एक बौद्ध कैसे बना कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक !
इस आर्टिकल की शुरुआत में आपने तिब्बत से भागकर कश्मीर आए राजकुमार रिंचन की कहानी पढ़ी। जिसने शासक रामचंद्र की हत्या करवाकर उनकी बेटी कोटा से शादी कर ली। अब रिंचन के सामने सवाल था कि वो कौन-सा धर्म अपनाए। एक बौद्ध राजा को कश्मीर की जनता की स्वीकार्यता मुश्किल थी।
लेखक अशोक कुमार पांडेय अपनी किताब 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' में लिखते हैं, 'रिंचन हिंदू धर्म अपनाना चाहता था, लेकिन उसके तिब्बती बौद्ध होने की वजह से ब्राह्मणों ने उसे दीक्षित करने से इनकार कर दिया।'
रिंचन को हिंदू धर्म में शामिल न करने की 3 वजहें गिनाई जाती हैं-
1. वो तिब्बती बौद्ध था।
2. उसने अपने ससुर हिंदू राजा रामचंद्र की हत्या की थी।
3.
उसे हिंदू धर्म में अपनाया जाता तो उच्च जाति में शामिल करना पड़ता।
ब्राह्मणों के इनकार के बाद रिंचन मन की शांति के लिए कश्मीर में रह रहे एक सूफी संत बुलबुल शाह से मिलने गया। उनके प्रभाव में आकर उसने इस्लाम अपना लिया और सुल्तान सदरुद्दीन के नाम से कश्मीर की गद्दी पर बैठा।
इस तरह रिंचन धर्म बदलकर कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक सदरुद्दीन बना। हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है कि उसके इस फैसले के पीछे पश्चिम एशिया और कश्मीर के आसपास के इलाकों में इस्लाम का बढ़ता प्रभाव था। इस्लाम अपनाना राजनीतिक रूप से ज्यादा सुरक्षित था।
रिंचन के चचेरे ससुर रावणचंद्र को भी बुलबुल शाह ने इस्लाम कबूल करवाया। इसके अलावा रिंचन के साथ आए बौद्ध सैनिक, शासन-प्रशासन के कई बड़े अधिकारी भी बुलबुल शाह के प्रभाव में आकर मुस्लिम बने। श्रीनगर की पहली मस्जिद भी रिंचन उर्फ सुल्तान सदरुद्दीन ने बनवाई थी।
हालांकि, रिंचन सुकून से शासन नहीं कर सका। 1323 ईस्वी में उसकी मौत हो गई। कश्मीर की गद्दी पर कश्मीर छोड़कर भागे राजा सहदेव के भाई उदयनदेव बैठा और रिंचन की पत्नी कोटा रानी को शादी करने पर मजबूर किया। 1338 ईस्वी में उदयनदेव की मृत्यु हुई तो रिंचन के मंत्री रहे शाहमीर ने सत्ता पर कब्जा किया। इस तरह कश्मीर में पहले मुस्लिम वंश (शाहमीर वंश) की स्थापना हुई। इस वंश ने 220 साल तक शासन किया।
कश्मीर में तलवार के जोर से इस्लाम का बढ़ता वर्चस्व
शाहमीर वंश का सबसे विवादित शासक सुल्तान सिकंदर था। वो 1389 में गद्दी पर बैठा। कश्मीरी विद्वान प्रेमनाथ बजाज उसके शासन को कश्मीर के इतिहास का सबसे काला धब्बा मानते हैं। सिकंदर के शासन में प्रमुख ईरानी सूफी संत सैय्यद अली हमदानी के बेटे सैय्यद मुहम्मद हमदानी कश्मीर आए। सुल्तान ने उनके लिए खानकाह का निर्माण कराया।
इतिहासकार जोनराज लिखते हैं कि सुल्तान सिकंदर धर्म के नशे में चूर था। उसने सुहाभट्ट नाम के ब्राह्मण को अपना मुख्य सलाहकार बनाया। सूफी संत सैय्यद हमदानी ने सुहाभट्ट को मुस्लिम बनाकर मलिक सैफुद्दीन नाम दिया और उसकी बेटी से निकाह कर लिया।
सुहाभट्ट उर्फ सैफुद्दीन के सुझाव पर सुल्तान ने कश्मीर के सभी ब्राह्मणों और विद्वानों को मुसलमान बनाने का आदेश दिया। इस्लाम न अपनाने वालों से घाटी छोड़कर जाने को कहा गया। उसके शासन में मंदिर तोड़ने का अभियान चला। सोने-चांदी की मूर्तियां शाही टकसाल में गलाकर सिक्कों में बदल दी गईं।
1420 ईस्वी में सुल्तान सिकंदर का बेटा जैनुल आबदीन गद्दी पर बैठा। वो अपने पिता की धार्मिक कट्टरता से बिल्कुल उलट था। उसने मंदिरों को फिर से बनवाया। कश्मीर से निकाले गए ब्राह्मणों की वापसी की कोशिश की। जजिया कर हटा दिया। गोहत्या पर रोक लगा दी।
जैनुल आबदीन कश्मीरी, फारसी, संस्कृत और अरबी का विद्वान था। उसके आदेश पर महाभारत और कल्हण की राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद किया गया। शिव भट्ट उसके निजी चिकित्सक और सलाहकार थे। उसने कई हिंदुओं और बौद्धों को अपने दरबार में जगह दी।