Shubham - Kahi Deep Jale Kahi Dil - 16 in Hindi Moral Stories by Kaushik Dave books and stories PDF | शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 16

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शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 16

"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -१६)

घर की जान होती हैं बेटियाँ
पिता का गुमान होती हैं बेटियाँ
ईश्वर का आशीर्वाद होती हैं बेटियाँ
यूँ समझ लो कि बेमिसाल होती हैं बेटियाँ

बेटो से ज्यादा वफादार होती हैं बेटियाँ
माँ के कामों में मददगार होती हैं बेटियाँ
माँ-बाप के दुःखको समझे, इतनी समझदार होती हैं बेटियाँ
असीम प्यार पाने की हकदार होती हैं बेटियाँ


डॉक्टर शुभम:-"बेटा, हम कॉलेज के दिनों से दोस्त हैं। हम एक-दूसरे को पसंद करते थे। लेकिन उसके पिता को यह पसंद नहीं था कि मैं मनोचिकित्सक बनूं। लेकिन आखिरकार रूपा ने उन्हें मना लिया। लेकिन..लेकिन..।"

यह कहते-कहते डॉक्टर शुभम अभिभूत हो गये.
उसने बात करना बंद कर दिया और हिचकियाँ लेने लगा।

प्रांजल ने तुरंत कहा:- "पिताजी, आप जल्दी से एक गिलास पानी लीजिए और पी लीजिए। लेकिन धीरे-धीरे पीना। चलिए शांति से बात करते हैं। आप आराम कीजिए। मुझे लगता है कि आप गंभीर हो गए हैं। कुछ तो है जिसके कारण आपको ऐसा करना पड़ रहा है। आप को मम्मी से शादी करने का अफसोस नहीं है ! एक बेटी होने के नाते मैं आप से ऐसा नहीं पूछ सकती, लेकिन आप मुझे अपनी बेटी के साथ साथ अपना दोस्त मानते हो, इसलिए मैं एक दोस्त के रूप में पूछती हूँ।"

शुभम:-' हां,बेटा तुम पूछ सकती हो। तुम समझदार हो। मेरी बातें सुनकर मेरी स्थिति समझ जायेंगी।'

प्रांजल:-' आप ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया।'

डॉक्टर शुभम:-"मगर बेटा, अब इस उम्र में यह पूछने का कोई मतलब नहीं है। मैं तुम्हारी माँ के प्रति संवेदनशील हो गया था मैं अपनी मर्जी से शादी करने के लिए तैयार हो गया था।"

प्रांजल:- "पिताजी, मैंने इसलिए पूछा क्योंकि मुझे लगता है कि आप मम्मी से शादी करके फंस गए थे। आप ने अपने प्यार का बलिदान दे दिया होगा।अगर मैंने आपको गलत समझा तो मुझे खेद है। मैं छोटे मुंह से बड़ी बातें करती हूं और बहुत ज्यादा बोलती हूं।"

डॉक्टर शुभम:- "बेटा, माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा सोचना उचित है। मेरे पास काम है इसलिए मैं तुमसे ज्यादा बात नहीं करता। लेकिन मैं तुम्हें और परितोष को हर दिन याद करता हूं। तुम दोनों जिगर के टुकड़े हो।" "

प्रांजल:-"पापा, देखो आप फिर से भावुक हो गए हैं। आप ही हैं जो कहते हैं कि हमेशा मुस्कुराते रहो, स्वस्थ रहो। अब एक बार मुस्कुराओ।"

प्रांजल की बात सुनकर शुभम हंस पड़ा.

शुभम:-"लेकिन बेटा, अगर मैं मुस्कुराऊंगा तो तुम्हें कैसे पता चलेगा?"

प्रांजल:-"मैं आपकी बेटी हूं। मुझे पता है कि आप हंसे थे। अभी आप हंस रहे थे। मुझे पता है कि आप मेरी बातों पर विश्वास करते हैं।"

शुभम्:-" अच्छा अच्छा.. मेरी माँ.. आप बिल्कुल मेरी माँ की तरह कहती हैं। मेरे हाव-भाव से उन्हें पता चल गया कि मेरे साथ क्या हुआ? तेरी दादी भगवान के पास चली गई लेकिन तुम मेरे पास आ गई हो। तुझे बोलते देखता हूं तो मुझे मेरी मां याद आ जाती है।"

प्रांजल:-"ओह..पापा। आप बहुत ज्यादा बोल रहे हैं। आपने मुझे संस्कार दिए हैं। मैंने अपने जीवन में कभी अपनी दादी या मां को नहीं देखा। आप ही मेरे माता-पिता और दादा-दादी हैं।"

डॉक्टर शुभम:- "बेटा, कुछ कहो जो तुम कहना चाहते थे।तुम अपनी बातें मुझे बता सकती हो।"


प्रांजल:-"पापा...हां याद आया। अब जमाना बदल गया है। उम्र के लायक वरिष्ठ नागरिकों की शादी भी अधिक उम्र में हो जाती है। अरे, मैंने यह भी पढ़ा है कि एक बिन मां की बेटी को अपने उम्र के लायक पिता के लिए योग्य दुल्हन मिल गई और उसकी शादी कर दी। बेटी के मन में अकेले रहने वाले पिता के लिए बहुत सारी भावनाएँ थीं, ताकि बेटी की शादी के बाद पिता को अकेलापन महसूस न हो। आपको पता चल जाएगा कि मेरा कहने का क्या मतलब है!"

डॉक्टर शुभम:- "नहीं.. मुझे यह नहीं पता था। बस एक ही बात मेरे ध्यान में आई कि अब बच्चे अपने अकेले रहने वाली मां या पिता की करा  रहे है। लेकिन मुझे नहीं पता कि तुम मुझे क्यों बता रही हो।"

डॉक्टर शुभम ने यह बात जानते हुए भी जानबूझकर कही।

यह सुनकर प्रांजल हंस पड़ी.
बोली:- "मेरे भोले पापा, ऐसा नहीं है कि आप नहीं जानते। लेकिन आप जानबूझकर इससे बचने की कोशिश करते हैं। आपके लिए अकेले रहना मुश्किल हो जाएगा। अगर मैं किसी युवक को पसंद कर लूं और उससे प्यार कर लूं, तो आप मेरी शादी कराओगे?मुझे बताओ कि चुने हुए युवक से शादी करनी चाहिए या नहीं या आपके पसंदीदा युवक से?"

डॉक्टर शुभम:-"जरूर मुझे तुम्हारी पसंदीदा युवक पसंद आयेगा। बड़ी सयानी हो गई हो । मैं अपनी पसंद तुम्हारी पर थोपना नहीं चाहता।क्या तुम्हारी नजर में ऐसा कोई युवक है? तुम्हारी कोई चोईस हो तो भी बता दो।अगर हां तो मुझे उसके पापा-मम्मी से बात करने को कहो। अच्छा हुआ आज तुमने अपनी मन की बातें कह दी।"

प्रांजल फिर हँस पड़ी।
बोला:- "नहीं, नहीं.. ऐसा कोई जवान आदमी पसंद नहीं आया। मैं सामान्य तरीके से बोल रही हूं। तुम तो कहते थे कि रूपा आंटी कॉलेज में तुम्हारे साथ थीं और तुम्हें पसंद थीं और आज भी तुम्हें पसंद हैं।"
( अब आगे क्या होगा? प्रांजल अपने पिता को क्या सुझाव देने वाली है? शुभम को सुझाव पसन्द आयेगा? जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे