Ardhangini - 58 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 58

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 58

जतिन से मिले प्यार और साथ ने मैत्री को इतना भावुक कर दिया कि जिन बातो को उसने अपने दिल मे दफन किया हुआ था और जिन बातो की वजह से वो खुलकर जी नही पा रही थी और जतिन के भी करीब नही आ पा रही थी आज वो बाते मैत्री रोते हुये एक एक करके अपने अर्धांग जतिन को बताते हुये बोली- "शादी मे फेरो तक उन लोगो का व्यवहार बहुत अच्छा तो नही कह सकते पर ठीक था... फेरो के बाद अचानक से रवि की मम्मी का मुंह चढ़ गया फिर जूता चुराई पर भी उन्होने मेरी सारी बहनो को कसके डांट लगायी और विदाई पर भी "जल्दी करिये देर हो रही है" कह कह कर सबके हाथ पैर फुला दिये... 
विदाई के बाद जब मै घर पंहुची तो वहां भी सबका ध्यान मुझपर कम बल्कि इस बात पर जादा था कि मेरी अटैचियो मे क्या क्या रखा है... वहां उन्होने वो थाली मे अंगूठी डालकर ढूंढने वाली रस्म भी नही करवायी.... शादी के बाद जब सारे मेहमान घर से चले गये तो एक दिन बाद  रवि की मम्मी  अपनी दोनो बेटियो से बोलीं- अरे जरा देखो महारानी जी क्या क्या लायीं है अटैचियो मे भरकर... 

इसके बाद रवि की दोनो बहनो ने मेरी दोनो अटैचियो को खोलकर जितनी भी मेरी साड़ियां थीं... सोने के बाले, चेन, कंगन सब एक एक करके "भाभी मै ये रख लूं, भाभी मै वो रख लूं" कहते हुये सब ले लिये... मैने ना हां बोला और ना ना बोला.... और जब वो पूछ रही थीं तो रवि की मम्मी बोलीं- अरे पूछना क्या है... ले लो.... तुम्हारी ही भाभी हैं... मना थोड़े ना करेंगी.... 

मेरे लिये उन्होने सिर्फ दो साड़िया छोड़ी थीं और तीसरी मेरे पास वो साड़ी बची थी जो मैने पहनी हुयी थी.... बस!! और गहनो के नाम पर भी मेरे पास सिर्फ उतना ही गहना बचा था जितना मैने पहना हुआ था.... चूंकि ये मेरा दूसरा दिन ही था वहां पर तो मैने भी सोचा कि चलो कोई बात नही है... दोनो ननदें मुझसे छोटी हैं... ले लेने दो... और शादी मे भी जो रवि की मम्मी ने गुस्सा किया था उसके लिये भी मैने यही सोचा कि हो सकता है कि शादी की थकान और उम्र की वजह से वो चिड़चिड़ा रही हों... इसलिये मैने भी जादा ध्यान नही दिया.... लेकिन उनके बात करने का तरीका ऐसा था जैसे वो टौंट करते हुये अपनी बात कहती हों... वो सीधे सरल तरीके से कोई बात करती ही नही थीं.... मै वहां गयी तो अगले दिन सबका ध्यान सिर्फ अटैचियो की तरफ ही था बाकि किसी ने मुझे कुछ नही बताया कि क्या करना है... किचेन मे जाकर क्या बनाना है.... जैसे ही मौका मिला बस मेरा सब कुछ छीनना शुरू कर दिया.... इस बात के अगले दिन तक जब  रवि की मम्मी ने  पहली बार कुछ बनाने के लिये मुझसे कुछ नही बोला तो मैने सोचा कि मै खुद ही पूछ लेती हूं.... मै सुबह नहा धोकर तैयार हो कर रवि के मम्मी पापा के पैर छूने गयी तो रवि की मम्मी के पैर छूने के बाद मैने खुश होते हुये जब उनसे पूछा- मम्मी जी मै पहली बार रसोई मे कुछ बनाने जा रही हूं... आप लोगो को मीठे मे क्या पसंद है... आपको जो पसंद होगा मै वो बना लूंगी... 

मेरे पूछने पर उन्होने मेरी तरफ गुस्से से घूरते हुये देखा और एकदम से तेज आवाज मे बोलीं- ये काम तुम्हे कल करना चाहिये था.... और तुम्हे नही पता क्या कि पहली बार क्या बनाया जाता है.... तुम्हारी मम्मी ने तुम्हे कुछ नही सिखाया है क्या... 

इसके बाद फटकारते हुये से लहजे मे वो मुझसे बोलीं- जाओ... जाके खीर बनाओ.... 

