किया गया तब रवि ने मुझसे हाथ जोड़कर माफी मांगी और उनकी मम्मी, अंकिता, रवि की दूसरी बहन मोना ने मेरा खूब ध्यान रखना शुरू कर दिया, जब भी इनमे से कोई मेरे पास आता तो उसका फोकस इसी बात पर होता था कि मै वो बात अपने घर पर किसी से ना बताऊं... हर कोई मुझसे माफी मांगता था और प्यार का इतना दिखावा करते थे कि ऐसा लगता था कि इनसे जादा शुभचिंतक मेरा कोई है ही नही... जबकि सच्चाई मै जानती थी!!
मेरी इतनी तबियत बिगड़ी की मै मरते मरते बची लेकिन इन लोगो ने पुलिस के डर की वजह से मेरे घर मे किसी को नही बताया कि मै एडमिट हूं.... करीब करीब दस दिन लगे मुझे ठीक होने मे और तब तक इन लोगो ने मुझे मम्मी पापा से मिलने तक नही दिया, मेरा फोन भी रवि की मम्मी अपने पास रखती थीं इस डर से कि कहीं मै घर पर फोन करके किसी को सब कुछ बता ना दूं.... और जैसे ही घर से मम्मी, पापा या राजेश भइया की साइड से किसी का फोन आता था... रवि की मम्मी मुझे लाके फोन दे तो देती थीं पर जितनी देर मै बात करती थी मेरे सामने ही खड़ी रहती थीं ये सोचकर कि कहीं मै सबको अपनी तबियत का बता ना दूं... ये था वो छलावा, वो भ्रम जो रवि के जाने के बाद टूट गया था....
मैत्री की बात बड़े ध्यान से सुन रहा जतिन भी रवि और उसके परिवार की हरकते जानकर हैरान था... और हैरान सा होकर लंबी सांस छोड़ते हुये वो मैत्री से बोला- हे भगवान... कैसे लोगो के बीच मे फंस गयी थीं तुम, सच मे कैसे कैसे लोग हैं दुनिया मे...
जतिन की बात सुनकर मैत्री ने कहा- फंसी नही थी जी...फंसायी गयी थी....
जतिन ने हैरान होकर पूछा- फंसायी गयी थी... मतलब!!
मैत्री ने कहा- पापा के एक दोस्त थे, काफी पुराने... वो अपनी बेटी की शादी राजेश भइया से करवाना चाहते थे लेकिन तब तक राजेश भइया नेहा भाभी से मिल चुके थे, नेहा भाभी को तो आपने देखा ही है ना जी... वो कितनी प्यारी हैं... सबको साथ लेकर चलने वाली, बड़ो की सेवा करने वाली सम्मान करने वाली.... और राजेश भइया को ऐसी ही लड़की से शादी करनी थी जो ज्वाइंट फैमिली से हो... क्योकि राजेश भइया और सुनील भइया मे आपस मे बहुत प्यार है और वो चाहते थे कि दोनो भाइयो की शादी ऐसे घर मे हो जिनकी लड़किया सबको साथ लेकर चलें... और नेहा भाभी मे वो सारे गुण थे इसलिये राजेश भइया नेहा भाभी से शादी करने का पक्का मन बना चुके थे... और ये बात घर मे सबको ना सिर्फ पता थी बल्कि हम सबको भी नेहा भाभी बहुत पसंद थीं इसलिये अपने दोस्त के लाख दबाव बनाने पर भी पापा ने मना कर दिया तो वो अंदर ही अंदर बहुत बुरी तरह पापा से चिढ़ गये थे और रवि से उनकी लड़की की ही बात चली थी लेकिन उन्होने जब छानबीन करी होगी रवि के परिवार को लेकर तो उन्हे पता चल गया था कि लड़का तो ठीक है पर परिवार ठीक नही है इसलिये उन्होने अपनी लड़की के लिये मना करके उन्होंने मुझे फंसा दिया और चूंकि पापा के दिल मे अपने दोस्त के लिये कोई बैर नही था तो वो ये सोचकर इस रिश्ते के लिये मान गये कि उनके पुराने दोस्त ने ये रिश्ता बताया है तो अच्छा ही होगा और बस उन्होने अपनी खुन्नस मुझ पर निकाल दी....
