गांव की सड़कों पर टूटी चप्पलों से लेकर भोपाल की तंग गलियों और सोनभद्र के पथरीले पहाड़ों की हवा खाते-खाते मुंबई की लोकल में अपनी पसलियां तुड़वाने तक के सफ़र में न जाने कितने लम्हें थे जब सब हार जाने का मन किया, खुद को महीनों तक किराए के कमरे में बंद रखा, कभी लगातार गिरते वज़न की चिंता नहीं आई, और बदलते शहरों के साथ साथ पसंदीदा इंसानों के खो जाने की प्रक्रिया भी चलती रही ।2017 के बाद से कभी भी हिंदी विषय को स्कूल या कॉलेज में नहीं पढ़ा लेकिन हिंदी साहित्य ने कभी खुद से अलग नहीं किया... वाणिज्य की किताबों की जगह प्रेमचंद की मानसरोवर, गोदान और कफ़न ने ले ली। रात में सोने से पहले यशपाल का झूठा सच पढ़ने बैठता तो सुबह कब हो जाती पता नहीं चलता था, धर्मवीर भारती की गुनाहों का देवता पढ़ते पढ़ते न जाने कितनी दफ़ा आँखों से आँसू छलक आए होंगे, वहीं फणीश्वरनाथ रेणू की मैला आँचल ने कितने ही नए सवालों को जन्म दे डाला।काशी हिंदू विश्वविद्यालय की केंद्रीय लाइब्रेरी में जब एक अल्हड़ उम्र का युवक सिर्फ़ एक पार्लेजी बिस्किट और एक कप चाय पीकर दिन भर गुज़ार देता और भूख उपन्यासों के पन्नों को नोच कर शांत हो जाती तब तब मेरे हिस्से की कविताओं ने जन्म लिया... मैंने नहीं सोचा कि मेरी कविताएं इस सदी में क्रांति लेकर आएंगी या नहीं परंतु मैंने इतना जरूर चाहा कि दुनिया भर की लाइब्रेरियों में बैठे लोगों तक ये खबर पहुँच जाए कि उनके कंधे पर इस दुनिया को सुंदर बनाने का बोझ है।मुंबई आने के बाद भी हालात वैसे ही रहे अब पार्ल-जी बिस्किट की जगह सिर्फ चाय ही बची क्योंकि यहाँ काँच के गिलास की चाय कुल्हड़ की चाय से महँगी है। अब शायद सही समय है कि कक्षा के उन सभी उद्दंड बच्चों के गले में लटके लूजर्स के मेडल निकाल फेंकने चाहिए अब लगता है सिगमंड फ्रायड की थ्योरी का ब्रांड एंबेसडर मुझे बनना चाहिए, अब लगता है जिंदगी मार्क्सवाद, पूंजीवाद और समाजवाद के आस पास घूमती है लेकिन भूखे पेट तो इन सब विषयों पर तर्क वितर्क भी नहीं किए जा सकते।
इन सब बातों के बीच मेरे ज़हर के दिनों में मेरे हिस्से की दुनियां सींचने के लिए तुम्हारा शुक्रिया इस क़िताब का एक हिस्सा तुम्हारी बनाई दुनिया से चुराया गया है।
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आख़िर में, क़िताब पढ़ने के बाद आपका रिव्यू मेरी आगे की यात्रा तय करेगा।
और यक़ीन रखिए ये दुनिया आज भी सुंदर है।
किसी रोज़ बारिश में अश्रु बन के बह जाऊंगा, तुम इतना याद ना आओ मुझे इश्क विच मर जाऊंगा।
किसी रोज़ सेहरी धूप बन के तुमको सताऊंगा, उस रोज़ बारिश बन के तुमको भीगाऊँगा।
मोहब्बत है और बेपनाह है जिस दिन तुमको बताऊंगा, तुम पलट कर जवाब मत देना मैं इनकार सेह नहीं पाऊंगा।
जो लिखी हे बहुत सारी कविता तुम्हारी वो सुनाऊंगा, जब मिलोगी तो सारी गज़ले तुमको दिखाऊंगा।
तुम्हारी हर खुशबू को दिल में समेट कर विलिन हो जाऊंगा, किसी रोज़ आओ तो उसी राह में मिल जाऊंगा।