एक तो मै अपने मम्मी पापा से पहली बार दूर हुयी थी और मुझे उनकी याद आती थी.. दूसरा हमारे घर मे कोई किसी से इस तरह से बात नही करता इसलिये रवि की मम्मी के बात करने के इतने रूखे लहजे को सुनकर मुझे रोना आ गया.... और मै रोते हुये किचेन मे जाने लगी तो पीछे से वो बोलीं- पता नही कैसे कैसे मां बाप होते हैं... अपनी बेटियो को जरा सी भी तमीज नही सिखाते हैं... सिरदर्द!!! 

मम्मी पापा के बारे मे ऐसी बाते सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा और किचेन मे जाकर मै रोने लगी.... "

मैत्री की बाते सुन रहा जतिन बड़े सहज तरीके से बोला- रवि कहां था उस समय जब उसकी मम्मी तुम्हे डांट रही थीं... 

मैत्री ने सुबकते हुये कहा- वो वहीं बैठे थे.... पर वो अपनी मम्मी के आगे कुछ बोल ही नही पाते थे... वो बहुत तेज थीं.... हर समय वो बस इसी फिराक मे रहती थीं कि कब उन्हे मौका मिले और कब वो मुझ पर चिल्लायें.... पता नही क्या दिक्कत थी उन्हे मुझसे.... 

मैत्री भावुक होकर आंखो मे आंसू लिये अपनी बात कह रही थी लेकिन इस समय जतिन ये जानते हुये भी कि मैत्री रो रही है... उसे नही रोक रहा था.... जतिन समझता था कि मैत्री के दिल मे जो भार है उसे आंसुओ के जरिये ही बाहर निकाला जा सकता है.... मैत्री को रोते देख वो भले ही तकलीफ मे था लेकिन आज वो ये तकलीफ सहने के लिये तैयार था क्योकि आज शाम की तरह ही हमेशा के लिये वो मैत्री को खुलकर हंसते हुये देखना चाहता था... और खुश देखना चाहता था और उसके लिये जरूरी था उसके मन का भार कम होना और उसका एक ही रास्ता था और वो था मैत्री के आंसू!! जिनका निकलना आज बहुत जरूरी था.... 

इसके बाद अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये मैत्री ने जतिन से कहा- रवि की मम्मी के इस तरह बात करने की वजह से मै अपने पल्लू से अपना मुंह छुपा कर रोने लगी और ऐसे रोते रोते ही मै खीर बनाने किचेन मे चली गयी.... चूंकि ये पहला ऐसा मौका था मेरे पूरे जीवन का जब मैने अपनी मम्मी के लिये ऐसे शब्द सुने थे जो रवि की मम्मी ने कहे थे इसलिये मुझे बहुत दुख हो रहा था... मुझे गुस्सा भी आ रहा था पर रवि की मम्मी के गुस्से के डर की वजह से मै कुछ बोल नही पायी.... और इसी टेंशन मे रोते हुये जब मैने खीर बनायी तो उसमे पता नही कैसे मै चीनी डालना भूल गयी..... और बिना चीनी की खीर मैने जब रवि की मम्मी को लाकर दी तो पहली चम्मच चखते ही उन्होने उस खीर की कटोरी मेज पर पटक दी... और मेरी तरफ दांत भींच कर इतने गुस्से से देखा कि मै बहुत जादा डर गयी... बजाय इसके कि वो इसे मेरी पहली गलती समझ कर माफ कर देतीं उन्होने गुस्से मे मुझसे कहा- ये क्या बनाया है...!! तुमको बिल्कुल भी अकल है या नही.... 

जब उन्होने खीर खाने के बाद इतना गुस्सा किया तो रवि ने वो खीर चखी और खीर चख कर मेरी तरफ देखकर बोले- चीनी नही है इसमे... 

रवि की बात सुनकर मै सकपका गयी ये सोचकर कि "हाय राम ये क्या हो गया मुझसे" लेकिन रवि ने अपनी मम्मी को समझाते हुये कहा- कोई बात नही मम्मी हो जाता है कभी कभी... गलतियां सबसे होती हैं... (इसके बाद मेरी तरफ देखकर बोले) मैत्री जाओ चीनी डालकर फिर से गर्म करके ले आओ.... 

मैने रवि की बात सुनकर कहा- जी ठीक है मै अभी लायी... 
इतना कहकर मै जब वहां रखी खीर की कटोरियां उठाने लगी तो रवि की मम्मी गुस्से से बोलीं- बड़ा पक्ष ले रहा है अपनी बीवी का.... हां भई अब तो इसकी ही चलेगी.... 

