"हमारी देखा देखी मे तो यह हमारे लड़के भी डंट जाएंगे और थोड़ा और ज्यादा खाना खा लेंगे"
"क्या करूं मैं क्या करूं???"
"हां एक विचार आया एक बार में रानी साहिबा से कह कर देखता हूं "
"कहीं बुरा तो नहीं मान जाएंगी???"
"नहीं नहीं एक बार कह कर देखता हूं"
यह सोचकर मतकु राम खड़ा हो जाता है और कहता है कि "रानी साहिबा मुझे आपसे एक बात कहनी है क्या इजाजत है!!"
रानी साहिबा:-
"हां हां पंडित जी कहिए क्या बात है
क्या किसी वस्तु की कमी रह गई या खाने में कुछ कमी है???
मतकू राम :-
"नहीं नहीं महारानी साहिबा कोई कमी नहीं है ना ही खाने में ना ही आओ भगत में और ऐसे लाजवाब व्यंजन तो मैं जिंदगी में पहले कभी नहीं देखे थे बहुत ही लाजवाब व्यंजन है लेकिन रानी साहिबा बात है यह है कि एक मेरा दोस्त है....
सुधि राम इस नगर में वह बहुत ही विद्वान है उसके जोड़ का कोई दूसरा ब्राह्मण नहीं मिलेगा लेकिन मैं उसको निमंत्रण देना भूल गया अब मुझे याद आया है तो मैंने सोचा कि मैं आपको को एक बार बता दूं यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं उसको यहां पर बुला लू?? "
रानी साहिबा:-
"जी पंडित जी आपका मन है तो बुला लीजिए लेकिन भोजन तो परोस दिया गया है और उनको आने-जाने में बहुत ज्यादा समय लग जाएगा"
मतकू राम :-
"नहीं नहीं रानी साहिबा मैं अभी दौड़ा दौड़ा गया और दौड़ा दौड़ा आया आप चिंता मत कीजिए"
महारानी साहिबा:-
"पंडित जी एक काम कीजिए आप मोटर लेकर जाइए तो आप जल्दी से पहुंच जाएंगे और उनको लेकर जल्दी से महल में आ जाएंगे"
फिर मतकू राम सुधी राम को लेने के लिए जाने लगे तभी बीच में ही उनके पत्नी देवा बोलती है कि" आज आपको क्या हो गया है????
आप उसे क्यों बुलाने जा रहे हैं इतने स्वादिष्ट लाजवाब खाने को छोड़कर "
मतकू राम :-
"अरे तुम चुप करो कोई साथ देने वाला भी तो होना चाहिए"
देवा :-
"आप तो ऐसी बात कर रहे हैं मैं रही मैं क्या आपसे दब जाती खाने में "
फिर मतकू राम देवा की तरफ देखते हुए बोलता है कि "घर की बात अलग होती है और बाहर की बात अलग होती है घर के बाहर पुराना खिलाड़ी ही मैदान में अपना दम दिखता है और अपना दबदबा बनाते हैं
उतना दब दबा नया खिलाड़ी नहीं बन सकता
और बस यहां पर भी तुम वही हाल समझो"
देवा :-
"सुनिए जी कहीं लड़के सो गए तो"
मतकू राम :-
"तुम चिंता मत करो इनको तो मैं जगा दूंगा सोने के बाद इनको और भूख लग जाएगी"
देवा :-
"देख लेना आज वह आपको पछाड़ देगा, उसके पेट में तो आज शनीचर बैठा हुआ है क्या आप उसको बुलाने के चल दिए जा रहे हैं "
मतकु राम
"तुम अपनी बुद्धि मत चलाओ ऐसे ही शास्त्रों को मत समझो शास्त्रों में खाने-पीने का विधि विधान है और कौन सा मंत्र कहां पर प्रयोग करके खाने के विधान को पूर्ण करता है यह हम शास्त्री अच्छे से जानते हैं उसे शास्त्र मंत्र को वृंदावन के एक प्रसिद्ध पंडित जी ने लिखा
एक चतुर और बुद्धिमान मनुष्य थोड़ी जगह में भी गृहस्ती का सारा सामान रख लेता है और एक अनाड़ी व्यक्ति बहुत सारी जगह होने पर भी समान रखो
गवार आदमी पहले ही जल्दी-जल्दी से भोजन कर लेता है और जल्दी से भोजन करने के बाद एक लोटा पानी का गिटक जाता है और फिर अफर कर पड़ जाता है
चतुर आदमी आराम खाना खाता है और वह एक निवाले को भी नीचे उतरने के लिए पानी की जरूरत नहीं पड़ती आराम आराम से खाना खाता है और इससे भोजन भी सुपच्य हो जाता है....
भला सुदी राम तो मेरे सामने क्या हि टिकेगा?"