shadow of ring finger in Hindi Horror Stories by Dr Atmin D Limbachiya books and stories PDF | अनामिका का साया

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अनामिका का साया

अनामिका का साया


रात्रि का समय था, आसमान में काले बादल छाए हुए थे, जैसे कि कोई भयानक तूफान आने वाला हो। हल्की बारिश की बूंदें अंधेरे में अनजाने भय की आहट बनकर जमीन पर गिर रही थीं। अविनाश, एक साधारण नौजवान, किसी अजनबी से अनजानी मुलाकात की उम्मीद में पुराने रेलवे स्टेशन पर खड़ा था। यह स्टेशन कई सालों से वीरान पड़ा था, और लोग यहां आना भी पसंद नहीं करते थे। फिर भी अविनाश को वहां कुछ खींच लाया था, मानो किसी अदृश्य ताकत ने उसे वहां बुलाया हो।

अविनाश का मन भारी था, जैसे किसी बात का बोझ उसे दबा रहा हो। वह अपने अतीत की परछाइयों से भाग रहा था। उसने अपने कॉलेज के दिनों की यादों को पीछे छोड़ने की कोशिश की, जब उसकी ज़िंदगी में हर चीज़ व्यवस्थित थी। लेकिन वह जानता था कि कुछ चीज़ें कभी भुलाई नहीं जातीं।

इसी दौरान, उसने एक लड़की को देखा जो एकांत में बैठी थी। लड़की का चेहरा धुंधला था, लेकिन उसकी आंखें असाधारण रूप से चमक रही थीं, जैसे किसी अन्य लोक से आई हो। उसकी आँखों में एक रहस्यमय आभा थी, जो अविनाश को अपनी ओर खींच रही थी। अविनाश ने उससे बात करने की कोशिश की। "तुम यहाँ इस अंधेरे में क्या कर रही हो?" उसने पूछा, उसकी आवाज में एक आशंका थी।

लड़की मुस्कुराई, उसकी आवाज गूंजते हुए शून्य से आती प्रतीत हुई। "तुम्हें क्या लगता है, मैं यहाँ क्यों हूँ?" उसकी आवाज में एक मीठा जादू था, लेकिन इसके पीछे एक अजीब सी शांति थी।

अविनाश ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और उसके पास बैठ गया। लेकिन जैसे ही वह करीब पहुंचा, उसने महसूस किया कि लड़की का शरीर ठंडा था, इतना ठंडा कि एक सिहरन उसके रोंगटे खड़े कर गई। उसे एक पल के लिए डर लगा, लेकिन उस लड़की की आंखों में कुछ ऐसा था जो उसे वहां से हटने नहीं दे रहा था। वह उसकी गहरी आँखों में खो गया।

"तुम्हारा नाम क्या है?" उसने खुद को संतुलित करने की कोशिश करते हुए पूछा।

"अनामिका," लड़की ने धीमे से उत्तर दिया।

"अनामिका?" अविनाश ने नाम दोहराया। उसे यह नाम कहीं सुना हुआ लग रहा था, लेकिन कहां, उसे याद नहीं आ रहा था। क्या यह एक सपना था? वह सोचने लगा कि क्या वह सच में यहां है, या यह सब कुछ उसके मन की कल्पना है।

अचानक, ट्रेन की सीटी सुनाई दी, लेकिन स्टेशन पर कोई ट्रेन नहीं थी। अनामिका ने एक गहरी नजर से अविनाश को देखा और कहा, "तुम्हें पता है, कुछ लोग इस स्टेशन पर कभी घर नहीं लौट पाते। उनकी आत्माएँ यहीं भटकती रहती हैं।" उसके शब्दों में एक गहरी सच्चाई थी, जो अविनाश को अंदर तक चीर गई।

अविनाश ने उसे मजाक समझकर हंसी में टालने की कोशिश की, लेकिन उसकी हंसी उसके गले में अटक गई जब अनामिका ने कहा, "जैसे मैं…"

अविनाश के शरीर में एक झुरझुरी दौड़ गई। "तुम… तुम क्या कह रही हो?" उसने घबराते हुए पूछा। 

अनामिका ने एक पल के लिए अपने बालों को हटाया, और अविनाश ने देखा कि उसकी गर्दन पर एक गहरी कट की निशान थी, जो ताज़ा था, मानो अभी-अभी किसी ने उसे चोटिल किया हो। उसकी आंखों में एक सूनापन था, जैसे वे दुनिया की किसी गहरी सच्चाई को छिपाए हुए हों। यह दृश्य अविनाश के मन में भय और दया दोनों पैदा कर रहा था।

