शाम की लालिमा छा गई थी। सूरज ढलते हुए बिलकुल अंडे की जर्दी जैसा लग रहा था। धूप की तपिश पूरी तरह से खत्म हो गई थी और अब मौसम में हल्की सी ठंडक महसूस होने लगी थी। इस शाम में कई बेचैनिया थी जो रोवन के मन को कुरेद कुरेद कर खोखला करने में लगीं थी। परिंदो के साथ साथ वो भी कार चलाते हुए जा रहा था। गंगा तट पर जाने वाला ये रास्ता हमेशा सुनसान ही रहता है। सड़क के दोनों तरफ घना जंगल है। यहां पर लोग ज़्यादा आते जाते नहीं क्यों के इस सड़क के बारे में मशहूर है की यहां पर अक्सर लोगों का खून हो जाता है। कई बार यहां से लाशे बरामद हुई है। कुछ लोगों का ये भी मानना है की खूंखार जंगली बदमाश यहां अक्सर घूमते रहते हैं जो नशे में धुत होकर किसी को भी मार देते हैं और इतने खून होने के कारण यहां एक मनहुसियत छाई रहती है। एक खामोश चीख सी महसूस होती है जिस कारण दिन में भी गुजरते हुए लोगों का बदन सिहर उठता है। शाम के बाद यहां से कोई नहीं आता जाता।
रोवन को अब किसी बात से डर नहीं लगता है क्यों के जब ज़िंदगी जीने के बजाए ज़िंदगी के दिन काटने पड़े तो सांसें बोझ लगने लगती हैं। ज़िंदगी जीने और काटने के फर्क को रोवन अच्छी तरह समझ चुका था।
मद्धम सी रौशनी बची थी। ये अंधेरी की चादर फैल जाने से पहले की हल्की सी रौशनी थी। रोवन तेज़ी से गुज़र रहा था। बाईं तरफ के जंगल से अचानक कोई भागा चला आया और चीखते चिल्लाते हुए रोवन के कार के सामने आया और हाथ हिला हिला कर रुकने का इशारा करने लगा। रोवन ने गाड़ी ठीक उसके आगे रोक दी। जब उसकी नज़र आदमी पर पड़ी तो रोंगटे खड़े हो गए। वो पूरी तरह खून से नहाया हुआ था। उसके बदन के कपड़े तक फटे थे जिसमे से उसका गहरा ज़ख्म खून के लाल रंग के बीच से जिस्म के चर्बी की सफेदी भी दिख रही थी। वो कार पर ज़ोर ज़ोर से हाथ मारने लगा और मदद की गुहार लगाने लगा।
उसे देख कर रोवन का दिल ठिठक गया। वो कार से उतर रहा था की इस से पहले एक लंबे नोक वाला हथियार जो हसुए जैसा दिखता था। कहीं से उड़ कर आया और उस आदमी का सर उड़ा दिया। गले में हथियार लगते ही सर उड़ कर दूर सड़क पर गिर गया और धड़ रोवन के कार के सामने पड़ा खून का फव्वारा छोड़ने लगा।
एक पल में ऐसा लगा के रोवन सांस लेना ही भूल गया हो। उसने बिना सोचे समझे कार से बाहर कदम रख दिया और सर से जुदा हुए धड़ को देखने लगा।
उसने अभी सोचा ही था के पुलिस को कॉल करे इतने में दो जंगली बदमाश वहां खिनौने हंसी के साथ चले आए। सिर्फ धोती बहने हुए खाली जिस्म जिसमे भैंस जैसे काले बाल दिख रहे थे। अपने अपने कंधो पर कसाई जैसे बड़े बड़े छुरा टांगे नशे में चूर आंखों से रोवन की ओर देखते हुए कहा :" एह चल निकल यहां से!... मरना है क्या?"
