History of Kashmir ✨💎
कश्मीर का पहला ऐतिहासिक साक्ष्य 1960 के दशक में बुर्जहोम की खुदाई में मिलता है। यह साइट श्रीनगर से करीब 8 किलोमीटर दूर है।
खुदाई करने वाली टीम के निदेशक टी. एन. खजांची कहते हैं कि उस वक्त किसी संगठित धर्म का कोई सबूत नहीं मिलता। इन वैज्ञानिक खोजों ने कश्मीर के जन्म की कश्यप, काशेफ और मध्यांतिक की कहानी पर सवाल खड़े कर दिए।
कश्मीर के हिंदू राजा ने महमूद गजनी को उल्टे-पांव दौड़ाया।
कश्मीर पर अलग-अलग वंश के बौद्ध और हिंदू राजाओं का शासन रहा। इनमें ललितादित्य का जिक्र बेहद जरूरी है। 724 से लेकर 761 ईस्वी तक उनके शासन को कश्मीर का स्वर्णयुग माना जाता है। ललितादित्य ने 14 वर्ष तक सैन्य अभियान चलाया और अफगानिस्तान, पंजाब, बिहार, बंगाल और ओडिशा तक जीत हासिल की।
अमेरिका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आंद्रे विंक अपनी किताब अल-हिंद में लिखते हैं कि ललितादित्य ने चीन के शिनजियांग प्रांत का भी बड़ा हिस्सा जीत लिया था।
राजतरंगिणी में कल्हण लिखते हैं कि ललितादित्य ने पुल, मठ, नहरें और पनचक्की बनवाईं। उस दौरान कई नए शहर भी बसाए गए। उन्होंने नरहरि की एक विशाल प्रतिमा बनवाई, जो चुम्बकों की मदद से हवा में रहती थी। एक 54 हाथ लंबा विष्णु स्तंभ बनवाया। इसके अलावा भव्य मार्तंड मंदिर का निर्माण भी ललितादित्य ने ही कराया था।
ललितादित्य के समय कश्मीर का पहला संपर्क अरब मुसलमानों से हुआ। हालांकि, किसी के लिए भी कश्मीर में घुसपैठ आसान नहीं थी। यहां तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम था। करीब 250 साल बाद महमूद गजनी (महमूद गजनवी) ने कश्मीर पर हमले की ठानी।
महमूद गजनी भारत पर हमला करने वाला पहला तुर्क था। उसने 1000 ईस्वी से 1027 ईस्वी के बीच भारत पर 17 बार हमला किया। उसका मकसद लूट करना था, जिसमें वो कामयाब भी हुआ। कश्मीर पर भी उसकी नजर पड़ी।
1015 ईस्वी में उसने पहली बार तोसा-मैदान दरें के रास्ते कश्मीर पर हमला किया। उस वक्त कश्मीर में संग्राम राजा का शासन था। गजनी की सेना दुर्गम रास्तों में भटक गई और बाढ़ में भी फंस गई। जबरदस्त प्रतिरोध भी हुआ और गजनी को खाली हाथ लौटना पड़ा। उसका काफी नुकसान हुआ।
उसने 1021 ईस्वी में फिर कश्मीर पर हमला किया। 1 महीने तक लगातार कोशिश करने के बाद भी वो लौहकोट की किलाबंदी नहीं भेद सका। घाटी में बर्फबारी शुरू होने वाली थी। गजनी समझ गया कि कश्मीर को जीतना मुश्किल है। वो लौटा और फिर कभी कश्मीर की तरफ मुड़कर नहीं आया।
इसके बाद के कश्मीरी राजा कमजोर होते रहे। वो अपने भोग-विलास में इस कदर मसरूफ रहे कि उन्हें अपना राजदंड और मुकुट भी विदेशी व्यापारी के यहां गिरवी रखना पड़ा।
देवी मूर्तियां पिघलाने वाला कश्मीर का हिंदू राजा !
उत्पल वंश के राजा हर्षदेव ने 1089 से 1111 ईस्वी तक कश्मीर पर शासन किया। इस दौरान फिजूलखर्ची और अय्याशी से वो कंगाल हो गया। माना जाता है कि वो इस्लाम से इस कदर प्रभावित हुआ कि मूर्ति पूजा छोड़ दी। उसने कश्मीर में मौजूद मूर्तियों, हिंदू मंदिरों और बौद्ध मठों को भी ध्वस्त कराना शुरू कर दिया। इस काम के लिए 'देवोत्पतन नायक' नाम का विशेष पद बनाया।
हर्षदेव ने मंदिरों के खजानों को लूट लिया। भगवान
और देवियों की सोने और चांदी की मूर्तियों को
पिघलाना शुरू कर दिया। तुर्कों को सेना,नायक तक बना
दिया। हर्षदेव के समकालीन इतिहासकार कल्हण ने
उन्हें 'तुरुष्क' यानी 'तुर्क' कहा।
इटली के व्यापारी मार्को पोलो के यात्रा संस्मरणों से पता चलता है कि तेरहवीं सदी के अंत तक कश्मीर में मुसलमानों की बस्ती बन चुकी थी। ज्यादातर बाशिंदे कसाई का काम करते थे। हर्षदेव के बाद कश्मीर के लगभग सभी राजाओं के यहां तुर्क सैनिकों के प्रमाण मिलते हैं।