Bachcho me dale Garbh se Sanskaar - 4 in Hindi Anything by नीतू रिछारिया books and stories PDF | बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 4

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बच्चों में डाले गर्भ से संस्कार - 4

मेडिकल साइंस के अनुसार ऐसे कारक जो गर्भ में बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं—

पहले हमने बात की वेदों के अनुसार ऐसे कारक जो गर्भ में बच्चे के विकास पर असर करते हैं। तो अब हम बात करते हैं मेडिकल साइंस इसके बारे में क्या कहता है— मेडिकल साइंस बिना किसी रिसर्च के कुछ भी बात स्वीकार नहीं करता है। मेडिकल साइंस केवल जो बातें साइंटिफिक प्रूव होती हैं उन्हीं पर विश्वास करता है। तो साइंटिफिकलि प्रूव यानी रीसर्चर के द्वारा काफी रिसर्च करके उस बात को प्रूव किया जाता है। तब उस बात को मेडिकल साइंस मानता है— 

पहला रिसर्च— रिसर्च से यह साबित हुआ कि बच्चे की (बुद्धि ) आइ क्यू है वो गर्भ में ही निश्चित हो जाती है। आजकल सभी को एक इंटेलिजेंट बच्चा चाहिए। बच्चे के दिमाग का 80% विकास मां के गर्भ में ही हो जाता है तो इसके लिए हमें दिमाग के विकास के विज्ञान को समझना होगा। इसको एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं– विशेषज्ञों का कहना है गर्भधारण के 14वें दिन पहला न्यूरोन बनता है। फिर हर मिनट में ढाई लाख न्यूरोन बनते हैं, जो आपस में जालीनुमा रचना बनाकर मस्तिष्क व नव्र्स बनाते हैं। इसके बाद शरीर व ज्ञानेंद्रियों का निर्माण होता है। इस समय गर्भ में जो अनुभव होता है वह शिशु की मेमोरी में जा बैठता है। बच्चे का जो ब्रेन बनता है उसका जो बेसिक यूनिट होता है उसको न्यूरॉन्स बोलते हैं। यानी कि जब मां को पता भी नहीं है कि वह प्रेग्नेंट है तो उस वक्त 14 वें दिन पर मां के अंदर प्रत्येक मिनिट ढाई लाख न्यूरॉन बनना शुरू हो जाती हैं। जब यह न्यूरॉन बन रहे होते हैं उतनी ही तेजी से एक दूसरे से जुड़ते हैं और जो जुड़ने की घटना हैं उसे सिनैप्स के नाम से जाना जाता है और सिनैप्स इनमें बच्चा इंफॉर्मेशन स्टोर करता है। यह सोचने की बात है कि प्रत्येक मिनिट ढाई लाख न्यूरॉन बनते हैं तो जन्म तक कितने न्यूरॉन बना सकते हैं मतलब की सारे बच्चों के पास यह एबिलिटी है कि वो इंटेलिजेंट बन सकते हैं पर ऐसा होता नहीं है क्योंकि यह जो न्यूरॉन्स है इसका एक रूल है कि जितने भी न्यूरॉन्स हैं वो कनेक्ट होंगे उतने ही न्यूरॉन सरवाइव होंगे बाकी न्यूरॉन्स ग्रैजुअली डिस्ट्रॉय होंगे। मां के विचार, मां की भावना, मां की जीवनशैली, मां का खानपान यह सब कारक है जो मिलकर चयन करते हैं कि कितने न्यूरॉन्स की कनेक्टिविटी होगी और कितने न्यूरॉन्स की कनेक्टिविटी नहीं होगी। यानी कि जो भी न्यूरॉन के कनेक्टिविटी नहीं होगी वह न्यूरॉन्स डिस्ट्रॉय हो जाएंगी। दूसरी बात यह है कि जन्म के बाद न्यूरॉन्स नहीं बनती जो भी न्यूरॉन्स बनते हैं वह जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तभी बनते हैं। बच्चे के जन्म के बाद किसी के भी न्यूरॉन्स ( neurons ) नहीं बनते हैं। अब जो न्यूरॉन्स कनेक्ट नहीं हुई वह डिस्ट्रॉय होंगे, अगर आप न्यूरॉन के नंबर देखो तो लगभग सातवें महीने तक सबसे ज्यादा संख्या में न्यूरॉन होती हैं ,उसके बाद में यह सिर्फ 20% न्यूरॉन्स बच जाते हैं बाकी की न्यूरॉन्स डिस्ट्रॉय हो जाते हैं क्योंकि वह कनेक्ट नहीं हो पाए। अगर माता-पिता को पता चलता है कि वे अलग-अलग गतिविधि करके बच्चे की न्यूरॉन्स कनेक्ट करा सकते हैं और बच्चे को इंटेलिजेंट बना सकते हैं ,तो बहुत जरूरी है कि आप गतिविधि करें, फ्री रहे हैं, अपनी जीवन शैली को चेंज करें और न्यूरॉन की कनेक्टिविटी बढ़ाएं क्योंकि जन्म के बाद तो न्यूरॉन्स बनने वाले नहीं हैं और दूसरी कनेक्टिविटी भी न्यूरॉन्स की जन्म के बाद सिर्फ 20% ही होने वाली है तो जो कुछ प्रयास करना है बच्चे को इंटेलिजेंट बनाने के लिए वो बच्चे की गर्भ में रहते ही करना है क्योंकि जो बाद में हम एजुकेशन देते हैं अच्छी स्कूलिंग देते हैं उसका अच्छा रिजल्ट नहीं आता है । 

सेकंड रिसर्च— एक बच्चा मां के गर्भ में सब कुछ सुन सकता है। बच्चे का सुनने का जो विकास है। वह लगभग 8 से 10 सप्ताह में बनना शुरू होता है। 16 सप्ताह के आसपास बच्चा सब कुछ सुनने लगता है। वह मां की आवाज पहचानने लगता है। अपने आसपास जो भी आवाज होती है वह सुनता है। अगर पिता बच्चे से बात करता है तो वह पिता की आवाज भी पहचानता है। बच्चा अंदर सब कुछ सुनता है। बच्चा जो भी सुनता है उसका उसके ऊपर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। 3D सोनोग्राफी में हम बच्चे के एक्सप्रेशन कैप्चर कर सकते हैं। अलग-अलग संगीत पर बच्चा कभी खुशी वाले और कभी नॉन लाइकिंग वाले प्रतिक्रिया भी देता है। और ये हम 3D सोनोग्राफी के द्वारा स्पष्ट रूप से हम देख सकते हैं।