अविनाश ने अपने पैर पीछे खींचे, लेकिन उसे महसूस हुआ कि उसके पैर किसी अदृश्य जंजीर से बंध गए थे। "यह क्या हो रहा है?" उसने घबराकर पूछा। 

"तुम यहाँ आ गए हो, अब लौट नहीं सकते," अनामिका की आवाज़ में एक अजीब-सी ध्वनि गूंज रही थी, मानो उसके भीतर कई आवाज़ें एक साथ बोल रही हों। "तुम्हें वह रात याद है, जब एक आदमी की ट्रेन के नीचे गिरकर मौत हो गई थी? और वह मैं नहीं, बल्कि तुम थे जिसने उसे धक्का दिया था।"

अविनाश की आँखों के सामने एक अतीत की धुंधली छवि उभरने लगी। वह एक शाम थी, जब उसने गुस्से में आकर किसी व्यक्ति को धक्का दिया था। वह हमेशा यह सोचता रहा कि यह एक हादसा था, लेकिन अब, सामने खड़ी अनामिका की आत्मा ने उसके जीवन का सबसे बड़ा राज खोल दिया था। 

"मैं वही आत्मा हूँ," अनामिका ने धीरे-धीरे कहा। "और मैं तुम्हें यहाँ लाने के लिए बहुत दिनों से इंतजार कर रही थी।"

अविनाश ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उसकी टांगें अब सुन्न हो चुकी थीं। वह लड़ाई करता रहा, लेकिन अनामिका की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कहीं भी नहीं जा सका। अचानक, अनामिका का चेहरा विकृत होने लगा, उसकी आंखों से खून बहने लगा और उसकी आवाज एक भयानक चीख में बदल गई। "तुम्हारा समय आ गया है, अविनाश!"

वह अविनाश की ओर झपटी और उसे जकड़ लिया। उसकी उंगलियां इतनी ठंडी थीं कि अविनाश के शरीर में जैसे बर्फ जमने लगी। उसकी सांसें धीरे-धीरे थमने लगीं, और उसके सामने अंधेरा छा गया।

अचानक, स्टेशन की बत्तियाँ फिर से जल उठीं। अविनाश ने खुद को फर्श पर गिरा हुआ पाया। वह कांपते हुए उठने की कोशिश करने लगा। चारों ओर कोई नहीं था, अनामिका भी गायब हो चुकी थी। उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और स्टेशन से भागने लगा।

लेकिन जैसे ही वह स्टेशन के बाहर पहुंचा, उसने एक आवाज सुनी - "अविनाश… तुम्हें लगता है कि तुम बच सकते हो?"

वह वापस मुड़ा, और उसने देखा कि अनामिका वहीं खड़ी थी, उसकी आंखों में वही चमक थी, जो उसने पहली बार देखी थी। "तुम कभी मुझसे दूर नहीं जा सकते," उसने कहा। "मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी… हर अंधेरे कोने में, हर परछाई में।"

अविनाश ने वहां से भागने की पूरी कोशिश की, लेकिन जैसे ही वह भागा, उसे लगा कि स्टेशन की पटरियों के पास कोई उसका पीछा कर रहा था। एक बार जब वह मुड़ा, तो उसने देखा कि अंधेरे से एक भूतिया आकृति उसकी ओर बढ़ रही थी। वह पूरी ताकत से भागने लगा, लेकिन उसकी आवाज कानों में गूंजती रही, "तुम्हें लौटकर आना होगा, अविनाश… लौटकर आना होगा…"

कई साल बीत गए। कहते हैं कि अविनाश फिर कभी नहीं दिखा। लेकिन जो भी उस स्टेशन पर जाता है, वह आज भी सुन सकता है—अनामिका की वह भयानक हंसी और अविनाश की दर्दभरी चीखें, जो रात की शांति को चीर देती हैं। 

इस स्टेशन की घड़ी अब भी वही समय दिखाती है जब अविनाश वहां से गायब हुआ था। कोई भी व्यक्ति, जो वहां देर रात तक रुकता है, उसे एक बार ज़रूर लगता है कि एक जोड़ी आंखें उसे घूर रही हैं, अंधेरे से निकलकर उसकी आत्मा को पकड़ने के लिए।

अब भी लोग कहते हैं, "कभी किसी अजनबी से दोस्ती मत करो, क्योंकि शायद वह तुम्हारे अतीत का साया हो, जो तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए लौट आया हो।"