अपनी बात बताने के बाद मैत्री थोड़ी देर के लियेे शांत हो गयी और उसके ठीक बगल मे बैठा जतिन भी सिर झुकाकर शांत बैठा रहा, जतिन का मन भी मैत्री के ऊपर हुये जुल्मो के बारे मे जानकर बेहद उदास था.. और इसी उदास लहजे मे वो मैत्री से बोला- राजेश मुझे करीब दस सालो से जानता है, वो मुझसे पहले ही तुम्हारे लिये बात कर लेता तो तुम्हे इतनी सारी प्रताड़नायें ना सहनी पड़तीं....
मैत्री जो पहले से ही सुबक रही थी... जतिन की बात सुनकर रुंधे हुये गले से अपने आंसू पोंछते हुये बोली- कैसे कर लेते राजेश भइया आपसे बात, सब कुंडली के फेर हैं जी.... मेरे भाग्य मे शायद ये कष्ट सहने लिखे थे तो मुझे वो सहने ही थे, ऊपर वाले ने जो हमारे भाग्य मे लिख दिया वो तो हमे सहना ही पड़ेगा.... फिर हम चाहे कितने भी अच्छे क्यो ना हों....
मैत्री की बात सुन रहे जतिन ने धीमी और दुखी सी आवाज मे कहा- बिल्कुल सही कह रही हो... अच्छा मैत्री तुमने बताया कि रवि फार्मा कंपनी मे रीजनल मैनेजर थे मतलब उन्हे दवाइयो का अच्छा अनुभव था, फिर भी उनका कोरोना इतना कैसे बिगड़ गया कि.......
मैत्री सुबकते हुये बोली- ओवर कॉंफिडेंस!! उन्हे बड़ा ओवर कॉंफिडेंस था इसी बात पर कि मुझे सब पता है... मुझे कोरोना हो ही नही सकता!! मार्च मे होली के बाद से ही कोरोना की दूसरी लहर के केस बढ़ने लगे थे... जैसे जैसे हालात खराब हो रहे थे वैसे वैसे रवि का काम बढ़ रहा था, उन्हे अक्सर टूर पर जाना पड़ रहा था... अप्रैल के लास्ट मे ऐसे ही एक टूर से लौटने के बाद रवि जब घर आये तो उन्हे खांसी और हल्का जुखाम था, चूंकि दो दिन पहले तेज बारिश हुयी थी तो मौसम दिन मे गर्म रहता था और शाम होते ही ठंडक सी हो जाती थी इसलिये उन्हे लगा कि मौसम बदल रहा है तो उसी की वजह से हल्का जुखाम हो गया है और वो अपने हिसाब से दवाइयां लेते रहे... फिर जैसे जैसे दिन आगे बढ़ने लगे और उनकी तबियत और जादा खराब होने लगी तो मैने उन्हे कोरोना टेस्ट कराने के लिये फोर्स किया, रवि को भी लगने लगा था कि शायद उन्हे कोरोना हो गया है क्योकि उन्हे पता था कि बुखार ना ठीक हो तो मतलब कोरोना हो गया है.... इसलिये मेरे जादा फोर्स करने पर वो टेस्ट कराने के लिये मान गये लेकिन अगले दिन सुबह उनकी तबियत और बिगड़ने लगी उन्हे सांस लेने मे बहुत तकलीफ हो रही थी तो उन्होने आनन फानन मे उसी अस्पताल के अपने डॉक्टर दोस्त को फोन किया जहां मुझे भर्ती कराया था.... और अपना हाल बता कर ऑक्सीजन सिलेंडर देने को कहा... रवि की बात सुनकर उनके डॉक्टर दोस्त ने कहा- यार रवि इस टाइम बहुत मारामारी चल रही है ऑक्सीजन की मै एक काम करता हूं... आज सुबह ही एक मरीज की डेथ हुयी है उसका सिलेंडर लगभग आधा बचा हुआ है... उसके घरवालो से बात करके मै वो सिलेंडर फिलहाल तुम्हे दिलवा देता हूं तब तक दूसरे नये सिलेंडर का इंतजाम हो जायेगा....