इतना कहकर वो झटके से अपनी जगह से उठीं और मैने खुद देखा कि जबरदस्ती उन्होने अपनी खीर की कटोरी मे हाथ मार कर उसे गिराया था... अपनी जगह से उठते हुये वो रवि से बोलीं- रवि तुम ही खाओ ऐसी बदस्वाद खीर.... मै तो नही खाउंगी... 
इतना कहकर वो वहां से चली गयीं.... इसके बाद मुझे लगा कि शायद मुझसे ही गलती हो गयी है... इसीलिये ये सोचकर खीर मे चीनी मिलाने के बाद मै रवि की मम्मी के पास उनके कमरे मे गयी और बहुत देर तक हाथ जोड़कर मैने उनसे माफी मांगी और कहा- मम्मी जी आगे से ऐसी गलती नही होगी... प्लीज मुझे माफ कर दीजिये और ये खीर खा लीजिये.... 
बहुत देर तक मनाने के बाद वो मानीं और खीर खाते हुये बोलीं - आगे से ध्यान रखना ऐसी गलती दोबारा नही होनी चाहिये... ये तुम्हारा ससुराल है मायका नही जो तुम्हारी गलतियां नजरअंदाज कर दी जायेंगी.... 
मैने सुबकते हुये हाथ जोड़े जोड़े उनसे कहा- हां मम्मी जी मै ध्यान रखुंगी अब कभी कोई गलती नही करूंगी... 

इसके बाद सुबकते हुये मै अपने कमरे मे चली आयी... मेरे पीछे पीछे रवि कमरे मे आये और मुझे समझाते हुये बोले - मम्मी की बातो का बुरा मत माना करो... उनका गुस्सा बहुत तेज है... उनकी इस तरह की बातो की आदत डाल लो.... 

मै भी मजबूर थी... मुझे रवि की बात माननी पड़ी... मै और करती भी क्या...." 

जतिन की तरफ देखते हुये मैत्री ने कहा- इसीलिये उस दिन जब आपने खीर खाकर मुंह बनाया था तो मै डर गयी थी... ये सोचकर कि शायद मै आज भी खीर मे चीनी डालना भूल गयी.... मुझे लगा था आज फिर डांट पड़ेगी.. और इसी डर से मै तुरंत रसोई मे गयी और खीर चखी... खीर चखने के बाद मुझे लगा कि खीर तो अच्छी बनी है और चीनी भी सही है... मुझे माफ करियेगा जी लेकिन खीर चखने के बाद भी मुझे ये लगा कि पहले की ही तरह आप लोग कहीं कोई कमी निकाल कर मुझे ना डांटने लगो इसीलिये मै खीर चखने के बाद सहमी सहमी हुयी सी डांट खाने के लिये अपने आप को तैयार करती हुयी जब वहां वापस आयी जहां आप लोग बैठे थे.... तो मेरी सोच के बिल्कुल विपरीत आप सबने मेरी बनायी खीर की जब इतनी तारीफ करी तो मुझे चैन की सांस आयी.... और जिस तरह से मम्मी जी और पापा जी ने मुझे अपने शब्दो और हाव भाव के जरिये प्यार दिया वो मेरे लिये अनमोल था... मुझे अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी...  

मैत्री की बात सुन रहे जतिन ने मुस्कुराते हुये कहा- उस घर मे रवि ने तुमसे कहा था कि डांट खाने की आदत डाल लो.... और इस घर मे मै तुमसे कह रहा हूं कि इस तरह की शैतानियो और खुशियो की आदत डाल लो.... यहां तुमको कोई भी कभी भी नही डांटेगा.... अगर कोई गलती हो भी गयी ना तुमसे मैत्री... तो देखना मम्मी कितने प्यार से समझायेंगी.... 

मैत्री ने कहा- मम्मी जी बहुत अच्छी हैं... जब भी कुछ पूछो या बात करो तो इतने प्यार से बात करती हैं कि मेरा तो मन करता है कि वो प्यार से मुझे सारी चीजें बताती रहें और मै सिर्फ उनके कहे अनुसार ही काम करूं.... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन मुस्कुराने लगा और मैत्री को टटोलते हुये बोला- इसके बाद क्या हुआ वहां पर तुम्हारे साथ मैत्री?? 

आज जतिन जैसे पूरा मन बना चुका था कि मैत्री के मन का दुख वो किसी भी कीमत पर बाहर निकाल कर रहेगा.... उसे डरी, सहमी मैत्री नही आज रात की तरह हंसती खिलखिलाती मैत्री चाहिये थी.... 

क्रमशः