I can see you - 14 in Hindi Women Focused by Aisha Diwan books and stories PDF | आई कैन सी यू - 14

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आई कैन सी यू - 14

लूसी किसी छोटी बच्ची की तरह रोवन की बाहों में छुप गई थी और रोवन हल्का सा उसकी ओर झुका हुआ था। एक हाथ से लूसी को और एक हाथ से बुक शेल्फ को थामे हुए उसने तेज़ आवाज़ में कहा :" यहां से दूर जाओ मैं बुक्शेल्फ को सीधा करके रखता हूं।...जल्दी!"

लूसी जल्दी में किताबों की ढेर से होते हुए उस भूत के सामने गई जो बुक शेल्फ के दूसरी ओर खड़ा था। उसके सामने जा कर उस पर चिल्लाने लगी :" नालायक बदसूरत कहीं के!.... क्या किया तुम ने ये!... क्या मिला तुम्हें किताबों को गिरा कर! अगर रहना है तो शांति से रहो ना!... हम इंसान तुम्हें कौन सा चोट पहुंचाने जाते हैं। चलो अभी के लिए फूटो यहां से वरना देख रहे हो इस हथियार से मैं तुम्हें मार सकती हूं।"

उसने चाकू दिखाते हुए कहा तो भूत को हैरानी हुई और घबरा कर गायब हो गया। 

रोवन ने लकड़ी की बनी भारी बुक शेल्फ को सीधा खड़ा किया। उसके पीठ पर एक साथ मोटी मोटी किताबें गिरने से उसे चोट लगी थी लेकिन उसने जताया नही। लूसी उसके पास आई और चिंतित हो कर बोली :" सर आप ठीक तो है ना!.... आपके पीठ में चोट लगी है ना?

" मैं ठीक हूं! इन बिखरी हुई किताबों को देख कर लाइब्रेरियन का दिमाग खराब हो जायेगा! खैर अब क्या कर सकते हैं जो हुआ सो हुआ।"

उसने दोनों हाथों को आपस में झाड़ते हुए कहा।

रोवन अब इस लंबी रात से थक गया था। उसके दिल वो दिमाग में बहुत सारी बातें चल रही थी लेकिन वो कुछ भी बोल नही सकता था। सारी बातें अपने मन में दबाए हुए खामोशी से लूसी की बातें सुन रहा था। उस ने लंबी सांस लेते हुए कहा :"मिस साइरस!... क्या अब हम जा सकते हैं?

लूसी हिचकते हुए :" ह हां!... चलते हैं।"

लूसी नज़रे चुरा चुरा कर रोवन को देख रही थी। उसके नज़रों में कई सवाल घूमते हुए दिख रहे थे जिसे समझते हुए भी रोवन नज़र अंदाज़ कर रहा था। 

दूसरे बिल्डिंग में जाते हुए लूसी ने अपना मोबाइल निकाल कर देखा। देखते हुए उसने कहा :" मुझे लगा था मेरे फोन में कॉल्स की बौछार होगी लेकिन किसी का भी कॉल नहीं है सिर्फ वर्षा और रूमी का मैसेज है!... देखूं तो ज़रा यह दोनों क्या कह रही है।"

चलते हुए उसने मैसेज खोल कर देखा तो पाया के वर्षा ने लिखा था "मुझसे मिलकर तो जाती! इतनी भी क्या जल्दी थी तुम्हें घर जाने की?"

लूसी के होश उड़ गए जब उसने वर्षा के मैसेज के ठीक ऊपर वाला मैसेज देखा जो लूसी के तरफ से किया गया था। जिसमे लिखा था " वर्षा मैं अभी घर जा रही हुं! भैया मुझे लेने आएं है कल तक आ जाऊंगी! तुम आज अकेली हॉस्टल चली जाना।"

लूसी का मुंह हैरानी से खुला रह गया। उसने ताज्जुब से कहा :" ये तो बड़ी चालाक निकली!... उसने मेरे मोबाइल से वर्षा को मैसेज किया था। मतलब वो सच में भूत नहीं है। भूतों में दिमाग कम होता है। इसके बारे में मुझे पता करना होगा लेकिन ये सब मैं अकेली कैसे करूंगी।"

रोवन खडूस सा शकल बना कर :" तुन्हें किस ने कहा है चुड़ैलों की दादी अम्मा बनने के लिए!....ज़्यादा दिमाग मत लगाओ और इस खतरे से दूर रहो! खुद को देखा है तिनके जैसी दिखती हो! कभी तेज़ आंधी आई तो हवा में उड़ जाओगी!"

उसने तिरछी आंखों से उसे देखा फिर रूमी का मैसेज पढ़ा जिसमे लिखा था " इतनी हड़बड़ी में कहां चली गई? छुट्टी होते ही वर्षा यश के साथ चली गई पर उसके साथ मैने तुम्हें नहीं देखा!"

