कहानी में अब तक हम ने पढ़ा के लूसी को एक लड़का मिला जिसने बताया के वो हम्ज़ाद है लेकिन लूसी हम्ज़ाद के बारे में कुछ नहीं जानती थी। वो दुलाल नामी लड़के से जानना चाहती थी लेकिन उस से बात करने के लिए उसे एकांत होना होगा।
वर्षा फोन चलाते हुए सो गई थी। उसे सोता देख मौके का फायदा उठा कर लूसी झट से बाहर निकल आई। बाहर जाते हुए वो उसी खेत के पास चली गई जहां से कॉलेज जाया करती है। उसने सोचा के शायद दुलाल यहां मिल जाए, ना मिले तो उसे आवाज़ लगा कर बुलाऊंगी।
इसी उम्मीद से वो चलते हुए धान के खातों के बीच गई। आसपास देखा लेकिन दूर दूर तक कोई नही था। ना इंसान न भूत, उसने दुलाल दुलाल कह कर पुकारा।
कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे अपने पीछे किसी की आहट महसूस हुई। पिछे मुड़ कर देखा तो रोवन खड़ा उसे ताज्जुब से देख रहा था। रोवन को अचानक देखते ही लूसी ने मुंह पर हाथ रख लिया और बड़ी बड़ी आंखों से देखते हुए बोली :" क्या आपको मेरी आवाज़ सुनाई दे रही थी?"
रोवन एक आईब्रो उठा कर बोला :" मैं तुम्हारे बुलाने से नही आया हूं! बस वॉक पर निकला था!...क्या दुलाल तुम्हारे भूत दोस्त का नाम है? तुम ने उस भूत से दोस्ती भी कर ली?
" नहीं!... दोस्ती नहीं की है बस मुझे उस से कुछ जानना है इस लिए आवाज़ लगा रही थी।"
लूसी ने जवाब दिया।
रोवन उसके मासूम शकल को देखते हुए अपने मन में सोच रहा था :" कमाल है! सब भूतों से डरते हैं और इस छुईमुई सी लड़की में इतनी हिम्मत है की वो अब भूतों से जानकारी निकालने की कोशिश कर रही है।"
दुलाल का इंतज़ार करते हुए लूसी अचानक रोवन से बोल पड़ी :" रोवन सर!... क्या आप अपनी उस चुड़ैल के बारे में कुछ जानते हैं जो मुझे जानना चाहिए?... अगर जानते हैं तो मुझे बताइए इस तरह उसका मुकाबला करना आसान होगा!"
" क्या वो फिर से मेरे आसपास है?
रोवन ने अपने आसपास नज़र दौड़ाते हुए कहा।
" नहीं वो अब तक तो नही आई है पर मुझे लगता है वो वापस आयेगी इस लिए जब तक वो वापस आए मुझे उसके बारे में जानना होगा!"
लूसी ने बताया।
रोवन कुछ कहने ही वाला था के उसने देखा के वर्षा बेतहासे दौड़ती हुई चली आ रही है। उसे जब तक कुछ समझ आता तब तक वो लूसी के ठीक पिछे पहुंच गई। अब रोवन ने उसके हाथ में खंजर देखा लिया और हड़बड़ी में लूसी को पकड़ कर अपने पीछे खींच लिया। उसी पल वर्षा का खंजर सीधा रोवन के जिस्म को छू गया। पेट के बाई तरफ पूरा का पूरा खंजर अंदर चला गया।
ये सब इतना जल्दी हुआ के अब तक किसी को ठीक से कुछ समझ नहीं आया था। जब लूसी को मामला समझ आया तब वो रोवन के सामने आई देखा तो रोवन ने अपने पेट पर लगे खंजर को हाथ से पकड़ा हुआ है और उसमे से टपटप खून टपक रहा है। वर्षा वोही मुंह पर हाथ रख कर कांपती हुई हताश हो कर देख रही है की उसने क्या कर दिया। उनकी आंखों में भयानक दहशत पैदा हो गई थी।
लूसी के होश उड़ गए थे। उसने दंग हो कर चिल्लाते हुए कहा :" वर्षा ये तुम ने क्या किया ?.... क्या किया तुम ने!"