इतना कहने के थोड़ी देर बाद ही अस्पताल की एंबुलेंस से उस डॉक्टर ने घर पर ही वो सिलेंडर भिजवा दिया... साथ मे एक वार्डबॉय भी था जिसने वो सिलेंडर बेडरूम मे ही फिट कर दिया और इतनी देर मे रवि ने एक पैथोलॉजी मे फोन करके एक बंदे को बुलाकर कोरोना टेस्ट के लिये अपना सैंपल भी दे दिया... जिसकी रिपोर्ट रात तक आनी थी लेकिन इससे पहले कि रिपोर्ट आती वो ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म हो गया, उस सिलेंडर मे आधी भी ऑक्सीजन नही थी... ऑक्सीजन खत्म होते ही रवि की तबियत बिगड़ने लगी, उनकी तबियत देख कर मैने रवि के फोन से उनके उसी डॉक्टर दोस्त को फोन किया जिन्होंने वो सिलेंडर भिजवाया था... मेरी बात सुनकर उन्होने कहा- भाभी जी बहुत बुरी हालत है.... सिलेंडर मिल ही नही रहा है.... लेकिन फिर भी मै कोशिश करता हूं.....
इसके बाद मैने कई बार उस डॉक्टर को फोन किया और हर बार उनका यही जवाब होता था कि सिलेंडर नही मिल रहा... इधर रवि की तबियत बिगड़ती जा रही थी, रवि की मम्मी का रो रो कर बुरा हाल था... रवि के पापा भी ना जाने किस किस को फोन करके ऑक्सीजन सिलेंडर के लिये मिन्नते कर रहे थे लेकिन उनकी मदद करने के लिये कोई तैयार नही था और मदद ना करने की वजह थी रवि की मम्मी का झगड़ालू स्वभाव..... वो सबसे झगड़ा करती रहती थीं इसलिये कोई आगे आने के लिये तैयार नही था..... जब हर तरफ से रवि के पापा को निराशा ही हाथ लगी तब वो रवि की मम्मी पर चिल्लाये और चिल्लाते हुये बोले- ये तुम्हारी वजह से ही हो रहा है और करो सबसे झगड़ा.. आज कोई हमारा साथ देने के लिये तैयार नही है....
अपनी बात कहते कहते और रवि की हालत देखकर वो रोने लगे और रोते रोते बोले- पता नही कौन सी मनहूस घड़ी थी जब मैने तुमसे शादी करी थी.... पूरी जिंदगी बरबाद करदी तुमने मेरी, परिवार मे भी सबसे लड़ाई कर कर के सबसे अलग कर दिया तुमने मुझे और अपने बच्चो को भी अपने जैसा बना दिया, कहां है वो तुम्हारा अय्याश बेटा रोहित ... उसका कुछ अता पता नही है, भाई की तबियत इतनी खराब है लेकिन बजाय इसके कि वो हमारी मदद करे वो पड़ा होगा कहीं किसी लड़की के साथ होटल मे.... अगर रवि को कुछ हो गया तो सोच लेना वो बत्तमीज रोहित इस घर मे घुस नही पायेगा और तुम भी उसी के साथ रहोगी....
उस दिन रवि की हालत ने और मदद के नाम पर लोगो से मिली निराशा ने रवि के पापा के सब्र का बांध जैसे तोड़ सा दिया था,रवि की हालत जैसे जैसे बिगड़ रही थी वो बौखलाये से जा रहे थे.. और बौखलाहट मे वो बोले- रुको मै ही जा रहा हूं ऑक्सीजन सिलेंडर लेने, जो मिलेगा उसके पैरो पर गिर कर मिन्नते कर लूंगा लेकिन अपने बेटे को कुछ नही होने दूंगा मै.....
