📝📝 पत्र समाप्त हो गया..।। 🪷🪷
नागराज ने पत्र ✉️ लिखा और उसे छोटे बक्से 🗳 में रख दिया। नागराज ने सोचा कि वह दक्ष और देविका को एक साथ बैठा देंगे , किताब 📕और पत्र 📩उनके पास रखेगे ताकि जब मोहनलाल वापस आए तो वह पत्र देख ले और उसको पढ़ सके। सब कुछ सोचने के बाद नागराज देविका के पास गए। देविका अभी भी फर्श पर लेटी हुई थी। नागराज ने देविका को उठाया और कमरे में बिस्तर🛏 पर लिटा दिया। कुछ देर आराम करने के बाद देविका को होश आ गया। देविका ने आँखें खोलीं। आँखें खुलते ही देविका के माथे के बीच में बहुत तेज रोशनी दिखाई देने लगी। वह प्रकाश नागमणि का था। अब नागमणि देविका के शरीर में ही रहेगी. नागमणि अब देविका के शरीर पर अपनी शक्तियों का असर दिखा रही है ।। देविका की आंखें नीली हो गईं।।उनके माथे पर एक चमक दिख रही थी जो कुछ ही घंटों में अपने आप कम हो जाएगी.।।
अचानक मोहनलाल वापस आ जाता है क्योंकि उसे जो काम मिला था वह काम कुछ दिनों के लिए delay हो गया था। मोहनलाल बीच रास्ते से वापस आता है। मोहनलाल अब अपने रास्ते पर है। वह देविका को लेने मंदिर जा रहा है। रास्ते में मोहनलाल अपनी पत्नी रानी के बारे में सोच रहे है। उनकी पत्नी बहुत प्यार करने वाली और देखभाल करने वाले स्वभाव की थी। वह मासूम थी और देविका में उसकी माँ की तरह ही विशेषताएं थीं। वह इतना सोचता ही रहता है कि अचानक आवाज आती है, उतरो श्रीमान, मंदिर आ गया है। मोहनलाल रिक्शे से उतर गया। रिक्शा चालक को भुगतान करने के बाद मोहनलाल मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं। मोहनलाल ने आवाज लगाई पंडित जी अरे अरे मेरे प्यारे दोस्त तुम और मेरी बेटियाँ कहाँ हो अरे तुम कहाँ चले गये। मंदिर में चारों तरफ सन्नाटा है, सुबह के 4 बजे हैं और पंडित जी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं. मोहनलाल की आवाज सुनते ही नागराज दौड़ पड़ते हैं! मोहन मोहन तुम आ गए ,अचानक आवाज आई आवाज दीवार के पीछे से आ रही थी । अचानक पेंटिंग धीरे-धीरे एक दरवाजे में तब्दील होती जा रही है। यह सब देखकर मोहनलाल की सांसें थम गईं। वह आश्चर्य से गहरी साँसें लेने लगा। अचानक पूरा दरवाज़ा🚪 खुल गया।।मोहनलाल को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि यह क्या हो रहा है। मोहनलाल ने फिर पुकारा "पंडित जी, कहाँ हैं आप?" देखो ये सब क्या हो रहा है. ...क्या मैं कोई सपना देख रहा हूँ?
