Zindagi Ke Panne - 2 in Hindi Motivational Stories by R. B. Chavda books and stories PDF | जिंदगी के पन्ने - 2

Featured Books
Categories
Share

जिंदगी के पन्ने - 2

रागिनी के जन्म से ही घर में खुशियों का माहौल था। उसकी हंसी, उसके नन्हे हाथ-पैरों की हलचल, और उसकी भोली-भाली आंखों ने पूरे परिवार को अपने में समेट लिया था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे रागिनी बड़ी होने लगी। उसकी हर छोटी-बड़ी हरकत पूरे घर के लिए खास होती थी। उसका हंसना, रोना, और यहां तक कि उसकी नन्ही-नन्ही कोशिशें हर किसी के चेहरे पर मुस्कान ले आती थीं।

रागिनी ने धीरे-धीरे घुटनों के बल चलना शुरू कर दिया था। उसकी छोटी-छोटी उंगलियां फर्श पर रेंगती हुई चलतीं, और वह अपनी खिलखिलाती हंसी से सबका दिल जीत लेती। जब वह घुटनों के बल चलने लगी, तो उसकी परदादी ने सबसे पहले उसे देखकर कहा, "देखो, अब ये रागिनी अपनी दुनिया को खुद से जानने लगी है। जल्द ही ये अपने पैरों पर चलने लगेगी।" परदादी की ये बात सच होने वाली थी।

फिर वो दिन भी आया जब रागिनी ने पहली बार अपने नन्हे कदमों से चलने की कोशिश की। उसके माता-पिता उसे अपने पास बुला रहे थे। वह पहले घुटनों के बल आई, फिर हिम्मत जुटाकर खड़ी हुई और अपने नन्हे कदम बढ़ाए। पहले कदम पर ही वह लड़खड़ा गई, लेकिन गिरते ही उसकी हंसी छूट गई। उसकी मुस्कान देखकर सबके चेहरे खिल उठे। कुछ ही दिनों में, रागिनी ने चलना सीख लिया। अब वह पूरे घर में अपनी छोटी-छोटी चालों से दौड़ने लगी। उसकी माँ ने उसे देखा और कहा, "अब हमारी रागिनी बड़ी हो गई है, अपने पैरों पर चलने लगी है।"

रागिनी के पहले कदमों ने सबका दिल जीत लिया था, लेकिन असली ख़ुशी तब हुई जब उसने पहली बार अपनी माँ को "मम्मी" और पिता को "पापा" कहा। उसकी मासूम आवाज़ में जब ये शब्द निकले, तो घर में जैसे खुशियों की बारिश हो गई। उसके पिता उसे गोद में उठाकर घुमाने लगे और उसकी माँ ने उसे चूम लिया। वे दोनों बहुत दिनों से इस पल का इंतजार कर रहे थे।

हालांकि, सबसे खास पल तब आया जब रागिनी ने अपनी परदादी को "माँ" कहकर पुकारा। परदादी का दिल इस शब्द से पिघल गया। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि रागिनी उन्हें इस तरह से पुकारेगी। परदादी के लिए यह पल बहुत ही खास था। रागिनी को हमेशा अपनी परदादी के साथ देखा जा सकता था, जो उसे कहानियाँ सुनातीं, पुराने जमाने की बातें बतातीं, और रागिनी उनकी हर बात ध्यान से सुनती। शायद इसीलिए रागिनी ने अपने मन से परदादी को माँ का दर्जा दे दिया था। परदादी की आँखों में उस दिन खुशी के आँसू थे।

रागिनी का नन्हा संसार अब धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। उसके पड़ोस में एक लड़की रहती थी, जिसका नाम नेहा था। नेहा करीब 10-12 साल की थी, और वह रागिनी को बेहद चाहती थी। नेहा का रागिनी के साथ एक खास रिश्ता बन गया था। स्कूल से लौटते ही वह अपने बैग को एक तरफ रख देती और सीधा रागिनी के पास आ जाती। उसे रागिनी के साथ खेलना बहुत पसंद था।

रागिनी भी नेहा को देखकर खिल उठती थी। नेहा उसकी सबसे अच्छी दोस्त बन चुकी थी। वह रागिनी को तरह-तरह के खेल सिखाती, उसके साथ दौड़ती-भागती, और उसे नये-नये शब्द सिखाने की कोशिश करती। नेहा के बिना रागिनी का दिन अधूरा लगता था। जैसे ही नेहा स्कूल से आती, रागिनी उसे देखकर हंसने लगती और अपनी बाहें फैलाकर उसके पास दौड़ने लगती।

नेहा का रागिनी से लगाव इतना गहरा था कि वह न केवल उसके साथ खेलती थी, बल्कि उसे खाना भी खिलाती थी। उसकी मां और दादी जानती थीं कि नेहा जब तक स्कूल से नहीं आएगी, रागिनी ठीक से खाना नहीं खाएगी। नेहा के हाथ से ही उसे खाना खाना पसंद था। नेहा रागिनी को बड़े प्यार से खाना खिलाती और फिर उसके साथ दिनभर खेलती।

नेहा के लिए रागिनी सिर्फ एक बच्ची नहीं थी, बल्कि एक साथी थी, जिसने उसकी ज़िंदगी में एक नया मकसद जोड़ दिया था। नेहा ने रागिनी को हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह माना। वह रागिनी का ख्याल रखती, उसे सुलाती, और जब भी रागिनी रोने लगती, नेहा उसे चुप कराने की हर मुमकिन कोशिश करती।

रागिनी की दुनिया में अब नेहा का एक खास स्थान बन चुका था। वह उसकी पहली दोस्त थी, और दोनों का रिश्ता किसी बहन जैसा था। नेहा के बिना रागिनी का दिन अधूरा सा लगता था। नेहा का आना रागिनी के लिए सबसे बड़ी खुशी का पल होता था। उसकी मासूम हंसी और छोटी-छोटी बातें नेहा के दिल को छू जाती थीं।

रागिनी के माता-पिता और दादी भी नेहा के इस प्यार को देखकर खुश होते थे। उन्होंने नेहा के इस रिश्ते को बहुत सराहा और अक्सर उसे अपने परिवार का हिस्सा मानते थे।

अब रागिनी अपने छोटे-छोटे कदमों से घर में घूमने लगी थी। उसकी हंसी, उसकी मासूम आवाज़, और उसका हर एक कदम घर में एक नया जोश और खुशी भर देता था। उसकी मां और पिता उसे हर दिन प्यार से निहारते, और उसकी दादी और परदादी उसे अपने आशीर्वाद से नवाजतीं।

रागिनी के जीवन के ये शुरुआती साल उसके लिए बेहद खास थे। उसने चलना सीखा, बोलना सीखा, और सबसे खास बात, उसने अपने परिवार के साथ एक गहरा संबंध विकसित किया। उसका हर दिन एक नए अनुभव से भरा होता था, और उसके आस-पास के लोग उसकी इस यात्रा का हिस्सा बनने में बेहद खुश थे।

रागिनी का सफर कैसे आगे बढ़ेगा? नेहा और रागिनी का ये खूबसूरत रिश्ता किस दिशा में जाएगा? और क्या रागिनी अपनी नई सीखों से अपने जीवन में और भी रंग जोड़ पाएगी? यही सब देखना अभी बाकी है।