वर्षा सदमे में बड़ी बड़ी आंखों से देखते हुए लूसी का हाथ पकड़ कर बोली :" लूसी मेरा यकीन करो ये मैने नही किया! मैं ने सच में नहीं किया! मुझे नही पता ये क्या हो गया! मैं यहां कैसे आ गई!"
लूसी समझ गई के वर्षा के शरीर में वो भूतनी परवेश कर चुकी थी। लूसी को मारने आई थी लेकिन गलती से रोवन को चाकू लगते ही वो भाग गई।
वर्षा बहुत रोने लगी। रोते रोते उसने रोवन से कई बार सॉरी सर, सॉरी सर कहा। लूसी ने रोवन का हाथ पकड़ा और वर्षा से कहा :" तुम लॉज चली जाओ और किसी से कुछ मत कहना वरना तुम खतरे में पड़ जाओगी!... इस से पहले कोई देख ले जाओ जल्दी!"
" सर मैं आपको हॉस्पिटल ले कर चलती हूं! आप हिम्मत रखिए कुछ नही होगा आप ठीक हो जाएंगे!"
लूसी ने उसके हाथ को अपने कंधे पर रखा और चलने के लिए कहा।
रोवन कराहते हुए :" मैं खुद चला जाऊंगा तुम जाओ मेरी फिक्र मत करो!"
" इतने भी मज़बूत नहीं हैं आप के कभी किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी!...अगर इतने ही सख्त दिल के हैं तो वो खंजर खुद पर क्यों ले लिया जो मेरे लिए था!... अब आप कुछ नही कहेंगे और चुप चाप मेरे साथ हॉस्पिटल चलेंगे!"
लूसी तेज़ आवाज़ में बोली जैसे उसे डांट रही हो। उसके आंखों से मोटे मोटे आंसू टपक पड़े थे।
एक दो कदम आगे बढ़ाया लेकिन रोवन से चला नहीं जा रहा था। खून अब ज़्यादा बहने लगा। इतने में लूसी ने देखा के दुलाल उनके सामने प्रकट हो गया। उसे देखते ही लूसी मिन्नत कर के कहने लगी :" दुलाल मेरी मदद करो!... देखो इन्हे खंजर लगा है प्लीज़ हमे हॉस्पिटल जाने में मदद करो!"
दुलाल के चहरे पर कोई भाव नहीं थे जैसे उसमे कोई जज़्बात ही न हो। उसने रोवन को देखते हुए कहा :" मैं तुम्हारी नहीं इनकी मदद करूंगा!"
" हां तो इनकी ही मदद करो ना!... जल्दी कुछ करो!"
लूसी ने दुलाल से कहा।
रोवन को दुलाल दिखाई नहीं दे रहा था ना सुन सकता था। लेकिन वो समझ गया था के उनके सामने दुलाल मौजूद है। उसने कराहते हुए कहा :" कॉलेज में मेरी कार है! मेरे कमरे में चाबी होगी!"
दुलाल ने लूसी से कहा :" लेकिन मैं ड्राइवर को कैसे बताऊंगा? वो तो मुझे न देख सकता है ना सुन सकता है।"
लूसी :" तुम ड्राइवर के अंदर घुस सकते हो तो जाओ उसके शरीर में प्रवेश करो और जल्द गाड़ी ले आओ यहां!"
रोवन ने अटक अटक कर कहा :" मेरे पास ड्राइवर नहीं है।"
लूसी हैरान वा परेशान हो कर :" क्या आप भी एक ड्राइवर तक नहीं रखा!..... दुलाल तुम गाड़ी ले आओ मैं ड्राइव करूंगी!"
