रागिनी का जन्म एक ऐसी रात को हुआ, जो माँ दुर्गा के पूजन के दिनों में ख़ास मानी जाती है—नवरात्रि का चौथा दिन। रात के ठीक तीन बजे, जब चारों ओर सन्नाटा था और रात अपने पूरे अंधकार में थी, तब एक नई किरण इस संसार में आई थी। उस किरण का नाम रखा गया—रागिनी।
रागिनी के माता-पिता के लिए यह पल सपनों से भी सुंदर था। वह उनकी पहली संतान थी, जो एक नए उजाले का प्रतीक बनकर उनके जीवन में आई थी। उसका जन्म किसी आशीर्वाद से कम नहीं था, और इस शुभ मुहूर्त ने इस क्षण को और भी विशेष बना दिया। माँ दुर्गा की शक्ति के दिनों में जन्मी रागिनी अपने साथ एक अनोखा प्रभाव लेकर आई थी, मानो उसमें किसी देवी का साकार रूप हो।
उस रात, जब सब सो रहे थे, एक कमरा जाग रहा था। रागिनी के पिता अपनी पत्नी का हाथ पकड़े उस खुशी का इंतजार कर रहे थे, जो उनकी ज़िंदगी बदलने वाली थी। जब डॉक्टर ने कहा, "बधाई हो, बेटी हुई है," तो एक अलग सी खुशी में वे दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे। उस पल, उनकी ज़िंदगी में एक नई कहानी लिखी जा चुकी थी।
रागिनी अपने पिता की परछाईं थी। उसकी आंखें, उसका चेहरा, सब कुछ अपने पिता जैसा था। जिस तरह से लोग उसके पिता को देखकर सम्मान से सिर झुकाते थे, वैसे ही छोटी सी रागिनी भी आने वाले समय में अपनी पहचान बनाने वाली थी। जिसने भी उसका पहला दर्शन किया, सभी ने कहा, "बिलकुल अपने पिता पर गई है।"
रागिनी की परदादी के लिए, उसका जन्म एक वरदान था। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कई पीढ़ियाँ देखी थीं, लेकिन जब उन्होंने छोटी सी रागिनी को अपनी बाहों में उठाया, तो उन्हें लगा जैसे उनकी दुनिया फिर से जवान हो गई है। परदादी का तो रागिनी के साथ एक अनोखा रिश्ता बन गया था। रागिनी के आने के बाद से परदादी हर दिन खुद को और ज़िंदा महसूस करने लगी थीं। उनका हर एक पल रागिनी के साथ बीतने लगा था, और रागिनी भी उनसे अजीब तरीके से जुड़ी हुई थी, जैसे उसकी दुनिया के सभी राज़ उन्हीं के पास हों।
रागिनी के आने से घर का हर कोना रोशन हो गया था। उसका मासूम चेहरा, नरम स्पर्श और भोली हंसी, सबको अपनी ओर खींच लेती थी। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे रागिनी के साथ घर के हर सदस्य का लगाव बढ़ता गया। उसकी मां, जो पहले थोड़ी घबराई हुई थी, धीरे-धीरे अपने नए जीवन में एक मां के रूप में ढल गई। जब उन्होंने रागिनी को अपनी गोद में उठाया, तो उन्हें महसूस हुआ कि यह बच्ची सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का एक हिस्सा है।
रागिनी का जन्म रात के तीसरे पहर में हुआ था, जो समय स्वयं देवियों के जागृत होने का माना जाता है। शायद इसीलिए रागिनी में एक अलग ही बात थी, जैसे उसका जन्म किसी विशेष कार्य के लिए हुआ हो। उस रात के बाद से, हर दिन जैसे एक नए सपने का आगमन होता गया।
रागिनी की मां उसकी सुंदरता में खो जाती थी। जब भी रागिनी सो रही होती, मां उसका हाथ पकड़कर चुपके-चुपके उसकी नन्ही-नन्ही उंगलियों को देखती रहती। रागिनी की आंखों में एक गहराई थी, जैसे उसकी नन्हीं सी आंखों में पूरी दुनिया समाई हो।
परदादी, जो अपने समय में एक मजबूत और प्रभावशाली शख्सियत थीं, अब रागिनी को देखकर अपनी ज़िंदगी का हर पल नए तरीके से जीने लगी थीं। उन्होंने अपनी कई यादें, अपने जीवन के कई सबक, छोटी सी रागिनी को सिखाने का सोचा। उन्होंने मन बना लिया था कि रागिनी को वह सब सिखाएंगी जो उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों से सीखा था। परदादी के लिए रागिनी सिर्फ एक किताब नहीं थी, बल्कि एक जीवित कहानी थी, जो हर रोज़ नए पन्नों पर लिखी जा रही थी।
घर के सभी लोगों की चहेती बन चुकी रागिनी अपने अलग-अलग रंगों के साथ अपनी कहानी लिखने लगी थी। लेकिन सबसे गहरा लगाव उसका अपनी परदादी के साथ था। उसकी छोटी सी दुनिया में परदादी एक मार्गदर्शक थीं, जो उसे दुनिया के सभी रास्ते सिखाने वाली थीं।
यह कहानी अभी शुरू हुई है। रागिनी का यह सफर आगे कैसे बढ़ेगा? कौन से नए रंग उसके जीवन में आएंगे? और परदादी के साथ उसका रिश्ता कैसे एक नए मोड़ पर पहुंचेगा? यही सब देखना अभी बाकी है।