Pratishodh - 4 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | प्रतिशोध - 4

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प्रतिशोध - 4

वह ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी से तंग आ गयी थी।रोज के ताने और मारपीट ने उसे तोड़कर रख दिया था।वह ऐसी जिंदगी से बेहतर मर जाना पसंद करने लगी थी।उसे आत्महत्या जिंदगी से बेहतर लगने लगी।कम से कम इस जिल्लत भरी जिंदगी से तो छुटकारा मिलेगा।और वह अपने फैसले को अमली जामा पहनाती।उससे पहले
सर्दियों के दिन।वह कपड़े सुखाने के लिए छत पर गयी थी।आज उसने सिर धोया था।वह कपड़े सुखाने के बाद छत की मुद्गली पर बैठ गयी।उसने बाल सुखाने के लिए बालो को फैलाकर बैठ गयी
सूंदर
तभी उसे आवाज सुनाई पड़ी थी।उसने भृम समझकर झटक दिया
कुछ देर बाद फिर आवाज आई थी
अति सुंदर।ब्यूटीफुल
इस बार आवाज सुनकर वह उठ खड़ी हुई औऱ उसने मुड़कर देखा था।उसके सामने एज सुदर्शन युवक खड़ा था
"कौन हो तुम?"रानी उसे देखकर बोली थी
"उमेश।मेरा नाम उमेश है
"लेकिन तुम छत पर कैसे चले आये
"मैं आपकी छत पर नही हू।बगल वाली छत पर हूँ
"उस पर भी कैसे आये
"इस छत पर जो कमरा है उसे मैने किराये पर लिया है
"अभी कुछ बोले थे
"हा।मैने कहा था सूंदर
"जानते हो लडक़ी छेड़ना जुर्म है
"अगर सुंदर को सुंदर कहना जुर्म है तो मैं इस जुर्म कि सजा भुगतने के लिए तैयार हूँ,"उमेश बोला,"तुम बहुत सुंदर हो।ऐसा लग रहा था चांद को बादलों ने घेर लिया हो
"अरी कहा गई
नीचे से मामी की वाज सुनाई पड़ी थी।
आई
और वह नीचे भाग गई थी।
अगले दिन जब रानी छत पर गयी तो उमेश उसे देख कर पास आ गया।
"कहाँ से आये हो तुम?"रानी ने उससे पूछा था
"गांव से
"कोई नाम भी है गांव का या बिना नाम का है
"बरार
"गांव से यहाँ क्यो आये हो
"कम्प्यूटर कोर्स करने
अहह उमेश कि बात सुनकर रानी हंसी थी।उसे हंसता देखकर उमेश बोला
तूम हंस क्यो रही हो
"तुम्हारी मूर्खता पर
"मेरी कौनसी मूर्खता
"कम्प्यूटर कोर्स करना ही था तो किसी बड़े शहर में जाते।इस कस्बे में क्यो आय हो
"कोर्स तो चाहे यहा से करू या शहर से एक ही बात है।जितने बड़े शहर में जाता उतने ही ज्यादा पैसे लगते
कितने दिन का है
यह कोर्स जो मैं करने के लिए आया हूँ।छह महीने का है
और रानी की उमेश से बाते होने लगी।रानी छत पर ज्यादा देर के लिए नही जा पाती थी।।ममी उसे दिन में एक मिंट के लिए भी फालतू नही बैठने देती थी।न जाने कौनसे जन्म की दुश्मनी मामी उससे निभा रही थी।
एक दिन रानी छत पर कपड़े सुखाने के लिए गयी तो उमेश उसके इनत जार में छत पर टहल रहा था।
"देखो मैं कबसे इनत जार कर रहा हूँ
क्यो
तुम्हारा चांद सा चेहरा देखने के लिये
अचछा
रानी कपडे सुखाते हुए बोली थी
क्या तुंमने झूठ बोलने की भी ट्रेनिंग ली है
क्यो?ऐसा क्यो कह रही हो
तुम्हे मेरा मुखड़ा चांद से जो नजर आ रहा है।कहीं लोग चांद को देखना छोड़कर मुझे न देखने लगे
मेरी बात को मजाक समझ रही हो
उमेश बोला
तुम सम्पूर्ण सुंदरता में ढली हो
उमेश की बात सुनकर रानी चुप रही।उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी
तुमहारी आंखे।झील सी गहरी है।तुम्हारे होठ गुलाब की पंखड़ी से है।बाल है या काली घटा।तुम सम्पूर्ण रूप से सुंदरता की देवी हो।आकाश से उतरी अप्सरा
और कुछ अगर कहने से रह गया हो तो वो भी कह डालो
तुम्हारा नाम तो मैंने आज तक नही पूछा
तुम्हारा नाम क्या है