Pratishodh - 3 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | प्रतिशोध - 3

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प्रतिशोध - 3

इस नफरत की वजह से ही वह प्रतिशोध ले रही थी।भले ही किया एक मर्द ने हो लेकिन उसके निशाने पर सारे मर्द आ गए थे।
रानी का जन्म दिल्ली में हुआ था।उसके पिता किसी दुकान पर काम करते थे और माँ सिलाई का काम और खर्च चल जाता था।उस समय रानी छोटी थी दूसरी क्लास में पढ़ती थी।उसके माता पिता शायद किसी गमी में गए थे।वहां से लौटते समय बस का एक्सीडेंट हो गया और दोनों नही रहे।रानी का रो रोकर बुरा हाल था।रिश्तेदारी के नाम पर उसके मामा मोहन थे।वह भी सगे नही।दूर के।उन्हें जबइस। बात का पता चला तो वह दौडे चले आये औररानी को अपने साथले गए।
रानी के आने पर मामी यानी मोहन की पत्नी कमला को जरा भी खुशी नही हुई थी।मामा नौकरी करते थे। उनके दो बेटे और एक बेटी थी।वह रानी और अपने बच्चों में कोई भेद नहीं करते थे।लेकिन मामी ऐसा न सोचती न करती थी। मामी के लिए रानी पराई थी और उसके साथ वह वैसा ही बर्ताव करती थी।मामा ने रानी को स्कूल में भर्ती करा दिया था।
समय का पहिया धीरे धीरे अपनी गति से चल रहा था।रानी भी बड़ी हो रही थी।मामा अक्सर उससे कहते
बेटी बड़ी होकर डॉक्टर बनना
पति की बात सुनकर कमला कहती"तुम्हारे पास है इतने रु जो इसे डॉक्टर बना दोगे
"सब प्रभु की कृपा है।वो ही कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेगा।
जब भी मोहन ऐसा कहता उसकी पत्नी का खून खोल जाता।पर पति के सामने उसकी एक नही चलती थी।और मोहन की इच्छा पूरी नहीं हो पाई।।एक दिन अचानक मोहन इस दुनिया को छोड़कर चला गया।रानी को चाहने वाला।प्यार करने वाला उसका मामा इस दुनिया मे नही रहा।और रानी दूसरी बार अनाथ हो गयी थी।पहले तब जब उसके माता पिता बचपन मे गुजर गए थे।दूसरी बार मामा के न रहने पर वह अपने को अनाथ महसूस कर रही थी।
मामा के मरने के बाद
सुबह रानी को तैयार होता देखकर कमला बोली,"कहाँ की तैयारी हैं
"मामी स्कूल
"बहुत हो गया तेरा स्कूल।आज से तेरा स्कूल बंद।घर का काम कौन करेगा
और जो काम मामा के रहते नही करने पड़े
सुबह पांच बजे ही मामी उसे आवाज दे देती।सबसे पहले सबके लिव वह चाय बनाती।फिर झाडू पोंछा और मामी के तीनों बच्चो के लिए टिफिन तैयार करना।बरत न और कपड़े।सुबह से रात देर तक वह काम मे लगी रहती।फिर भी मामी उसे कामचोर कहती ।आये दिन किसी ने किसी काम मे गलती निकाल कर उसकी पिटाई लगा देती।रानी अपनी किस्मत को कोसती।किस्मत खराब न होती तो क्यो बचपन मे ही उसके सिर से माँ बाप का साया उठ जाता।
और दूसरा साया मिला भी था तो वह लम्बा नही रहा।उसे फिर से मझदार में छोड़ गया था।
दिन में सारे काम से जब वह फ्री हो जाती तब उसे कपड़े धोने होते थे।सबके कपडे।मामी खाना खाकर अपने कमरे मे जाकर सो जाती।वह कपड़े धोकर ऊपर छत पर उन्हें
सुखाने के बाद बैठ जाती और अकेले में अपनी किस्मत पर आंसू बहाती
मामी के तानों और उत्पीड़न से इतनी तंग आ चुकी थी कि आत्महत्या के बारे में सोचने लगी थी।अपनी जिंदगी से छुटकारा
क्या फायदा नरक जैसी जिंदगी से