Bachcho me dale Garbh se Sanskaar - 5 in Hindi Anything by नीतू रिछारिया books and stories PDF | बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 5

Featured Books
Categories
Share

बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 5

मां की भावनाओं का गर्भ में बच्चे के डेवलपमेंट पर प्रभाव—

संतान की प्रथम शिक्षिका माँ ही होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि आदर्श माताएँ अपनी संतान को श्रेष्ठ एवं आदर्श बना देती हैं। माँ के जीवन और उसकी शिक्षा का बालक पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। माँ संतान में बचपन से ही सुसंस्कारों की नींव डाल सकती है। संतान की जीवन वाटिका को सद्गुणों के फूलों से सुशोभित करने से खुद माता का जीवन भी सुवासित और आनंदमय बन जायेगा। संतान में यदि दुर्गुण के काँटें पनपेंगे तो वे माता को भी चुभेंगे और शिशु, माता एवं पूरे परिवार के जीवन को खिन्नता से भर देंगे। इसीलिए माताओं का परम कर्तव्य है कि संतान का शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक संरक्षण और पोषण करके आदर्श माता बन जायें। नन्हा सा बालक एक कोमल पौधे जैसा होता है। उसे चाहे जिस दिशा में मोड़ा जा सकता है। अतः बाल्यकाल से ही उसमें शुभ संस्कारों का सिंचन किया जाय तो भविष्य में वही विशाल वृक्ष के रूप में परिणत होकर भारतीय संस्कृति के गौरव की रक्षा करने में सक्षम हो सकता है। बालक देश का भविष्य, विश्व का गौरव और अपने माता-पिता की शान है उसके भीतर सामर्थ्य का असीम भण्डार छुपा है, जिसे प्रकट करने के लिए जरूरी है उत्तम संस्कारों का सिंचन। किसान अपने खेत में उत्तम प्रकार की फसल पैदा करने के लिए रात-दिन मेहनत करता है। वर्षा से पूर्व जमीन जोतकर खाद डाल के तैयार करता है। वर्षा आने पर खेत में बहुत सावधानी से उत्तम प्रकार के बीज बोता है व फसल तैयार होने तक उसका खूब ध्यान रखता है परंतु ऐसा ध्यान संतान प्राप्ति के संदर्भ में मनुष्य नहीं रखता। कुम्हार मिट्टी को जैसा चाहे वैसा आकार दे सकता है परंतु आँवे में पक जाने पर उसके आकार में चाहकर भी परिवर्तन नहीं कर सकता। ठीक इसी प्रकार माँ के गर्भ में शिशु के शरीर का निर्माण हो जाने पर एवं उसके दिमाग की विविध शक्तियों का उत्तम या कनिष्ठ बीज प्रस्थापित हो जाने के बाद, उसके अंतःकरण में सद्गुण या दुर्गुणों की छाप दृढ़ता से स्थापित हो जाने के बाद शारीरिक-मानसिक उन्नति में पाठशाला, महाशाला एवं विविध प्रकार के प्रशिक्षण इच्छित परिणाम नहीं ला पाते। माँ के आहार-विहार व विचारों से गर्भस्थ शिशु पोषित व संस्कारित होता है। जगत में कुछ भी असम्भव नहीं है। प्रत्येक गर्भवती महिला अपने यहाँ श्रीरामचन्द्रजी, श्रीकृष्ण, अर्जुन, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, कबीरजी, तुलसीदास जी, गार्गी, मदालसा, शिवाजी, गाँधी जी, आल्बर्ट आइन्स्टाइन, सर आइज़ैक न्यूटन, मेरी क्युरी, सरोजिनी नायडू, कल्पना चावला, रतन नवल टाटा, श्री नरेंद्र मोदी, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, क्रिस्टियानो रोनाल्डो, "स्टीव" जॉब्स, बिल गेट्स, इलॉन मस्क, लता मंगेशकर जैसी महान विभूतियों को जन्म दे सकती है। प्रत्येक दम्पत्ति को गम्भीरता से सोचना चाहिए कि अपनी लापरवाही से अयोग्य शिशु उत्पन्न करना समाज व राष्ट्र के लिए कितना अहितकारी साबित हो सकता है। गर्भ में बच्चे का जो भावनात्मक केंद्र (इमोशनल सेंटर) है उसका डेवलपमेंट सातवें महीने पर होता है यानी गर्भ जीवन में माताओं की भावना का जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। मां की जो भी भावना है उसका भयानक असर( ट्रिमेंडस इफेक्ट) बच्चे की भावना पर पड़ता है। अब हमें यह समझना है कि हमारे इमोशन कैसे काम करते हैं- हमारे अंदर दो तरह के सिस्टम होते हैं एक