दरवाज़ा पूरा खुला और चारों तरफ रोशनी थी हो गयी अचानक अंदर से आवाज़ आई - पापा, पापा, यह देविका की आवाज़ है। मोहनलाल अंदर भागा। मोहनलाल अंदर गया ही था कि दरवाज़ा बंद हो गया। मोहनलाल को बहुत आश्चर्य हुआ कि यह क्या हो रहा है। अंदर एक विशाल महल था जिसमें कई साँपों की मूर्तियाँ, भगवान शिव की मूर्ति🖼, एक बगीचा, एक फव्वारा था। ऐसा लग रहा था मानों वह किसी राजा के महल में आ गया हो। अंदर नागराज देविका और दक्ष के साथ खड़े थे। आओ मेरे प्यारे दोस्त, मेरे पास बहुत कम समय है। नागराज के पास सिर्फ 1 घंटा है, एक घंटे बाद वह सांप के रूप में आ जायेगे और अगले 18 साल तक ऐसे ही रहेंगे। नागराज ने मोहनलाल से कहा "प्रिय मित्र, मैं आपका मित्र पंडित जी हूं"। मोहनलाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था।। आओ दोस्त, बैठो, मैं तुम्हें समझाता हू। मेरे पास केवल एक घंटा है. ।। इस पत्र और पुस्तक को अपने पास रखो, मैंने इसमें सब कुछ लिखा है। ये आपको आगे का रास्ता दिखाएंगे. नागराज देविका और दक्ष दोनों को मोहनलाल के पास भेजते है। मित्र, अब ये दोनों बच्चे आपकी जिम्मेदारी हैं। अब तुम्हें मेरे पुत्र दक्ष का भी ध्यान रखना होगा।। अरे तुम हो कों और क्या बोले जा रहे हो??
मोहन लाल ने देविका की ओर देखा, उसके माथे के अंदर कुछ चमक रहा था और उसकी आँखें नीली हो गई थीं। मुझे बताओ अजनबी, तुमने मेरी बेटी के साथ क्या किया, मुझे बताओ तुमने क्या किया। देविका, क्या तुम ठीक हो, क्या तुम ठीक हो? देविका कुछ जवाब नहीं दे रही है. ।।सुनो मित्र, मैं कोई अजनबी नहीं हूं, मैं आपका मित्र हूं पंडित जी और मैं एक इच्छाधारी नाग हूं। सुनो अजनबी, क्या कह रहे हो, क्या मैं तुम्हें पागल लग रहा हूँ? आप झूठ बोल रहे हैं। इच्छाधारी साँप जैसी कोई चीज़ नहीं होती, दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं होती, सुना आपने तुम झूठ बोल रहे हो। नागराज कहते है मित्र ऐसी बात है, मैं सच कह रहा हूं, तुम्हें कुछ समय में इसका प्रमाण मिल जाएगा। कुछ समय बाद मैं साँप बन जाऊँगा, तब तुम किसी मनुष्य को साँप बनते हुए अपनी आँखों से देख लेना।। 🖇🖇
नागराज मोहनलाल को वो सारी बातें बताता है जो पंडित जी और मोहनलाल के बीच रहस्य थे। नागराज कहते हैं अब विश्वास करो मित्र मैं तुम्हारा मित्र हूं। मोहनलाल थोड़ी देर रुकते हैं, थोड़ी देर बाद कहते हैं ठीक है मैंने तुम पर विश्वास कर लिया है, अब बताओ क्या करना है। मोहनलाल ने देविका का हाथ पकड़ा और देखा कि देविका का शरीर गर्म था, उसे लगा कि देविका को बुखार है। मोहनलाल पूछता है कि देविका को क्या हुआ है, नागराज कहता है कि पत्र पढ़ने के बाद तुम्हें सब कुछ पता चल जाएगा। अच्छा ठीक है अब बताओ नागराज तुम मुझसे क्या चाहते हो? नागराज दक्ष को अपने पास बुलाते हैं और मोहनलाल को दक्ष के बारे में बताते हैं कि यह मेरा बेटा दक्ष है, आज से तुम इसका ख्याल रखोगे। मुझे वचन दो मित्र कि जब देविका बड़ी हो जायेगी तो तुम उसका विवाह मेरे पुत्र दक्ष से ही करोगे। मोहनलाल कुछ नहीं बोल सके। नागराज ने कहा कि अगर तुम देविका की शादी किसी आम आदमी से करोगे तो यह अनर्थ होगा और देविका की मृत्यु भी हो सकती है। मोहनलाल ने बिना कुछ सोचे समझे कहा ठीक है। इतना कहते ही नागराज साँप में बदल गये। उनके 24 घंटे पूरे हो गए और अगले 18 साल तक वो ऐसे ही रहेंगे.।।जब तक उनको नागमणि नहीं मिल जाती।।
To be continued...... 🩵🩵