दुलाल फौरन वहां से गायब हो गया। रोवन का वाइट टी शर्ट खून से रंगने लगा था। खून बह कर पैर तक चला जा रहा था। उसे मज़बूती से पकड़ने की वजह से लूसी के हल्के गुलाबी कुर्ती पर भी खून लग रहा था। अब रोवन की आंखें भारी होने लगी और उसके सामने सब धुंधला सा दिखने लगा। खड़ा रहना मुश्किल हो गया और लड़खड़ा कर गिरने लगा। इतने लंबे चौड़े आदमी को संभालना लूसी के बस की बात नहीं थी। वो उसे थामे रखने की पूरी कोशिश कर रही थी। इतने में दुलाल कार लेकर आ गया। लूसी रोते हुए कहा :" तुम सर को सीट पर बैठाओ मैं ड्राइव करती हूं!... अगर तुम ड्राइव करोगे तो लोगो को लगेगा कार अपने आप चल रही है।"
दुलाल ने वैसा ही किया। वो रोवन को बड़े अपनेपन से देख रहा था।
लूसी तेज़ी से कार चलाने लगी। उसे कार चलाना ठीक से नहीं आता था बस एक बार कियान भैया ने सिखाया था लेकिन कभी बाहर सड़क पर नही चलाया था। फिर भी रोवन को जल्द हॉस्पिटल पहुंचाने के लिए उसने जैसे तैसे गाड़ी चलाई। ये उसके लिए आसान हुआ क्यों के उस सड़क पर चहल पहल नहीं थी। कॉलेज से दो किलोमीटर ही एक बड़ा सा जीवन हॉस्पिटल नाम से एक अस्पताल था।
कुछ देर में वो हॉस्पिटल पहुंच गई। रोवन खून बहने की वजह से बेहोश हो गया था। लूसी ने हॉस्पिटल के सामने कार लेजाकर रोक दिया और बार बार हॉर्न बजाया। कुछ स्टाफ स्ट्रेचर लेकर दौड़े आए। जल्दी जल्दी उसे इमरजेंसी में लेजाया गया।
लूसी के हाथ और कपड़े में रोवन का खून लगा हुआ था। उसने अपने हाथों को देखा जो कांप रहे थे। खून देख कर हताश हो रही थी। एक नर्स आई और बोली :" मैम आप ठीक हैं?....आप वाशरूम जा कर हाथ मुंह धो लीजिए मैं आपके लिए पानी लाती हुं।"
लूसी ने हां में सर हिलाया और निढाल सी हो कर चलते हुए वाशरूम से हाथ धोकर आई। उसने सोचा के रोवन के घर वालों को इस बात की खबर होनी चाहिए इस लिए उसने रूमी को मैसेज कर के बताया क्यों के उसे कॉल कर के बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसने मैसेज किया के " रोवन सर को चोट लगी है और वो जीवन हॉस्पिटल में एडमिट है! उनके फैमिली को लेकर अजाओ!"
फिर वो बेंच पर बैठी। वहां पर दुलाल भी बैठा था। लूसी ने उसकी ओर बिना देखे पूछा :" क्या तुम्हें रोवन सर के लिए बुरा लग रहा है?... क्या तुम्हारा उनसे कोई रिश्ता है?
दुलाल ने जवाब दिया :" मुझे किसी के लिए बुरा नहीं लग सकता क्यों के मेरे पास इंसानों जैसे जज़्बात नहीं है! वो बस मुझे अच्छे लगते हैं क्यों के उन्होंने मेरे इंसानी हम्ज़ाद के कातिलों को उनके किए की सज़ा दी थी! वरना मैं किसी इंसान की मदद नहीं करता सिवाए मेरे अपने हम्ज़ाद के !"
लूसी को दुलाल की आधी बातें भी समझ नहीं आई। दुलाल के बातों का क्या मतलब है ये सब उसके सर से ऊपर चला गया।
(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)