इतना कहकर वो बौखलाये हुये से रवि के लिये ऑक्सीजन सिलेंडर लेने के लिये वहां से जाने लगे कि तभी रवि के फोन की रिंग बजने लगी... जब मैने फोन उठाकर देखा तो फोन रवि के उसी डॉक्टर दोस्त का था... मैने फोन उठाया तो उन्होने कहा- भाभी जी आप एक काम करिये रवि को सरकारी एंबुलेंस से अस्पताल तक ले आइये बस, यहां अभी थोड़ी देर पहले ही एक मरीज की डेथ होने के कारण एक बेड खाली हुआ है, मैने उस बेड को रोक कर रखा हुआ है.... आप फटाफट से सरकारी नंबर पर कॉल करके रवि को यहां ले आओ, मै जादा देर बेड नही रोक पाउंगा क्योकि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.... मरीज लगातार बढ़ रहे हैं, ऐसा लग रहा है जैसे प्रलय आ गयी है... आप प्लीज जल्दी करिये.. अस्पताल की सारी एंबुलेंस बेतहाशा भाग रही हैं यहां एंबुलेंस नही है, नही तो मै यहां से ही भिजवा देता.... आप प्लीज जल्दी करिये....
उनके अपनी बात कहकर फोन काटने के तुरंत बाद मैने एंबुलेंस के नंबर पर कॉल करके उन्हे घर का एड्रेस दे दिया... और जल्दी आने के लिये कहा तो वो बोले- मैडम जो मरीज एंबुलेंस मे हैं उन्हे रास्ते मे नही उतार सकते हैं... जैसे ही कोई एंबुलेंस खाली होगी हम आ जायेंगे......
मैने रोते हुये उनसे मिन्नते करी और कहा - भइया मेरे पति की हालत बहुत खराब है उन्हे ऑक्सीजन की सख्त जरूरत है आप मुझसे पांच हजार, दस हजार जितने चाहो उतने रुपय ले लेना पर प्लीज जल्दी आ जाओ.....
जब मैने पैसो की बात करी तो दो सेकंड सोचने के बाद वो बोला- हम्म्म् चलिये ठीक है.... हम दस मिनट मे आते हैं....
एंबुलेंस वाले से बात करके मैने रवि के पापा से कहा- पापा जी आप संयम रखिये एंबुलेंस आ रही है.... आप चिंता मत करिये सब ठीक हो जायेगा...
मै रवि के पापा से बात कर ही रही थी कि तभी रवि के पास बैठकर उनकी छाती सहला रही उनकी मम्मी एकदम से चीखीं "रवििििििि!!!"
उनके चीखने से सब लोग घबरा गये और जब मैने रवि की तरफ देखा तो..... उनकी जीभ बाहर आ गयी थी, उनकी आंखे बुरी तरह चढ़ गयी थीं.... मै रोती हुयी बौखलाई हुयी सी उनके पास गयी और बार बार उन्हे होश मे लाने की कोशिश करने लगी... मै रो रही थी चीख रही थी कि "रवि प्लीज हिम्मत रखिये दस मिनट मे एंबुलेंस आ जायेगी फिर सब ठीक हो जायेगा... रवि प्लीज उठ जाइये प्लीज मुझसे बात करिये.." मै उन्हे हिला रही थी उनकी छाती पर मुक्के मार रही थी पर...... वो नही उठे!! वो जा चुके थे......... सब खत्म हो चुका था........... सारी उम्मीदे मिट्टी मे मिल चुकी थीं, रवि के पापा रवि की हालत देखकर बेहोश हो गये थे.... रवि की मम्मी ने रवि के छोटे भाई को कई बार कॉल किया पर उस बत्तमीज ने फोन नही उठाया और बाद मे फोन ऑफ कर दिया... जबकि उसे पता था कि रवि की तबियत बहुत खराब है,
मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा था कि मै क्या करूं.... मैने घर पर पापा को कॉल किया तो मेरी समझ मे नही आ रहा था कि ये बात मै उन्हे कैसे बताऊं.... मेरे फोन करने पर पापा खिसियाये हुये से बोले- हैलो गुड़िया... कैसी तबियत है अब दामाद जी की?
पापा के पूछने पर पहले तो मेरी हिम्मत ही नही हुयी उन्हे इतना बड़ा झटका देने की पर उन्होने दुबारा जब बौखलाये से लहजे मे कहा - क्या हुआ गुड़िया... कुछ बता तो सही बेटा....