पैरा सिंपैथेटिक और दूसरा सिंपैथेटिक सिस्टम यह हमारे शरीर के पूरे सिस्टम को नियंत्रित करते हैं और यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं, जब भी हम खुश होते हैं- हमारे अंदर भी हारमोंस रिलीज होते हैं जैसे कि डोपामाइन, एंडोर्फिन और सेरोटोनिन है ये रिलीज होते हैं। जब भी हम दुखी होते हैं तो एड्रीनलिन और नॉरॅडएनलिन (Noradrenaline) कैटेकोलामीन (Catecholamine) ऐसे हार्मोन रिलीज होते हैं ,यानी सारे हार्मोन केमिकल है हम सब जानते हैं कि मां जो भी भोजन लेती है वह बच्चे के अंदर केमिकल रूप में प्लेसेंटा के द्वारा बच्चे तक पहुंचते हैं जैसे कि अगर हम देखे तो मां जो कुछ भी खाना खाती है तो वो जो खाना है- (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिंस) के रूप में बच्चे की तरफ या बच्चे के पास पहुंचते हैं। अब जो भी हार्मोन रिलीज होते हैं वह भी केमिकल हैं तो वो भी प्लेसेंटा के द्वारा बच्चे तक पहुंचते हैं अब बच्चा भी मनुष्य है तो उस पर भी वही प्रभाव पड़ते हैं जो प्रभाव मां पर पड़ते है । अगर खुशी वाले हार्मोन है तो बच्चा भी अच्छा महसूस करता है अगर तनाव वाले हार्मोन है तो बच्चा भी तनाव महसूस करता है और तनाव के समय बच्चे का विकास रुक जाता है क्योंकि हमारा जो शरीर है वह सुरक्षा मोड में आ जाता है और जब हम सुरक्षा मोड में है तो हम ग्रोथ नहीं कर सकते मां के जो विचार होते हैं उनका प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है वो बच्चे के विकास को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरफ से प्रभावित करते हैं यानी गर्भावस्था में हमारी सोच का सीधा असर अंदर पल रहे बच्चे के विकास पर पड़ता है। गर्भावस्था हर महिला के लिए एक अलग अनुभव होती है ऐसे में इस अनुभव को बेहतरीन अनुभव में बदलने की ख्वाहिश हर महिला की होती है लेकिन कई बार ऐसा होता है कि गर्भवती महिलाएं अपने को नकारात्मक विचारों और भावनाओं से घिरी हुई पाती हैं कभी-कभी वह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों भावनाओं को एक साथ महसूस करती हैं इसका गलत प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ सकता है ऐसे में गर्भावस्था के दौरान आप सकारात्मक रहना चाहती हैं तो फिर उसके लिए उपाय करें गर्भावस्था में गर्भवती महिला को चाहिए कि वह अपने दिमाग में कभी भी नकारात्मक विचारों को न आने दे। गर्भावस्था में अक्सर दिमाग में कई तरह की बातें चलती रहती हैं ऐसे में महिलाओं को चाहिए कि वह अपने दिमाग को सकारात्मक विचारों के लिए ट्रेंड करें, मेडिटेशन करें। गर्भावस्था के दौरान मेडिटेशन बहुत अच्छा माना जाता है, यह आपकी उर्जा को न केवल बढ़ाता है बल्कि मेडिटेशन दिमाग को शांत रखता है और शरीर को भी रिलैक्स करने का काम करता है। सुबह के समय मेडिटेशन जरूर करें। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाएं जो भी सोचती हैं, जो भी पढ़ती हैं उन सब का असर गर्भस्थ शिशु पर बहुत पड़ता है, इसलिए गर्भावस्था के समय हमेशा प्रेरणादायक किताब जरूर पढ़ें। सोने जाने से पहले या जब भी आप खाली हो आदत बना लें कि कोई न कोई अच्छी और प्रेरणादायक किताब आपको पढ़ना ही है नकारात्मक लोगों को दूर रखें, गर्भावस्था के दौरान ऐसे लोगों से और भी ज्यादा दूर रहना चाहिए क्योंकि इसका असर बच्चे पर पड़ने लगता है अगर आपके आसपास ऐसे लोगों की बहुतायत है वह तो आपको उनसे से दूरी बना लेनी चाहिए इसके बदले अपने आसपास के लोगों का एक दायरा बनाएं। हमेशा आशावान बनी रहे। गर्भावस्था में कभी-कभी फुल टाइम पर थोड़ा क्रिटिकल मामला हो जाता है ऐसे में हताश होने की बजाए आशावान बने कि जो होगा बहुत अच्छा होगा ऐसी सोच हमेशा हमें कठिन से कठिन परिस्थिति से भी बहुत आसानी से बाहर निकाल देती है आपकी यही सोच बच्चे पर सही और सकारात्मक प्रभाव डालेगी ।