उन्हें देख कर रोवन का खून खौल उठा लेकिन उसके पास कोई हथियार नहीं था। गुस्से में उबलते हुए वो अपनी कार में बैठा और कार को कुछ फासले तक पिछे की ओर लिया फिर फुल स्पीड के साथ गाड़ी बढ़ा कर उन दोनों वहशी दरिंदों को टक्कर मारी। वो दोनों कार से टकरा कर सड़क के किनारे उड़ कर जा गिरे, रोवन उसी तेज़ी से अपने रास्ते चला गया। उसे ये मालूम नही था के वे इंसानी सूरत के हैवान ज़िंदा बचे भी या नहीं। जिसे बेरहमी से मारा गया था वो तो पड़ा ही था अब उसके कातिल भी वोही पड़े थे लेकिन उन दोनों में अभी जान बाकी थी। ज़िंदा तो थे लेकिन ये भी तय था की उनकी मदद को कोई नहीं आएगा।
लूसी के गर्ल्स लॉज में__
अंधेरा छा चुका था। दिन भर सोने के बाद अब लूसी ताज़गी महसूस कर रही थी। खुली हुआ में सांस लेने के लिए लॉज के बाहर आई। पिछे पिछे वर्षा भी चली आई। बाहर गार्डन जैसा बना हुआ था। उसके ठीक सामने से एक रास्ता गुजरता था जो कॉलेज से हो कर मार्केट में जा कर मिलता था। चांदनी रात थी और लाइट बल्ब की रौशनी में दूर दूर तक अंधेरा छट चुका था। वहां से उन दोनों ने रोवन की कार गुजरते हुए देखा।
वर्षा ने देखते हुए कहा :" ये डायरेक्टर सर की कार है! इस समय वो उधर से क्यों आ रहे हैं? उनका घर तो मार्केट की तरफ है।"
लूसी ने दूर जाते हुए कार को देखते हुए कहा :" तुम्हें बड़ा पता है की ये रोवन सर की ही कार है।"
" हां मुझे पता है क्यों के मैंने छुट्टी के समय उन्हें इसी गाड़ी में सवार हो कर निकलते हुए देखा था।"
वर्षा ने झट से जवाब दिया।
लूसी खामोश रही। उसके मन में भी कई सारे सवाल घूमते रहते जो वो रोवन से पूछना चाहती थी लेकिन रोवन से बात करना और उस से कुछ पूछना इतना आसान ना था इसके लिए उसे पहले उस से दोस्ती करनी होगी तभी शायद वो कुछ खुल कर बात कर सके लेकिन रोवन के रवैए से उस से दोस्ती करना भी न मुमकिन सा लग रहा था। वो अगर क्लास मेट होता तो भी बात बन सकती थी। लेकिन वो तो कॉलेज का मालिक है भला एक स्टूडेंट से वो क्यों बातें करने लगेगा।
लूसी के मन यही बातें चल रही थी।
दूसरे दिन कॉलेज में लूसी उस सफेद साड़ी वाली की राह तक रही थी कि शायद वो आज दिखेगी लेकिन सुबह से दोपहर हो गया वो अब तक एक बार भी नज़र नहीं आई। इस बात से लूसी मन ही मन खुश हो रही थी।
खुशी खुशी लेक्चर्स अटेंड किए फिर ब्रेक लेने के लिए ग्राउंड के गार्डन के पास आई और वहां रखे बेंच पर बैठी। वहां पहले से एक लड़का बैठा था जो बहुत उदास दिख रहा था। सुनी सुनी भूरी आंखे और हल्के घुंघराले बाल दरमियाना कद काठी थी उसकी। चौबीस पच्चीस साल का दिख रहा था। उसने कई सारे जेब वाले जींस और टीशर्ट पहन रखा था। उसकी नज़रे किसी एक तरफ टिकी हुई थी। देख कर लग रहा था के जैसे उसकी दुनियां ही उजड़ी हुई हो।
लूसी उसी बेंच में बैठी हुई उसे देखते हुए बोली :" तुम्हें क्या हुआ है?.... पनिशमेंट मिली है क्या?
उस लड़के ने झट से उसकी ओर देखा। उसे देखने के बाद अपने आसपास देखा। सवाल का जवाब देने के बजाए वो लूसी को गौर से देखने लगा। लूसी को वो थोड़ा अजीब लगा फिर नज़र अंदाज़ कर के बोली :" क्या हुआ!... तुम्हारा कोई दोस्त नहीं है क्या?
उसके फिर से सवाल करने पर उसने जवाब दिया :" नहीं! यहां मेरा कोई दोस्त नहीं है!"
वो दोनों बातें ही कर थे की इसी दौरान सामने वाले बिल्डिंग के बालकनी में खड़ा रोवन लूसी को देख रहा था। वो वहां जान बुझ कर नहीं आया बस एक संयोग था की लूसी उसे वहां दिख गई।
उसे देखते हुए वो थोड़ा ताज्जुब हुआ फिर गौर से देखने के बाद हक्का बक्का हो कर अपने आप में बोला :" ये पागल फिर से अकेले में बात कर रही है!.... लेकिन वहां किस से बात कर रही है। शकल देख कर तो नहीं लगता के अपनी भूत दुश्मन से बात कर रही हो!... लगता है कोई और भूत है। किसी ने इसे इसी तरह अकेले में बात करते देख लिया तो बहुत जल्द पागल घोषित कर दी जाएगी! मुझे इसे रोकना होगा लेकिन कैसे ?.... क्या करूं!... हां मेरे मोबाइल में उसका नंबर होगा! उसने अपना नंबर डायल किया था!... कॉल करता हुं।"
उसने जल्दी करते हुए अपने मोबाइल में उसका नंबर ढूंढा और कॉल किया।
लड़के ने लूसी से हिचकिचाते हुए पूछा :" क्या तुम इंसान ही हो या मेरी तरह.....
उसके बातों के बीच लूसी का फोन बजा। उसने रोवन का नंबर पहले से सेव कर रखा था। रोवन का कॉल देखते ही उसके दिल में धुकधूकी मची फिर हवा निगलते हुए फोन उठाया।
(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)