कहानी में अब तक हमने पढ़ा की लूसी को बचाने के चक्कर में रोवन को चाकू लग गया था वह बुरी तरह ज़ख्मी था। चाकू सफेद साड़ी वाली चुड़ैल ने ही मारा था लेकिन वर्षा का शरीर इस्तेमाल कर के, लूसी उसे दुलाल की मदद से जैसे तैसे हॉस्पिटल ले कर गई। वहां बेंच पर बैठी दुलाल से बातें कर रही थी लेकिन उसकी एक भी बात उसे समझ नहीं आई। उसने नज़रे झुकाए हुए धीरे से पूछा :" तुम ने कहा कि रोवन सर ने तुम्हारे इंसानी हम्ज़ाद के कातिलों को सज़ा दी थी इस बात का क्या मतलब है? मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। क्या तुम मुझे ठीक से समझा सकते हो? मैं हमज़ाद के बारे में कुछ नहीं जानती!"
दुलाल ने बताया :" मैं जानता हूं तुम्हें समझ में नहीं आयेगा इस लिए मेरी बातों को गौर से सुनो!.... बीच में मत टोकना!.....हम्ज़ाद उस रूह को कहते हैं जो इंसान के पैदा होने के साथ साथ पैदा होते हैं। हर इंसान के साथ एक हम्ज़ाद पैदा होता है और उमर भर उसके साथ होता है। इंसान का हमज़ाद उसके नफ्स पर निर्भर होता है। इंसान में जितनी अच्छाई और बुराई होती है उसका हमज़ाद उसी के मुताबिक होता है। मतलब अगर किसी इंसान में अच्छाई से ज़्यादा बुराई है तो उसका हमज़ाद शैतान होता है और अगर अच्छाई ज़्यादा होती है तो उसका हमज़ाद फरिश्ता होता है। जिसे तुम लोग डेविल या एंजल कहते हो!.... मेरे हमज़ाद का नाम दुलाल था जिसे बेवजह मार दिया गया। उसकी मौत अभी तय नहीं थी इस लिए मैं यहीं भटक रहा हूं! अब मेरा इस दुनिया में कोई काम नहीं है। मेरा हमज़ाद अच्छा था इस लिए मैं शैतान नहीं हुं!....जिस इंसान की मौत किसी एक दिन तय होती है उस दिन उसके हमज़ाद की भी मौत हो जाती है। हम अपने इंसानी हमज़ाद के सोचने समझने के ज़रिए उस से जुड़े होते हैं जैसे अगर वो बुरा सोचता है तो हम उसे और बुरा करने पर उकसाते हैं और अगर वो अच्छा सोचता है तो हम उसे अच्छे राह दिखाते हैं और उसकी हिफाज़त भी करते हैं!... तुम्हें कभी ऐसा लगा है की तुम बस मरते मरते बच गई हो या कोई अनहोनी होने से रुक गया हो? वो हम हम्ज़ाद ही होते हैं जो इसमें मदद करते हैं! ईश्वर ने हमें इंसान का साथी बना कर पैदा किया है।.... अब तुम समझ गई ना?"
उसकी बातें सुन कर लूसी के मन में चल रहे कई सवालों के जवाब मिल गए थे। जो तूफान उसके दिल वा दिमाग़ में बार बार भयानक हो उठता वो अब शांत होने लगा था। जब तक दुलाल ने सारी बातें समझाई तब तक उसके नज़रों के सामने सफेद साड़ी वाली चुड़ैल घूमती रही। अब उसके मन में ये सवाल उठा था के क्या वो भी किसी की हमज़ाद है? अगर है तो किस की और रोवन सर के पीछे क्यों पड़ी है?
उसने कुछ और पूछना चाहा लेकिन हॉस्पिटल में रोवन के परिवार वाले आ गए और सभी वहां लूसी के आसपास आ कर परेशान परेशान हो कर एक साथ कई सवाल करने लगे। घर के सारे सदस्य अलग अलग सवाल कर रहे थे।
" क्या हुआ है रोवन को ? कैसे चोट लगी? अब वो कैसा है? गहरी चोट तो नहीं है?
रोवन की मां जो लगभग साठ साल की है। चहरे पर झुर्रियां पड़ गई थी। उन झुर्रियों में उमर भर की उदासी और फिक्र नज़र आ रही थी। ऐसा लगता था के चिंता के मारे मुश्किल से सांस ले रही हों। आंखों में बेटे की फिक्र और ममता के आंसू झिलमिला रहे थे। रूमी की मां यानी रोवन की बड़ी बहन और भाई समान जीजा भी उतने ही परेशान दिख रहे थे। इलाज चल रहे कमरे में दोनों मियां बीवी खड़की से झांक कर देखने की कोशिश कर रहे थे। रूमी का एक बीस साल का भाई भी था। सभी के चहरे पर तनाव और घबराहट देख कर लूसी सकपका गई। उनकी आंखें उसे ही जवाब के इंतज़ार में देख रही थी।
वो क्या कहे क्या नहीं समझ नही आ रहा था। दिमाग सुन्न पड़ गया। उसने अटक अटक कर बस इतना कहा :" मुझे वो कॉलेज के पास ज़ख्मी मिले थे!"