तो मैने कहा- आपकी गुड़िया टूट गयी पापा, रवि हम सबको छोड़कर चले गये.... सब खत्म हो गया पापा, आप प्लीज जल्दी आ जाओ...
इससे जादा मै कुछ नही बोल पायी और फोन काट दिया... मेरे फोन काटते ही एंबुलेंस आ गयी और उसमे से एक अटेंडेंट रवि के पास आया और उनकी हालत देखकर उनकी नब्ज टटोलते और दिल की धड़कने चेक करते हुये बोला- अरे ये तो खतम हो गये....
मैने हाथ जोड़कर रोते हुये उनसे मिन्नत करी और कहा- भइया प्लीज एक बार इन्हे ऑक्सीजन देकर अस्पताल ले चलिये मुझे विश्वास है कि ये उठ जायेंगे...
मेरी ये बात सुनकर वो झुंझुलाते हुये बोला- यहां जिंदा आदमी के लिये तो एंबुलेंस कम पड़ रही हैं आप मरे हुये को ले जाने की बात कर रही हैं... बाहर निकल कर देखिये कैसा हाहाकार मचा हुआ है पूरे लखनऊ शहर मे....
मै रोते हुये बोली- ऐसा मत बोलिये भइया.... प्लीज ले चलिये....
मेरी लाख मिन्नते करने के बाद भी वो नही माना और उसने चीफ मेडिकल ऑफीसर के ऑफिस मे फोन करके सारा हाल बता दिया, उसके फोन करने के दस पंद्रह मिनट बाद ही वहां से दो अधिकारी पुलिस के साथ घर आ गये, हम सब लोग रवि के पास ही बैठे रो रहे थे.... उन्हे उठाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे... ये देखकर वो अधिकारी गुस्से से बोले- इन सबके टेस्ट करवाओ और इस घर को सील करो, रिपोर्ट आने तक आइसोलेट करो इन सबको और आप लोग ये क्या मरीज के पास बैठे हुये हैं.... दूर हटिये बॉडी से....
उनके कहने पर भी जब हम लोग रवि से दूर नही हटे तो उन्होने दो महिला कॉंस्टेबलो से कहकर हमे जबरदस्ती रवि से दूर हटाया और कमरे से बाहर कर दिया...हमे कमरे से बाहर करके उनमे से एक अधिकारी ने पूछा- इनका टेस्ट करवाया था आप लोगो ने??
मैने कहा- जी करवाया था...
वो बोले- तो रिपोर्ट कहां है??
मैने कहा- रात तक आयेगी...
वो बोले- किस पैथोलॉजी से करवाया था रसीद दीजिये...
इसके बाद जब मैने उन्हे रसीद दी तो उन्होने उस पैथोलॉजी मे फोन करके रवि की रिपोर्ट के बारे मे पता किया तो पता चला कि रवि कोरोना पॉजिटिव थे.....
रिपोर्ट जानने के बाद तो वो और तेजी मे आ गये और उन्होने रवि की बॉडी को एक सफेद कपड़े मे बांधा और वहां से उन्हे ले जाने लगे.... रवि को ले जाते देख मै एकदम से चीख कर रोते हुये बोली- अरे ये क्या कर रहे हैं आप लोग...कहां ले जा रहे हैं इन्हे....
मेरे बाद रवि की मम्मी भी बदहवास सी रवि का नाम लेकर चीखते हुये जबरदस्ती कमरे मे जाने लगीं तो हमारा सबका रोना देखकर शायद उन अधिकारियो का दिल पसीज गया और हमे हिम्मत बंधाते हुये वो बोले- मैडम हालात ही कुछ ऐसे बन गये हैं इस बीमारी के कारण कि हम मजबूर हैं, हमको इनका अभी के अभी दाह संस्कार करना पड़ेगा.... हम इनकी बॉडी को यहां छोड़ नही सकते, आप हमारी भी मजबूरी को समझिये और प्लीज हमे हमारा काम करने दीजिये....
उन लोगो ने बड़ी आसानी से कह दिया कि रवि का दाह संस्कार करना है.... वो रवि जिनकी तबियत भले खराब थी पर थोड़ी देर पहले तक वो बात कर रहे थे और थोड़ी देर बाद ही उनके दाह संस्कार की बात होने लगी थी....