लूसी मैसेज पढ़ते हुए रोवन की ओर देखते हुए बोली  :" अब मैं रूमी को क्या जवाब दूं?.... वोही बोल देती हुं जो आपकी भूतनी ने वर्षा से कहा है।"

रोवन ने रूमी का नाम सुन कर असमंजस में कहा :" रूमी तुम्हारी फ्रेंड है क्या ?

लूसी  :" हां यहां आकर सब से पहले मैं रूमी से ही मिली!... आपकी भांजी अच्छी लड़की है।"

रोवन शक के लहज़े में बोला :" तुम्हें कैसे पता वो मेरी भांजी है?... भूत ने बताया तुम्हें?

लूसी :" नहीं रूमी ने ही बताया था! उसने गलती से बता दिया था। आप उसे इस बात के लिए डांटना मत!"

बातें करते हुए वे दोनों रोवन के घर पहुंचे। लूसी लिविंग रूम में खड़ी हो गई। उसे वोही रूक जाते देख रोवन ने मुड़कर कहा :" वहां सोफे पर बैठो या लेट जाओ! मैं मेडिसिन लेकर आता हुं।"

लूसी को तेज़ बुखार था। पर इन सभी मुसीबतों में उसने खुद पर ध्यान ही नहीं दिया न उसे इस बात का एहसास हुआ के उसे बुखार भी है। अब जब सब नॉर्मल हो गया तब उसे बेहद थकान महसूस होने लगी और दर्द से बदन टूटने लगा। धीरे धीरे चल कर सोफे पर बैठ गई और गहरी सांसे लेने लगी। 
कमरे से रोवन दवाई लेकर आया। उसे पानी का ग्लास और दवाई निकाल कर देते हुए कहा :" तुम्हें तेज़ बुखार है! ये लो दवाई खा लो!"

लूसी की पलकें भारी होने लगी थी। नींद तो थी नहीं लेकिन उसकी आँखें अब बोझ महसूस कर रही थी। थकी हुई आंखों से देखते हुए बोली :" आपको कैसे पता की मुझे बुखार है?

रोवन :" तुम्हारी आंखें और चहरा लाल हो गया है यहां तक के कान भी लाल है। एक्सीडेंटली ही सही पर मैं ने तुम्हें टच किया है जिस से मुझे पता चला के तुम्हारा बदन बुखार से तप रहा है।"

लूसी ने शर्मा कर नज़रे झुका ली। रोवन के चहरे को बिना देखे ही उसके हाथ से पानी का ग्लास और दवाई लेकर खा लिया। उसे समझ नहीं आ रहा था के उसकी धड़कन तेज़ क्यों है। बुखार की वजह से या शर्म की वजह से।

उसने मुंह लटका कर कहा :" अब मैं यहां से कैसे जाउंगी!... किसी ने मुझे आपके घर से सुबह बाहर निकलते हुए देख लिया तो न जाने क्या सोचेंगे!"

रोवन पास वाले सोफे पर बैठा। वो बहुत चिंतित दिख रहा था। उसके चहरे पर गहरे तनाव उभर आए थे। आंखें खोई खोई और झुकी हुई थी। बाहर से तो वो एक मज़बूत जिस्म का मालिक दिखाई दे रहा था लेकिन अंदर से अकेला और टूटा हुआ लग रहा था। ऐसा लग रहा था के बहुत कुछ कहना चाहता हो लेकिन उसने अपने दिल पर ताला लगा दिया हो जिसे वो चाह कर भी खोलना नहीं चाहता हो।

लूसी उसके चहरे को देख कर उसके गम को समझने की कोशिश कर रही थी।
वो कुछ देर वहां बैठा रहा फिर उठ कर बोला :" कुछ देर में तुम्हारा बुखार उतर जायेगा। सुबह छह बजे से पहले तुम्हें यहां से जाना होगा। मेन गेट की एक चाबी मेरे पास भी है। मैं गेट खोल दूंगा।"

ये सब कह कर वो जाने लगा लेकिन एक दो कदम चलने के बाद फिर से रुका और लूसी को हमदर्दी की नज़रों से देखते हुए कहा :" मिस साइरस!... तुम्हें आराम की ज़रूरत है। कल आराम करना और हो सके तो अपने घर चली जाना!....मैं नहीं चाहता मेरे कॉलेज में किसी तरह का कोई कांड हो जाए! आज तुम मरते मरते बची हो। यहां तुम्हें उस चुड़ैल से खतरा है।.... अब कुछ देर सो जाओ।"

ये सब कह कर वो तेज़ी से अपने कमरे में चला गया। लूसी उसे कुछ कह नहीं पाई क्यों के ऐसा लग रहा था के रोवन अंदर ही अंदर थक चुका है। अब वो कुछ सुनने और समझने के काबिल नहीं है। 


(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)