रोवन की मां बड़ी बड़ी सांसे लेते हुए लूसी का हाथ पकड़ कर कंपकंपाती आवाज़ में बोली :" मेरा बच्चा ठीक तो हो जायेगा न बेटा!.... तुम्हारे कपड़ों में उसी का खून लगा है क्या?
मां लूसी की कुर्ती पर नज़र डालते हुए रो पड़ीं। लूसी ने उनका हाथ पकड़ कर बेंच पर बैठाया और पास रखे पानी का बोतल देते हुए कहा :" आंटी जी वो ठीक हो जाएंगे!... आप घबराएं नहीं वो ठीक हो जाएंगे! थोड़ा पानी पी लीजिए!"
रूमी लूसी के पास खड़ी हुई और अपनी मां की ओर देखते हुए बोली :" लूसी मेरी फ्रेंड हैं मम्मी!... मैने आपको बताया था इसके बारे में!"
इतने में डॉक्टर कमरे से बाहर आएं, आते ही उन्होंने कहा :" पेशेंट का गार्डियन कौन है?
रोवन के जीजू आगे आ कर बोले :" मैं उसका जीजा हूं! मेरा भाई ठीक तो है ना डॉक्टर?
" खून काफी बह गया है! हम ने सर्जरी कर दी है अब वो खतरे से बाहर है! चिंता की बात नहीं है। मिस्टर पार्कर यंग एंड फिट है तो जल्दी रिकवर हो जायेंगे!"
डॉक्टर ये कह कर चला गया।
रोवन को ऑपरेशन थिएटर से निकाला गया। वो बेहोश था। उसे देखते ही मां का दिल कांप उठा और उसके चहरे पर हाथ फेरते हुए फूट फूट कर रो पड़ीं। उन्हें रोता हुआ देख वहां पर खड़े सभी की आंखें भर आई थी।
उसे ले जाकर एक कमरे में शिफ्ट किया गया। पिछे पिछे परिवार के सभी लोग गए लेकिन लूसी पराई सी महसूस कर रही थी इस लिए दरवाज़े पर रुक गई।
रोवन को बेजान पड़ा देख उसका दिल फट रहा था। एक अंजान एहसास दिल पर बिजलियों की तरह बरस रही थी जो आंसू बन कर बाहर आ रहे थे।
जब उसकी नज़र हॉस्पिटल के बड़े बड़े शीशे लगे खड़कियों पर पड़ी तो पता चला के आसमान भी रो रहा है। तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी। रह रह कर बिजलियों के चमकने से पूरे इलाके में सफेदी छा जाती थी। आज मौसम का हाल बिलकुल लूसी के दिल के हाल से मिल रहा था। सूरज कब का छुप चुका था। अब अंधेरी रात में काले बादल बरस रहे थे।
लूसी को वहां खड़े देख रूमी की मां ने पुकारा :" अंदर आ जाओ लूसी!"
लूसी अपने हाथों की उंगलियों को आपस में तोड़ मरोड़ रही थी। अंदर जाने से उसे हिचकिचाहट हो रही थी। रूमी पास आई और उसका हाथ पकड़ कर ले गई।
रोवन की मां उसके सामने खड़ी हुई और प्यार भरी नज़रों से देखते हुए उसे गले लगा लिया।
" मेरे बेटे को सही समय पर हॉस्पिटल पहुंचाने के लिए तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा!... तुम एक फरिश्ते की तरह हो मेरे लिए!"
मां ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
बाकी के लोग भी उसे शुक्रिया कहने लगे। लेकिन उन सब का शुक्रिया कहना लूसी के दिल पर तो सुई की तरह चुभ रही थी क्यों के वे लोग नहीं जानते थे की उनके बेटे की ये हालत लूसी को बचाने में ही हुई है।
उसने सब के सामने सर झुका कर कहा :" मुझे अब जाना होगा! और देर हुई तो मेरी लॉज वाली आंटी बहुत नाराज़ होंगी!... मैं चलती हूं।"
रोवन के जीजू ने आगे बढ़ कर कहा :" लेकिन इतनी तेज़ बारिश में आप अकेली कैसे जाएंगी?.... चलिए मैं आपको लॉज तक ड्रॉप कर देता हूं। वैसे भी आप ने मेरे भाई के लिए जो किया है उसका एहसान तो हम कभी नहीं चुका पाएंगे!"
" नही मैं चली जा जाऊंगी...परेशान न हों!"
लूसी हिचकते हुए बोली।
रूमी :" ऐसे कैसे चली जाओगी! चलो मैं भी साथ चलती हूं। चलिए पापा!"
ये कह कर वो उसे ले जाने लगी। मां ने आवाज़ लगा कर कहा :" बेटा कल फिर आना रोवन से मिलने!"
लूसी हां में सर हिला कर चली गई।
जब तक वो रोवन के बारे में सोच रही थी तब तक उसके आंसु नही रुक रहे थे। अब उसे उस चुड़ैल का ख्याल आने लगा और अब आंखों में अंगारे फूटने लगे। उसने पुख्ता इरादा कर लिया के अब तो आरपार की लड़ाई होगी।
(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)