अपनी बात कहते कहते मैत्री बहुत दुख करके रोने लगी थी... इसके बाद अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये मैत्री ने कहा- वो लोग रवि को ले जाने लगे.... ये देखकर मै, रवि की मम्मी पापा, दोनो बहने हम सब रोते हुये उनसे मिन्नते करने लगे कि प्लीज हमे भी ले चलिये हम भी घाट तक रवि के साथ जायेंगे पर उन्होने हमारी एक नही सुनी... हम सबने उनके पैर पकड़ लिये ये कहते हुये कि "प्लीज ले चलिये हमे... इसके बाद तो हम रवि से कभी नही मिल पायेंगे"
हमे ऐसे रोते बिलखते देख उन लोगो का दिल पसीज गया और उनमे से एक अधिकारी बोला- ठीक है.... लेकिन आप मे से सिर्फ दो लोग ही घाट तक जायेंगे....
उनके ऐसा कहने पर रवि की मम्मी घाट जाने की जिद करने लगीं लेकिन उस दिन मै भी जिद पर अड़ गयी कि मै तो जाउंगी ही जाउंगी लेकिन रवि की मम्मी मान ही नही रही थीं.... फिर रवि के पापा ने उन्हे समझाते हुये कहा- तुम रहने दो तुम्हारी तबियत बिगड़ जायेगी... तुम, अंकिता और मोना यहीं से रवि को आखरी बार प्रणाम करलो, मैत्री को जाने दो मेरे साथ... रवि उसका पति है, उस बेचारी का तो इतनी कम उम्र मे सब कुछ उजड़ गया...
रवि के पापा के समझाने पर पता नही कैसे रवि की मम्मी मान गयीं.... और जब घाट जाने के लिये हम लोग घर से बाहर निकले तो देखा कि पापा मम्मी, राजेश भइया, चाचा जी और चाची जी बाहर खड़े रो रहे थे और पुलिस वालो से अंदर आने के लिये हाथ जोड़कर मिन्नते कर रहे थे.... पर कोरोना का केस होने की वजह से कोई उन्हे अंदर नही आने दे रहा था, दूर से ही सफेद कपड़े मे बंधी रवि की बॉडी को देखकर पापा को चक्कर आ गये.... राजेश भइया उन्हे संभाल रहे थे और मै दूर खड़ी ये सब देखकर बेतहाशा बस रोये जा रही थी, वो पुलिस वाले मुझे भी मम्मी पापा के पास नही जाने दे रहे थे क्योकि उन्हे इंफेक्शन का डर था.... वो लोग मुझे देखकर रो रहे थे और मै उन्हे देखकर बेतहाशा बस रोये जा रही थी.... समझ ही नही आ रहा था कि ये अचानक से हो क्या गया हमारे साथ.... हमारी जिंदगी मे इतना बड़ा तूफान कैसे आ गया....
इसके बाद वहां से चलकर हम जब घाट पंहुचे तो मुझे और रवि के पापा को दूर खड़ा कर दिया गया और दो लोगो ने रवि की बॉडी को उठाकर इतनी बुरी तरह चिता पर पटका कि ये देखकर मेरी चीख निकल गयी और मैने चीखते हुये कहा- अरे आराम से रखिये उनको.... उन्हे चोट लग जायेगी.... पति हैं वो मेरे...!!
पर उन लोगो ने मेरी एक ना सुनी और रवि की चिता मे आग लगा दी...... रवि पंचतत्व मे विलीन हो चुके थे और मै खड़ी देखती रह गयी, मै अभागन रवि के लिये कुछ नही कर पायी.... मै उन्हे बचा नही पायी.....
अपनी बात कहते कहते मैत्री बहुत जादा दुखी होकर रोने लगी.... मैत्री की बाते सुनकर और उसे ऐसे रोते हुये देखकर जतिन भी अपने आंसू नही रोक पाया और उसे अपने सीने से लगा कर खुद भी रोते हुये और अपने आप को जैसे तैसे संभालते हुये सुबकने लगा....
क्रमश: